.
नव-पावस के भीगे हम-तुम...
कुछ अनचीन्हे कुछ परिचित-से मृदुभावों में जीएँ हम-तुम।
इस भावोदय की वेला में चलो अलस की साँझ भुला दें
चाह रहे जो कहना अबतक आज जगत को चलो सुना दें
इच्छाएँ कह अपनी सारी जड़-चेतन झन्ना दें हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...
अर्थ बने क्यों रुकने के अब, अलि तन्द्रिल हो क्यों उपवन में
गंध बँधे कब तक कलियों में, पवन रुके कब तक आँगन में
नीरस-चर्या सभी बदल कर नव-उल्लास गहें मिल हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे…
Continue
Added by Saurabh Pandey on July 27, 2010 at 2:02pm —
6 Comments
.
कोई किसी से परिचय नहीं कराता
समय के साथ-साथ स्वयं परिचित होता जाता है हर अजनबी
नहीं रहती कोई इकाई बंद अपने आप में फिर
कहीं कुछ बनने लगता है
कहीं कुछ जनमने लगता है चुपचाप
ऐसा नहीं
अँधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी ही हो
चकचकाती इस उजली धूप से
बच पाने की इच्छा भी हो सकती है
वर्ना देखो उसकी आँखें
लाल डोरे की जालियाँ कितनी उलझती गई हैं, और
उलझाती गई हैं उसकी जाने कितनी वेगवती संभावनाएँ
यदि तुम्हारा अभिजात्य
इस…
Continue
Added by Saurabh Pandey on July 27, 2010 at 2:00pm —
7 Comments
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
1984 के दंगों के आरोपी को छोडती हैं ,
जनता के मांग पर फिर केस चलता हैं ,
उसके बाद दोबारा सज्जन कुमार अंदर जाता हैं ,
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
टाइटलर हैं किस्मत वाले दोबारा क्लीन चिट मिली ,
अमित शाह को लेकर भाजपा ने जो बक्तब्य दिया ,
आम आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता हैं ,
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
Added by Rash Bihari Ravi on July 27, 2010 at 1:30pm —
4 Comments
हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कहाँ इनकार है मापतपुरी सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611
Added by satish mapatpuri on July 26, 2010 at 1:00pm —
5 Comments
चिंतन और आकलन:
हम और हमारी हिन्दी
संजीव सलिल'
*
हिंदी अब भारत मात्र की भाषा नहीं है... नेताओं की बेईमानी के बाद भी प्रभु की कृपा से हिंदी विश्व भाषा है. हिंदी के महत्त्व को न स्वीकारना ऐसा ही है जैसे कोई आँख बंद कर सूर्य के महत्त्व को न माने. अनेक तमिलभाषी हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकार हैं. तमिलनाडु के विश्वविद्यालयों में हिन्दी में प्रति वर्ष सैंकड़ों छात्र एम्.ए. और अनेक पीएच. डी. कर रहे हैं. मेरे पुस्तक संग्रह में अनेक पुस्तकें हैं जो तमिलभाषियों ने…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on July 26, 2010 at 10:38am —
6 Comments
कल आँखे खोली दुनिया में
कल को रुखसत हो जाएंगे
संग चले जो कह कर अपना
सब बेगाने हो जाएंगे
साथ तुम्हारा भी ना होगा
वादे सारे खो जाएंगे
दिल में दी थी जगह जिन्होने
क्या फिर बांहे फैलाएंगे?
हाँ, पर जिनको दी मुस्कानें
भुल नहीं हमको पाएंगे
रह ना सकेंगे इस दुनिया में
यादों में हम रह जाएंगे।।
"रिचा भारती"
Added by Raju on July 25, 2010 at 4:22pm —
3 Comments
गुरु को नित वंदन करो, हर पल है गुरूवार.
गुरु ही देता शिष्य को, निज आचार-विचार..
*
विधि-हरि-हर, परब्रम्ह भी, गुरु-सम्मुख लघुकाय.
अगम अमित है गुरु कृपा, कोई नहीं पर्याय..
