मुक्तिका:
जीवन की जय गायें हम..
संजीव 'सलिल'.
*
जीवन की जय गायें हम..
सुख-दुःख मिल सह जाएँ हम..
*
नेह नर्मदा में प्रति पल-
लहर-लहर लहरायें हम..
*
बाधा-संकट -अड़चन से
जूझ-जीत मुस्कायें हम..
*
गिरने से क्यों डरें?, गिरें.
उठ-बढ़ मंजिल पायें हम..
*
जब जो जैसा उचित लगे.
अपने स्वर में गायें हम..
*
चुपड़ी चाह न औरों की
अपनी रूखी खायें हम..
*
दुःख-पीड़ा को मौन सहें.
सुख बाँटें…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 8:49pm —
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तुम और तुम्हारी यादें .. दिल से जाती ही नहीं ...
कई बार चाहा तुम चले जाओ..
मेरे दिल से .. मेरे दिमाग से ...
हर मुमकिन कोशिश कर के देख लिया ..
पर नाकाम रहे ...
कभी कभी सोचते हैं ..ऐसा क्या है हमारे बीच ...
जिसने हमें बांध कर रक्खा है ..
हमारा तो कोई रिश्ता भी नहीं ..
फिर क्या है ये ...?
"लेकिन नहीं" हैं न ..हमारे बीच एक सम्बन्ध ..
एहसास का सम्बन्ध ..
ये क्या है ..नहीं बता सकती मैं ..
एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं…
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Added by Anita Maurya on November 19, 2010 at 6:32pm —
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तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा
एक, नन्हा सा दिया,
बस ठान बैठा, मन में हठ
अंधियार, मैं रहने न दूं,
मैं ही अकेला, लूं निपट
मन में सुदृढ़ संकल्प ले
जलने लगा वो अनवरत,
संत्रास के झोकों ने घेरा
जान दुर्वल, लघु, विनत
दूसरा आकर जुड़ा,
देख उसको थका हारा
धन्य समझूं, मैं स्वयं को
जल मरूं, पर दूं सहारा
इस तरह जुड़ते गए,
और श्रृंखला बनती गयी
निष्काम,परहित काम आयें
भावना पलती गयी
एक होता… Continue
Added by Shriprakash shukla on November 19, 2010 at 2:00pm —
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प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन
Added by Shrddha on November 17, 2010 at 6:00pm —
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सर्व शक्तिमान एवं प्रत्यक्ष भगवान सूर्य के उपासना का पर्व छठ पिछले दिनों उत्तर भारत सहित पूरे भारत मे काफी श्रद्धा और उल्लास से मनाया गया, बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे भी छठ का पवित्र त्यौहार धूम धाम से मनाया गया |
इस त्यौहार की खास बात यह है कि छठ पूजा मे प्रथम अर्ध्य डूबते हुये सूर्य को दिया जाता है तथा दूसरा अर्ध्य उगते हुये सूर्य का किया जाता है, यह परंपरा एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत कि " उगते सूर्य को सभी सलाम करते है तथा डूबते…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 9:30am —
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ग़ज़ल:- आज़ादी की बस इतनी परिभाषा
पोर पोर पर प्रकृति ने फेंका पासा देख
क्यों उदास है तू बसंत की भाषा देख |
श्रमजीवी कलमें कहतीं रूमानी शेर
कैसी उभरी अंतस की अभिलाषा देख |
युग के विश्वामित्र ने फिर छेड़ी है रार
फिर त्रिशंकु की टूट रही है आशा देख |
ठूंठ भरी इस राह में रोड़े और छाले
इस पथ जाता कौन पथिक रुआंसा देख |
भूख ग़रीबी महंगाई और भ्रष्टाचार
आजादी की…
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Added by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 3:25pm —
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देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर मेरे पूज्य पिताजी देवों को जगाया करते थे आज उनकी स्मृति को मन मे संजोए उनकी परंपरा का निर्वाह मै निम्न शब्दों से करता हुआ आप सबको देव- उठानी एकादशी की बधाई देता हूँ.
जागो मेरे स्वामी जागो...
तुम सोए तो सो जाती है...
इस जग की ममता अनजानी,
कहाँ... न जाने खो जाती है,
मेरी भी क्षमता अनचीन्ही..
तुम जागो तो विश्व जागेगा
मानवता..विश्वास जगेगा...
