दिल की तन्हाईयों से ज़िन्दगी के रास्ते नहीं कटते,
तुम्हारे बिना हमारी तनहा रातें नहीं कटते.
तुमने तो अपने दिल को रख दिया है उस शहर में,
जिसके रास्ते हमारी मंजिल तक नहीं पहोचते.
अपने दिलं के रास्तों को ऐसे बंद मत करो,
क्यूंकि उसी की राह से हमारी भी सांसें है गुज़रते.
इतना रूठ कर कहा जाओगे हमसे,
आप के रास्ते तो हमारी ही मंजिल पर आकर रुकते.
Added by aleem azmi on December 9, 2010 at 6:00pm —
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खुशी मेरी छीन ली उसने ,
मुस्कुराना भुला दिया ..
गम दे दिया मुझे ,
ज़िन्दगी भर रुलाने के लिए ........
कैसे जीते वो बिचड़ के लोग
ये हमने जाना है ..
कैसे जिंदा है वो लोग ये हमने जाना है ..
हमने तो अपने कातिल को देखा तक नही ........
Added by aleem azmi on December 9, 2010 at 5:47pm —
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दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती
याद है वो पल जब सब साथ रहते थे
पर अब मुलाकात नहीं होती ..
दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती
ये शिकायत नहीं सिर्फ हाल है..
कुछ जिंदगी भर साथ रहने का इरादा बनाते थे
हम सब ये करेंगे, हम सब वो करेंगे..जाने क्या क्या बताते थे..
कुछ ऐसे हैं जी लिखचीत को समझते हैं यारी
कभी लगती ये आदत उनकी कभी लगती बीमारी
कोई कभी मिल जाते हैं रस्ते में
मुस्कुराकर छूट जाते हैं सस्ते में
मिलते हैं कुछ जब जमती हैं महफ़िल…
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Added by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 5:37pm —
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गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,
इंसानियत किसे कहते ये नहीं जाना ,
हैं मुझे आप सब को इतना बताना ,
सुनिए ये किस्सा अजब इसका नाता हैं ,
आई थी एक झोका आंधी की यैसी यारो ,
रातों की नींद गई ,
दिन का भी चैन हमारा ,
गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,
जिससे मैंने समझा अपना ,
रिश्ता न था कोई अपना ,
मन में बसा कर उसको ,
गले से लगा कर उसको ,
अपना बनाया उसको निकला बेगाना ,
गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,
इंसानियत के नाम…
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Added by Rash Bihari Ravi on December 9, 2010 at 1:54pm —
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 9, 2010 at 12:30pm —
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ग़ज़ल
मैंने दुनिया की दुश्मनी देखी, दोस्त तू भी मुझे भुला देना |
तेरे दिल को ये हक है चाहे तो, मेरा नाचीज़ दिल जला देना ||
तुझको हमराज़-हमनशीं कर के, मैंने खुशियों के ख्वाब देखे थे,
मुझसे गर भर गया हो…
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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 9, 2010 at 12:30am —
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जिसको करने में फ़रिश्ते भी शायद डरते हैं .
हम इन्सान उसको दिल लगाकर करते हैं.
हमको पता है ज़िन्दगी का मौत ही हासिल है.
फिर ज़िन्दगी के वास्ते हम क्यों गुनाह करते हैं?
किस्तों में मिट रही है पुरखों की मर्यादायें.
पर हम इसे विकास की एक नई सुब्ह कहते हैं .
किसने बदल दिया है इस मुल्क की आबोहवा?
लैला का नाम सुनकर जहाँ कैश सहमते हैं .
कायर के हाथ खंजर जब से लगा है पुरी.
परवरदिगार तब से हैरान से रहते हैं.
