एक क्षण ,
Added by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:30am — 18 Comments
भारत है मेरा देश इस पे जान मैं दूंगा|
हुवा जो इसपे वार सीना तान मैं दूंगा||
खाया है इसका अन्न फिर हक भी हम देंगे|
इसकी बचाने लाज को हम जान भी देंगे||
आया जो शत्रु सामने उसे चीर हम देंगे|
यही मुल्क है हमारा ये पहचान हम देंगे||
ये हिन्द वतन मेरा मैं हूँ हिन्द का वासी|
है उर्दू मेरे दिल में और मैं हिंदी का भाषी||
ओ अम्न के दुश्मन अरे गद्दार तू सुन ले|
कहता जो खुद को पाक ओ नापाक तू सुन…
ContinueAdded by Harish Upreti "Karan" on July 2, 2013 at 12:03am — 17 Comments
ग़ज़ल
आवारगी के सफ़र में थके-टूटे ये बदन भी,
मंजिलें तो क्या मिलीं, खो गए मसकन भी। मसकन - रिहायाशें, वास
सूरज के माथे पे उभरी देखी एक शिकन भी,
सहरा में उतरे जब कुछ मोम के बदन भी। सहरा - रेगिस्तान
ज़िस्म के अंधे कुँयें से कायनात में निकल,
ज़ेहन नाम का रखा है इसमें एक रौज़न भी। रौज़न - रौशनदान
वो फ़कीर मुतमईन था एक रिदा ही पाकर,
दामन है, ओढ़न-बिछावन है और कफ़न भी। …
ContinueAdded by सानी करतारपुरी on July 2, 2013 at 12:00am — 11 Comments
दूर देश में एक बड़ा ही खुशहाल गाँव था। वहाँ के जमींदार साहब बड़े अच्छे आदमी थे। उनकी हवेली में पूजा पाठ, भजन कीर्तन हमेशा चलता रहता था। गाँव वाले मानते थे कि इस पूजा पाठ के प्रभाव से ही देवताओं की कृपादृष्टि उनपर हमेशा बनी रहती है। गाँव के बड़े बुजुर्ग तो ये भी कहते थे कि जमींदार साहब के पूजापाठ की वजह से ही गाँव पर भी देवताओं की कृपा हमेशा बनी रहती है। इसीलिए पिछले पचास वर्षों से इस गाँव में अकाल नहीं पड़ा।
पर भविष्य किसने देखा था। कुछ वर्षों बाद वहाँ भीषण अकाल पड़ा। गाँव वाले…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 1, 2013 at 11:30pm — 11 Comments
एक~
*
नफ़रत जितनी उतना प्यार,
इन पर अपना क्या अधिकार,
एक बिंदु पर पड़ा ठहरना
सरहद को करना मत पार !
दो~
*
ये कैसी इसकी रफ़्तार ,
बहुत प्यार धीमा है यार ,
सीमाएं कुछ उनकी हैं तो
अपनी भी सीमा है यार !
तीन~
*
नफरत छोडो ,प्यार लुटाओ
खुशियाँ और सनेह…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 1, 2013 at 11:13pm — 9 Comments
"क्या लिखूं? "
ये सोच कर शुब्भु का दिमाग और दिल बहुत तेज रहा था. वह कॉलेज की जानी मानी वक्ता थी. जब भी कोई फंक्शन होता या कोई भी विचार गोष्ठी, श्ब्भु को अपना नाम नही देना पड़ता था। उसके साथ स्वमेव ही उसका नामांकन करा देते। शुब्भु को घर बैठे गृहकार्य भी मिल जाता, की राजीव का ब्रेक अप हो गया है तो दिल टूटने की कविता लिखनी है। शैलजा, आशुतोष को प्रपोस करना चाहती है तो उसे अपिलिंग लाइन्स लिख के देनी है। और न जाने कितने आयोजन ख़त्म होते तो बिना शुब्भु को बुलाये ये असम्भव ही न…
ContinueAdded by शुभांगना सिद्धि on July 1, 2013 at 9:42pm — 10 Comments
आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,
=================
सच ! तू ही अब सब कुछ बतला,मैं क्यॊं ्न तुझसॆ प्यार करूँ ॥
तॆरी कटुता कॊ जग मॆं, कॊई शमन नहीं कर पाता,
तॆरी ग्रीवा मॆं बाहॆं डाल, कॊई भ्रमण नहीं कर पाता,
भाग रहा जग दूर दूर, क्यॊं तुझसॆ कुछ तॊ बतला,
दुविधा का विषय यही, है जग बदला या तू बदला,
दुत्कार रहा सारा जग तुझकॊ,मैं क्यॊं न जग सॆ ्तक़रार करूँ ॥१॥
सच, तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर तॆरॆ हॊतॆ जग मॆं, कैसॆ असत्य का राज्य…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
आत्मा देखो मर गयी ,ह्रदय पाषाण हुआ !
