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एक मासूम से अनोखी मुलाकात

रास्ते से गुजर रहा था

  ख्यालों में खोया हुआ

कुछ सपने बुन रहा था…

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Added by Mayank Sharma on December 30, 2010 at 10:31pm — No Comments

आदर्श पुलिस की संकल्पना अब भी अधूरी

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण को दस साल हो गए हैं और प्रदेश ने विकास के कई आयाम गढ़े हैं, लेकिन पुलिस की चुनौती कहीं से कम नहीं हुई हो, नजर नहीं आती। प्रदेश के हालात को देखें तो पुलिस की जवाबदेही पहले से अधिक और बढ़ गई है। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण अपराध में वृद्धि हो रही है, दूसरी ओर साइबर अपराध से निपटने राज्य की पुलिस के पास तकनीक का अभाव है। लिहाजा ऐसा कोई मामला आने के बाद पुलिस उस तरीके से छानबीन नहीं कर पाती, जिस तरीके से वे अन्य अपराधों के सुराग तलाशते हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस में निश्चित ही इन बीते… Continue

Added by rajkumar sahu on December 30, 2010 at 4:53pm — No Comments

बस उड़ो..





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Added by Lata R.Ojha on December 30, 2010 at 4:00pm — No Comments

हम चलते गए

ख्वाबों में हमने देखी एक दुनिया थी
हमराही थे वहां पे सारी खुशियाँ थीं
उम्मीद भरी इस आँखों से उनके लिए मचलते गए
हम चलते गए

अनजाने उस हमसफ़र की तलाश थी
होगा जहाँ से प्यारा दिल में आस थी
ढूँढने को उसे छोड़ा सब राहों में
गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए

सफ़र में इन राहों से पहचान हो गयी
अनजान जिंदगी आखरी अरमान हो गयी
तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए
हम चलते गए

Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm — 6 Comments

भ्रष्टाचार

आजकल इस शब्द का क्रेज कुछ इस कदर बढ़ गया है की गावं के चौक चौराहे से लेकर दिल्ली के संसद भवन तक यह शोर शराबे के साथ गूंज रहा है !कोई इस शब्द से अपनी राजनीती के तलवार को धार दे रहा है तो कोई अपनी छवि बचने में जुटा हुआ है !अर्थात अगर साफ़ शब्दों में कहा जाये तो यह भ्रष्टाचार शब्द काफी लोकप्रियता हासिल कर चुकी है साल २०१० में .मैंने अपनी कलम उठाई और सोचा कुछ लिखू इस भ्रष्टाचार पर लेकिन मेरी चल नहीं रही थी.क्योकि मुझे खुद पता नहीं है की यह भ्रष्टाचार है क्या?कुछ सवाल में मस्तिस्क में गूंज रहे थे… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on December 30, 2010 at 12:38pm — No Comments

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत





संजीव 'सलिल'



*

महाकाल के महाग्रंथ का



नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....



*

वह काटोगे,



जो बोया है.



वह पाओगे,



जो खोया है.



सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर



कर्म-मर्म सब आज तुल… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 10:10am — 3 Comments

बिदाई गीत: अलविदा दो हजार दस... संजीव 'सलिल'

बिदाई गीत:

अलविदा दो हजार दस...

संजीव 'सलिल'

*

अलविदा दो हजार दस

स्थितियों पर

कभी चला बस

कभी हुए बेबस.

अलविदा दो हजार दस...

*

तंत्र ने लोक को कुचल

लोभ को आराधा.

गण पर गन का

आतंक रहा अबाधा.

सियासत ने सिर्फ

स्वार्थ को साधा.

होकर भी आउट, न हुआ

भ्रष्टाचार पगबाधा.

बहुत कस लिया

अब और न कस.

अलविदा दो हजार दस...

*

लगता ही नहीं, यही है

वीर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 9:44am — 2 Comments

काश !!!

 

कैसी हो तुम?

वैसी ही शांत, संयमित और अपने को सहेजते हुए  I

 

भाग्यशाली है वह,

जो तुम्हारे साथ है

और सुन सकता है

तुम्हारे मौन द्वारा पुकारे उसके नाम को I 

 

भाग्यशाली है वो हवा,

जो अभी बहुत हल्के से

किरणों के बावजूद तुम्हे छूकर गई है I

 

भाग्यशाली है वो जल,

जो छोड़े जाने से पूर्व

तुम्हारी अंजलि में कुछ देर रुककर

तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाता है I

 

भाग्यशाली हैं वो कभी कभी कहे गये…

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Added by Veerendra Jain on December 29, 2010 at 5:30pm — 10 Comments

दस का दम

रोना -हंसना,कभी चिल्लाना,कभी ख़ुशी -कभी गम.
सारी दुनिया दंग रह गई, देख के दस का दम.
उठा खलीफा बुर्ज़ जहाँ में, शाने ईमारत बनकर. 
तो गिरा ईमारत दिल्ली में, एक कयामत बनकर.
भारत के रुपया को दस में, नया रूप-परिधान मिला.
अखिल विश्व की पांचवी मुद्रा, का उसको सम्मान मिला.
कभी किया दिल बाग-बाग,तो कभी किया बेदम.
सारी दुनिया दंग रह गई,देख के दस का दम.
चिकन- गोश्त में प्याज डालते, ये है कल की बात.
आज…
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Added by satish mapatpuri on December 29, 2010 at 3:00pm — 3 Comments

मित्र रुको मै आया

बीत गयीं हो सदियाँ जैसे

ओपन बुक से बिछुड़े ...

मित्र हमारे याद कर रहे

लेकिन उखड़े  उखड़े...

