फूलों से थी चाहत मुझे
गुलदानों का सपना था
तूने बागों में छोड़ दिया
मेरा सपना तोड़ दिया
यादों से मैंने चुन चुन के
रिश्ते अपने सोचे थे
पल भर में तूने मेरा
दुनिया से नाता जोड़ दिया
खतरों से टकराकर में
आगे बढना चाहता था
देख के मेरे ज़ख्मों को
खतरों का रुख ही मोड़ दिया
प्रीत को अपनी लिख लिख के
में गीत बनाना चाहता था
बीच में मीत मिला कर के
मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया
चारों ओर अँधियारा…
Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm —
No Comments
शरद पूर्णिमा विभा
सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,
आज कलानिधि दिखे गगन में
शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
अम्बर और अवनि आँगन में
शक्ति, शांति का सुधा कलश,
उलट दिया प्यासी धरती पर
मदहोश हुए जन जन के मन,
उल्लसित हुआ हर कण जगती पर
जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,
अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर
देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,
जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर
कितना सुखमय क्षण था यह,
जब औषधेश सामीप्य निकटतम
दुःख और व्याधि… Continue
Added by Shriprakash shukla on December 7, 2010 at 9:00pm —
1 Comment
आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '
न देख ख्वाब यह साक़ी की कोई थाम लेगा तुझको
संभले हुए दिल तेरी महफ़िल में नहीं आते.........
ज़िन्दगी में इंसान बहुत कुछ जीतता है और बहुत कुछ हार जाता है लेकिन हार कभी नहीं माननी चाहिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कभी तो मंजिल मिलेगी मंजिल कभी न भी मिले तो कम से कम उसके करीब तो पहुँच जाओगे
कमीं रह गयी
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी
अपनीं…
Continue
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 3:25pm —
3 Comments
कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं
हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं
ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं
सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं
Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm —
No Comments
भारत के लोगों में परोपकार की धारणा बरसों से कायम है। भले ही परोपकार के तरीकों में समय-समय पद बदलाव जरूर आए हों, लेकिन अंततः यही कहा जा सकता है कि लोगों के दिलों में अब भी परोपकार की भावना समाई हुई है। इस बात को एक बार फिर सिद्ध कर दिखाया है, बेंगलूर के आईटी क्षेत्र के दिग्गज अजीम प्रेमजी ने। उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपनी जानी-मानी कंपनी विप्रो की दौलत में से करीब 88 सौ करोड़ रूपये एक टस्ट को दिया है, जो काबिले तारीफ है। ऐसा कम देखने को मिलता है, जब कोई बड़ा उद्योगपति अपनी कमाई का एक बड़ा…
Continue
Added by rajkumar sahu on December 7, 2010 at 12:15pm —
1 Comment
आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '
इन आखरी पन्नों में ज़िन्दगी का दर्द है
कुछ हमनें झेला है कुछ आप बाँट लेना
मेरे क़त्ल-ओ-गम में शामिल हैं कई नाम
ज़िक्र आपका आए न बस इतनी दुआ करना
.......
आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है हो सकता है यह केवल एक ही पन्नें में ख़त्म हो जाए य सैंकड़ों हजारों और पन्ने इसमें और जुड़ जाएँ क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न…
Continue
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 11:55am —
2 Comments
जिंदगी..©
जाने कितने रंग दिखावे है यह जिंदगी..
बिखेरने थे उसे जो हमसे चाहे ये जिंदगी..
माया फैला फँसा हमको देती है ये जिंदगी..
इशारों पर अपने है नाचती ये जिंदगी..
ना चाहें पर अपना बोझ लदाती है जिंदगी..
अनचाहे ही हम पर गहराती है ये जिंदगी..
कैसे पायें आज़ादी हम पे हावी है ये जिंदगी..
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (07 दिसंबर 2010)
Photography for both pictures :-
Jogendra… Continue
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 7, 2010 at 11:26am —
1 Comment
अपना और पराया मौन:
अकुलाया अकुलाया मौन.
जीवन यज्ञ आहुति श्वास ;
धडकन मन्त्र बनाया मौन .
बोलना पीतल;यह सोना है ;
जो हम ने अपनाया मौन .
कभी सुहाग सेज पे लेटा;
शर्माया, सुकुचाया मौन.
कभी विरहाग्नि ने जी भर ;
तरसाया तरपाया मौन.
तिल तिल पलपल ही जीवनभर
देता साथ सुहाया मौन .
प्रेम पगी मीरा का मोहन ;
प्रेम गगन पर छाया मौन .
नाव की ठांव बना कबहूँ यह ;
कबहूँ पतवार बनाया मौन .
श्वासों की माला पे हमने ;
हर दिनरात फिराया…
Continue
Added by DEEP ZIRVI on December 6, 2010 at 8:48pm —
4 Comments
आखरी पन्नें
ज़िंदगी अपनी यादों की इक खुली किताब है
समेटे हुए हैं जिसमें हम अपने आस पास का दर्द
इसको खोलने से पहले बस इतना ख्याल रखना
आपके अश्क ढल न जाएँ दर्द मेरा देखकर
आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है
क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न कोई दिन तो एसा निश्चित किया होगा जिसका कल कभी न आयेगा मैं एक लेखक हूँ जिसे हर रोज़ कुछ न कुछ नया लिखने की चाह रहती है ,प्यास रहती है और मैं कुछ न कुछ लिखता…
Continue
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 6, 2010 at 7:35pm —
No Comments
ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ
मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में
नाम उसका नहीं फ़साने में |
उन चरागों को दुआएं दे दूं
खुद जला मैं जिन्हें जलाने में |
चोंच खाली लिए लौटे पंछी
बच्चे भूखे रहे ठिकाने में |
कैसे कह दूं कि यह घर छोटा है
उम्र गुजरी इसे बनाने में |
तुम कि गंगा का दर्द क्या सुनते
तुम तो मशगूल थे नहाने में |
एक भरम है चमन की रंगों-बू
है मज़ा तितलियाँ…
Continue
Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 4:16pm —
9 Comments
ग़ज़ल:-जिस रोज़ से आईना
जिस रोज़ से आईना मेरे पास नहीं है
औरों को मेरी शक्ल का एहसास नहीं है |
उसको मैं अपने राज़ बताता भी किस तरह
बेहद अज़ीज़ है वो मेरा ख़ास नहीं है |
बूढ़े फ़कीर ने मुझे उड़ने की दुआ दी
फिर ये कहा तकदीर में आकाश नहीं है |
बेशक मेरे हैं पांव हुनर तेरा दिया है
तेरे बगैर चलने की अब आस नहीं है |
तालाब के करीब कहीं यक्ष तो नहीं
आकर क्यों लगा…
Continue
Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 3:57pm —
7 Comments
कुछ सशब्द,कुछ नि:शब्द सपने,
कुछ व्यक्त ,कुछ अव्यक्त सपने..
कुछ मौन कुछ कोलाहल पूर्ण..
कुछ सुंदर ,कुछ कुरूप सपने..
कुछ मधुर,कुछ कड़वे सपने..
कुछ तृप्त,कुछ अतृप्त सपने..
कुछ सजीव कुछ प्रस्तर खंड..
कुछ माने ,कुछ रूठे सपने..
कुछ शहनाई,कुछ बलि वेदी..
कुछ दुल्हन कुछ अरथी सपने..
कुछ ग्यान पूर्ण,कुछ अग्यानि..
क्च मानव कुछ…
Continue
Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:30pm —
2 Comments
ले चल अपने देस पिया जी , ये घर अब ना भाए..
जी चाहे,तेरी सुगंध ऐसे मुझ में बस जाए..
जो भी देखे मुझको ,मुझमें तेरी छाया पाए..
रोम रोम मेरा हर पल बस तेरी महिमा गाए..
मेरे होठों पे जब आएँ शब्द तेरे ही आएँ..
इस भौतिक जीवन में तो अब ना ये मनवा रम पाए..
दुनियादारी सोचने बैठूं, तुझमें सुध खो जाए..
ले चल अपने देस पिया जी ,ये घर अब ना भाए..
हर…
Continue
Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:00pm —
3 Comments
यूँ तो तू चला गया,
किंतु, जाकर भी है यहाँ !
ख्वाबों में,
फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,
है तेरी पायल की छमछम अब भी I
तेरी कोयल सी आवाज़,
आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी I
तू नहीं है अब,
किंतु,
तेरी परछाई
चादर की सलवटों में है वहीं I
तू चला गया,
क्यूँ ?
