For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Hari Prakash Dubey's Blog – December 2014 Archive (12)

जीवन तो है एक नदी

कभी निकटता रिश्तों में ,

ज्यों सागर की गहराई !

कभी दूरियाँ अपनों में,

ज्यों अम्बर की ऊँचाई  !

 

कभी सहजता चुप्पी में,

कभी जटिलता बोली में !

कभी बर्फ मैं ज्वाला किंतु,

आंच नहीं अब होली मैं !

 

कहीं मोहब्बत की म्यानों में,

रखी बैर की शमशीरें !

कहीं इबारत उलटी यारों ,

जहाँ लिखी हैं तक़दीरें !

 

कहीं सत्य एक झंझट,

कही झूठ है सुलझा !

कहीं किसी ने जाल बिछाया

खुद ही आकर उलझा…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

राम लीला (लघुकथा )

और भाई, इस बार तो तूने पूरी राम लीला देख ली क्या सीखा ?

भईया, रामचरितमानस की कथा के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की पिता का कहना नहीं मानना चाहिए, इससे बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:55pm — 9 Comments

बस प्यार ही जिंदगी होवे (गीत)

तू प्यार की राहों में चलना

बस प्यार ही जिंदगी होवे

तू यार तो सच्चा न हो

पर प्यार तो सच्चा होवे,-2

तू देख के लगे फकीरा

पर दिल का फ़कीर न होवे,

तू यार तो सच्चा न हो

पर प्यार तो…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 10:00pm — 14 Comments

वसुंधरा की त्रासदी/कारण था पतझार

वसुंधरा की त्रासदी,

कारण था पतझार !

वसन्त आगमन हुआ,

उपवन में आया निखार !!

 

प्रफुल्लित हुई नव कोपल,

पल्लव मुस्करा रहे !

सतरंगी सुमनों पर,

भ्रमर हैं मंडरा रहे !!

 

प्रकृति की सात्विक सुन्दरता,

अपनी प्रकृति मैं उतार लें !

आस्था, विश्वास के सूखे,

पल्लव को फिर संवार लें !!

 

संस्कारों की पौध लगा,

धरा को निखार लें !

प्रकृति के सन्देश को,

जन-जन स्वीकार लें…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 4:30am — 10 Comments

जब नए शब्द बुन लूँगा

कल से तुम नहीं 

तुम्हारी यादें आएँगी

गिरेगी बूंदें आँखों से

समुन्दर बन जायेंगी

रो- रो कर    मैं  भी

समुन्दर  भर  दूंगा

पर तुम्हे मन की बात कहूँगा

जब नए शब्द बुन लूँगा !! 

तुम साधारण नहीं

साधारण शब्द  तुम्हारे नहीं

तुम्हे प्यार करता हूँ

इन अर्थहीन शब्दों को,

तुमसे कभी नहीं कहूँगा

नयी उपमायें गढ़ लूँगा

पर तुम्हे मन की बात कहूँगा,

जब नए शब्द बुन लूँगा !!

 

तुमसे बात नहीं…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 11:00am — 5 Comments

मैं सूर्य के गर्भ में पला हूँ

मैं  सूर्य  के

गर्भ में पला हूँ

मैं अपने ही

अंतर्द्वंदों की आग में

तिल -तिल जला हूँ

अनगिनत दी हैं

अग्नि परीक्षायें

और उन क्रूर परीक्षाओं में

हरदम  खरा उतरा हूँ

आसमां से मैं

धरती पर गिरा हूँ 

अपने आप से ही

मैं निरंतर लड़ा हूँ

मैंने प्रसन्नचित्

मर्मान्तक पीड़ा के

पहाड़ को झेला है

हसं हसं कर

आग से खेला है

तपस्वी सा तपा हूँ

नहाया हूँ डूबकर

समुद्र…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 4:30am — 12 Comments

अन्धकार भी आज उदास है

भरी हुई मधुशालायें सारी

पीकर  सारे मस्त पड़ें हैं ,

मदिरालय पर लोगों का जमघट

अब मंदिर पर बंध जड़ें  हैं ,

मिटे दुःख दर्द गरीबी सारी

आया नव वर्ष उल्लास है ,

सुन्दर गति,सुन्दर मति सारी

अन्धकार…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:32pm — 15 Comments

कली तुझसे पूछूँ एक बात

कली तुझसे पूछूँ एक बात,

की जब होती है आधी रात,

कौन  भवंरा बनके चुपचाप,

तेरी  गलियों में आता है !!

