गजल
औरों पे कभी, बोझ न बन,
बहरहाल जाँ सोज न बन।
कायम इज्जत रखनी हो तो,
मेहमां किसी का रोज न बन।
जो किश्ती को ही ले डूबे,
दरिया की वो मौज न बन।
बगैर दावतनामा कभी,
कही शरीके-भोज न बन।
अपने गिरेबाँ में रहा करो ‘चंदन‘
बेखुदी में राजा भोज न बन।।
Added by Nemichand Puniya on March 11, 2011 at 8:00pm — 2 Comments
मैं ख्वाबों मे तुझको देख पाउ तो कैसे,
मैं नजरों से तुझको हटाऊ तो कैसे ,
कई जिम्मेदारियाँ हे कंधे पर मेरे,
दो घड़ी हि सही,सो जाऊँ तो कैसे,
प्यार करते है जिसको दिलों जां से हम,
हाल-ए-दिल उसको मै बताऊँ तो कैसे,
जल रही हे ये आग…
Added by Tapan Dubey on March 11, 2011 at 6:00pm — 4 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on March 11, 2011 at 12:33pm — 1 Comment
Added by neeraj tripathi on March 11, 2011 at 11:30am — 3 Comments
Added by rajkumar sahu on March 11, 2011 at 11:22am — 1 Comment
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 11, 2011 at 12:00am — 6 Comments
Added by आशीष यादव on March 10, 2011 at 2:25pm — 15 Comments
प्रभु ये क्या गजब कर डाला ....
एक बार एक भक्त ,
भगवान शिव की ,
लगातार आराधना की ,
उसने भगवन शिव की ,
मन जीत ली ,
एक दिन भगवन शिव ,
दर्शन दिए ,
उससे बोले ,
एक वर मांगने के लिए ,
उसने सोचा ,
फिर बोला ,
भगवन मुझे किसी भी ,
त्रिसंकू बिधानसभा का ,
निर्दलीय सदस्य बना दो ,
प्रभु यही एक वर दो ,
भगवान शिव ने कहा ,
ऐसा ही होगा ,
इतना बोल भगवन कैलाश गए ,
तब माँ पार्बती ने कहा ,
प्रभु ये क्या गजब कर…
Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:30pm — 1 Comment
Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:30pm — 2 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:17pm — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 7:14pm — No Comments
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 9, 2011 at 6:43pm — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:46am — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:32am — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 12:11am — 1 Comment
हर अँधेरा ठगा नहीं करता
हर उजाला वफा नहीं करता
देख बच्चा भी ले ग्रहण में तो
सूर्य उसपर दया नहीं करता
चाँद सूरज का मैल भी ना हो
फिर भी तम से दगा नहीं करता
बावफा है जो देश खाता है
बेवफा है जो क्या नहीं करता
गल रही कोढ़ से सियासत है
कोइ अब भी दवा नहीं करता
प्यार खींचे इसे समंदर का
नीर यूँ ही बहा नहीं करता
झूठ साबित हुई कहावत ये
श्वान को घी पचा नहीं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2011 at 11:30pm — 6 Comments
Added by Julie on March 8, 2011 at 8:38pm — 9 Comments
दिन-प्रतिदिन स्वयं में ही ध्वस्त हो
विच्छेद हो कण-कण में बिखर जाती हूँ
आहत मन,थका तन समेटे दुःसाध्यता से…
ContinueAdded by Venus on March 8, 2011 at 5:30pm — 3 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on March 8, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
Added by दुष्यंत सेवक on March 8, 2011 at 12:00pm — 5 Comments
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