For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

December 2010 Blog Posts (168)

मेरा सपना तोड़ दिया

फूलों से थी चाहत मुझे

गुलदानों का सपना था

तूने बागों में छोड़ दिया

मेरा सपना तोड़ दिया



यादों से मैंने चुन चुन के

रिश्ते अपने सोचे थे

पल भर में तूने मेरा

दुनिया से नाता जोड़ दिया



खतरों से टकराकर में

आगे बढना चाहता था

देख के मेरे ज़ख्मों को

खतरों का रुख ही मोड़ दिया



प्रीत को अपनी लिख लिख के

में गीत बनाना चाहता था

बीच में मीत मिला कर के

मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया



चारों ओर अँधियारा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm — No Comments

शरद पूर्णिमा विभा

शरद पूर्णिमा विभा



सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,

आज कलानिधि दिखे गगन में

शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,

अम्बर और अवनि आँगन में



शक्ति, शांति का सुधा कलश,

उलट दिया प्यासी धरती पर

मदहोश हुए जन जन के मन,

उल्लसित हुआ हर कण जगती पर



जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,

अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर

देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,

जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर



कितना सुखमय क्षण था यह,

जब औषधेश सामीप्य निकटतम

दुःख और व्याधि…
Continue

Added by Shriprakash shukla on December 7, 2010 at 9:00pm — 1 Comment

आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '

आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '



न देख ख्वाब यह साक़ी की कोई थाम लेगा तुझको

संभले हुए दिल तेरी महफ़िल में नहीं आते.........



ज़िन्दगी में इंसान बहुत कुछ जीतता है और बहुत कुछ हार जाता है लेकिन हार कभी नहीं माननी चाहिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कभी तो मंजिल मिलेगी मंजिल कभी न भी मिले तो कम से कम उसके करीब तो पहुँच जाओगे









कमीं रह गयी



ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी

अपनीं… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 3:25pm — 3 Comments

बात

कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं

हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं

ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं

सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं

Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm — No Comments

एक मिसाल परोपकार की

भारत के लोगों में परोपकार की धारणा बरसों से कायम है। भले ही परोपकार के तरीकों में समय-समय पद बदलाव जरूर आए हों, लेकिन अंततः यही कहा जा सकता है कि लोगों के दिलों में अब भी परोपकार की भावना समाई हुई है। इस बात को एक बार फिर सिद्ध कर दिखाया है, बेंगलूर के आईटी क्षेत्र के दिग्गज अजीम प्रेमजी ने। उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपनी जानी-मानी कंपनी विप्रो की दौलत में से करीब 88 सौ करोड़ रूपये एक टस्ट को दिया है, जो काबिले तारीफ है। ऐसा कम देखने को मिलता है, जब कोई बड़ा उद्योगपति अपनी कमाई का एक बड़ा… Continue

Added by rajkumar sahu on December 7, 2010 at 12:15pm — 1 Comment

आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '

आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '



इन आखरी पन्नों में ज़िन्दगी का दर्द है

कुछ हमनें झेला है कुछ आप बाँट लेना

मेरे क़त्ल-ओ-गम में शामिल हैं कई नाम

ज़िक्र आपका आए न बस इतनी दुआ करना

.......

आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है हो सकता है यह केवल एक ही पन्नें में ख़त्म हो जाए य सैंकड़ों हजारों और पन्ने इसमें और जुड़ जाएँ क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 11:55am — 2 Comments

जिंदगी..©



जिंदगी..©

जाने कितने रंग दिखावे है यह जिंदगी..

बिखेरने थे उसे जो हमसे चाहे ये जिंदगी..

माया फैला फँसा हमको देती है ये जिंदगी..

इशारों पर अपने है नाचती ये जिंदगी..

ना चाहें पर अपना बोझ लदाती है जिंदगी..

अनचाहे ही हम पर गहराती है ये जिंदगी..

कैसे पायें आज़ादी हम पे हावी है ये जिंदगी..



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (07 दिसंबर 2010)



Photography for both pictures :- Jogendra… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 7, 2010 at 11:26am — 1 Comment

मौन

अपना और पराया मौन:

अकुलाया अकुलाया मौन.

जीवन यज्ञ आहुति श्वास ;

धडकन मन्त्र बनाया मौन .

बोलना पीतल;यह सोना है ;

जो हम ने अपनाया मौन .

कभी सुहाग सेज पे लेटा;

शर्माया, सुकुचाया मौन.

कभी विरहाग्नि ने जी भर ;

तरसाया तरपाया मौन.

तिल तिल पलपल ही जीवनभर

देता साथ सुहाया मौन .

प्रेम पगी मीरा का मोहन ;

प्रेम गगन पर छाया मौन .

नाव की ठांव बना कबहूँ यह ;

कबहूँ पतवार बनाया मौन .

श्वासों की माला पे हमने ;

हर दिनरात फिराया… Continue

Added by DEEP ZIRVI on December 6, 2010 at 8:48pm — 4 Comments

आखरी पन्नें

आखरी पन्नें



ज़िंदगी अपनी यादों की इक खुली किताब है

समेटे हुए हैं जिसमें हम अपने आस पास का दर्द

इसको खोलने से पहले बस इतना ख्याल रखना

आपके अश्क ढल न जाएँ दर्द मेरा देखकर



आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है

क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न कोई दिन तो एसा निश्चित किया होगा जिसका कल कभी न आयेगा मैं एक लेखक हूँ जिसे हर रोज़ कुछ न कुछ नया लिखने की चाह रहती है ,प्यास रहती है और मैं कुछ न कुछ लिखता… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 6, 2010 at 7:35pm — No Comments

ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ

ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ

मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में

नाम उसका नहीं फ़साने में |



उन चरागों को दुआएं दे दूं

खुद जला मैं जिन्हें जलाने में |



चोंच खाली लिए लौटे पंछी

बच्चे भूखे रहे ठिकाने में |



कैसे कह दूं कि यह घर छोटा है

उम्र गुजरी इसे बनाने में |



तुम कि गंगा का दर्द क्या सुनते

तुम तो मशगूल थे नहाने में |



एक भरम है चमन की रंगों-बू

है मज़ा तितलियाँ… Continue

Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 4:16pm — 9 Comments

ग़ज़ल:-जिस रोज़ से आईना

ग़ज़ल:-जिस रोज़ से आईना



जिस रोज़ से आईना मेरे पास नहीं है

औरों को मेरी शक्ल का एहसास नहीं है |



उसको मैं अपने राज़ बताता भी किस तरह

बेहद अज़ीज़ है वो मेरा ख़ास नहीं है |



बूढ़े फ़कीर ने मुझे उड़ने की दुआ दी

फिर ये कहा तकदीर में आकाश नहीं है |



बेशक मेरे हैं पांव हुनर तेरा दिया है

तेरे बगैर चलने की अब आस नहीं है |



तालाब के करीब कहीं यक्ष तो नहीं

आकर क्यों लगा… Continue

Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 3:57pm — 7 Comments

स्वप्निल सपने..



कुछ सशब्द,कुछ नि:शब्द सपने,



कुछ व्यक्त ,कुछ अव्यक्त सपने..



कुछ मौन कुछ कोलाहल पूर्ण..



कुछ सुंदर ,कुछ कुरूप सपने..





कुछ मधुर,कुछ कड़वे सपने..



कुछ तृप्त,कुछ अतृप्त सपने..



कुछ सजीव कुछ प्रस्तर खंड..



कुछ माने ,कुछ रूठे सपने..





कुछ शहनाई,कुछ बलि वेदी..



कुछ दुल्हन कुछ अरथी सपने..



कुछ ग्यान पूर्ण,कुछ अग्यानि..



क्च मानव कुछ… Continue

Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:30pm — 2 Comments

ले चल अपने देस पिया जी ..





ले चल अपने देस पिया जी , ये घर अब ना भाए..



जी चाहे,तेरी सुगंध ऐसे मुझ में बस जाए..



जो भी देखे मुझको ,मुझमें तेरी छाया पाए..





रोम रोम मेरा हर पल बस तेरी महिमा गाए..



मेरे होठों पे जब आएँ शब्द तेरे ही आएँ..





इस भौतिक जीवन में तो अब ना ये मनवा रम पाए..



दुनियादारी सोचने बैठूं, तुझमें सुध खो जाए..





ले चल अपने देस पिया जी ,ये घर अब ना भाए..



हर… Continue

Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:00pm — 3 Comments

तू है यहीं...



यूँ तो तू चला गया,

किंतु, जाकर भी है यहाँ !

ख्वाबों में,

फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,

है तेरी पायल की छमछम अब भी I

तेरी कोयल सी आवाज़,

आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी I

तू नहीं है अब,

किंतु,

तेरी परछाई

चादर की सलवटों में है वहीं I

तू चला गया,

क्यूँ ?

