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बाँधा जो साँसों ने साँसों से धागा

बाँधा जो साँसों ने साँसों से धागा

आँसू में, कुछ मुस्कानों में

मिलन की वेला के सुख में मिश्रित

बिछोह की घड़ी की व्यथा अपार

डरते-मुस्कुराते चेहरे पर पाईं हमने

ढुलक आई थीं बूँदें जो भीगी पलकों से

मिला था उनमें प्राणों को प्रीति का दान

ऐसे में हृदय ने सुनी हृदय की मधुर धड़कन

मधुमय मूक स्वर उस अद्वितीय आलिंगन में

आच्छादित हुए ऐसे में ज्यों भीगे गालों पर गाल

मुझको लगा उस पावन…

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Added by vijay nikore on March 16, 2020 at 2:00pm — 6 Comments

चार शेर ( फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन  )

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ)

2122. 2122. 212.

ज़िन्दगी भर ये परेशानी रही

मेरे चारो सम्त वीरानी रही ।।

जिस के पीछे अब ज़माना है पढ़ा

वो कभी मेरी भी दीवानी रही ।।

शब मिलन की थी बहुत गहरी मगर

रात भर तारो की निगरानी रही।।

दोस्ती कर ली किताबों से मैं ने

भूलने में उसको आसानी रही ।।

- शेख़ ज़ुबैर अहमद

( मौलिक एवम अप्रकाशित )

Added by Shaikh Zubair on March 15, 2020 at 6:57pm — 2 Comments

किचन क्वीन(लघुकथा)



दुल्हन ने किचन की कमान संभाली। मितव्ययिता के आकांक्षी घरवाले बड़ी बड़ी उम्मीदें पाले हुए थे कि अब कुछ बचत होगी।बजट सुख दायक होगा। अन्य कार्यों के लिए कुछ धन बचाया जा सकेगा।......

फिर कुछ दिनों के बाद जब खाने का जायका मुंह चिढ़ा ने लग,तब सास ने एक दिन राशन के बरतन देखे। देखती ही रह गई।नमक - चीनी की पहचान मुश्किल थी।चावल - दाल ग ले मिलते दिखे। जो बरतन सामने थे,वे लगभग भरे थे, पीछे वाले रिक्तप्राय।वह किचन प्रबंधन का नवीन गुर समझ गई।खाने के स्वाद की माधुर्य मिली मिर्ची मुखर हो…

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Added by Manan Kumar singh on March 15, 2020 at 11:08am — 4 Comments

जो तेरी आरज़ू (ग़ज़ल)

बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

1 2 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2

जो तेरी आरज़ू खोने लगा हूँ

जुदा ख़ुद से ही मैं होने लगा हूँ [1]

जो दबती जा रही हैं ख़्वाहिशें अब

सवेरे देर तक सोने लगा हूँ [2]

बड़ी ही अहम हो पिक फ़ेसबुक पर

मैं यूँ तय्यार अब होने लगा हूँ [3]

जो आती थी हँसी रोने पे मुझको

मैं हँसते हँसते अब रोने लगा हूँ [4]

बढ़ाता जा रहा हूँ उनसे क़ुरबत

मैं ग़म के बीज अब बोने लगा हूँ [5]

जो पुरखों की दिफ़ा…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 15, 2020 at 1:00am — 11 Comments

मुक्तक -कोरोना

किसी की जां पे बन आई, किसी को खेल कोरोना

नहीं मुश्किल, बहुत आसान अपने 'हाथ ही धोना'


कि छोटी-छोटी बातों को रखो तुम ध्यान में अपने

रहेगा दूर फिर हमसे विदेशी रोग का रोना

चलो छोड़ो गले मिलना,'नमस्ते' ही को अपनाओ

बढ़ाओ अपनी क्षमता और 'शाकाहार' ही खाओ…

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Added by Poonam Matia on March 15, 2020 at 1:00am — 5 Comments

"मैं आ रही हूँ माँ....."

"मैं आ रही हूँ माँ..."

कितनी बार कहा था माँ ने "बेटा! बस एक बार तुम ग्रेजुएट हो जाओ फिर जहाँ भी किस्मत आजमाना चाहोगी तुम्हें रोकूँगी नही। ये पूरा का पूरा आकाश तुम्हारा हैं।" किंतु तब मैंने उनकी बातों को यूंही हवा में उड़ा दिया था।

संयुक्त परिवार में घर की सबसे खूबसूरत बेटी थी वह। बस! यही ज़रूर उसे ले डूबेगा कहाँ जानती थी। बारहवी के बाद ही अपनी रिश्तेदार के घर इस नगरी में आयी तो वापस लौटी ही नहीं कभी। माँ समझा-बुझाकर ले जाने आई थी उसे तब उन्हें…

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Added by नयना(आरती)कानिटकर on March 14, 2020 at 4:00pm — 1 Comment

हुस्न का उसे ख़ुदा क्यों ग़ुरूर हो गया (६९ )

(212 1212 212 1212 )