यहाँ एक अनजान शहर में

मै  हूँ  एक बेगाना

साथ मे मेरी रूग्ण संगिनी

मार रही है ताना

कैसे भूल न पाओगे अब

ओ.बी.ओ. की बातें ..?

बैठोगे अब ज़रा पास में

देख… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 29, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी

जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी

तो अनंत संसार में तुम्हारा क्या



जब मेंडक हो तुम कूंए के

तो दरिया क्या और किनारा क्या



जब भूल चुके हो अपनों को

तो संसार में तुमको प्यारा क्या



जब कूंद चुके हो दंगल में

तो दुश्मन क्या और यारा क्या



जब बाँट रहे खुले हाथों से

तो थोड़ा क्या और सारा क्या



जब धुल लिखी है किस्मत में

तो ज़मीन से ज्यादा न्यारा क्या



जब दुनिया का है इश्वर वो

तो मेरा क्या और तुम्हारा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 12:44pm — 4 Comments

Ek aur Gazal aap ke liye

ग़ज़ल 

अज़ीज़ बेलगामी 

मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी 

अगरचे आग बुझी है  धुवाँ धुवाँ  है  अभी

यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं…

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Added by Azeez Belgaumi on December 29, 2010 at 10:53am — 3 Comments

चलते गए ..



Continue

Added by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 2:30am — 5 Comments

कैसे ???????

मेरी…

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Added by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 2:00am — 3 Comments

मिटटी ,बांस और हम

मिटटी ...

नर्म होती है

जब गीली होती है

पक जाती है वह

जब आग पर

रंग ,रूप आकार नहीं बदलती //



बांस ...

जब कच्चा होता है

जिधर चाहो ,मोड़ दो

पक जाने पर

नहीं मुड़ेगा //



आदमी ...

कब पकेगा

मिटटी की तरह

बांस की तरह

शायद कभी नहीं क्योकि

दिल तो बच्चा है जी //…

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Added by baban pandey on December 28, 2010 at 11:00am — 2 Comments

विशेष रचना : षडऋतु-दर्शन --- * संजीव 'सलिल'

विशेष रचना :

                                                                                   

षडऋतु-दर्शन                 

*

संजीव 'सलिल'

*… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 27, 2010 at 11:54pm — 4 Comments

पानी के इस्तेमाल से कोडरमा के कई गांवों में दर्जनों लोग हुए विकलांग

झारखंड बिहार की सीमा पर बसे कोडरमा जिले के कुछ गांव ऐसे हैं जहां पानी के इस्तेमाल से बच्चे और बडे विकलांग हो रहे हैं। ये बदनसीब ऐसे कि पानी का घूंट लेते वक्त उनके हाथ-पैर कांपते हैं। इन गांवों में बडे भी खुद कब की लाठी थामे हैं, अब बच्चों को बैसाखियों के सहारे जिंदगी ढोते देख रहे हैं। कोडरमा घाटी में बसे गाव मेघातरी, उससे सटे विष्नीटिकर और करहरिया को विकास का… Continue

Added by sanjeev sameer on December 27, 2010 at 10:08pm — No Comments

महंगाई और दावे पर दावे

देश की सबसे बड़ी समस्या महंगाई ने बीते कुछ बरसों से इस कदर लोगों की फजीहत खड़ी की है, उससे घर का बजट ही बिगड़ गया है। हाल की महंगाई ने तो लोगों के कलेजे, चबड़े पर ला दिया है। जिस तरह देश में विकास का सूचकांक बढ़ने का दावा किया जा रहा है, उस लिहाज से महंगाई कई गुना ज्यादा बढ़ रही है और सरकार है कि दावे पर दावे किए जा रही है। एक बार फिर महंगाई के सुरसा ने मुंह फाड़ा तो जैसे-तैसे सरकार यह कह रही है कि मार्च तक महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा, मगर यहां सवाल यही है कि इससे पहले सरकार ने कई बार जो दावे किए थे,… Continue

Added by rajkumar sahu on December 27, 2010 at 3:37pm — No Comments

मैं कौन हूँ ,

मैं कौन हूँ?

ये सोच कर ,

विचार कर ,

परेशान हो गया ,

मेरी सोचने की क्षमता,

बेकार हो गई !



मैं कौन हूँ  ?

मन बोला मैं पंडित ,

मेरी बातो में दम हैं ,

इस धरती पर ,

सबसे बुद्धिशाली ,

मैं सबसे गुणी ,

मगर जो ,

हश्र रावण का हुआ ,

वो सोच मैं बेजार हो गया !



मैं कौन हूँ  ?

मगर मन भटकता रहा ,

अपने बल पे गरूर था ,

डरते हैं लोग सारे ,

अच्छो अच्छो को ,

पस्त कर डाला ,

मगर जो ,

हश्र…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on December 27, 2010 at 3:30pm — 14 Comments

निष्फल

बहुत कुछ सुना पर सीख न पाया

बहुत कुछ सूझा पर लिख न पाया



बहुत कुछ हुआ मेरे पीठ पीछे

मुडके देखा
तो कुछ और ही पाया



नमक के जैसी थी प्रकृति मेरी

पानी में घुला पर मिट न पाया



बन बोछार जब छलका में

चिकने घड़ों पे टिक न पाया



घूमता हूँ छुपाये कितने मोती में

खारा समुन्दर हूँ छुप न पाया



तंग होकर जब खुद को बेचने चला बाज़ार में

निष्फल था…
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Added by Bhasker Agrawal on December 27, 2010 at 8:30am — 9 Comments

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