गंगा कहती रहीं-
‘और तुम्हारे ज्ञानी गण
केवल पारब्रह्म का रास्ता ही नहीं बताते
जिस पारब्रह्म का मन्दिर सिर्फ आत्मा होती है
धरती पर वे बताते हैं मन्दिर कहाँ बनेगा!
और यहां से उठ कर
किन दिलों को तोड़ना है
सब का हिसाब बना रखा है
सब व्यवस्था कर रखी है
मानव मल का बोझ मैं ढो लूंगी
पर मानवीय क्रूरता के इस अथाह मल को
वे मेरे पानियों…
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 17, 2013 at 8:06pm — 8 Comments
खुशियाँ जब जब आई हैं
मैने मुट्ठी भर भर बिखरा दिया है चारो तरफ
इस आशा से और दुवाओं से
कि लहलहाए खुशियां की हरियाली चारो दिशा|...
कल…
Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 17, 2013 at 7:24pm — 4 Comments
व्यंग्य कविता मेरी प्यारी
सच बिकना मुश्किल यारों झूठ के खरीददार बहुत,
इसलिए तो फलफूल रहा है झूठ का व्यापार बहुत।
सच बोलने वालों को तो झट सूली पे लटका देती,
झूठ बोलने वालों का साथ देती अब सरकार बहुत।
सब में चटपटी ख़बरें है मतलब की कोई बात नही,
वैसे तो इस शहर में यारों छपते हैं अख़बार बहुत।
भारत देश के नेता तो गिरगट को भी मात दे देते,
माहिर बड़े परिपक्क हो गए बदलते किरदार बहुत।
मालिक की मर्जी से ही बचता है किसी का…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on March 17, 2013 at 5:30pm — 1 Comment
दोस्तों मेरी किताब की मेरी प्यारी ग़ज़ल, आप को कैसी लगी sunday spacial.................
क्यों खफा हो कुछ बताओ तो सही,
हाल दिल का तुम सुनाओ तो सही।
हम फ़िदा तेरी अदा पे बावफा,
तेरा जलवा अब दिखाओ तो सही।
गर न समझे तो दुखी हो जिन्दगी,
नीर जीवन है बचाओ तो सही।
वो सितारा टूट कर क्यों है गिरा,
राज गहरा ये बताओ तो सही।
सांस लेना चाहते हो गर भली,
पेड़ धरती पे लगाओ…
Added by rajinder sharma "raina" on March 17, 2013 at 4:30pm — 4 Comments
बेरोजगार !!!
सुबह के सात बजे थे!
एक ही स्थान पर अट्ठारह चूल्हे जले थे!
कुल मिला कर बीस-पच्चीस मजदूरों का
भोजन तैयार हो रहा था!
पास ही एक सूखे पेड़ से टेक लगाये
बैठा इन्सान
घुटनों पर कुहनी
कुहनी पर तने हाथ की मुट्ठी पर
ठुड्ढी रखे
नजरों को अट्ठारहों चूल्हों की ओर घुमाता
आंसू बहाता
खाली पेट को रोटी और
रोटी से भूखी आत्मा को संतुष्ट करने की
सोच रहा था!
सहसा एक अश्रु बिंदु
मुह के कोर तक पहुंची
झट से इन्सान ने ढुलकते बिंदु…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 17, 2013 at 4:24pm — 4 Comments
पीर उठे नहि कष्ट घटे अरु, लागत रात बड़ी अधियारी !
आँखिन आँसु सुखाइ गया अरु, सेज जले जइसे अगियारी !!
आपन रूप बिगाड़ फिरे वह, ताकत राह खड़ी दुखियारी !
लोग कहे पगलाय गयी यह, लागत हो जइसे विधवारी!!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 17, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
हिम शिखर से तू आती हो
गंगा सागर तक जाती हो
सारी नदियाँ तुमसे मिलकर
गंगा बन आगे बढ़ती है
गंगा तू सुखदायिनी
स्वर्गलोक से पाप हरने
धरती पर तू सतत बहने
सगर पुत्रों को मोक्ष देने
शिव जटा से आयी हो
गंगा तू मोक्ष दायिनी
जड़ी बूटी तू साथ लिए
कल -कल छल -छल बहती हो
जाति -धर्म का भेद न जाने
तत्पर पल -पल रहती हो
गंगा तू आनंद दायिनी
दूर करो माँ कटुता पशुता
भर आयी जो जन -जन में…
Added by shubhra sharma on March 17, 2013 at 9:48am — 2 Comments
तुम्हारे उपवन के उपेक्षित कोने में
एक नन्हा सा घरौंदा है,
जहाँ मैं और मेरी तन्हाई
साथ-साथ रहते हैं –
क्या तुमने कभी देखा है ?
