Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 3:39pm — No Comments
ईद का दिन है सबसे मुहब्बत करो
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 31, 2011 at 10:00am — 4 Comments
ग़ज़ल :- तलवार की बातें करो छोडो मयान की
अब क्या बताएं आपको दुनिया जहान की ,
ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 31, 2011 at 9:41am — 4 Comments
हमारा देश अनंत विविधताओं से ओत-प्रोत है। 33 करोड़ देवी-देवताओं से हममें से हर कोई कुछ न कुछ मांगते रहता है। भगवान भी देर से ही सही, अपनी आराधना करने वालों की सुध लेते ही हैं। तभी तो मंदिरोें में मत्था टेकने वालों में भगदड़ मचती रहती है। भगवान हममें से कइयों को छप्पर फाड़कर देता है, ये अलग बात है कि कुछ को छप्पर भी नसीब नहीं होता। कोई दो वक्त की रोटी को ईश्वर की असीम देन कहता है तो एक दूसरा, उसकी अहमियत को नहीं समझता, फिर भी भगवान उस पर मेहरबान हुए रहते हैं।
हम भगवान से मांगते रहते हैं,…
Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 1:22am — No Comments
मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
*
ये शायरी जबां है किसी बेजुबान की.
ज्यों महकती क्यारी हो किसी बागबान की..
आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.
पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..
हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?
दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..
जौहर किया या भेज दी राखी अतीत ने.
हर बार रही बात सिर्फ आन-बान की.
उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..
रहमो-करम का आपके सौ…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 31, 2011 at 12:00am — 3 Comments
Added by mohinichordia on August 30, 2011 at 12:47pm — 5 Comments
Added by Kailash C Sharma on August 29, 2011 at 8:00pm — 5 Comments
तुझ बिन तो जन्नत भी सज़ा |
तेरे संग जहन्नुम, बज़ा |
तूने दिया गर दर्द तो,
फिर दर्द मे भी है मज़ा |
इक तुम मेरे ना हो सके,
अब ना बची कोई रज़ा |
तू भी कभी मेरी गली,
ग़लती से आ, आ के न जा |
'अंकुर' ये ज़िद अच्छी नही,
ना आएँगे वो, लौट जा |
Added by Sushant Jain 'Ankur' on August 27, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on August 27, 2011 at 9:00am — 9 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on August 27, 2011 at 8:46am — 3 Comments
एक गीत-
अमराई कर दो...
संजीव 'सलिल'
*
कागा की बोली सुनने को
तुम कान लगाकर मत बैठो.
कोयल की बोली में कूको,
इस घर को अमराई कर दो...
*
तुमसे मकान घर लगता है,
तुम बिन न कहीं कुछ फबता है..
राखी, होली या दीवाली
हर पर्व तुम्हीं से सजता है..
वंदना आरती स्तुति तुम
अल्पना चौक बंदनवारा.
सब त्रुटियों-कमियों की पल में
मुस्काकर भरपाई कर दो...
*
तुम शक्ति, बुद्धि, श्री समता हो.
तुम दृढ़ विनम्र शुचि ममता हो..…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 26, 2011 at 7:26pm — 6 Comments
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- पाँच (अंतिम )
भीड़ में खलबली मच गयी थी. जबरन उन दोनों को बाहर खींच निकालने की योजना बनने लगी.
नाजिमा सोच नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए, किस तरह अपने मेहमानों की रक्षा करनी चाहिए, भीड़ में से दो-चार युवक आगे बढ़ने लगे,इसी बीच बड़े मियां आंगन में आ पहुचें. उन्हें देखते ही जमात बांधकर आये लोग सकपका गये. बड़े मियां जैसे ही नाजिमा के पास आये,नाजिमा उनके सीने से लगकर फफक पड़ी.…
Added by satish mapatpuri on August 26, 2011 at 3:25am — 1 Comment
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- चार
भयवश दबी जबान से रहीम ने उन दोनों को पनाह देने पर एतराज किया.
किन्तु नाजिमा ने अपने अब्बा को ऐसा फटकारा कि उनकी बोलती बंद हो गयी . दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते , शायद आँखें भी होती हैं . ना जानें कैसे सुबह रुसुलपुर में यह बात आग की तरह फैल गयी कि रहीम मियां के घर में हिन्दू भाई-बहन को पनाह दिया गया है . फिर क्या था, कुछ लोग रहीम मियां के आंगन में आ धमके. उनमें से दो-चार ही रुसुलपुर…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 25, 2011 at 12:02am — 1 Comment
साँसे बोझिल हैं , आँखों में पानी है
फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |
हर सुबह नई परेशानी है ,
फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |
कैसी सोची थी कैसी पाई है
जाना था कहाँ , कहाँ ले आई है |
कौन सोचे और कैसी बितानी है ,
फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है…
ContinueAdded by Veerendra Jain on August 24, 2011 at 11:59am — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on August 24, 2011 at 9:17am — 2 Comments
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- तीन
आँगन में आते ही युवक इस तरह उछल पड़ा मानों उसके पाँव तले विषधर आ गया हो
आँगन में बधना देखकर युवक के गले से हल्की चीख निकल पड़ी. वह भयभीत नजरों से नाजिमा की तरफ देखा.
"भाईजान, मुसलमानों के भय से छिपते-छिपाते आपने एक मुसलमान का ही दरवाजा खटखटा दिया है. किन्तु, आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है. गलियों में मजहब और जाति के नाम पर दंगे करने वाले दरअसल न…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 24, 2011 at 2:14am — 1 Comment
तुम्हारे प्यार की फुहार से
इस कदर भीगा तन-मन, कि,
जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन
झुलसा न सकी…
ContinueAdded by mohinichordia on August 23, 2011 at 9:00pm — 8 Comments
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
करवट बदल कर नाजिमा ने सर तक कम्बल खींच लिया, तभी उसे लगा कि बाहर के दरवाज़े पर कोई दस्तक दे रहा है .................. एकबारगी उसका पूरा बदन…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 10:30pm — 1 Comment
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
उफ़ ! बड़ी भयानक रात थी .................. हवा की सांय-सांय भी अन्दर तक हिला कर रख देती . दिन के उजालों में तो किसी तरह वक़्त सरक जाते.............. किन्तु, रात के अंधेरों में जैसे थम कर रह जाते हों. कुछ लोग किसी हादसा को हर साल याद दिला कर कटुता एवं नफ़रत को भड़काने से बाज नहीं आते. दिसंबर का महीना शुरू हो चुका था .......................... 6 दिसंबर की उस पुरानी…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 2:30am — 1 Comment
कुछ चले हैं ,कुछ बढ़े हैं, कुछ चढ़े हैं हाँ मगर,
आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
बांटते हैं रोज लाखों लाख खुशियाँ , हाँ मगर,
आख़िरी इन्सान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
कौन समझाए हमें, ये है हमारी त्रासदी,
जागने भर में, अभी तक खर्च…
ContinueAdded by राजेश शर्मा on August 21, 2011 at 4:54pm — 2 Comments
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