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611
Added by satish mapatpuri on December 8, 2010 at 3:00pm —
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फूलों से थी चाहत मुझे
गुलदानों का सपना था
तूने बागों में छोड़ दिया
मेरा सपना तोड़ दिया
यादों से मैंने चुन चुन के
रिश्ते अपने सोचे थे
पल भर में तूने मेरा
दुनिया से नाता जोड़ दिया
खतरों से टकराकर में
आगे बढना चाहता था
देख के मेरे ज़ख्मों को
खतरों का रुख ही मोड़ दिया
प्रीत को अपनी लिख लिख के
में गीत बनाना चाहता था
बीच में मीत मिला कर के
मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया
चारों ओर अँधियारा…
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Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm —
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शरद पूर्णिमा विभा
सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,
आज कलानिधि दिखे गगन में
शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
अम्बर और अवनि आँगन में
शक्ति, शांति का सुधा कलश,
उलट दिया प्यासी धरती पर
मदहोश हुए जन जन के मन,
उल्लसित हुआ हर कण जगती पर
जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,
अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर
देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,
जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर
कितना सुखमय क्षण था यह,
जब औषधेश सामीप्य निकटतम
दुःख और व्याधि… Continue
Added by Shriprakash shukla on December 7, 2010 at 9:00pm —
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आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '
न देख ख्वाब यह साक़ी की कोई थाम लेगा तुझको
संभले हुए दिल तेरी महफ़िल में नहीं आते.........
ज़िन्दगी में इंसान बहुत कुछ जीतता है और बहुत कुछ हार जाता है लेकिन हार कभी नहीं माननी चाहिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कभी तो मंजिल मिलेगी मंजिल कभी न भी मिले तो कम से कम उसके करीब तो पहुँच जाओगे
कमीं रह गयी
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी
अपनीं…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 3:25pm —
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कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं
हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं
ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं
सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं
Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm —
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भारत के लोगों में परोपकार की धारणा बरसों से कायम है। भले ही परोपकार के तरीकों में समय-समय पद बदलाव जरूर आए हों, लेकिन अंततः यही कहा जा सकता है कि लोगों के दिलों में अब भी परोपकार की भावना समाई हुई है। इस बात को एक बार फिर सिद्ध कर दिखाया है, बेंगलूर के आईटी क्षेत्र के दिग्गज अजीम प्रेमजी ने। उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपनी जानी-मानी कंपनी विप्रो की दौलत में से करीब 88 सौ करोड़ रूपये एक टस्ट को दिया है, जो काबिले तारीफ है। ऐसा कम देखने को मिलता है, जब कोई बड़ा उद्योगपति अपनी कमाई का एक बड़ा…
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Added by rajkumar sahu on December 7, 2010 at 12:15pm —
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आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '
इन आखरी पन्नों में ज़िन्दगी का दर्द है
कुछ हमनें झेला है कुछ आप बाँट लेना
मेरे क़त्ल-ओ-गम में शामिल हैं कई नाम
ज़िक्र आपका आए न बस इतनी दुआ करना
.......
आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है हो सकता है यह केवल एक ही पन्नें में ख़त्म हो जाए य सैंकड़ों हजारों और पन्ने इसमें और जुड़ जाएँ क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 11:55am —
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जिंदगी..©
जाने कितने रंग दिखावे है यह जिंदगी..
बिखेरने थे उसे जो हमसे चाहे ये जिंदगी..
माया फैला फँसा हमको देती है ये जिंदगी..
इशारों पर अपने है नाचती ये जिंदगी..
ना चाहें पर अपना बोझ लदाती है जिंदगी..
अनचाहे ही हम पर गहराती है ये जिंदगी..
कैसे पायें आज़ादी हम पे हावी है ये जिंदगी..
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (07 दिसंबर 2010)
Photography for both pictures :-
Jogendra… Continue
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 7, 2010 at 11:26am —
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अपना और पराया मौन:
अकुलाया अकुलाया मौन.
जीवन यज्ञ आहुति श्वास ;
धडकन मन्त्र बनाया मौन .
बोलना पीतल;यह सोना है ;
जो हम ने अपनाया मौन .
