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रमेश कुमार चौहान's Blog – February 2014 Archive (10)

कह मुकरियां (-रमेश चौहान)

कह मुकरियां

1.

श्‍याम रंग तुम्हरो लुभाये ।

रखू नैन मे तुझे छुपाये ।

नयनन पर छाये जस बादल ।

क्या सखि साजन ? ना सखि काजल ।

2.

मेरे सिर पर हाथ पसारे

प्रेम दिखा वह बाल सवारे ।

कभी करे ना वह तो पंगा ।

क्या सखि साजन ? ना सखि कंघा

3.

उनके वादे सारे झूठे ।

बोल बोले वह कितने मिठे ।

इसी बल पर बनते विजेता ।

क्या सखि साजन ? ना सखि नेता ।।

4.

बाहर से सदा रूखा दिखता ।

भीतर मुलायम हृदय रखता ।।

ईश्‍वर भी…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 17, 2014 at 9:28pm — 11 Comments

तड़प रहा मन

बासंती बयार

होले होले

बह रही है



तड़प रहा मन

दिल पर

लिये एक गहरा घाव

यादो का झरोखा

खोल रही किवाड़

आवरण से ढकी भाव



इस वक्त पर

उस वक्त को

तौल रही है



नयन तले काजल

लबो पर लाली

हाथ कंगन

कानो पर बाली



तेरे बाहो पर

मेरी बदन

झूल रही है



ईश्‍वर की क्रूर नियति

सड़क पर बाजार

कराहते रहे तुम

अंतिम मिलन हमारा

हाथ छुड़ा कर

चले गये तुम



तन पर… Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 14, 2014 at 10:54pm — 9 Comments

मिले दिल से साथ (नवगीत)

मंदिर मस्जिद द्वार

बैठे कितने लोग

लिये कटोरा हाथ



शूल चुभाते अपने बदन

घाव दिखाते आते जाते

पैदा करते एक सिहरन

दया धर्म के दुहाई देते

देव प्रतिमा पूर्व दर्शन



मन के यक्ष प्रश्‍न

मिटे ना मन लोभ

कौन देते साथ



कितनी मजबूरी कितना यथार्थ

जरूरी कितना यह परिताप

है यह मानव सहयातार्थ

मिटे कैसे यह संताप

द्वार पहुॅचे निज हितार्थ



मांग तो वो भी रहा

पहुॅचा जो द्वार

टेक रहा है माथ



कौन भेजा उसे यहां पर

पैदा…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 12:08pm — 6 Comments

प्रेम (गजल सह गीतिका छंद)

बहर - 2122, 2122, 2122, 212

प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है ।

प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।।



वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है ।

जीव में जीवन भरे यह, प्रेम से ही प्राण है ।।



पुत्र करते प्रेम मां से, औ पिता पु़त्री सदा ।

नींव नातो का यही फिर, प्रेम क्यो अनुदान है ।।



बालपन से है मिले जो, प्रेम तो लाचार है ।

है युवा की क्रांति देखो, प्रेम आलीशान है ।।



गोद में तुम तो रहे जब , मां पिता कैसे…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 7:30pm — 1 Comment

बिदाई (गीतिका छंद)

दें बिदाई आज तुम्हे, है परीक्षा की घड़ी ।
सीख सारे जो हमारे, तुम्हरे मन में पड़ी ।।
आज तुम्हे तो दिखाना, काम अब कर के भला ।
नाम होवे हम सबो का,  हो सफल तुम जो भला ।।

हर परीक्षा में सफल हो, दे रहे आशीष हैं।
हर चुनौती से लड़ो तुम, काम तो ही ईश है ।।
कर्म ही पूजा कहे सब, कर्म पथ आगे बढो ।
जो बने बाधा टीलाा सा, चीर कर रास्ता गढ़ो ।।

----------------------------------------------------

मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:00am — 12 Comments

एक तरही गजल (रमेश कुमार चौहान)

(बहर - 2122,2122,212)

पैर में क्यो गुदगुदी होने लगी
याद तेरी बेबसी होने लगी

वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी

अपने हाथो घाव ताजा कर रहा
जख्म स्याही लेखनी होने लगी

ये इबारत प्यार का है चेहरा
हर नए गम से खुशी होने लगी

तू नही तेरी निशानी ही सही
देख लो संजीवनी होने लगी
------------------------
मौलिक एवं अप्रका‍शित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2014 at 10:00pm — 7 Comments

सरस्वती वंदना (गीतिका छंद)

हे भवानी आदि माता, व्याप्त जग में तू सदा ।
श्‍वेत वर्णो से सुशोभित, शांत चित सब से जुदा ।।
हस्त वीणा शुभ्र माला, ज्ञान पुस्तक धारणी ।
ब्रह्म वेत्ता बुद्धि युक्ता, शारदे पद्मासनी ।।

हे दया की सिंधु माता, हे अभय वर दायनी ।
विश्‍व ढूंढे ज्ञान की लौ, देख काली यामनी ।।
ज्ञान दीपक मां जलाकर, अंधियारा अब हरें ।
हम अज्ञानी है पड़े दर, मां दया हम पर करें ।।
---------------------------
मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 4, 2014 at 6:00pm — 11 Comments

मदिरापान (दोहावली)

मदिरा सेवन जो करे, तन मन करते खाक ।

मान सम्मान बेचकर, बोल रहे बेबाक ।।



धर्म कर्म जाया करे, करते मदिरा पान ।

बीबी बच्चें रो रहे, देखो खोटी शान ।।



सुख दुख का साथी कहे, मदिरा को सम्मान ।

सुख में दुख पैदा करे, उसे कहां है भान ।।



पार्टी सार्टी है करे, जो हैं अप टू डेट ।

बाटली साटली रखे, कुछ करते अपसेट ।।



गरीब अमीर दास है, मदिरा है भगवान ।

वंदन करते शाम को, लगा रहे जी जान…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:00pm — 7 Comments

छप्पय छंद

छप्पय छंद (रोला+उल्लाला)

हिन्दी अपने देश, बने अब जन जन भाषा ।
टूटे सीमा रेख, हमारी हो अभिलाषा ।।
कंठ मधुर हो गीत, जयतु जय जय जय हिन्दी ।
निज भाषा के साथ, खिले अब माथे बिन्दी ।।
भाषा बोली भिन्न है, भले हमारे प्रांत में ।
हिन्दी हम को जोड़ती, भाषा भाषा भ्रांत में ।।
--------------------------
मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 4:07pm — 8 Comments

चोका

चारू चरण

चारण बनकर

श्रृंगार रस

छेड़ती पद चाप

नुुपूर बोल

वह लाजवंती है

संदेश देती

पैर की लाली

पथ चिन्ह गढ़ती

उन्मुक्त ध्वनि

कमरबंध बोले

लचके होले

होले सुघ्घड़ चाल

रति लजावे

चुड़ी कंगन हाथ,

हथेली लाली

मेहंदी मुखरित

स्वर्ण माणिक

ग्रीवा करे चुम्बन

धड़की छाती

झुमती बाला कान

उभरी लट

मांगमोती ललाट

भौहे मध्य टिकली

झपकती पलके

नथुली नाक

हंसी उभरे गाल

ओष्‍ठ…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 9:44am — 8 Comments

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