कान और कांव कांव
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एक आदमी(नकाब में) :तेरे कान कौवे ले गए।
दूसरा:एं?
पहला:और क्या?वो देखो, कौवे उड़ते जा रहे हैं।
दूसरा व्यक्ति दो कौवों के पीछे दौड़ने लगा। उसके पीछे एक एक कर लोग दौड़ने लगे। कारवां बन गया....गुबार देखते बनता था ... कारवां के पिछले हिस्से में दौड़ते हांफते लोग एक दूसरे से सवाल करते कि आखिर वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? हां, आगे के हिस्से की आवाज में आवाज जरूर मिलाते कि ' वापस दो,वापस दो...।' कोई कोई तो ' वापस लो..वापस लो..' की भी आवाज…
Added by Manan Kumar singh on January 11, 2020 at 2:58pm — 6 Comments
2×16
बेकार सताते हो खुद को बेकार तमाशा करते हो,
जो छुपकर तुमको देख रहा तुम उसको ढूंढा करते हो।
जब पास कोई तस्वीर नहीं, न उसका पता मालूम तुम्हें,
दर दर की ठोकर खाकर बस तकलीफ़ बढ़ाया करते हो।
मिल जाएगा वो है शक इसमें, खो जाओगे तुम ये मुमकिन है
सागर को पाने की जिद में क्यों झील का सौदा करते हो।
ऐसा तो कोई दस्तूर नहीं अजनबियों में कोई बात न हो,
तुमको ही पुकारा है मैंने,पीछे क्या देखा करते हो।
गर मांगने से…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 11, 2020 at 12:27am — 3 Comments
221 2121 1221 212
मंजिल भी थी, चराग भी थे ,हौसला न था ।
अब सबसे कह रहा हूं ,उधर रास्ता न था ।
यह किसकी दस्तरस में धुँआ है मेरी सहर,
कल शब तो इस मकां में दिया भी जला न था।
लेकर चला रकीब मुझे तेरी राह पर,
इक शख्स बस वही था जो मुझसे खफा न था।
मुद्दत के बाद भी तेरी तस्वीर दिल में है,
तेरा फरेब तेरे करम से बड़ा न था ।
उसके जवाब में थे कई उंगलियों के रंग,
लगता है उसने खत मेरा पूरा पढ़ा न था…
Added by मनोज अहसास on January 9, 2020 at 11:39pm — No Comments
नियति-निर्माण
नियति मेरी, पूछूँ एक सवाल
इतना तो बता दो मुझको
वास्तव में यह हिंसक नहीं है क्या
घोर अन्याय नहीं है क्या ...
कि हाथों में तुम्हारे रही है हमेशा
मेरे भविष्य की डोर
और मैं ...
ज़िन्दगी की इमारत की
किसी भी मंज़िल पर पहुँचा तो जाना
जागते सोचते हर धूलभरे कमरे में पाया
उदासीन खालीपन
और मेरी छाती में रहीं गिरफ़्तार
कितने अधबने अनबुने नामहीन
सनातन…
ContinueAdded by vijay nikore on January 9, 2020 at 9:30pm — 4 Comments
जो हैं भूखे यहाँ ठहर जाएँ
शेष सब संग संग उड़ जाएँ
कमी नहीं यहाँ पे दानों क़ी
हो जो बरसात मेरे घर आएँ
पेट भरता है चंद दानों से
फ़िर क्यूँ सहरा में घूमने जाएँ
लोग भारत के बहुत अच्छे हैं
ख़ुद से पहिले हमें हैं खिलवाएँ
मार कंकर भगाते हैं बच्चे
फिर वही प्यार से हैं बुलावाएँ
प्रचंड गर्मी में जब तडपते हैं
पानी हमको यहीं हैं पिलवाएँ
खेत खलिहान सौंधी सी ख़ुशबू
छोड़ मिट्टी क़ो 'दीप' क्यूँ…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 9, 2020 at 5:30pm — 3 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
पर्दा सलीके से बहुत मकसद पे डाल कर
वो लाये सबको देखिए घर से निकाल कर।१।
कितना किया अहित है यूँ अपने ही देश का
लोगों ने उसके नाम पर पत्थर उछाल कर।२।
वंशज उन्हीं के कर रहे जर्जर इसे यहाँ
रखना जो कह गये थे ये कश्ती सँभाल कर।३।
कर्तब तेरे किसी को यूँ आते समझ नहीं
तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर।४।
कर ली है पाँच साल यूँ नेतागरी बहुत
बच्चों सरीखा…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2020 at 4:26pm — 11 Comments
क्या तुम्हें याद है प्रिय
जब मैं औऱ तुम बस यूँ ही
नदी के किनारे चलते चलते
एक छोर से दूसरे छोर तलक
एक दूजे का हाथो में लेकर हाथ
टहलते रहते थे नंगे पाँव!