कभी सुहाग सेज पे लेटा;
शर्माया, सुकुचाया मौन.
कभी विरहाग्नि ने जी भर ;
तरसाया तरपाया मौन.
तिल तिल पलपल ही जीवनभर
देता साथ सुहाया मौन .
प्रेम पगी मीरा का मोहन ;
प्रेम गगन पर छाया मौन .
नाव की ठांव बना कबहूँ यह ;
कबहूँ पतवार बनाया मौन .
श्वासों की माला पे हमने ;
हर दिनरात फिराया…
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Added by DEEP ZIRVI on December 6, 2010 at 8:48pm —
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आखरी पन्नें
ज़िंदगी अपनी यादों की इक खुली किताब है
समेटे हुए हैं जिसमें हम अपने आस पास का दर्द
इसको खोलने से पहले बस इतना ख्याल रखना
आपके अश्क ढल न जाएँ दर्द मेरा देखकर
आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है
क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न कोई दिन तो एसा निश्चित किया होगा जिसका कल कभी न आयेगा मैं एक लेखक हूँ जिसे हर रोज़ कुछ न कुछ नया लिखने की चाह रहती है ,प्यास रहती है और मैं कुछ न कुछ लिखता…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 6, 2010 at 7:35pm —
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ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ
मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में
नाम उसका नहीं फ़साने में |
उन चरागों को दुआएं दे दूं
खुद जला मैं जिन्हें जलाने में |
चोंच खाली लिए लौटे पंछी
बच्चे भूखे रहे ठिकाने में |
कैसे कह दूं कि यह घर छोटा है
उम्र गुजरी इसे बनाने में |
तुम कि गंगा का दर्द क्या सुनते
तुम तो मशगूल थे नहाने में |
एक भरम है चमन की रंगों-बू
है मज़ा तितलियाँ…
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Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 4:16pm —
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ग़ज़ल:-जिस रोज़ से आईना
जिस रोज़ से आईना मेरे पास नहीं है
औरों को मेरी शक्ल का एहसास नहीं है |
उसको मैं अपने राज़ बताता भी किस तरह
बेहद अज़ीज़ है वो मेरा ख़ास नहीं है |
बूढ़े फ़कीर ने मुझे उड़ने की दुआ दी
फिर ये कहा तकदीर में आकाश नहीं है |
बेशक मेरे हैं पांव हुनर तेरा दिया है
तेरे बगैर चलने की अब आस नहीं है |
तालाब के करीब कहीं यक्ष तो नहीं
आकर क्यों लगा…
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Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 3:57pm —
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कुछ सशब्द,कुछ नि:शब्द सपने,
कुछ व्यक्त ,कुछ अव्यक्त सपने..
कुछ मौन कुछ कोलाहल पूर्ण..
कुछ सुंदर ,कुछ कुरूप सपने..
कुछ मधुर,कुछ कड़वे सपने..
कुछ तृप्त,कुछ अतृप्त सपने..
कुछ सजीव कुछ प्रस्तर खंड..
कुछ माने ,कुछ रूठे सपने..
कुछ शहनाई,कुछ बलि वेदी..
कुछ दुल्हन कुछ अरथी सपने..
कुछ ग्यान पूर्ण,कुछ अग्यानि..
क्च मानव कुछ…
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Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:30pm —
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ले चल अपने देस पिया जी , ये घर अब ना भाए..
जी चाहे,तेरी सुगंध ऐसे मुझ में बस जाए..
जो भी देखे मुझको ,मुझमें तेरी छाया पाए..
रोम रोम मेरा हर पल बस तेरी महिमा गाए..
मेरे होठों पे जब आएँ शब्द तेरे ही आएँ..
इस भौतिक जीवन में तो अब ना ये मनवा रम पाए..
दुनियादारी सोचने बैठूं, तुझमें सुध खो जाए..
ले चल अपने देस पिया जी ,ये घर अब ना भाए..
हर…
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Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:00pm —
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