Added by Harjeet Singh Khalsa on October 12, 2011 at 11:30pm — 2 Comments
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥
साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥
बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान, पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥
राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये ॥4॥
***************
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा ||1||
हो खरा…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments
Added by Veerendra Jain on October 12, 2011 at 6:00pm — No Comments
Added by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 8:09am — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 7:52am — 5 Comments
जो सीने में धड़कता दिल न होता
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥
अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥
किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥
नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥
ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥
:सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥
Added by siyasachdev on October 11, 2011 at 10:29pm — 4 Comments
कब से देखा है,
Added by Aradhana on October 11, 2011 at 9:00am — 5 Comments
मुक्तिका :
भजे लछमी मनचली को..
संजीव 'सलिल'
*
चाहते हैं सब लला, कोई न चाहे क्यों लली को?
नमक खाते भूलते, रख याद मिसरी की डली को..
गम न कर गर दोस्त कोई नहीं तेरा बन सका तो.
चाह में नेकी नहीं, तू बाँह में पाये छली को..
कौन चाहे शाक-भाजी-फल खिलाना दावतों में
चाहते मदिरा पिलाना, खिलाना मछली तली को..
ज़माने में अब नहीं है कद्र फनकारों की बाकी.
बुलाता बिग बोंस घर में चोर डाकू औ' खली को.. …
Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2011 at 1:23am — No Comments
ग़ज़ल के बादशाह श्री जगजीत सिह के निधन की खबर सुनते ही आँखे भर आई है. जगजीत सिह जी वो थे जिन्होने मुझ जैसे कई लोगो को ग़ज़ल से परिचित कराया है, जैसे संगीत और शायरी का साथ है, शायरी और ग़ज़ल है, वैसे ही ग़ज़ल और जगजीत सींग जी है, उनकी आवाज़ मे एक जादू था, रागो की आमिजीश के साथ उनकी ग़ज़ले दिल मे उतर जाती थी, दिल को छू जाती थी आज उनके लिए मुझे किसी…
ContinueAdded by Tapan Dubey on October 10, 2011 at 1:30pm — 1 Comment
ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये
जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||
एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा
कह उसे, उड़ने में भी आचार होना…
Added by Saurabh Pandey on October 10, 2011 at 9:46am — 11 Comments
हर साल न जाने कितनी जगहों में रावण का दहन किया जाता है और खुशियां मनाते हुए पटाखे फोड़े जाते हैं, मगर रावण के दर्द को समझने की कोई कोशिश नहीं करता। अभी कुछ दिनों पहले जब दशहरा मनाते हुए रावण को दंभी मानकर जलाया गया, उसके बाद रावण का दर्द पत्थर जैसे सीने को फाड़कर बाहर आ गया। रावण कहने लगा, उसकी एक गलती की सजा कब से भुगतनी पड़ रही है। गलती अब प्रथा बन गई है और पुतले जलाकर मजे लिए जा रहे हैं। सतयुग में की गई गलती से छुटकारा, कलयुग में भी नहीं मिल रहा है।
रावण ने अपना संस्मरण याद करते हुए कहा…
Added by rajkumar sahu on October 10, 2011 at 1:51am — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on October 8, 2011 at 11:20pm — No Comments
भारत सरकार की नई आर्थिक नीति के तहत् विगत वर्षों में जिस नीति को जारी किया गया था, उसका परिणाम कुछ ऐसा ही दिखना था. भारत सरकार ने उन क्षेत्रों में विशेष तौर पर भारी मात्रा में पैसों को झोंक दिया है, जिस क्षेत्र में नक्सलवादियों ने अपना फन फैलाया है, परन्तु उन क्षेत्रों में आने वाले पैसों को कम कर दिया है, या नहीं के बराबर दिया है अथवा घोटालों की भेंट चढ़ गया है, जिन क्षेत्रों में या तो नक्सलवादी नहीं हैं अथवा किसी किस्म का आन्दोलन नहीं हो रहा है अथवा जागरूकता की कमी है. बस्तर के जंगलों में…
ContinueAdded by Rohit Sharma on October 7, 2011 at 1:30pm — No Comments
मर्ज़ जिस तरह से लाजिम है दवा से पहले !
Added by Hilal Badayuni on October 7, 2011 at 12:30pm — 3 Comments
Added by siyasachdev on October 6, 2011 at 10:05pm — No Comments
गजब दशहरा आया रे
Added by Yogyata Mishra on October 6, 2011 at 9:02pm — No Comments
Added by Abhinav Arun on October 6, 2011 at 7:23pm — 8 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on October 6, 2011 at 10:36am — No Comments
नव उत्सव
Added by mohinichordia on October 5, 2011 at 4:13pm — 2 Comments
मन से फक्कड़ संत वह, तन से रहा फ़कीर.
खड़ीं सामने रूढ़ियाँ, लड़ता रहा कबीर..
तेरह-ग्यारह नाप के, रचे हजारों छंद.
दोहे संत कबीर के, करे बोलती बंद..
पूजे लोग कबीर को, ले अँधा विश्वास..
गड़े कबीरा लाज से, दोहे हुए उदास..
थोडा बोलो चुप रहो, सुनो लगा कर कान.
छोटे मुख मै क्या कहूं, कह गए लोग सुजान..
कथ्य कला काया कसक, कागज़ कलम किताब.
सब मिल कर पूरा करे, ज्ञानदेव का ख्वाब..
अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on October 5, 2011 at 3:30pm — 5 Comments
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