मानवता मार चुके ,दिखते कसाई है !!
लूट पाट चोरी डाका ,इनका है काम यही !
लोगों का निचोड़ें खून ,चाटते मलाई हैं !!
भुखमरी से मरते,लोग बिलखाते जहाँ !
लाज शर्म पी चुके हैं ,भेजते दवाई हैं !!
ऐसे पापियों से…
Added by ram shiromani pathak on July 1, 2013 at 7:52pm — 10 Comments
थोथी-थूल दलील दे, भाँजे लापरवाह |
लीला लाखों जिंदगी, कातिल है नरनाह |
कातिल है नरनाह, दिखाए दुर्गति-लीला |
विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला |
धरे हाथ पर हाथ, मजे में बाँचे पोथी |
छी छी सत्ता स्वार्थ, थुड़ी थू थोथा-थोथी ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on July 1, 2013 at 7:33pm — 12 Comments
ग़मों में आपका यूँ मुस्कुराना अच्छा है
हंसी लबों पे रक्खे गम छुपाना अच्छा है
कोई कभी जो पूछे है सबब यूँ हंसने का
छुपा के चश्मेतर तो खिलखिलाना अच्छा है
मुझे तो हर घडी ये गलतियाँ बताता रहा
कोई कहे बुरा चाहे ज़माना अच्छा है
ग़ज़ब हैं खेल ये तकदीर के किसे क्या कहें
खुद अपने आप से ही हार जाना अच्छा है
वो जिसकी चोट से दिल जार जार रोया था
उसी की राह से पत्थर उठाना अच्छा है
महल न…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on July 1, 2013 at 6:17pm — 17 Comments
(1)
ये ईश का दरबार है ,
खुश रंग गलीचे बिछे है ।
अंबर का है तम्बू तना है ,
रवि चन्द्र तारे जगमगाते ।
कैसी ये मौजे बहार है ॥
(2)
नदियों मे बहता नीर है ,
वायु का वेग गंभीर है ।
सागर की है अनुपम छटा ,
जहां रत्न का भरा भंडार है।।
(3)
न्यायकारी निर्विकारी ,
तू जगत करतार है ।
तेरी महिमा अति अगम ,
नहीं जिसका पारावार है ॥
(4)
इकरार नहीं पूरा किया ,
ज्यो किया गर्भ मे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 1, 2013 at 6:00pm — 2 Comments
मित्रो इस बार नेट व्यवधान के कारन यह मुशायरा अंक में प्रस्तुत नहीं कर सकी थी , एक छोटा सा प्रयास किया था ...आपके समक्ष -- समीक्षा की अपेक्षा है;
चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
लोग कितने अजब है चल के देखते है
गली गली में यहाँ आज पाप कितना फैला
खुदा के नाम पे ईमान छल के देखते है
ये लोग कितने गिरे है जो आबरू से खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है
ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
बनावटी ये जहाँ से निकल के…
Added by shashi purwar on July 1, 2013 at 3:00pm — 14 Comments
बरखा छम छम आ गई ,लेकर सुखद फुहार
सावन के झूले पड़े ,कोयल करे पुकार
कोयल करे पुकार ,सबहीं का चित चुराए
मीठे मीठे आम ,सभी के मन को भाए
सखि न झूला सोहै ,ना ही चलत है चरखा
आय न सजन हमार,ना भाए रूत बरखा
........मौलिक व…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on July 1, 2013 at 1:00pm — 9 Comments
!! वो कौन था !!
आये तो कई लोग, ज़िन्दगी मे मेरी मगर ।
वो कौन था जो सीधे, दिल मे समा गया ।।…
ContinueAdded by बसंत नेमा on July 1, 2013 at 10:00am — 20 Comments
कश्ती को बस इक बार जताना है मुझे भी
जब तैर लिया, पार हो जाना है मुझे भी
जो अपने सिवा खास किसी को न समझते
कितना हूँ मैं दुश्वार बताना है मुझे भी
तूफाँ से यही बात कही, मैंने यहाँ पर
हर हाल चरागा ही जलाना है मुझे भी
अब छूट घटाओं को कभी दे नहीं सकता
पानी तो हर एक हाल पिलाना है मुझे भी
मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना
जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी
जो आग लगाना ही बड़ा काम…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 1, 2013 at 7:00am — 17 Comments
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