221 1221 1221 122
तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह
तू है दुआ तो एक असर वाली दुआ रह
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तू अब्र है तो बर्क़ से झगड़ा न किया कर
हर हाल में पाबंद-ए-रह-ए-रस्म-ए-वफ़ा रह
**
तू शम'अ है तो ताक़ में रह कर ही जला कर
तूफ़ान है तो दिल में मेरे यार उठा रह
**
तू याद किसी की है तो हिचकी में समा जा
तू ज़ख़्म अगर दिल का है दिन रात हरा रह
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आज़ाद तेरे इश्क़ से हो पाऊँ न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 30, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल (1222 *4 )
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ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई
कभी तो जाग जाएगी मेरी क़िस्मत अगर सोई
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मेरे किरदार की दौलत रहे महफूज़, काफ़ी है
मुझे कुछ ग़म नहीं होगा मेरी दौलत अगर खोई
**
भले इल्ज़ाम मुझ पर बेवफ़ा होने का लग जाये
मगर बर्दाश्त कैसे हो उसे रुस्वा करे कोई
**
अभी भी रोक दो सब क़ह्र क़ुदरत पे न बरपाओ
अरे बर्बाद कर देगी कभी क़ुदरत अगर रोई
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मेरा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 29, 2020 at 12:00pm — 6 Comments
++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )
न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत
कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत
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ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में
सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत
**
दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे
कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत
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सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना
न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत
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जवानों के नए अंदाज़…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 26, 2020 at 8:30am — 6 Comments
एक गीत
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न भुज-बल है और न धन-बल ,
मनुज बड़ा सबसे बुद्धि-बल |
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अभिमानी करते हैं केवल नित्य प्रदर्शन अपने धन का |
डर फैलाते चन्द भुजबली रोब दिखाकर अपने तन का |
लक्ष्मी जैसे ही रूठेगी सर्वनाश होना निश्चित है |
मिला स्वयं से शक्तिमान तो गर्व नाश होना निश्चित है |
कहने का बस अर्थ यही है धन-बल भुज-बल हैं अस्थायी,
किन्तु भ्रष्ट नहीं हो जब तक
अक़्ल कभी न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
(1222 *4 )
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महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये
ग़रीबों के रुख़ों पर गर कोई मुस्कान ले आये
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किनारे पर हमेशा बह्र-ए-दिल के एक ख़तरा है
न जाने मौज ग़म की कब कोई तूफ़ान ले आये
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नहीं है मोजिज़ा तो और इसको क्या कहेंगे हम
ख़ुशी का ज़िंदगी में पल कोई अनजान ले आये
**
ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ
हमारी ज़िंदगी में मौत का सामान ले आये
**
कभी सोचा नहीं था घर बनेगा एक दिन ज़िंदाँ
मगर…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 22, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
( 212 1212 1212 1212 )
गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का
है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का
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जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा
इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का
**
हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार
इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का
**
बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से
क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का
**
सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर
देखना पड़े न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 20, 2020 at 8:30pm — 4 Comments
एक नज़्म-कोरोना
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ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है
मालूम नहीं है दुनिया को ये किसकी कार-गुज़ारी है
**
कुछ लोग अज़ाब इसे कहते कुछ कहते कि महामारी है
आसेब हक़ीक़त में अब ये सारी दुनिया पर भारी है
**
हल्के में मत लेना इसको ये रोग शरर भी शोला भी
बच्चों बुड्ढों की ख़ातिर यह क़ुदरत की आतिश-बारी है
