बहर में लिखने का प्रथम प्रयास
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जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई
प्यास मेरी अधूरी यही रह गई
आशियाने बहे ना डगर ही मिली
सूचना आसमानी धरी रह गई
घोर तांडव हुआ खैर पा ना सके
फूल तोडा गया बस कली रह गई
ये कयामत चली लेखनी की तरह
ख़्वाब टूटे मगर चोट भी रह गई
ये ख़ुशी नागवारी खुदा को हुई
तो अकड़ आदमी की धरी रह गई
पेड़ काटे अगर तो सही त्रासदी
पेड़ रोपे…
Added by Sarita Bhatia on July 25, 2013 at 7:30pm — 15 Comments
जब तुम साथ न थे
प्रेम सुप्त पड़ा था
दिल मे दर्द बड़ा था
मरहम था तेरे पास
जब तुम साथ न थे ...............
हर रोज एक आशा
कब होगे मेरे पास,
मेरा दिल तेरे पास
तेरा दिल मेरे पास
जब तुम साथ न थे ..............
राह तकती थी अँखियाँ
सूनी सी थी पगडंडियाँ
न महकती थी फुलवारियाँ
बढ़ती जाती थी दुश्वारियाँ
जब तुम साथ न थे ....................
तेरा मुझको…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 25, 2013 at 5:00pm — 9 Comments
कभी न आएँगे तेरे दर पे
कि तेरे बिना
जीना मंजूर है हमें
कभी न ताकेंगे तेरे राह
कि तेरे बिना
जीना मंजूर है हमें।
एक आशियाना मिला था,
एक फूल खिला था,
जो मुरझा गया समय से पहले
उस फूल को लेकर
अब मैं कहाँ जाऊँ।
जिसमे सजानी थी
बचपन की यादें,
समेटनी थी कुछ खुशियाँ
तेरे साथ उन खुशियों को
ढूंढने अब मैं कहाँ जाऊँ।
एक शाम बितानी थी तेरे संग
दुनिया को भूलकर
आसमान छूना था,
उन सपनों को लेकर
अब मैं कहाँ…
Added by Lata tejeswar on July 25, 2013 at 4:00pm — 12 Comments
सोचता हूँ
क्या होगा
इस नीले आकाश के पार
कुछ होगा भी
या होगा शून्य
शून्य
मन सा खाली
जीवन सा खोखला
आँखों सा सूना
या
रात सा स्याह
कैसा होगा सबकुछ
होगी गौरैया वहां?
देह पर रेंगेंगी
चीटियाँ?
या होगा सब
इस पेड़ की तरह
निर्जन और उदास;
सागर की बूँद जितना
अकल्पनीय
बिना जाए
जाना कैसे जाए
और जाने को…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 25, 2013 at 10:30am — 18 Comments
(1)
औक़ात
भोर की दहलीज पर बैठा मैं,
ललचायी इच्छाएँ लेकर,
पर्वत निहार रहा था –
उनके शरीर से लुढ़क कर
वादियों में फैलती,
प्रभात की पहली किरण ने,
मुझे,
मेरी औक़ात बता दी.
(2)
दिन के झरोखे में बैठे
एक लम्बी सांस खींचे,
मैंने सूरज बनने की ठानी –
तैरते हुए बादल के
एक छोटे से टुकड़े की
छोटी सी छाँव ने,
मुझे,
मेरी औक़ात सिखा दी.
(3)
गोधूलि के धुँधलके में छिपकर
मैंने,…
Added by sharadindu mukerji on July 25, 2013 at 1:00am — 12 Comments
-एक दुधमुँहा प्रयास-
बहर -ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ
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पाँव कीचड़ से सने हैं और मंज़िल दूर है।
शाम के साए घने हैं और मंज़िल दूर है॥
तुम मिलोगे फिर कहीं इस बात के इम्कान पे,
फास्ले सब रौंदने हैं और मंज़िल दूर है॥
कौन हो मुश्किलकुशा अब कौन चारागर बने,
घाव ख़ुद ही ढाँपने हैं और मंज़िल दूर है॥
कल बिछौना रात का सौगात भारी दे गया,
अब उजाले सामने हैं और मंज़िल दूर है॥
धड़कनें भी मापनी हैं थामनी कंदील भी,
रास्ते…
Added by Ravi Prakash on July 24, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
फिर कोई आग बुन
क्यों बुझा- बुझा सा है,फिर कोई आग बुन
छेड़ कर सुरों के तार ,फिर कोई राग चुन ।
गहन अँधेरी रात में.भोर कीआवाज़ सुन
नींद से जाग जरा,फिर कोई ख्वाब बुन ।
मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़
हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन ।
वक्त रुकता नहीं कभी,वक्त की पुकार सुन
भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन ।
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महेश्वरी कनेरी /मौलिक व अप्रकाशित रचना
Added by Maheshwari Kaneri on July 24, 2013 at 9:00pm — 11 Comments
बचपन, पंछी और किसान
बचपन
अकेला बचपन,
न कोई संगी न साथी.
मुँह अंधेरे माता पिता घर से निकल जाते,
कर जाते मुझे आया के हवाले;
शाम को वे घर आते थके मांदे,
मैं रूठती अभिमान करती
तब पिता बड़े प्यार से कहते-
‘’बेटे! हम काम करते हैं तुम्हारे ही
उज्ज्वल भविष्य के वास्ते.’’
पंछी
सूनी आँखें ताक रही थीं
सूना आकाश,
बंद मुट्ठी में भुरभुरी हो कर,
बिखर रहे थे ज़मीन पर,…
Added by coontee mukerji on July 24, 2013 at 1:32pm — 6 Comments
खिड़कियाँ घर की तुम खुली रखना
नजरें दर पे ही तुम टिकी रखना
फिर से परवाना न मिटे कोई
बज्म में शम्मा मत जली रखना
दिल मेरा रहता बेक़रार बड़ा
तुम जरा सी तो बेकली रखना
कैद मुझको तू कर ले दोस्त मेरे
जुल्फ की ही पर हथकड़ी रखना
है हवाओं में अब जहर बिखरा
तू मगर आदत हर भली रखना
आरजू दिल में बस मेरे इतनी
अपने दिल में ही अजनबी रखना
आशु वो देगा सौं न पीने…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2013 at 1:00pm — 10 Comments
दोहे ( प्रथम प्रयास )
दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।
चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥
प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।
ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥
जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।
जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥
छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।
जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥
बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान…
ContinueAdded by बसंत नेमा on July 24, 2013 at 11:30am — 19 Comments
फिर वही गीत दुहराओ प्रिय
मन की सूखी धरती पर
कुछ बूंद प्रेम जल छलकाओ प्रिय
वीरान हो चला है हृदय
कुछ प्रेम पुष खिलाओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ....................
भग्न हदय सुप्त मन प्राण
अभिशापित सा हो चला जीवन
गहराती धुंध के बादल
कुछ रशमियां बिखराओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ...............अन्नपूर्णा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 11:00am — 19 Comments
घर मकान की आड़ में , बचा नहीं कुछ शेष!
मानव मद में डूबकर,बदल दिया परिवेश !!१
जल थल दूषित हो रहे, मानव फिर क्यों मौन ?
नयन खोल जब सो रहा , इसे जगाये कौन!!३
बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न…
Added by ram shiromani pathak on July 23, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
भुलाए पर, यहाँ तक भी न कोई ।
Added by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:30pm — 31 Comments
Added by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:28pm — 37 Comments
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हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?
बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।
यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,
बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।
भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,
फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।
निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,
दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,
मित्र! तय…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on July 23, 2013 at 8:00pm — 49 Comments
हैं माँग रहे हम……
Added by Abhishek Kumar Jha Abhi on July 23, 2013 at 5:00pm — 14 Comments
सुनो ऋतुराज! – ११
ये मान मनौव्वल, झूमा-झटकी
बरजोरी, करजोरी और मुँहजोरी
तभी तक, जब तक
इस वैभवशाली ह्रदय का
एकछत्र साम्राज्य तुम्हारे नाम है
जिस दिन यह रियासत हार जाओगे
विस्थापित होकर कहाँ जाओगे?
फिर हम कहाँ और तुम कहाँ
सुनो ऋतुराज
हर नगरी की हर चौखट पर
पी की बाट जोहती सुहागिने
मुझ जैसी अभागन नही होती
खोने को सुख चैन
पाने को बेअंत रिक्त रैन
सुख की अटारी और दुख की पिटारी
अब दोनो तुम्हारे नाम…
Added by Gul Sarika Thakur on July 23, 2013 at 3:30pm — 12 Comments
तुम्हारा प्रेम -
खुद तुम्हारा ही
गढ़ा फलसफा
सुविधाजीवी सोच से
तौला हुआ
नुक्सान नफ़ा
जब तुम कहते हो -
प्रेम है तुम्हें
बुनते हो
मोहक भ्रमजाल
अंतस- द्वीपों में
ज्यों भित्तियां
रचते प्रवाल
१- मित्रों की मंडली में
वह अनर्गल सी हंसी
देह के ही व्याकरण में
उलझकर रहती फंसी
हो न सकती
उसमें मुखरित
सहचरी या प्रेयसी
जब तुम कहते हो-
प्रेम है तुम्हें
झूठ होता है
वह…
Added by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 3:00pm — 12 Comments
चाँद यहाँ भी ,
Added by shubhra sharma on July 23, 2013 at 12:00pm — 20 Comments
अधिकार भरी मादकता से,दृष्टिपात हुआ होगा;
मन की अविचल जलती लौ पर,मृदु आघात हुआ होगा।
साँसों की समरसता में भी,आह कहीं फूटी होगी;
सूरज के सब संतापों से,चन्द्रकिरण छूटी होगी।
विभावरी ने आते-जाते,कोई बात सुनी होगी;
सपनों ने तंतुवाय हो कर,नूतन सेज बुनी होगी।
कितने पल थम जाते होंगे,बंसीवट की छाँव तले;
मौन महावर पिसता होगा,आकुलता के पाँव तले।
सन्ध्या का दीप कहीं बढ़ कर,भोरों तक आया होगा;
मस्तक का चंदन अनायास,अलकों तक छाया होगा।…
Added by Ravi Prakash on July 23, 2013 at 12:00pm — 7 Comments
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