यहाँ तुम्हारे आंचल की सरसराहट
सुनाई नहीं देती,
तुम्हारी खुशी की खिलखिलाहट भी
मंद पड़ जाती है –
पर,
तुम्हारे गजरे का सुबास
स्वयम यहाँ आता है,
हर सुबह एक कोयल
कोई नया राग गाती है ;
हमने ओस की बूंदों को
पलकों का सेज दिया है –
क्या तुमने कभी जाना है…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on March 17, 2013 at 2:43am — 3 Comments
थका तन
थका मन
कैसे चले जांगर
क्या जा पाएंगे घर ?
हुक्म देने वाले
ठाने बैठे हैं जिद
एक काम होता नही खत्म
कि दूजे का हुक्म मिल जाता..
पंछी भी लौट आते
घर अपने
नियत समय पर
लेकिन हम पंछी नहीं
सूरज भी छिप जाता
क्षितिज पार
नियत समय पर
लेकिन हम सूरज नही
तो क्या हम समंदर की लहरें हैं
जो दिन-रात अनथक
आ-आकर टकराती रहतीं किनारों पर
और…
ContinueAdded by anwar suhail on March 16, 2013 at 9:00pm — No Comments
नापाक, पाक
हे निर्लज्ज निकर्ष्ठ पडोसी
तुझे कोटि कोटि धिक्कार है
पीठ पर बार करते हो
यही तुम्हारी हार है
हम सदभावी शांतिदूत
तुम हमें कमजोर आंकते हो
कायर बन चोर की मानद…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on March 16, 2013 at 1:30pm — No Comments
"फूल हो क्या तुम" ????
तुमसे खूबसूरत कौन होगा
क्या नाज़ुकी है
क्या तराश है
इस दुनिया मैं कोई नही
दूजा तुमसा
भँवरे तुम्हे यूँ भरमाते हैं
और तुम
इठलाने लगती हो
फूल हो क्या तुम ??
पता है
एक कोना होता है
जिस्म में
छोटा सा
जो हम सब को
सच ही बताता है
सच ही दिखाता है
रूको रूको
यूँ मत मुस्कुराओ
तुम जो सोच रही हो न !
दिल नहीं है
वो है दिमाग
जो काम नहीं करता
हाई टेक झूठ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 16, 2013 at 12:29pm — 4 Comments
माँ -
बहुत कोशिश की मैंने ,
इन आँसुओं को पीने की,
कुछ और,दिन जीने की।
इस अँधेरे , घर में,
जहाँ मेरा कुछ भी नहीं,
जहाँ मैं अभिशाप हूँ।
तुम्हारा कोई, पाप हूँ।
मगर मैं, अस्तित्वहीन ,
वेदना और दुख से क्षीण ,
आज भी, चुप-चाप हूँ।
यह मांग का सिंदूर,
जो सौभाग्य की निशानी है।
कैद मेरी आत्मा की,
अनकही, कहानी है।
जो कभी दुष्चक्र से,
निकल नहीं सकती।
मजबूर,अपने भाग्य को,
वह बदल नहीं सकती।
हर सुबह,जिसके…
Added by Kundan Kumar Singh on March 16, 2013 at 12:00pm — 7 Comments
सुधीजनो,
तोटकाचार्य आदिशंकर के प्रथम चार शिष्यों में से थे. ’आचार्यदेवोभव’ सूत्र के प्रति अगाध भक्ति के माध्यम से समस्त ज्ञान प्राप्त कर आप आदिशंकर के अत्यंत प्रिय हो गये. आगे, आदिशंकर ने बद्रीनाथधाम की स्थापना कर आपको वहीं नियुक्त किया था.
