मैं हिला तक नहीं हूँ
उस जगह से
जहाँ तुमने छोडा था कभी
तुम लौट आये हो
कौनसा रास्ता आया है
लौटकर मुझ तक
खैर ! तुम्हारा कोई दोष नहीं है
तुम्हारे लौट आने में
ये रास्ते ही ऐसे हैं
घूम फिर कर
फिर आ पहुँचते हैं वहीं
जहाँ से चले थे कभी
राह से भटके हुये
ये भटकते हुये रास्ते
तुम लौट ही आये हो
तो कुछ देर आराम करलो
निकल जाना सुबह होते होते
फिर किसी भटकते हुये रास्ते के साथ
रोज कई रास्ते निकलते…
Added by umesh katara on March 1, 2015 at 5:00pm — 23 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 4:52pm — 22 Comments
दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?
इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?
साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर
लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
तूने जिसको अपनाया उसको खुदा बनाया
उनका नसीब है अच्छा मेरा खराब क्यों?
छोटी सी ये हस्ती में है कुल कमाल तेरा
बेहद का है तू दरीया फिर मैं हुबाब क्यों?
© हरि…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 1, 2015 at 2:34pm — 30 Comments
आम हूँ बौरा रहा हूँ
पीर में मुस्का रहा हूँ
मैं नहीं दिखता बजट में
हर गज़ट पलटा रहा हूँ
फल रसीले बाँट कर बस
चोट को सहला रहा हूँ
गुठलियाँ किसने गिनी हैं
रस मधुर बरसा रहा हूँ
होम में जल कर, सभी की
कामना पहुँचा रहा हूँ
द्वार पर तोरण बना मैं
घर में खुशियाँ ला रहा हूँ
कौन पानी सींचता…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on March 1, 2015 at 2:00pm — 14 Comments
बहर-
2122 1212 22
खुशनुमा ये सफ़र है क्या कहिये
साथ मेरे वो गर है क्या कहिये
आ गई जान पर है क्या कहिये
चाक मेरा जिगर है क्या कहिये
इश्क में जीत कुछ नहीं होती…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on March 1, 2015 at 11:30am — 29 Comments
बहिष्कार
“क्यों री आंनद की अम्मा ?अपनी देवरानी को शादी में नहीं बुलाईं क्या ?”निमन्त्रण पत्र पकड़ते हुए भोली की अम्मा यानि मायादेवी ने पूछा
“आपकी भी तो जेठानी लगती हैं |आपहि कौन उन्हें रामायण में बुलाई रहीं !” बिंदियादेवी ने मुँह बनाते हुए कहा
“हमार कौन सगी है,ऊपर से काम ही ऐसा करी हैं कि उन्हें बिरादरी से बहिरिया देना चाहिए |अपनी लड़की ही काबू में नहीं |पता नहीं कहाँ से मुँह काला कर आई |”
“हाँ दीदी ,सुना है चौका बाज़ार में बदरी बनिया के बेटे का काम था |जात-बिरादरी…
ContinueAdded by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:14am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 1, 2015 at 11:00am — 21 Comments
सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू
इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू
मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू
जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू
मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर
टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू
दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश'…
Added by दिनेश कुमार on March 1, 2015 at 1:00am — 12 Comments
२११--२११/२११--२११/२११ २
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
अच्छाई को ढाल बुराई की मत…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 12:30am — 10 Comments
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