बिखरे हुए हैं गेसू इस इन्तजार में
Added by rajesh kumari on February 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments
आंधी हैं हवा हैं
बंधनों में क्या हैं
ये उफनता दरिया हैं
किनारे तोड़ निकला हैं
मस्ती में मस्तमौला हैं
मुश्किल में हौसला हैं
अपनी पे आजाए तो जलजला हैं
ये आज का युवा हैं
कभी बेफिक्री का धुआँ हैं
कभी पानी का बुलबुला हैं
कभी संजीदगी से भरा हैं
ये आज का युवा हैं
पंखों को फडफडाता हैं
पेडों पे घोंसला बनाता है
अब की उड़ना ये चाहता हैं
दाव पे ज़िंदगी लगता हैं
हारा भी…
ContinueAdded by shashiprakash saini on February 5, 2012 at 12:22am — 8 Comments
भरत की व्यथा
घनी अंधियारी काली रात ।
सूझता नहीं हाथ को हाथ ।
घोर सन्नाटा सा है व्याप्त ।
नहीं है वायु भी पर्याप्त ।
नहीं है काबू में अब मन ।
हुआ है जब से राम गमन ।
भटकते होंगे वन और वन ।
सोंच यह व्याकुल होता मन ।
नगर से बाहर सरयू…
ContinueAdded by Mukesh Kumar Saxena on February 4, 2012 at 8:51pm — 5 Comments
बन गया मुसाफिर इस दुनिया में
सुख दुःख की लाँघ सीमाओं को
सुबह से चलता चलता अब
सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
कोई पुकारता है दूर चट्टानों से
कोई ढूंढ़ता है मुझे मेरे बहानो से
उन झुरमुटों को साथ ले चला आया
मैं अब किस दिशा को बढ़ चला हूँ
कंधे पर भार लगते नहीं हैं
कोई पूछे सवाल कहारों से
सुबह से चलता चलता अब
सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
रोक कर कई पूंछते हैं
शहर किधर को…
Added by AJAY KANT on February 4, 2012 at 8:07pm — No Comments
भगवन कहां छिपे हो मुझको काल करो,
काल नहीं ना सही, प्रभु मिस काल करो ।
इक पल में ही काल रिटर्न करूँगा मैं,
किसी बात पर प्रभु ना ध्यान धरूँगा मैं,
अब तो मिलने की प्रभु कोई चाल करो। (भगवन कहां छिपे …)
अगर लाँग डिस्टेंस है तो कुछ बात नहीं,
चैटिंग का पैकेज तो मंहगी बात नहीं,
डेटिंग, चैटिंग कुछ तो सूरत-ए-हाल करो। (भगवन कहां छिपे…)
फ़ोन नहीं तो इंटरनैट पर आ जाओ,
स्काइप पे आकर प्रभुवर दरश दिखा…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 4, 2012 at 8:00pm — 3 Comments
बात करियॆ,,,,
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साफ़गॊई सॆ आप यूं, सब सॆ बात करियॆ ॥
जिस सॆ भी करियॆ, अदब सॆ बात करियॆ ॥१॥
बॆ-वज़ह बात करना, भी मुनासिब नहीं,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:30pm — 9 Comments
Added by dilbag virk on February 3, 2012 at 5:30pm — 8 Comments
ग़ज़ल...
Added by AVINASH S BAGDE on February 2, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
अभी तक गई नहीं तुम्हारी आदत
Added by rajesh kumari on February 2, 2012 at 11:39am — 11 Comments
कुछ दोहे श्रृंगार के
संजीव 'सलिल'
*
गाल गुलाबी हो गये, नयन शराबी लाल.
उर-धड़कन जतला रही, स्वामिन हुई निहाल..
पुलक कपोलों पर लिखे, प्रणय-कथाएँ कौन?
मति रति-उन्मुख कर रहा, रति-पति रहकर मौन..
बौरा बौरा फिर रहे, गौरा लें आनंद.
लुका-छिपी का खेल भी, बना मिलन का छंद..
मिलन-विरह की भेंट है, आज वाह कल आह.
माँग रहे वर प्रिय-प्रिया, दैव न देना डाह..
नपने बौने हो गये, नाप न पाये चाह.
नहीं सके विस्तार लख, ऊँचाई या थाह..
आधार चाहते…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2012 at 10:30pm — 3 Comments
कामनाएँ
साल दर साल रैन बसेरा के साथ मत दो
बस एक ख्याल ही अपना आने दो ।
गगन के विस्तार सा आयाम मत दो
बस एक कोने में सिमटा सूर्य बन रहने दो ।
सावन की हरियाली सा संजीवनी अहसास मत दो
बस एक अमलतास बन मुस्काने दो ।
सर्द रातों में बाहों के घेरे का जकड़न मत दो
बस टिकने के लिए कंधे का सहारा दे दो ।
आँखों में बंद ख्वाबों का आसरा मत दो
बस अपनी एक बेचैन पल का हवाला दे दो ।
दूब की मखमली चादर पर साथ न चलने दो
बस ओस की एक बूँद बन गिर जाने…
Added by kavita vikas on February 1, 2012 at 10:25pm — 3 Comments
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