कुछ कहते कहते रुक जाते हैं,
चंचल, मदभरे, नयन तुम्हारे...
पल - पल देखो डूब रहे हम,
झील से गहरे नयन तुम्हारे....
मूक आमंत्रण तुमने दिया था,
अधरों से कुछ भी कहा नहीं,
मुझको अपने रंग में रंग गए,
हाथों से पर छुआ नहीं,
नैनो से सब बातें हो गयीं,
रह गए लब खामोश तुम्हारे....
स्पर्श तुम्हारा याद है मुझको,
सदियों में भी भूली नहीं,
कोई ऐसा दिन नहीं जब,
यादों में तेरी झूली नहीं,
बिन परिचय…
ContinueAdded by Anita Maurya on July 13, 2011 at 10:49pm — 2 Comments
कुदरत है अनमोल !
कुदरत है बड़ी अनमोल
देख ले तू ये आँखें खोल ;
चल कोयल के जैसा बोल
कानों में तू रस दे घोल .
कुदरत है ........................
तितली -सा तू बन चंचल ;
सरिता सा तू कर कल-कल ;
बरखा जल सा बन निर्मल ;
घुमड़-घुमड़ कर बन बादल;
भौरा बन तू इत-उत डोल.
कुदरत है .............................
सूरज बन तू खूब चमक ;
चंदा सा तू बन मोहक ;
फूलों सा तू महक-महक ;
चिड़ियों जैसा चहक-चहक…
Added by shikha kaushik on July 13, 2011 at 9:00pm — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 13, 2011 at 12:30pm — 1 Comment
तिनका हूँ, शहतीर नहीं हूँ |
ज़िन्दां हूँ, तस्वीर नहीं हूँ ||
Added by Shashi Mehra on July 13, 2011 at 9:30am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 12, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
व्यंग्य - ले लीजिए स्वर्णकाल का आनंद यह बात सही है कि हर किसी की जिंदगी में कभी न कभी स्वर्णकाल आता ही है। उपर वाला निश्चित ही एक बार जरूर छप्पर फाड़कर देता है, ये अलग बात है कि कुछ लोग उस छप्पर में समा जाते हैं तो कुछ लोग पूरे छप्पर को समा लेते हैं। कर्म तो प्रधान होना चाहिए, मगर भाग्य से भरोसा भी नहीं उठना चाहिए, क्योंकि यह तो सभी जानते हैं, जब स्वर्णकाल का दौर चलता है तो फिर फर्श से अर्श की दूरी मिनटों में तय होती है, मगर जब संक्रमणकाल चलता है तो फिर अर्श से फर्श तक आने में पल भर नहीं…
ContinueAdded by rajkumar sahu on July 12, 2011 at 1:20am — 1 Comment
इब्तदा थी मैं, इन्तहां समझा |
एक गुलचीं को, बागवान समझा ||
भूल कह लो, इसे या नादानी |
बेरहम को,था मेहरबाँ समझा ||
ज़हन में, इतने चेहरे, बसते हैं |
मैंने खुद को ही, कारवाँ समझा ||
खुद फरेबी में, ज़िन्दगी गुजरी |
झूठ को, सच सदा, यहाँ समझा ||
कोई मकसद नहीं है, जीने का |
बाद सब कुछ, 'शशि' गँवा समझा ||
Added by Shashi Mehra on July 11, 2011 at 8:03pm — 1 Comment
Added by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 11:30am — 21 Comments
Added by Shashi Mehra on July 11, 2011 at 10:11am — 1 Comment
1. समारू - टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में राजग पर भी उंगली उठी।
पहारू - भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे हैं।
2.समारू - केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल होने वाला है।
पहारू - काले कारनामे वाले कुछ जाएंगे, कुछ आएंगे।
3.समारू - अन्ना हजारे लाठी ही नहीं, गोली खाने को तैयार हैं।
पहारू - जरा संभलकर, दिल्ली पुलिस की तरह सरकार बौखलाई हुई है।
4.समारू - किसानों की जमीन के लिए उत्तरप्रदेश में जंग छिड़ी हुई है।
पहारू - जमीन के नाम पर राजनीति कर वोट की खेती…
Added by rajkumar sahu on July 11, 2011 at 1:02am — 1 Comment
इस दुनिया के निर्माता ने, सृष्टि के भाग्य विधाता ने.