भेद भावना ,… Continue
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 14, 2010 at 9:30pm —
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बाल दिवस पर विशेष
आज का दिन बहुत ही विशेष दिन है क्योकि आज का दिवस उन नन्हे-मुन्नों का है,जो आगे चलकर देश का बागडोर संभालेंगे !ये वही बच्चे है जिन्हें चाचा नेहरु ने देश का भविष्य कहा था .
आज पूरा देश पंडित जवाहरलाल नेहरु को याद कर उनका जन्मदिवस बाल दिवस के रूप में मना रहा है .चाचा नेहरु के देश में आज भी कुछ ऐसे बच्चे रह गए है जो इन…
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Added by Ratnesh Raman Pathak on November 14, 2010 at 12:41pm —
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हिन्दी कविता एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। इस युग में हिन्दी कविता वैश्विक मंच पर अन्तर्जाल के माध्यम से अपनी पहचान बना रही है । इसलिए इस युग को “अन्तर्जाल युग” ही कहा जाय तो ठीक रहेगा। आज के समय में अन्तर्जाल का प्रयोग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इसमें हिन्दीभाषी लोगों की संख्या भी कम नहीं है। धीरे धीरे ही सही अन्तर्जाल के माध्यम से हिन्दी कविता विश्व के कोने कोने तक पहुँच रही है। आज अधिकांश हिन्दी कविताएँ अन्तर्जाल पर उपलब्ध हैं। अब उभरते हुए कवियों को प्रकाशित होने के लिए…
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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 11, 2010 at 3:43pm —
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नवगीत ::
शेष धर
संजीव 'सलिल'
*
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
आया हूँ जाने को,
जाऊँगा आने को.
अपने स्वर में अपनी-
खुशी-पीर गाने को.
पिया अमिय-गरल एक संग
चिंता मत लेश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
कोशिश का साथी हूँ.
आलस-आराती हूँ.
मंजिल है दूल्हा तो-
मैं भी बाराती हूँ..
शिल्प, कथ्य, भाव, बिम्ब, रस.
सर पर कर केश धर.
किया देना-पावना…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:55am —
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ना यहाँ है ना वहाँ है साथियो
आजकल इंसां कहाँ है साथियो
आम जनता डर रही है पुलिस से
चुप यहाँ सब की जबाँ है साथियो
पार्टी में हाथ है हाथी कमल
आदमी का क्या निशां है साथियो
लीडरों का एक्स-रे कर लीजिए
झूठ रग रग में रवाँ है साथियो
ये उठा दें रैंट पर या बेच दें
मुल्क तो इनका मकां है साथियो
Added by Arun Chaturvedi on November 10, 2010 at 5:44pm —
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शब-ए-अमावस को चिढ़ाने कल निकला था चाँद
काली चादर ओढ़कर भी कितना उजला था चाँद
खूब कोशिशों पर भी कुछ समेट ना पाया आसमाँ
सुबह होते ही बुलबुले सा फूटकर बिखरा था चाँद
दिखती है दरिया में कैद आज तलक परछाई
उस रोज़ कभी नहाते वक़्त जो फिसला था चाँद
क्या पता रंजिश थी या जमाने का कोई दस्तूर
रोज़ की तरह आज भी सूरज निगला था चाँद
दोनों जले थे रात भर अलाव भी और चाँद भी
तेरे लम्स के पश्मीने में भी…
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Added by विवेक मिश्र on November 9, 2010 at 12:23pm —
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बाल कविता:
अंशू-मिंशू
संजीव 'सलिल'
*
अंशू-मिंशू दो भाई हिल-मिल रहते थे हरदम साथ.
साथ खेलते साथ कूदते दोनों लिये हाथ में हाथ..
अंशू तो सीधा-सादा था, मिंशू था बातूनी.
ख्वाब देखता तारों के, बातें थीं अफलातूनी..
एक सुबह दोनों ने सोचा: 'आज करेंगे सैर'.
जंगल की हरियाली देखें, नहा, नदी में तैर..
अगर बड़ों को बता दिया तो हमें न जाने देंगे,
बहला-फुसला, डांट-डपट कर नहीं घूमने देंगे..
