21 21 21 21 2
एक और दास्तां सुनो
एक और खूँ चकां हुई
एक और दर्द बड़ गया
एक और राज़दाँ हुई
एक और दाग लग गया
एक और जाँ निहाँ हुई
एक और रूह जम गई
एक और ख़त्म जाँ हुई
एक और आग लग गई
एक और लौ तवाँ हुई
एक और फूल आ गया
एक और सब्ज माँ हुई
एक और हादसा हुआ
एक और बे अमाँ हुई
एक और बचपना गया
एक और रूह जवाँ हुई
एक और…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 14, 2021 at 8:27pm — No Comments
221 2121 1221 212
1
हैं आजकल के तिफ़्ल भी यारो कमाल के
रखते नहीं हैं दिल ज़रा अपना सँभाल के
2
जाने लुग़त कहाँ से ले आए निकाल के
लिक्खे जहाँ प माइने उल्टे विसाल के
3
अपनी शराफ़तों ने ही मजबूर कर दिया
वरना जवाब देते तुम्हारे सवाल के
4
नाज़ुक ज़रूर हूँ नहीं कमज़ोर मैं मगर
अल्फ़ाज़ लाइएगा ज़ुबाँ पर सँभाल के
5
कुछ तो जनाब बोलिए इस बेयक़ीनी पर
कहिए तो हम दिखा दें दिल अपना निकाल…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on February 14, 2021 at 11:20am — 8 Comments
काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments
2122/1212/22
1
साँप बनकर जो डस रहा है मुझे
दोस्त कह कर पुकारता है मुझे
2
उसका लहज़ा बता रहा है मुझे
अब न पहले सा चाहता है मुझे
3
दिल के चैन ओ सुकून की खातिर
ख़ुद को ख़ुद में ही ढूँढना है मुझे
4
हर घड़ी जिसको दिल में रखता हूँ
वो ही अंजान कह रहा है मुझे
5
क्यों पराया हुआ मैं अपनों में
यह सवाल अब भी सालता है मुझे
6
मय-कदे से उठा वो यह कह कर
घर भी 'निर्मल' सँभालना है मुझे
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Rachna Bhatia on February 13, 2021 at 10:46am — 12 Comments
मात शारदे सुन ले विनती,ज्ञान चक्षु तू मेरे खोल
मिट जाए सब कलुष हृदय का,वाणी में अमृत तू घोल
बासंती मौसम आया है,नव-नव पल्लव रहे हैं डोल
विश्व प्रेम का अंकुर फूटे,मंत्र कोई ऐसा तू बोल
ज्ञान की मन में जगे पिपासा,दे ऐसा आशीष अमोल
विद्या धन ही सच्चा धन है,ऐसा न कोइ खजाना अनमोल
आज खड़ी झोली फैलाए,मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल
दो बूंदें दे ज्ञान सागर की,मॉं दे दे ये वर अनमोल
मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल,मात शारदे कुछ तो बोल
तेरी माँ अब…
ContinueAdded by Veena Gupta on February 13, 2021 at 1:21am — No Comments
यह दुनिया है, या जंगल
आजकल पेशोपेश में हूँ,
इन्सान और जानवर का
भेद मिटता जा रहा है
मौका पाते ही इन्सान
हैवान बन जाता है
अकेले किसी अबला को
कही बेसहारा पाकर
कुत्तों सा टूट पड़ता है,
नोच डालता है अस्मत
किसी बेवा की, किसी कुंवारी की
परम्परा की बेड़िया काटकर शैतान
उजालों के अन्तर्ध्यान होने पर
बोतल से जिन्न निकलकर
विराट राक्षस होकर सड़क पर
आ जाता है,
मानवों का भक्षण करने
सड़क पर आ जाता…
Added by Chetan Prakash on February 12, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
2122 2121 1212 22
तुम जो साड़ी में यूँ खिलता गुलाब लगती हो
दिल ये कहता है की बस लाजवाब लगती हो
**
किस तराज़ी से तराशा है तुम्हें रब ने भी
दिल पे लगती हो तो सीधे जनाब लगती हो
**
हो गई सारी फ़ज़ा देख कर यूँ ही ताजा
चाँद जैसा है बदन पर खुशाब लगती हो
**
रोज़ करते हैं इबादत अज़ब करिश्मा है
आयतों की…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 12, 2021 at 10:30am — No Comments
कुछ रोज ठहर जाते तो अच्छा होता,
हमें छोड़ जाने से मुकर जाते तो अच्छा होता,
यूं तो कई लोग तन्हा सफर करते हैं लेकिन,
इस सफर में तुम भी साथ आते तो अच्छा होता...
वैसे तो तेरे दुपट्टे के सिरहाने पर भी नींद अच्छी आती है,
पर तेरी गोद में सर रखकर सोते तो अच्छा होता,
गुज़ार तो सकते ही है तेरे इंतजार में ये जिंदगी,
मगर वक्त रहते तुम मिल जाते तो अच्छा होता...