 

कली  से काहे पूछे  बात,

की जब होती है आधी रात,

मैं महकती रहती हूँ चुपचाप,

बिचारा खिंच-खिंच आता है !!

 

कभी करता है मिलन की बात ,

सह काटों के आघात वो आधी रात,

नैन से नैन मिला कर चुपचाप,

वो  भवंरा खुद शरमा जाता है !!

 

सखी क्या कह दूँ दिल की बात ,

की अब तो ढलती जाए रात,

नैनों के…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 19, 2014 at 12:00am — 6 Comments

खुदा ने खुदकुशी कर डाली

महा-खुदा की अदालत में

खुदा आज रो रहा है

लाख  मनाने पर भी वो

चुप  नहीं हो रहा  है !!

 

कभी जाता है, सदमें में

कभी जोर से चिल्लाता है

अपनी, अपनों की हत्या में

मैं शामिल हूँ, दुहराता है !!

 

अव्यक्त था चिर निद्रा में

व्यक्त हुआ ब्रम्हांड रचा है

शुन्य से हुआ अनंत में

सृष्टी का निर्माण किया है !!

 

अभिव्यक्त हुआ कण-कण में

मनुष्य का निर्माण किया है

इतने  सुन्दर गुण डाले…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 2:00am — 11 Comments

कागज़ की लाशों पर

जब भी कलम उठाता हूँ

तुम्हे यादों में पाता हूँ

शब्द नहीं मिलते लिखने को

तेरा चित्र बनाता जाता हूँ !!

 

कितना कुछ है कहने को

जड़ जुबान हो जाता हूँ

अंतर्मन व्याकुल हो जाता है

उलझन में फंस जाता हूँ !!

 

मैं दबा कुंठित स्वर को

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ

फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!

 

कैसे करूँ दिल की बाते

जब हुई चार दिन मुलाकातें

मैं कैसे करूँ तुम्हे…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 17, 2014 at 2:00am — 9 Comments

तेरा दिया जन्म,मुझे स्वीकार नहीं

तेरा दिया जन्म

मुझे स्वीकार नहीं

जन्म स्थान

मुझे स्वीकार नहीं

यह नाम

मुझे स्वीकार नहीं

स्वीकार नहीं मुझे

कर्म करना, और   

भाग्य से बंध जाना

मुझे स्वीकार नहीं

स्वीकार नहीं मुझे

तेरे तथा-कतिथ दूतों के

नैतिकता-अनैतिकता के निर्देश

उनके छल भरे उपदेश

तेरे नाम पर रचे, उनके

षडयन्त्र भरे परिवेश

मैं विद्रोही तेरी माया का

आ ,मुझे नरसिंह बनकर

हिरण्यकश्यप की तरह मार दे

या…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments

खुदा को दो नयी मज़ार बनानी थी

छुपा कर दिल में रक्खी थी

बचपन में बनी प्रेम कहानी थी

 

तुम्हारे जिस पर नाम लिखे थे

दीवार वो, बहुत पुरानी थी

 

पगली ,इश्क में तेरे दीवानी थी

तूने फ़ौज मैं जाने की ठानी थी    

 

तुझे सेहरा बाँध के आना था

निकाह की रस्म निभानी थी

 

कुछ अजब तौर की कहानी थी

तेरी लाश तिरगे में आनी थी

 

उठ गए थे खुनी खंज़र

जान तो जानी ही थी

 

अरे आसमां से तो पूछ लेता

खुदा गर तुझे ,बिजली…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 1, 2014 at 11:00pm — 25 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service