छिपकर दोनों भाई चल दिये हवा…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 8, 2010 at 6:14pm —
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खाब की ताबीर होने से रही
ऐसी भी तकदीर होने से रही
पहले सी झुकती नहीं तेरी नज़र
अब कमां ये तीर होने से रही
चाहे जितने रंग भर लो खाब के
पानी मे तस्वीर होने से रही
कर लो पैनी ' फ़िक्र' जितनी तुम कलम
जौक, ग़ालिब, मीर, होने से रही
Added by vikas rana janumanu 'fikr' on November 8, 2010 at 10:25am —
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मधु गीति सं. १५०१ दि. ४ नवम्बर २०१०
आयी है दीवाली, घर घर में खुशहाली;
नाचें दे सब ताली, विघ्न हरें वन माली
जागा है मानव मन, साजा है शोधित तन;
सौन्दर्यित भाव भुवन, श्रद्धा से खिलत सुमन.
मम उर कितने दीपक, मम सुर खिलते सरगम;
नयनों में जो ज्योति, प्रभु से ही वह आती.
हर रश्मि रम मम उर, दीप्तित करती चेतन;
हर प्राणी ज्योतित कर, देता मम ज्योति सुर.
सब जग के उर दीपक, ज्योतित करते मम मन;
हर मन की दीवाली, मम मन की दीवाली.
Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 1:02pm —
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खयाल जिंदा रहे तेरा..
जिंदगी के पिघलने तक..
और मैं रहूँ आगोश में तेरे..
बन महकती साँसें तेरी..
तुझे पिघलाते हुए अब..
पिघल जाना मुकद्दर है..
बह गया देखो तरल बनकर..
अनजान अनदेखे नये..
ख्वाहिशों के सफर पर..
तुझे छोड़कर तुझे ढूँढने..
खामोश पथ का राही बन..
बेसाख्ता ही दूर तक..
निकल आया हूँ मैं..
सुनसान वीराने में तुझे पाना..
तेरी वीणा के तारों को..
नए सिरे से झंकृत..
कर पाना मुमकिन नहीं..
तुझसे दूर,…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 7, 2010 at 12:00am —
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नव गीत
संजीव 'सलिल'
मौन देखकर
यह मत समझो,
मुंह में नहीं जुबान...
शांति-शिष्ट,
चिर नवीनता,
जीवन की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल
मचल रहे अरमान.
श्याम-श्वेत लख,
यह मत समझो
रंगों से अनजान...
ऊपर-नीचे
हैं हम लेकिन
ऊँच-नीच से दूर.
दूर गगन पर
नजर गड़ाये
आशा से भरपूर.
मुस्कानों से
कर न सकोगे
पीड़ा का अनुमान...
ले-दे बढ़ते,
ऊपर चढ़ते,
पा लेते हैं…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:38pm —
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ग़ज़ल
आग नहीं कुछ पानी भी दो
परियों की कहानी भी दो |
छोटे होते रिश्ते नाते
मुझको आजी नानी भी दो |
दूह रहे हो सांझ-सवेरे
गाय को भूसा सानी भी दो |
कंकड पत्थर से जलती है
धरा को चूनर धानी भी दो |
रोजी रोटी की दो शिक्षा
पर कबिरा की बानी भी दो |
हाट में बिकता प्रेम दिया है
एक मीरा दीवानी भी दो |
जाति धर्म का बंधन छोडो
कुछ रिश्ते इंसानी…
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Added by Abhinav Arun on November 3, 2010 at 10:00am —
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कल मर गया
किशनु का बूढा बैल,
अब क्या होगा...
कैसे होगा...
चिंतातुर,सोचता-विचारता
मन ही मन बिसूरता
थाली में पड़ी रोटी
टुकड़ों में तोड़ता
सोचता,,,बस सोचता...
बोहनी है सिर पर,
हल पर
गडाए नज़र,
एक ही बैल बचा...
हे प्रभु,
ये कैसी सज़ा...!!!
स्वयं को बैल के
रिक्तस्थान पे देखता..
मन-ही-मन देता तसल्ली
खुद से ही कहता,
मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा...
बैल ही तो हूँ मै,
जीवन भर ढोया बोझ,
इस हल का भी…
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Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 2:00pm —
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ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के नये सदस्यों को दिक्कत हो रही है कि "OBO लाइव महा इवेंट" मे अपनी रचना कैसे पोस्ट करे ?
मैं कुछ स्क्रीन शाट के सहयोग से बताना चाहूँगा ...................
१- सबसे पहले मुख्य पृष्ठ से फोरम से "OBO लाइव महा इवेंट" को क्लिक करे ........
२- जो बॉक्स खुला उसमे अपनी रचना लिख पोस्ट करे
३- यदि किसी की रचना के ऊपर टिप्पणी देनी हो तो नीचे दिये स्क्रीन शाट को देखे ...…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2010 at 5:58pm —
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