तोटकाचार्य विरचित तोटकाष्टकम् --इसे श्रीशंकरदेशिकाष्टकम् भी कहते हैं-- दुर्मिल वृत्त में है.
तोटकाष्टकम् का आधुनिक वाद्यों के साथ समूह-गान प्रस्तुत…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 11:30am — 12 Comments
एक मुक्कमल इन्सां .......]
ता उम्र टुकड़ों मे बंटता रहा
क्या मैं पूरा हूँ पूछ पूछ
आईने से लड़ता रहा
एक दिन वो भी सच बोल गया
गिर कर टुकड़ों मे बिखर गया
शांत झील मे पत्थर उछाल…
Added by pawan amba on March 16, 2013 at 10:00am — 1 Comment
मैं जिंदगी हूँ ,मेरा वजूद बहुत हसींन और सौम्य हैं | ताजे खूबसूरत खिलते गुलाब या मुस्कुराते/खिलखिलाते बच्चे सा खूबसूरत मेरा अस्तित्व हैं |वैसे तो मैं दुनिया के हर प्राणी में हूँ ,पर मैं खुद को इस पृथ्वी के सबसे खतरनाक जानवर ....इंसान के माध्यम से खुद को यहाँ व्यक्त कर रही हूँ |ज्यादातर इंसान मुझे ऑटोपायलट मोड पर रखते हैं ,उनकी जिन्दंगी में अगली क्या…
ContinueAdded by ajay yadav on March 15, 2013 at 11:30pm — No Comments
इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है
ये ज़माना अजल से है खराब क्या कहिये
खार दामन में रक्खे है गुलाब क्या कहिये
चंद खुशियाँ मिली थी इश्क में हमें लेकिन
दर्द दिल को मिला है बेहिसाब क्या कहिये
आब की जद में जब रहा वजूद कायम था
आ के बाहर खुदी मिटे हुबाब क्या कहिये
गर्दिशों से निकल के रौशनी में आते ही
टूट जाते हैं मेरे सारे ख्वाब क्या कहिये
बाद पीने के किसको होश क्या कहे न कहे
बोल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 15, 2013 at 10:34pm — 5 Comments
घन घोर घटा जब से बरसो, वन मोर नचावहिं मोर जिया।
बिहॅसे हरषे तन सींच गयो, जगती तल शीतल मो रसिया।।
बिजली घन बीच हॅसी गरजी, छल छन्द कियो बन गाज गिरी।
हिय जार गयी विष सौतन सी, मन त्रास घनी प्रिय नाथ नही।।1
बरखा बरखै असुआॅ टपकै, जिय शूल धंसे तन आग लगै।।
जर जाइ समूल न आश बंधे, कब आव पिया अब चात कहै।।
जर राख बनी उड़ जाइ चली, पिउ राह बिछी यहु चाह भली।
जहॅ पावॅ धरें हम धन्य लगी, पग धूलि बनी सिर मॅाग भरी।।2
कहॅु नीति कुनीति सुनीति नही, पर…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 9:00pm — 6 Comments
जब ढल जाती है रात
कृष्ण-पक्ष की काली गह्वर सी अकेली,
एक सितारा टिमटिमाता हुआ
उलटा लटका सा नज़र आता है.
शय्या पर बैठी उनींदी,
एक सांस खींचती गहरी सी,
खोलती हूँ जब आँखें पूरी
दूर कहीं निगाह भटक जाती है.
निःस्तब्ध रात्रि और मेरा अकेलापन
अपने विचारों को समेटती,
अनगिनत नक्षत्रों को गिनती
रहती हूँ शून्य में खोई सी.
दूर कहीं बादल भटकते,
कुछ यादें शूल से चुभते,
बाग में पत्रहीन वृक्ष भीड़ में…
Added by coontee mukerji on March 15, 2013 at 8:41pm — 4 Comments
एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --
जाने कैसी मारा मारी रहती है --
एक ही दफ़्तर हैं, दोनों की शिफ्ट अलग
सूरज ढलते चाँद की बारी रहती है --
भाग नहीं सकते हम यूँ आसानी से
घर के बड़ों पर…
Added by विवेक मिश्र on March 15, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 15, 2013 at 6:45pm — 6 Comments
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