ये राज़ बस तुझे ही पता I

फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,

जो छूट गईं

यहीं घर पर… Continue

Added by Veerendra Jain on December 6, 2010 at 11:26am — 15 Comments

अश्क

अनकहा बयाँ हैं अश्क तुम्हारे

अनसुनी दास्ताँ हैं अश्क तुम्हारे



आँखों से दिखती है दुनिया बाहर की

अन्दर का जहाँ हैं अश्क तुम्हारे



दर्द हो दिल में तो ही होता दीदार इनका

ऐसा कुछ कहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



मोका है आज तो जान लो तुम इन्हें

वरना हमेशा रहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



शायद खुशनुमा हैं मिजाज़ इनका

साथ रहकर दर्द सहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



ये ठहरी जमीं नहीं जो जीत लोगे तुम इन्हें

बहता आसमां हैं अश्क… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 4:06pm — No Comments

कलम,विचार और भाव

मेरी कलम,विचार और भाव साथ काम नहीं करते।
कभी कुछ कलम साथ देती है तो विचारों की परछाईं भर ही ज़ाहिर हो पाती है ।
कभी देखने में आया के हमने बात को इतना कम लिखा, के बात का मतलब ही बदल गया ।
कभी भावनाओं को शब्दों में पुरोया तो भावनाएं नाजायज़ लगने लगीं ।
फिर भी हम लिखते गए उस उम्मीद की खातिर के कभी किसी और को नहीं तो खुद को ही कुछ बता सकें, कुछ समझा सकें ।

Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:06am — No Comments

Ghazal

जमाने से चलती हवाओं का रूख मोड़ देंगे,

बदबू साफ़ कर उसमें सिर्फ सुगंध छोड़ देंगे.



मौसम भी अगर दगा दे हमसे रूठ जाता है,

बादल से हम अपने बाग़ को सीधे जोड़ देंगे.



कल तक जो मेरे राहों में कांटें बिछाती थी,

पलकें बिछाकर उसका गुरूर हम तोड़ देंगे.



औरों की मुस्कराहट ही हमारी ईमान होगी.

तुम्हें खुश रखने को, अपना जख्म छोड़ देंगे.



जमाना साथ देने के बजाय टांग खिंचेगी,

प्रेम का रस पिलाने को पत्थर निचोड़ देंगे.



दौड़ रही है जितनी गाड़ी… Continue

Added by Ghulam Kundanam on December 5, 2010 at 1:18am — 1 Comment

तुम ही तो हो

धूप सी खिलती हो तुम
चांदनी तुम ही तो हो !
सप्त तारों कि वो झंकृत
रागिनी तुम ही तो हो !!

नीड़ है तेरा ह्रदय
मैं हूँ पाखी प्रेम का !
धड़कनों में कौंधती सी
दामिनी तुम ही तो हो !!

तुम तो सरिता प्रेम कि हो
प्यार का सागर हो तुम !
आ वाष्पित मन को सघन कर
शालिनी तुम ही तो हो !!

इस ह्रदय की वाटिका में
क्षुब्द मन है शुष्क प्राण !
प्रेम के पौधे को सींचो
maalini तुम ही तो हो !!

Added by RAJESH SHANDILYA on December 5, 2010 at 12:58am — 1 Comment

लघु कथाएँ

पत्थर



वह रोज उसे ठोकर मारता |

आते जाते |

मगर वह टस से मस नहीं हुआ |

एक दिन जोर की ठोकर मारते ही उसके पांव लहू लुहान हो गए |

अब वह उस पत्थर की पूजा करता है |

हाँथ जोड़कर उसी तरह रोज आते जाते |



पानी



बाप ने कहा "बेटा पानी अब सर से ऊपर हो रहा है "

"आप वसीयत कर दे "

"तुम्हारी बहन को भी तो हिस्सा देना होगा "

"शादी में जितना दिया था उसका हिसाब… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:55pm — 6 Comments

तरक्की और जनमत की ताकत

लोकतंत्र में वोट की ताकत महत्वपूर्ण मानी जाती है और जब इस ताकत का सही दिशा में इस्तेमाल होता है तो इससे एक ऐसा जनमत तैयार होता है, जिससे नए राजनीतिक हालात अक्सर देखने को मिलते हैं। हाल ही में बिहार के 15 वीं विधानसभा के चुनाव में जो नतीजे आए हैं, वह कुछ ऐसा ही कहते हैं। देश में सबसे पिछड़े माने जाने वाले राज्य बिहार में तरक्की का मुद्दा पूरी तरह हावी रहा और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का जादू ऐसा चला, जिसके आगे राजनीतिक गलियारे के बड़े से बड़े धुरंधर टिक नहीं सके और वे चारों खाने मात खा गए।… Continue

Added by rajkumar sahu on December 4, 2010 at 4:21pm — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service