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ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह दिसम्बर 2018 – एक प्रतिवेदनप्रस्तुति: डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तवरविवार 23 दिसम्बर 2018, को ओ.बी.ओ लखनऊ-चैप्टर द्वारा वर्ष की अंतिम ‘साहित्य संध्या‘ डा. गोपाल…Continue
Started Jan 13, 2019
रविवार दिनांक 02 दिसम्बर 2018 को 37, रोहतास एंक्लेव, फैज़ाबाद रोड स्थित ओबीओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक के घर एक विशेष बैठक हुई. इसमें वर्तमान प्रतिवेदक के अतिरिक्त डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव, डॉ अशोक…Continue
Started Dec 3, 2018
ओबीओ लखनऊ-चैप्टर का वार्षिकोत्सव - 2018 – एक प्रतिवेदनडॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तवओपन बुक्स ऑनलाईन के लखनऊ चैप्टर की नींव 18 मई 2013 के दिन एक अनाड़म्बर परिवेश में ओबीओ के संस्थापक की उपस्थिति में रखी…Continue
Started this discussion. Last reply by Shyam Narain Verma Dec 4, 2018.
ओबीओ लखनऊ-चैप्टर साहित्यिक संध्या, माह सितम्बर 2018 – एक प्रतिवेदन -डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव रविवार, 16 सितम्बर 2018 को 37,…Continue
Started Sep 28, 2018
शुभ जन्मदिन ओ.बी.ओ.
जन्मदिन फिर से आया है
नए वसंत का हार लिए
कविता, गीत, मुक्तक, ग़ज़ल के
अनुपम सब उपहार लिए.
(2)
कहीं परिचर्चा, कहीं टिप्पणी
कहीं पर मुक्त विचार मिले
यह वह उपवन है जिसमें
शिक्षा का हर फूल खिले.
(3)
मन की भावना व्यक्त करना ही
शब्दों का खेल है
फिर भी देखो विचित्र विचारों का
यहाँ कैसा मेल है.
(4)
यहाँ अग्रज हैं, हैं अनुज भी
कहीं लेखनी साज़…
ContinuePosted on April 1, 2016 at 2:49am — 4 Comments
बगावत
बगावत की है कलम ने
उसे भी अब आरक्षण चाहिए-
कुछ भी लिख दे
पुस्तकाकार में छपना चाहिए!
मैं अड़ गया अपना ईमान लेकर
तो
कलम ने अट्टहास किया,
तोड़ा, मरोड़ा, उखाड़ फेंका
उन शब्दों की पटरी को
जिन पर भूले-भटके
मेरी कल्पना की रेलगाड़ी
कभी-कभी खिसकती महसूस होती थी
और मैं बंद खिड़की के भीतर से
अनायास देखता रहता था पीछे सरकते
लहलहाते हुए, सूखाग्रस्त या
बाढ़ के गंदे पानी में…
Posted on February 25, 2016 at 9:52pm — 1 Comment
जाने क्यों
क्या ढूँढ़ने उतरते हो
रात के अंधेरे में ओ कोहरे,
चुपचाप, इस धरती की छाती पर
फिर अक्सर थक कर सो जाते हो
पत्तियों के ठिठुरते गात पर
और सहमी, पीली पड़ गयी
तिनके की नोक पर –
गाड़ी के शीशे से
न जाने कहाँ झाँकने की कोशिश में
चिपक जाते हो तुम,
अक्सर.
सुबह की थाप तुम्हें सुनायी नहीं देती
उद्दण्ड बालक की तरह
धरती का बिस्तर पकड़कर,
मुँह फेरकर सोये रहते हो
जब तक कि फुटपाथ पर
रात भर करवटें…
Posted on December 16, 2015 at 2:30am — 6 Comments
एक पहाड़ी स्त्री का दर्द
मेरे और उनके बीच
एक पारदर्शी दीवार खड़ी है.
वे हँसती, ठिठोली करती
कभी बुरांश की लाली को छेड़ती
चाय के बागानों में उछलती कूदती
मुझे बुलाती हैं –
मैं पारदर्शी दीवार के इस पार
छटपटाकर रह जाती हूँ.
जब काले-सफेद बादलों के हुजूम
आसमान से उतरते, वादियों से चढ़ते
उन्हें घेर लेते,
वे ओझल हो जाती हैं और,
मैं प्यासी, बोझिल ह्र्दय ले
पारदर्शी दीवार के इस पार
छटपटाकर रह जाती…
Posted on July 27, 2015 at 9:30pm — 9 Comments
हृदय की अतल गहराइयों से शुभकामनायें, भइयाजी..
जन्म दिन की हार्दिक बधाई | प्रभु आपको स्वस्थ,सुखी और दीर्घायु जीवन प्रदान करे |
आदरणीय शारदेन्दु जी
शायद मैंने यह नही कहा की आपकी कविता में कुंठा है i मैंने श्लोक के माध्यम से श्लोक रचनाकार की उस भाव्ना से परिचित कराने का प्रयास किया जिसमे वह कहता है कि कुंठा से कवियो में गुणवत्ता आती है i आपकी कविता तो तारक मंडल की तरह मृदु भावो से सुप्रकाशित है ही i सादर i
आदरणीयम जी
प्रिय ब्रजेश ने बताया कि 'परो को खोलते हुए ' आपसे मिल सकती है i मित्र आपकी भेट यात्रा का वादा तो अभी है ही i इस पुस्तक के साथ मिलन का गरिमा ही बढ़ जायेगी i सादर अभिवादन i
धन्यवाद शरदिन्दु. तुम्हारी रचना पढ़ने के लिए इससे अच्छी जगह और क्या मिल सकती थी! सर्वप्रथम तो तुमको अनेकानेक बधाईयाँ. अभी ओबीओ में नया हूँ. शीघ्र ही आदी हो जाऊंगा और तुमसे तथा अन्य मित्रों से और अधिक विचारों का आदान-प्रदान कर सकूंगा.
आदरणीय शरदेन्दु सर, नमस्कार ... बहुत -२ हार्दिक बधाई महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना पुरूस्कार से सम्मान होने के लिए .....
मित्र मुझे कुछ नहीं विचित्र चाहिए
स्नेह द्रष्टि आपकी पवित्र चाहिए
मै हृदय में कल्पना के रंग भर सकूं
मुझे एक कवि सा चरित्र चाहिए
गो न श्रीवास्तव
आपकी प्रशंसित रचना आँखों देखी - 5 आकाश में आग की लपटें के लिए आ.
श्री शारदिन्दु जी आपको
"महीने की सर्वश्रेष्ट रचना पुरस्कार" प्रदान किये जाने पर बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभ कामनाएं और जन्म दिन की भी दिली मुबारकबाद !!
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