हम तो कहने को थे कि तुम हीं हो हमारी आखिरी मंज़िल,
लेकिन तुम भी…
ContinueAdded by Aditya lok on February 12, 2021 at 10:02am — 1 Comment
1222 1222 1222 1222
कहानी कोई हो अपने मुआफ़िक़ मोड़ लेते हैं
सभी किरदारों से किरदार अपना जोड़ लेते हैं
बड़ी तकलीफ़ देती हैं के चलती हैं ये साँसें भी
बड़े फाज़िल हैं हम भी रोज़ खुशियाँ जोड़ लेते हैं
ब-ज़िद हैं आस्तीं के साँप…
Added by Aazi Tamaam on February 11, 2021 at 10:00am — 2 Comments
2122 2122 2122 212
प्यार भी करता रहा दिल को जलाता भी रहा
जिंदगी भर मेरी चाहत आज़माता भी रहा
बेबसी की दास्तां किसको सुनाये दिल भला
उम्र भर गम भी रहा और मुस्कुराता भी रहा
बेकरारी में कोई पागल रहा कुछ इस कदर
लौ जलाता भी रहा और लौ बुझाता भी रहा
दिल्लगी भी क्या गज़ब की दास्तां है…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 11, 2021 at 12:00am — 4 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 10, 2021 at 3:30pm — 6 Comments
पूरी रात वह सो नहीं पाया था, आँखों आँखों में ही बीती थी पिछली रात. लेकिन कमाल यह था कि न तो कोई थकान थी और न ही कोई झल्लाहट. उसे अच्छी तरह से याद था कि इसके पहले जब भी रात को जागना पड़ जाए या किसी वजह से रात को देर तक नींद नहीं आये तो अगला पूरा दिन उबासी लेते और थकान महसूस करते ही बीतता था. उसे हमेश यही लगता रहा कि कहीं वह छोटा सा बच्चा उससे दब न जाए और उसी चक्कर में वह हर आधे घंटे पर उठ उठकर उसे देखता रहा. और वह बच्चा भी पूरी रात उसके बिस्तर पर घूमता रहा, कभी सिरहाने तो कभी पैरों की तरफ.पूरी…
ContinueAdded by विनय कुमार on February 8, 2021 at 11:11pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on February 7, 2021 at 2:30pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पहने हुए हैं जो भी मुखौटा किसान का
हित चाहते नहीं हैं वो थोड़ा किसान का।१।
*
बन के हितेशी नित्य हित अपना साधते
बाधित करेंगे ये ही तो रस्ता किसान का।२।
*
नीयत है इनकी खोटी ये करने चले हैं बस
दस्तार अपने हित में दरीचा किसान का।३।
*
होती इन्हें तो भूख है अवसर की नित्य ही
चाहेंगे पाना खून पसीना किसान का।४।
*
स्वाधीन हो के देश में किस ने उठाया है
रुतबा किया सभी ने है नीचा किसान का।५।
*
सब के टिकी हुई है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2021 at 10:28am — 10 Comments
जैसी भी हो बडी़ ख़ूबसूरत होती है ज़िन्दगी
जिन्दगी में नित नए मोती पिरोती है ज़िन्दगी
कहीं चंदा सी चमचम कहीं तारों सी झिलमिल
और कहीं सूरज सी रौशन होती है ज़िन्दगी
फूलों सी महकती कहीं, कहीं काँटों सी उलझ जाती ज़िन्दगी
कहीं नदिया की चंचल धारा,कहीं सागर सी ठहरी ज़िन्दगी
सुख दुख में अपने पराए की पहचान कराती है ज़िन्दगी
वक्त बदले तो राजा को भी रंक बनाती है ज़िन्दगी
ना जाने कैसे कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी
कभी सुख कभी दुख के…
ContinueAdded by Veena Gupta on February 7, 2021 at 3:25am — 1 Comment
2122 1122 2(11)2
ये अलग बात है इनकार मुझे
तेरे साये से भी है प्यार मुझे।
**
सामने सबके बयाँ करता नहीं
रोज दिल कहता है, सौ बार मुझे।
**
लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं बिक जाऊं अगर
तू खरीदे सरे बाजार मुझे।
**
था हर इक दिन कभी त्यौहार की तर्ह
भूल अब जाता है इतवार मुझे।
**
चाहकर मैं तुझे, मुजरिम हूँ तेरा
क्यूँ नहीं करता गिरफ़्तार मुझे
…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 6, 2021 at 11:30pm — 10 Comments
2212 - 1222 - 212 - 122
इक है ज़मीं हमारी इक आसमाँ हमारा
इक है ये इक रहेगा भारत हमारा प्यारा
हिन्दू हों या कि मुस्लिम सारे हैं भाई-भाई
होंगे न अब कभी भी तक़्सीम हम दुबारा
यौम-ए-जम्हूरियत पर ख़ुशियाँ मना रहे हैं
हासिल शरफ़ जो है ये, ख़ूँ भी बहा हमारा
अपने शहीदों को तुम हरगिज़ न भूल जाना
यादों को दिल में उनकी रखना जवाँ…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 6, 2021 at 7:27pm — 5 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 6, 2021 at 12:30pm — No Comments
राधे इस बार गाँव लौटा तो उसने देखा कि उसके दबंग पड़ौसी ने वाकई उसके दरवाजे पर अपना ताला जड़ दिया था ।
दर असल जयसिंह उसे कहता, " काम जब करते ही शहर में हो तो मकान हमें दे दो" कभी कहता, " मान जाओ, नहीं तो तुम्हारे जाते ही अपना ताला डाल दूंगा ।"
राधे को एकाएक कुछ सूझा, बच्चों और पत्नि को वहीं खड़े रहने को कहा, खुद भागा-भागा अपने दोस्त करीमू के पास जा पहुँँचा और बोला, " भाई करीमू, चल, चल जल्दी कर, बच्चे ठंडी रात मे घर से बाहर खड़े है, ताला खोल" ! चाबी मुझ से रास्ते मे खो गयी, इस…
Added by Chetan Prakash on February 5, 2021 at 5:00pm — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |