कह मुकरियां
1.
श्याम रंग तुम्हरो लुभाये ।
रखू नैन मे तुझे छुपाये ।
नयनन पर छाये जस बादल ।
क्या सखि साजन ? ना सखि काजल ।
2.
मेरे सिर पर हाथ पसारे
प्रेम दिखा वह बाल सवारे ।
कभी करे ना वह तो पंगा ।
क्या सखि साजन ? ना सखि कंघा
3.
उनके वादे सारे झूठे ।
बोल बोले वह कितने मिठे ।
इसी बल पर बनते विजेता ।
क्या सखि साजन ? ना सखि नेता ।।
4.
बाहर से सदा रूखा दिखता ।
भीतर मुलायम हृदय रखता ।।
ईश्वर भी…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 17, 2014 at 9:28pm — 11 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on February 14, 2014 at 10:54pm — 9 Comments
मंदिर मस्जिद द्वार
बैठे कितने लोग
लिये कटोरा हाथ
शूल चुभाते अपने बदन
घाव दिखाते आते जाते
पैदा करते एक सिहरन
दया धर्म के दुहाई देते
देव प्रतिमा पूर्व दर्शन
मन के यक्ष प्रश्न
मिटे ना मन लोभ
कौन देते साथ
कितनी मजबूरी कितना यथार्थ
जरूरी कितना यह परिताप
है यह मानव सहयातार्थ
मिटे कैसे यह संताप
द्वार पहुॅचे निज हितार्थ
मांग तो वो भी रहा
पहुॅचा जो द्वार
टेक रहा है माथ
कौन भेजा उसे यहां पर
पैदा…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 12:08pm — 6 Comments
बहर - 2122, 2122, 2122, 212
प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है ।
प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।।
वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है ।
जीव में जीवन भरे यह, प्रेम से ही प्राण है ।।
पुत्र करते प्रेम मां से, औ पिता पु़त्री सदा ।
नींव नातो का यही फिर, प्रेम क्यो अनुदान है ।।
बालपन से है मिले जो, प्रेम तो लाचार है ।
है युवा की क्रांति देखो, प्रेम आलीशान है ।।
गोद में तुम तो रहे जब , मां पिता कैसे…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 7:30pm — 1 Comment
दें बिदाई आज तुम्हे, है परीक्षा की घड़ी ।
सीख सारे जो हमारे, तुम्हरे मन में पड़ी ।।
आज तुम्हे तो दिखाना, काम अब कर के भला ।
नाम होवे हम सबो का, हो सफल तुम जो भला ।।
हर परीक्षा में सफल हो, दे रहे आशीष हैं।
हर चुनौती से लड़ो तुम, काम तो ही ईश है ।।
कर्म ही पूजा कहे सब, कर्म पथ आगे बढो ।
जो बने बाधा टीलाा सा, चीर कर रास्ता गढ़ो ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:00am — 12 Comments
(बहर - 2122,2122,212)
पैर में क्यो गुदगुदी होने लगी
याद तेरी बेबसी होने लगी
वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी
अपने हाथो घाव ताजा कर रहा
जख्म स्याही लेखनी होने लगी
ये इबारत प्यार का है चेहरा
हर नए गम से खुशी होने लगी
तू नही तेरी निशानी ही सही
देख लो संजीवनी होने लगी
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2014 at 10:00pm — 7 Comments
हे भवानी आदि माता, व्याप्त जग में तू सदा ।
श्वेत वर्णो से सुशोभित, शांत चित सब से जुदा ।।
हस्त वीणा शुभ्र माला, ज्ञान पुस्तक धारणी ।
ब्रह्म वेत्ता बुद्धि युक्ता, शारदे पद्मासनी ।।
हे दया की सिंधु माता, हे अभय वर दायनी ।
विश्व ढूंढे ज्ञान की लौ, देख काली यामनी ।।
ज्ञान दीपक मां जलाकर, अंधियारा अब हरें ।
हम अज्ञानी है पड़े दर, मां दया हम पर करें ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 4, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
मदिरा सेवन जो करे, तन मन करते खाक ।
मान सम्मान बेचकर, बोल रहे बेबाक ।।
धर्म कर्म जाया करे, करते मदिरा पान ।
बीबी बच्चें रो रहे, देखो खोटी शान ।।
सुख दुख का साथी कहे, मदिरा को सम्मान ।
सुख में दुख पैदा करे, उसे कहां है भान ।।
पार्टी सार्टी है करे, जो हैं अप टू डेट ।
बाटली साटली रखे, कुछ करते अपसेट ।।
गरीब अमीर दास है, मदिरा है भगवान ।
वंदन करते शाम को, लगा रहे जी जान…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:00pm — 7 Comments
छप्पय छंद (रोला+उल्लाला)
हिन्दी अपने देश, बने अब जन जन भाषा ।
टूटे सीमा रेख, हमारी हो अभिलाषा ।।
कंठ मधुर हो गीत, जयतु जय जय जय हिन्दी ।
निज भाषा के साथ, खिले अब माथे बिन्दी ।।
भाषा बोली भिन्न है, भले हमारे प्रांत में ।
हिन्दी हम को जोड़ती, भाषा भाषा भ्रांत में ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 4:07pm — 8 Comments
चारू चरण
चारण बनकर
श्रृंगार रस
छेड़ती पद चाप
नुुपूर बोल
वह लाजवंती है
संदेश देती
पैर की लाली
पथ चिन्ह गढ़ती
उन्मुक्त ध्वनि
कमरबंध बोले
लचके होले
होले सुघ्घड़ चाल
रति लजावे
चुड़ी कंगन हाथ,
हथेली लाली
मेहंदी मुखरित
स्वर्ण माणिक
ग्रीवा करे चुम्बन
धड़की छाती
झुमती बाला कान
उभरी लट
मांगमोती ललाट
भौहे मध्य टिकली
झपकती पलके
नथुली नाक
हंसी उभरे गाल
ओष्ठ…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 9:44am — 8 Comments
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