मापनी 2122 2122 212
दूर से नजरें मिलाते रह गए हम
पास उनके आते’ आते रह गए हम
कान पर जूं तक न रेंगी साहिबों के,
हक़ की खातिर गिड़गिड़ाते रह गए हम
तल्खियाँ हर बात में उनकी रहीं हैं,
प्यार की धुन गुनगुनाते रह गए…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2017 at 1:25pm — 14 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलात
मापनी २२१/२१२१/१२२१/२१२
करते नहीं हैं’ लोग शिकायत यहाँ हुजूर,
थोड़ी तो’ हो रही है’ मुसीबत यहाँ हुजूर.
बिकने लगे हैं’ राज सरे आम आजकल,
चमकी खबरनबीस की’ किस्मत यहाँ हुजूर.
बिछती कहीं है’ खाट, कहीं टाट हैं बिछे,
हो हर जगह रही है’ सियासत यहाँ हुजूर.
पलते रहे हैं’ देश में जयचंद हर जगह,
पहली नहीं है’ आज ये’…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 26, 2017 at 1:00pm — 6 Comments
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी' की आपने सियासत की.
प्यार पूजा सदा ही हमने तो,
आपने कब इसकी इबादत की
जुल्म धरती ने सह लिए सारे,
आसमां ने मगर बगावत की
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 25, 2017 at 10:10am — 10 Comments
जिन्दगी की रेलगाड़ी,
भागती सरपट चली.
मिल न पायीं दो पटरियाँ,
साथ पर चलती रहीं.
देख कर अपनों की खुशियाँ,
दीप बन जलती रहीं.
दे गयी राहत सफर में,
चाय की इक केतली.
मौसमों की मार…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 23, 2017 at 1:11pm — 9 Comments
निर्दोषों के हत्यारों की,
क्या बस निंदा काफी है.
घाटी में आतंकी मिलकर,
दिखा रहे हैं दानवता.
हृदय विलखता लिए हुए हम,
ओढ़े बैठे सज्जनता.
तड़प रही है भारत माता,
जयचंदों को माफ़ी है.
जाति धर्म की राजनीति में,
इंसान हो रहा गायब.
चमचों की कोशिश रहती है,
रहे हमेशा खुश साहब.
भोली जनता को गोली है,
पल पल नाइंसाफी है.
टूट गए हैं सारे…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 18, 2017 at 4:52pm — 12 Comments
घर टूटे मिट गए वसेरे,
महलों में आवास हो गया.
ऊँचे कद को देख लग रहा,
सबका बहुत विकास हो गया.
भूल गए पहचान गाँव की,
बसे शहर में जब से आकर.
नहीं अलाव प्रेम के जलते,
सूनी है चौपाल यहाँ पर.
अधरों पर मुस्कान…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 18, 2017 at 9:25am — 8 Comments
मापनी २२१२ २२१२ २२१२
आ तो सही एक बार मेरे गाँव में
अद्भुत अतिथि सत्कार मेरे गाँव में
हर वक्त रहते हैं खुले सबके लिए
सबके दिलों के द्वार मेरे गाँव में
तालाब नदियाँ और पनघट की छटा
है प्रीति का…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2017 at 9:44am — 20 Comments
नवसृजन कर हम बनाएँ,
एक भारत श्रेष्ठ भारत
काम हो हर हाथ को,
ख़त्म हो बेरोजगारी.
हो न शोषण बालकों का,
और हो भय मुक्त नारी.
आचरण में भ्रष्टता से,
मुक्त हो अपनी सियासत.
शांति के हम दूत बनकर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 11, 2017 at 8:41am — 10 Comments
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