तुम जल्दी ही थक जाती थीं
औऱ बैठ जाया करती थीं
बेंच पर दोनों हाथ टिकाकर
और टिका देती थीं सर बेंच पर
औऱ मैं यूँ ही टहलता रहता था
सिगरेट के कशों के साथ !
हम दोनों घंटो निहारते रहते थे
एक दूसरे के चेहरे क़ो अपलक
कभी विस्तृत नीले…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 8, 2020 at 12:00pm — 6 Comments
दिल की बात .... एक प्रयास ...
कैसे बोलूँ मैं भला, अपने मन की बात।
ताने देंगे सब मुझे, जब होगी प्रभात।।
नैनों की ये सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।
कह देंगे सब बेशरम,कैसी बीती रात।।
नैनों के संवाद में, दिल ने मानी हार।
बेकाबू फिर हो गए, अंतस के जज़्बात।।
प्रणय पलों में अंततः, हारे सब स्वीकार।
अवगुंठन में रैन के, खूब हुए उत्पात।।
अंग -अंग में रच गयी प्रथम प्रीत की गंध।
श्वास-श्वास में बस गई, वो मधुर…
Added by Sushil Sarna on January 7, 2020 at 9:09pm — 8 Comments
मेमना और भेड़िया फिर उसी नाले के पास टकरा गये। भेड़िये को देखकर मेमना मिमियाने लगा।
Added by pratibha pande on January 7, 2020 at 7:30pm — 8 Comments
वैभव औ सुख साधन थे उनको पर चैन नही मिल पाया
कारण और निवारण का हर प्रश्न तथागत ने दुहराया
घोष हुआ दिवि घोष हुआ भ्रम का लघु बंधन भी अकुलाया
गौतम से फिर बुद्ध बने जग विप्लव शंशय पास न आया।।1
गौतम बुद्ध जहाँ तप से हिय दिव्य अलौकिक दीप जलाए
मध्यम मार्ग चुना अनुशीलन राह यहीं जग को बतलाये
रीति कुरीति सही न लगे यदि क्यों फिर मानव वो अपनाए
तर्क वितर्क करो निज से, धर जीवन संयम को समझाये।।2
गाँव जहाँ ब्रज गोकुल से हिय में अपने जन प्रेम…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 7, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
इससे पहले के तुम दर्पण निहारों
मैं इन केशों में इक वेणी लगा दूँ
लो रख दी बाँसुरी धरती पे मैंने
तुम्हें गाकर के मैं लोरी सुला दूँ
समीरण रुक गई है बहते बहते
कहो तो शाख पेडो की हिला दूँ
पवन से वेग की इच्छा अगर है
कहो तो अंक में लेकर झूला दूँ
सुगंधित हैं सुमन उपवन के सगरे
बताओ कौन सा मैं पुष्प ला दूँ
घटा आकाश में छाने को व्याकुल
कहो तो नयनों में तुमको बिठा…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 7, 2020 at 1:30pm — 6 Comments
(221 2121 1221 212)
(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)
अब के अजीब रंग में आया है जनवरी
ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी
बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते
तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी
ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में
मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी
क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह
कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी
शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी
तुझको सितम…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on January 7, 2020 at 11:41am — 6 Comments
स्वप्न-मिलन
रात ... कल रात
कटने-पिटने के बावजूद
बड़ी देर तक उपस्थित रही
नींद के धुँधलके एकान्त में
पिघलते मोम-सा
कोई परिचित सलोना सपना बना…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments
छोड़ गये थे केवट जिन को तूफानी मझधारों पर
साहिल वालो उनसे पूछो क्या बीती दुखियारों पर।१।
हम जैसों की मजबूरी थी हालातों के मारे थे
कहने वाले खुदा स्वयम् को नाचे खूब इशारों पर।२।
आग जलाकर मजहब की नित सबने जो तैयार किये
सच में हर पल देश हमारा बैठा उन अंगारों पर।३।
माग रहे हैं तोड़ के घर को नित…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2020 at 4:55am — 10 Comments
12122×4
समझ नहीं आ रही है हमको ज़माने वाले तेरी पहेली,
शिकन से माथा भी भर दिया है लकीरों से जब भरी हथेली.