मारुति-कृशानु के संगम से, भूमि -वारि और गगन से.
एक पुतला का निर्माण किया.
मानव का नाम उचार दिया.
मांस -चर्म के इस तन में,नर -नारी के सुन्दर मन में.
एक समता का संचार किया, तन लाल रुधिर का धार दिया .
सबको समान दी सूर्य -सोम.
सबको समान दी भूमि -ब्योम.
सबको चमड़े की काया दी. सबको सृष्टि की छाया…
ContinueAdded by satish mapatpuri on July 11, 2011 at 12:30am — 9 Comments
Added by rajkumar sahu on July 10, 2011 at 5:40pm — No Comments
बातइतनी समझ में आई है |
झूठ ही आजकल सच्चाई है ||
सब में जलवा-नुमाँ, खुदा खुद है |
दहर है, ये जगह खुदाई है ||
हया,वफ़ा हैं किताबों में, इसलिए हर सू |
बे-हयाई है, बे-वफाई है ||
दावा बेकार है, किसी शेय पर |
सोच तक तो, यहाँ पराई है ||
जाँचना मत जहां में रिश्ते |
जिसने जांचे हैं, चोट खाई है ||
खेल ज़ारी है, जिंदगानी का |
जीत हारी है,मात पाई है ||
Added by Shashi Mehra on July 10, 2011 at 11:30am — No Comments
भारत एक कृषि प्रधान देश है और अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि को ही मानी जाती है। बावजूद, अन्नदाताओं की चिंता कहीं नजर नहीं आती। देश में भूमिपुत्रों की माली हालत बद्तर से बद्तर होती जा रही है और सरकार द्वारा महज नीतियां बनाने की बात की जाती है और जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं, वैसे ही किसानों से जुड़े मुद्दे भी रद्दी की टोकरी में डाल दिए जाते हैं। सरकार की ओर से कृषि बजट को बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के बारे में जैसा प्रयास होना चाहिए, वैसा अब तक नहीं हो सका है। यही कारण है कि देश के…
ContinueAdded by rajkumar sahu on July 10, 2011 at 1:44am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 9, 2011 at 12:16pm — No Comments
यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |
चला रहता है, यह थमता नहीं है ||
बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |
जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||
मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |
अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||
बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |
दुआओं में असर, लगता नहीं है ||
वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||
हमें लगता था, कि वह हस रहा है |
अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है…
Added by Shashi Mehra on July 9, 2011 at 10:30am — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on July 9, 2011 at 2:04am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 8, 2011 at 6:34pm — No Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 7, 2011 at 2:00am — 8 Comments
यह तो सभी जानते हैं कि आज क्रिकेट, भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक ग्लैमरस खेल है और खेलप्रेमियों में इस खेल का जुनून सिर चढ़कर बोलता है। देश-दुनिया में ऐसे भी खेल प्रेमी मिलते हैं, जिनके लिए क्रिकेट ही सब कुछ है तथा उनके पसंदीदा क्रिकेटर भगवान होते हैं। क्रिकेट के प्रति खेलप्रेमियों में दीवानगी इस कदर देखी जाती है कि वे अपना खाना-पीना को भी दरकिनार कर देते हैं। विश्वकप समेत अन्य कई टूर्नामेंट में एक-एक बॉल पर उनकी नजरें टिकी रहती हैं और यही क्रिकेट का रोमांच उन्हें बांधे भी रखता है। एक-एक बॉल…
ContinueAdded by rajkumar sahu on July 6, 2011 at 3:13am — No Comments
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