ये राज़ बस तुझे ही पता I
फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,
जो छूट गईं
यहीं घर पर…
Continue
Added by Veerendra Jain on December 6, 2010 at 11:26am —
15 Comments
अनकहा बयाँ हैं अश्क तुम्हारे
अनसुनी दास्ताँ हैं अश्क तुम्हारे
आँखों से दिखती है दुनिया बाहर की
अन्दर का जहाँ हैं अश्क तुम्हारे
दर्द हो दिल में तो ही होता दीदार इनका
ऐसा कुछ कहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
मोका है आज तो जान लो तुम इन्हें
वरना हमेशा रहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
शायद खुशनुमा हैं मिजाज़ इनका
साथ रहकर दर्द सहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
ये ठहरी जमीं नहीं जो जीत लोगे तुम इन्हें
बहता आसमां हैं अश्क…
Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 4:06pm —
No Comments
मेरी कलम,विचार और भाव साथ काम नहीं करते।
कभी कुछ कलम साथ देती है तो विचारों की परछाईं भर ही ज़ाहिर हो पाती है ।
कभी देखने में आया के हमने बात को इतना कम लिखा, के बात का मतलब ही बदल गया ।
कभी भावनाओं को शब्दों में पुरोया तो भावनाएं नाजायज़ लगने लगीं ।
फिर भी हम लिखते गए उस उम्मीद की खातिर के कभी किसी और को नहीं तो खुद को ही कुछ बता सकें, कुछ समझा सकें ।
Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:06am —
No Comments
जमाने से चलती हवाओं का रूख मोड़ देंगे,
बदबू साफ़ कर उसमें सिर्फ सुगंध छोड़ देंगे.
मौसम भी अगर दगा दे हमसे रूठ जाता है,
बादल से हम अपने बाग़ को सीधे जोड़ देंगे.
कल तक जो मेरे राहों में कांटें बिछाती थी,
पलकें बिछाकर उसका गुरूर हम तोड़ देंगे.
औरों की मुस्कराहट ही हमारी ईमान होगी.
तुम्हें खुश रखने को, अपना जख्म छोड़ देंगे.
जमाना साथ देने के बजाय टांग खिंचेगी,
प्रेम का रस पिलाने को पत्थर निचोड़ देंगे.
दौड़ रही है जितनी गाड़ी…
Continue
Added by Ghulam Kundanam on December 5, 2010 at 1:18am —
1 Comment
धूप सी खिलती हो तुम
चांदनी तुम ही तो हो !
सप्त तारों कि वो झंकृत
रागिनी तुम ही तो हो !!
नीड़ है तेरा ह्रदय
मैं हूँ पाखी प्रेम का !
धड़कनों में कौंधती सी
दामिनी तुम ही तो हो !!
तुम तो सरिता प्रेम कि हो
प्यार का सागर हो तुम !
आ वाष्पित मन को सघन कर
शालिनी तुम ही तो हो !!
इस ह्रदय की वाटिका में
क्षुब्द मन है शुष्क प्राण !
प्रेम के पौधे को सींचो
maalini तुम ही तो हो !!
Added by RAJESH SHANDILYA on December 5, 2010 at 12:58am —
1 Comment
पत्थर
वह रोज उसे ठोकर मारता |
आते जाते |
मगर वह टस से मस नहीं हुआ |
एक दिन जोर की ठोकर मारते ही उसके पांव लहू लुहान हो गए |
अब वह उस पत्थर की पूजा करता है |
हाँथ जोड़कर उसी तरह रोज आते जाते |
पानी
बाप ने कहा "बेटा पानी अब सर से ऊपर हो रहा है "
"आप वसीयत कर दे "
"तुम्हारी बहन को भी तो हिस्सा देना होगा "
"शादी में जितना दिया था उसका हिसाब…
Continue
Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:55pm —
6 Comments
लोकतंत्र में वोट की ताकत महत्वपूर्ण मानी जाती है और जब इस ताकत का सही दिशा में इस्तेमाल होता है तो इससे एक ऐसा जनमत तैयार होता है, जिससे नए राजनीतिक हालात अक्सर देखने को मिलते हैं। हाल ही में बिहार के 15 वीं विधानसभा के चुनाव में जो नतीजे आए हैं, वह कुछ ऐसा ही कहते हैं। देश में सबसे पिछड़े माने जाने वाले राज्य बिहार में तरक्की का मुद्दा पूरी तरह हावी रहा और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का जादू ऐसा चला, जिसके आगे राजनीतिक गलियारे के बड़े से बड़े धुरंधर टिक नहीं सके और वे चारों खाने मात खा गए।…
Continue
Added by rajkumar sahu on December 4, 2010 at 4:21pm —
No Comments