हुस्न का उसे ख़ुदा क्यों ग़ुरूर हो गया

जो करीब दिल के था आज दूर हो गया

**

क्यों चुनी है ये डगर क्यों ख़फ़ा हुई नज़र

क्या गुनाह कर दिया क्या क़ुसूर हो गया

**

बेख़बर रहा जिसे मानता था हमसफ़र

बेवफ़ा बता के ख़ुद बेक़ुसूर हो गया

**

हो गई हुज़ूर की दीद मुझको जब कभी

यूँ लगा मुझे सनम अब ज़ुहूर  हो… Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 14, 2020 at 1:00am — 2 Comments

वृज की होली

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

वृज बीथिन्ह मँह , अजिर , अटारी

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

अबिर , गुलाल मलैं गोपियन कै

लुकैं छिपैं वृज की सब नारी

ढूँढि - ढूँढि रंग - कुंकुम मारैं

घूमि - घूमि गोपी दैं गारी

श्याम सामने रोष दिखावहिं

पाछे मुसकावहिं सब ठाढ़ी

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

चिहुँक - चिहुँक राधा पग धारहिं

श्याम पकरि चुनरी रंग डारहिं

विद्युत चाल चपल मनुहारी

लपक - झपक कीन्ही…

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Added by Usha Awasthi on March 13, 2020 at 1:30pm — 4 Comments

किसी भी रहरवाँ* को जुस्तजू होती है मंज़िल की (६८ )

(1222 1222 1222 1222 )

.

किसी भी रहरवाँ को जुस्तजू होती है मंज़िल की 

सफ़ीनों को मुसल्सल खोज रहती है जूँ साहिल की

**

न करना तोड़ने की कोशिश-ए-नाकाम इस दिल को

बड़ी मज़बूत दीवारें सनम हैं शीशा-ए-दिल की

**

किया तीर-ए-नज़र से वस्ल की शब में हमें बिस्मिल

नहीं मालूम क्या है आरज़ू इस बार क़ातिल की

**

सियाही पोतने से रोशनी का रंग नामुमकिन

बनाएगी तुम्हें बातिल ही संगत रोज़ बातिल*…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 11, 2020 at 4:00pm — 2 Comments

करेगा तू क्या मिरी वकालत (ग़ज़ल)

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़बूज़ अस्लम

121   22   121   22

फ़रेब-ओ-धोका है ये अदालत

करेगा तू क्या मिरी वकालत [1]

रसूल कितने ही आ चुके पर

गई न इंसान की जहालत [2]

सनम रिझाएँ ख़ुदा मनाएँ

है गू-मगू की ये अपनी हालत [3]

जो मुड़ गया राह-ए-इश्क़ से तो

रहेगी ता-उम्र फिर ख़जालत [4]

किसे फ़राग़त जो दे तवज्जो

दिखाइएगा किसे बसालत [5]

है मुख़्तसर मेरी गुफ़्तगू पर

है ग़ौर और फ़िक्र में तवालत…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 5:30pm — 5 Comments

दिल के हाल सुने दिलवाला (लघुकथा)

"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"



"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"



अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।



"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments

रंगों के घन खूब उड़ायें - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

***

आओ नाचें,  झूमें, गायें  फिर  से अब के होली में

इक-दूजे को खूब लुभायें फिर से अब के होली में।१।

**

देख के जिसको मन ललचाये ज़न्नत के वाशिन्दों का

रंगों के  घन  खूब  उड़ायें  फिर  से  अब के होली में।२।

**

जीवन में  रंगत  हो  सब  के  संदेश  हमें देे होली 

रोते जन को यार हँसायें फिर से अब के  होली में।३।

**

आग सियासत चाहे कितनी यार लगाये नफरत की

प्रेम…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2020 at 7:30am — 8 Comments

होली के इन रंगों में (ग़ज़ल)

बह्र मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 16-रुक्नी

(बह्र-ए-मीर)

2 2   2 2   2 2   2 2   2 2   2 2   2 2   2

छुपे हैं जाने कितने क़िस्से होली के इन रंगों में

प्यार मुहब्बत यारी रिश्ते होली के इन रंगों में

बच्चों की अठखेली इनमें और दुआएँ पुरखों की

जवाँ दिलों के ख़्वाब मचलते होली के इन रंगों में

नीला सब्ज़ गुलाबी पीला लाल फ़िरोज़ी नारंगी

जीवन के सब रंग झलकते होली के इन रंगों में

सदा मनाते आए होली मिल कर सब हिंदुस्तानी…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 12:00am — 4 Comments

महसूस होता क्या उसे दर्द-ए-जिगर नहीं (६७ )

ग़ज़ल ( 221 2121 1221 212 )

महसूस होता क्या उसे दर्द-ए-जिगर नहीं

या दर्द मेरा कम है कि जो पुर-असर नहीं

**

महलों में रहने वाले ही क्या सिर्फ़ हैं बशर

फुटपाथ पर जो सो रहे वो क्या बशर नहीं

**

साक़ी सुबू उड़ेल दे है तिश्नगी बहुत 

ये प्यास दूर कर सके पैमाना-भर नहीं

**

इंसान सब्र रख ज़रा ग़म की भले है शब

किस रात की बता हुई अब तक सहर नहीं

**

या रब ग़रीब का हुआ…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 9, 2020 at 11:30pm — 5 Comments

सम्मोहन

सम्मोहन 

सम्मोहन !