**
हैरान परेशां कर डाला दुनिया के लोगों को इसने
घर को ज़िन्दान बनाना अब हर इंसां की…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 19, 2020 at 2:30pm — 6 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की
तमाम तोड़ हदें हमने दुनिया-दारी की
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करोगे बात किसी की गर इंतजारी की
जुड़ेगी इस से कहानी भी बेक़रारी की
**
जब आब सर से हमारे लगा गुज़रने तब
निराश होके सनम हमने दिलफ़िगारी की
**
रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले
हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की
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जूनून और गुमाँ में हुज़ूर भूल गए
क़सम भी कोई निभानी है राज़-दारी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 14, 2020 at 11:00am — 5 Comments
( 1212 1122 1212 22 /112 )
मज़ाक था वो मगर हमने प्यार मान लिया
कि ख़ुद को तीर-ए-नज़र का शिकार मान लिया
**
ग़मों को क़ल्ब का हमने क़रार मान लिया
ख़िज़ाँ के रूप में आई बहार मान लिया
**
ख़ुशी ने बारहा इतना दिया फ़रेब हमें
ख़ुशी को ज़िंदगी से अब फ़रार मान लिया
**
समझने सोचने की ताब खो चुके हैं हम
दिमाग़ में है हमारे दरार मान लिया
**
पिलाई साक़िया ने चश्म से हमें वो मय
हयात भर को चढ़ा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 12, 2020 at 9:30pm — No Comments
(2122 2122 2122 212 )
आइये फिर आरज़ू का जलजला दिल में उठा
आइये फिर दिल की वादी में चली बाद-ए-सबा
**
आइये फिर वस्ल का पैग़ाम ले आई हवा
आइये फिर से क़मर भी बादलों में छुप गया
**
आइये फिर से जवाँ है रात भी माहौल भी
आइये फिर आसमाँ पे छा गई काली घटा
**
आइये फिर मरमरी बाँहों में हमको लीजिये
आइये फिर ख़ुशबुओं ने दिल मुअत्तर कर दिया
**
आइये फिर कश्तियाँ ग़म की डुबोने के…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 11, 2020 at 10:00am — No Comments
( 221 2121 1221 212 )
ज़िन्दान-ए-हिज्र से अरे आज़ाद हो ज़रा
नोहे* तू क़त्ल-ए-इश्क़ के दुनिया को मत सुना
**
अक़्स-ए-रुख़-ए-सनम तेरे आएगा रू ब रू
माज़ी के आईने पे लगी धूल तो हटा
**
दुनिया में जीने के लिए हैं और भी सबब
चल नेकियों के वास्ते कुछ तू समय लगा
**
फिर साज़-ए-दिल पे छेड़ कोई राग पुरसुकूँ
दुनिया के वास्ते नया पुरअम्न गीत गा
**
हैं इंतज़ार में तेरी दुनिया की…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 10, 2020 at 2:00pm — No Comments
(1222 1222 122 )
सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र
रहेंगे क्या उसी में ज़िंदगी भर ?
**
किसी की ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
अगर ता-उम्र उसका ख़म रहे सर ?
**
तुम्हारी ज़िंदगी से कौन खेले
किसानों ख़ुदक़ुशी की रह दिखा कर ?
**
सियासत के मिलेंगे ख़ूब मौक़े
ज़रा हालात को होने दो बेहतर
**
तलातुम आजकल ख़बरों के आते
भरोसा कीजिए मत हर ख़बर पर
**
महामारी सुबूत अब दे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 9, 2020 at 8:00am — No Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
जुबान इतनी तेरी दोस्त आतिशीं मत रख
कि जिसमें मार* पले ऐसी आस्तीं मत रख (*सॉंप )
**
मैं तज़र्बें की बिना पर ये बात कहता हूँ
बहुत दिनों के लिए कोई दिलनशीं मत रख
**
सजाने ज़ुल्फ़ को कुछ देर यासमीं काफ़ी
तवील वक़्त की ख़ातिर तू यासमीं*मत रख
**
फिसलते दस्त हैं जब हमकिनार करता हूँ
क़बा पहन के नई यार रेशमीं मत रख
**…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 5, 2020 at 5:30pm — 2 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है
ख़िज़ाँ की उम्र में भी दिल मेरा गुलाबी है
**
अधूरा काम कोई छोड़ना नहीं आता
कि मुझ में बचपने से एक ये ख़राबी है
**
मेरे लिए ही सनम क्यों हया का है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 4, 2020 at 12:30pm — 8 Comments
अंतस के हिम निर्झर से जब
भाव पिघलने लगते है|
गीतों में ढलने को मेरे
शब्द मचलने लगते हैं ॥
***
लेखन आता नहीं मुझे पर लिखता हृद उद्गारों को |
और बुझा लेता हूँ लिखकर हिय तल के अंगारों को |
कहाँ निभा पाता हूँ अक्सर मैं छंदो का अनुशासन
अलंकार-से भूल गया हूँ शब्दों के श्रृंगारों को |
भाषा शुद्ध न हुई भले ही
लय सुर ताल रहे बाक़ी
बिम्ब-प्रतीक सृजन से जब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है
हयात जैसे बशर लग रही सिनाँ पर है
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हमारा मुल्क परेशान और ख़ौफ़ में है
सुकून-ओ-चैन की अब जुस्तजू यहाँ पर है
**
वजूद अपना बचाने में अब लगा है बशर
न जाने आज ख़ुदा छुप गया कहाँ पर है
**
बचेगा क़ह्र से कोविड के आज कैसे भला
बशर पे ज़ुल्म-ओ-सितम उसका आसमाँ पर है
**
वहाँ की प्यास भला दूर क्या करे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
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