उदास बच्चे ने माँ के आंचल से अपनी आंखों को ढक लिया है,
गुज़र ही जाएगी रात काली जो चांद तारों की ओट लेली.
इक ऐसा गम है मैं जिससे यारों नजर चुरा के ही जी रहा हूँ,
ज़रा सा उसके करीब जाऊं बिखरने लगती है जां अकेली.
अजब है दुनिया का ये बगीचा ,अजब है इसका हठीला माली
तमाम…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 5, 2020 at 1:53am — No Comments
बात बर्फ सी जमी हुई है, शब्दों में है लेकिन आग ।
देखो चमन न बँटने पाये, निकले हैं जहरीले नाग ।।
बाढ़ आ गई आगजनी की,तोड़-फोड़ होती अविराम ।
भाईचारा है सूली पर, लोकतंत्र के चक्के जाम ।।
राष्ट्र संपदा की बलि देकर, दुश्मन खेल रहा है फाग ।
देखो चमन न बँटने पाये , निकले हैं जहरीले नाग ।।
हिंसा भीड़ तमाशे का जो,…
ContinueAdded by Anamika singh Ana on January 4, 2020 at 3:30pm — 5 Comments
त्रिवेदी जी अपने समय के ख्याति प्राप्त व्यापारी, समाज सेवक, राज नेता, मंत्री और ना जाने किस किस पद को शोभायमान कर चुके थे।
आज वृद्धावस्था के कारण जर्जर शरीर को लेकर अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में मरणासन्न स्थिति में पड़े थे। दवाओं का शरीर पर कोई अनुकूल प्रभाव नहीं हो रहा था। लेकिन अस्पताल वाले अति आशावादी होने का नाटक कर रहे थे। वहाँ के डॉक्टरों का दावा था कि वे पूर्व में मृत प्रायः लोगों में भी जान डाल चुके हैं| वे इतनी मोटी मुर्गी को तबियत से हलाल करना चाहते थे।यमदूत बार बार आकर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 4, 2020 at 11:00am — 8 Comments
पधार गए हो नए साल जो
खुश रहो औ ख़ुश रहने दो
आओ जीमो मौज मनाओ
जो जमा हुआ वो बहने दो
पथ भी रहें पंथी भी रहें
राहें भी दुश्वार न हों
सुरों मे गीत रहें न रहें…
Added by amita tiwari on January 4, 2020 at 4:00am — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
हमारे सारे मिसरे मुख्तलिफ अर्थों में लिपटे हैं,
तुझे अब याद भी करते हैं तो डर कर ही करते हैं.
बहुत मुमकिन है इसमें फिर तुम्हारा ज़िक्र आ जाए,
नज़र में आज लेकिन दर्द सब दुनिया जहां के हैं.
जरा सा ध्यान से आ जाते हैं छोटे से मिसरे में,
मुहब्बत के सभी अफसाने रेशम के दुपट्टे हैं.
कई खुदगर्ज मछुआरों ने कब्जा कर लिया उस पर,
वह दरिया जिसमें अपनी नेकियां हम डाल आते हैं.
जहाँ से…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 4, 2020 at 12:30am — 4 Comments
जन्म लिया जिस देश धरा पर वो हमको लगता अति प्यारा
वैर न आपस में रखते वसुधैव कुटुम्ब लगे जग सारा
पूजन कीर्तन साथ जहाँ सम मन्दिर मस्जिद या गुरुद्वारा
लोग निरोग रहे जग में नित पावन सा इक ध्येय हमारा।।1
पूरब में जिसके नित बारिश, हो हर दृश्य मनोरम वाला
लेकर व्योम चले रथ को रवि वो अरुणाचल राज्य निराला
गूढ़ रहस्य अनन्त छिपा पहने उर पादप औषधि माला
जो मकरन्द बहे घन पुष्पित कानन को कर दे मधुशाला।।2
उत्तर में जिसके प्रहरी सम पर्वत राज हिमालय…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 3, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
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