जानता था मन, शायद न लौटेंगे हम

वह प्रथम-मिलन की वेला ही होगी 

शायद हमारा अंतिम मिलन

अंतिम मुग्ध आलिंगन

उस परस्पर-गुँथन में थी लहराती

चिन्तनशील यह उलझन गहरी

जी में फिर भी था अतुल उत्साह

कि रहेंगे जहाँ भी, खुले रहेंगे हमारे

सुन्दरतम मन-मंदिर के वातायन

खुले रहेंगे पूरम्पूर परस्पर प्राणों के द्वार

कि तड़पती भागती दिशाओं के पार भी

अजाने…

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Added by vijay nikore on March 8, 2020 at 12:30am — 6 Comments

सौन्दर्य-अनुभूति

सौन्दर्य-अनुभूति

नई जगह नई हवा नया आकाश

न जाने कितने बँधनों को तोड़

अनेक बाहरी दबावों को ठेल

सैकड़ों मीलों की दूरी को तय कर

मुझसे मिलने तुम्हारा चले आना

मानसिक प्रष्ठभूमि में होगी ज़रूर

पावन स्नेह के प्रति तुम्हारी साधना

और इस प्रष्ठभूमि में तुमसे मिलना

था मेरे लिए भी उस स्वर्णिम क्षण

सौन्दर्य का आकर्षण

हमारा वह प्रथम मिलन

सुखद सरल भाव-विनिमय

खुल गए थे…

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Added by vijay nikore on March 7, 2020 at 5:46am — 2 Comments

होली के दोहे :

होली के दोहे :

नटखट नैनों ने किया, कुछ ऐसा हुड़दंग।

नार नशा हावी हुआ, फीकी लगती भंग।।१

साजन लेकर हाथ में, आये आज गुलाल।

बाहुबंध में शर्म से, लाल हो गए गाल।। २

अधरों पर है खेलती, एक मधुर मुस्कान।

तन पर रंगों ने रची, रिश्तों की पहचान।। ३

होली के त्योहार पर ,इतना रखना ध्यान।

नारी का अक्षत रहे ,रंगों में सम्मान।।४

गौर वर्ण पर रंग ने, ऐसा किया धमाल।

नैनों नें की मसखरी, गाल हो गए लाल।।…

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Added by Sushil Sarna on March 6, 2020 at 5:08pm — 4 Comments


मुख्य प्रबंधक
तीन क्षणिकाएँ (गणेश बाग़ी)

तीन क्षणिकाएँ ...

एक: पन्ने

कुछ पन्ने

अलग करने योग्य

जुड़ने चाहिए

बच्चों की कापियों में

ताकि ...



वो खेल सकें

राजा-मंत्री, चोर-सिपाही

उड़ा सकें

हवाई जहाज

चला सकें

कागज की नाव

बिना डर,

बगैर किसी

असुविधा के ।

***

दो : कोना

बचाकर रखता हूँ

एक छोटा-सा कोना

अपने दिल में ...

जब होता…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 6, 2020 at 8:39am — 4 Comments

रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी को - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२२/२२१/२१२२

*

फूलों की क्या जरूरत उपवन में आदमी को

भाने  लगे  हैं  काँटे  जीवन  में  आदमी  को।१।

**

क्या क्या मिला हो चाहे मन्थन में आदमी को

विष की तलब रही  पर  जीवन में आदमी को।२।

**

आजाद जब है  रहता उत्पात करता बेढब

लगता है खूब अच्छा बन्धन में आदमी को।३।

**

आता बुढ़ापा जब है रूहों की करता चिन्ता

तन की ही भूख केवल यौवन में आदमी को।४।

**

कितना हरेगा विष ये चाहे पता नहीं पर

रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2020 at 4:21pm — 2 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : सब्जीवाला (गणेश जी बाग़ी)

उफ्फ !! ये सब्जी वाले भी न, बड़ा हल्ला करते हैं । साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था के राष्ट्रीय सचिव खान साहब ने संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुप्ता से कहा ।

"वो सब छोड़िए खान साहब, ये बताइये कि कितने कवियों और कवयित्रियों की अंतिम सूची बनी जिन्हें सम्मानित करने का प्रस्ताव है ?"

"जी गुप्ता साहब, आपके निदेशानुसार 25 कवियों और 125 कवयित्रियों की सूची तैयार कर ली गयी है, किंतु एक बात समझ नही आयी कि इनमें से अधिकतर तो कोई स्तरीय साहित्यकार भी नही हैं, फिर क्यों आपने उन्हें साहित्य और…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 5, 2020 at 9:30am — 14 Comments

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