१.
क्या माली का हो गया, बाग़ों से अनुबंध ?
चित्र छपा है फूल का, शीशी में है गंध |
२.
चूल्हे न्यारे हो गये, आँगन में दीवार
बूढ़ी माँ ने मौन धर, बाँट लिए त्यौहार |
३.
मुल्ला जी देते रहे, पाँचों वक़्त अजान
उस मौला को भा गई, बच्चे की मुस्कान |
४.
एक तमाशा फिर हुआ, इन दंगों के बाद
जिनने फूंकी बस्तियाँ, बाँट रहें इमदाद |
५.
शीशाघर की मीन सा, यारों अपना हाल
दीवारों में क़ैद है, सुख के ओछे ताल…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 29, 2014 at 8:30am — 14 Comments
खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा
होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा
बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा
भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी
मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा
दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की
प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा
छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है
भूखों की रीती थाली में…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:30pm — 9 Comments
रखे मुझको भी हरदम बाख़बर कोई मेरे मौला
बड़े भाई के जैसा हो बशर कोई मेरे मौला
हुआ घायल बदन मेरा हुए गाफ़िल कदम मेरे
मेरे हिस्से का तय करले सफ़र कोई मेरे मौला
मुझे तड़पा रही है बारहा क्यूं छाँव की लज्ज़त
बचा है गाँव में शायद शजर कोई मेरे मौला
उदासी के बियाबाँ को जलाकर राख कर दे जो
उछाले फिर तबस्सुम का शरर कोई मेरे मौला
खड़ा हूं आइने के सामने हैरतज़दा होकर
इधर कोई मेरे मौला उधर कोई मेरे…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 20, 2014 at 6:00pm — 6 Comments
रास पर एक प्रयास और -
अपनेपन की रीत पुरानी अब भी है
गाँवों का जीवन लासानी अब भी है
जिसकी गोद सुहाती थी भर जाड़े में
उस मगरी पर धूप सुहानी अब भी है
जिनमें अपना बचपन कूद नहाया था
उन तालाबों में कुछ पानी अब भी है
बाँह पसारे राह निहारे सावन में
अमुवे की इक डाल सयानी अब भी है
गर्मी की छुट्टी शिमला में बुक लेकिन
रस्ता तकते नाना नानी अब भी है
ठाकुर द्वारे में झालर संझ्या…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 18, 2014 at 11:00am — 8 Comments
रास (चौपाई +अलिपद )8-8\6=22
पंख परेवों ने खोले नव भोर हुई
भजनों सा चहका फिर खगरव भोर हुई
शबनम झाड़ी ली अँगड़ाई किसलय ने
बाग बगीचों में है उत्सव भोर हुई
मंदिर की घंटी से और अजानों से
सुप्त धरा का टूटा नीरव भोर हुई
धूप गुलाबी उबटन सी कण कण पर है
निखरा फिर धरती का वैभव भोर हुई
अखबारों के पन्नों में जागी दुनिया
गर्म चाय का पीकर आसव भोर हुई
दिन भी गुजरेगा ही रात कटी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 10:30am — 5 Comments
चारसू आइने लगाना भी
और ख़ुद से नज़र चुराना भी
बैठकर साये में मेरे रहरौ
चाहता है मुझे गिराना भी
मेरी मौजूदगी भी नादीदा
सुर्ख़ियों में तेरा न आना भी
शौक आवारगी का किसको है
हो कहीं अपना आशियाना भी
बस्तियों को उजाड़ने वालों
सीख लो बस्तियाँ बसाना भी
हो गया एक जंग के जैसा
आजकल रोटियाँ जुटाना भी
आज ‘खुरशीद’ बालता है दिल
साथ देगा कभी ज़माना भी
मौलिक व…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 16, 2014 at 10:30am — 5 Comments
नफ़रतों का जवाब मैं रक्खूं
ख़ार तू रख गुलाब मैं रक्खूं
बीत जाये इसी में उम्र तमाम
ज़ख्मों का गर हिसाब मैं रक्खूं
मै ग़मों की रवाँ है रग रग में
होश कैसे जनाब मैं रक्खूं
सामने तेरे बेहिजाब हुआ
क्या बुतों से हिजाब मैं रक्खूं
दर्दे-उल्फ़त पलेगा क्या मुझसे
क्यूं कफ़स में उक़ाब मैं रक्खूं
शमा सी वो पिघलती है हर शब
कब सिरहाने किताब मैं रक्खूं
पेट में भूख का शरारा …
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 13, 2014 at 10:00pm — 5 Comments
१.
देश की शान है अपनी हिंदी
फिर भी हल्कान है अपनी हिंदी
एक डोरी से जुड़ जाए भारत
एक अभियान है अपनी हिंदी
घर में अपने ही होकर पराई
आज हैरान है अपनी हिंदी
अपना सिर क्यूं झुके जग में यारों
अपना अभिमान है अपनी हिंदी
सारी दुनिया में फहराया परचम
हिन्द की आन है अपनी हिंदी
हिंदी से हैं सभी हिन्दवासी
अपनी पहचान है अपनी हिंदी
जितना सीधा सरल मन है…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 10, 2014 at 1:30pm — 6 Comments
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