*
गुरु है गंगा ज्ञान की, करे पाप का नाश.
ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश..
*
गुरु भास्कर अज्ञान तम्, ज्ञान सुमंगल भोर.
शिष्य पखेरू कर्म कर, गहे सफलता कोर..
*
गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान.
ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान..
*
गुरुता…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on July 25, 2010 at 8:30am —
5 Comments
अब सर से पानी निकलने लगा है
तैरता मन भी अब डूबने लगा है ॥
सूनी माँ की आंखों में , बेटे का इंतज़ार है
अब ,सिर्फ उनका ताबूत घर आने लगा है ॥
आशा लगाईं थी कुदाल ने , लाल कोठी पर
कपास के खेतों में भी अब दरार आने लगा है ॥
अब खाव्बो की मलिका , मरने लगी है
इच्छाओ का घर भी अब ,जलने लगा है ॥
मैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
इसका मलाल अब मुझे , आने लगा है॥
लाल कोठी-संसद
Added by baban pandey on July 22, 2010 at 4:18pm —
4 Comments
कभी - कभी उसे लगता है
नेत्र हीन हो जाए
ताकि वह देख न सके ....
शरीर दिखाती औरतें
किसानों की आत्महत्याए
निठारी में नाले से निकले
छोटे -छोटे बच्चों के नर कंकाल
और
सैनिक बेटे को खोने के बाद
एक मूर्छित माँ का चेहरा ॥
कभी -कभी उसे लगता है
बहरा हो जाए
ताकि वह सुन न सके
नेताओं के झूठे आश्वाशन
नक्सलियों के बंदूकों से
गोलियों की तडतड़ाहट
लोक संगीत की जगह फ्यूजन -मयूजिक
और
हमलों में शहीद हुए जवानों…
Continue
Added by baban pandey on July 21, 2010 at 8:45pm —
2 Comments
कौरव पांडव मिल चीर खीचते ,
सदन खड़ी बेचारी द्रोपदी बनकर,
हाथ जोड़े लुट रही थी वो अबला,
कृष्ण ना दिखे किसी के अन्दर ,
चुनाव का चौपड़ है बिछने वाला ,
शकुनी चलेगा चाल,पासे फेककर,
खेलेंगे खेल दुर्योधन दुश्शाशन ,
होगा खड़ा शिखंडी भेष बदलकर,
हे!जनता जनार्दन अब तो जागो,
रक्षा करो कृष्ण तुम बनकर,
दिखाओ,तुम्हे भी आती है बचानी आबरू ,
"बागी" नहीं जीना शकुनी का पासा बनकर,…
Continue
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 21, 2010 at 8:00pm —
22 Comments
जो सच है वही दिखाता है आईना.
कहाँ -कहाँ दाग जिस्म पर, दिखलाता है आईना.
जो सच है वही दिखाता है आईना.
चेहरे भले बदलते हैं, पर बदले ना आईना.
राजा-रंक या ऊँच-नीच का, भेद ना माने आईना.
सच्चाई का एक धर्म ही, मानता है आईना.
जो सच है वही दिखाता है आईना.
चाहे कोई कुछ भी कर ले, झूठ कभी ना बोले.
बुरा लगे या भला लगे, ये भेद सभी का खोले.
चेहरा गर हो दागदार तो, शरमाता है आईना.
जो सच है वही दिखाता है आईना.
दिन भर में लाखों को उनका, चेहरा दिखलाता…
Continue
Added by satish mapatpuri on July 21, 2010 at 4:44pm —
5 Comments
पन्ने जिंदगी के!
पलट रहा था मैं यूँही बैठा बैठा ये पन्ने जिंदगी के
कुछ लम्हे ख़ुशी के कुछ नगमे दर्द-ए-गम के
कोई मीठी पुकार, तो कहीं से आरही थी फटकार
कहीं बहा मेरा खून पसीना,तो कहीं बेफिक्री का सोना
बचपन की यादों का मेला ,मेले में एक मदारी
डम-डम डमरू की हुंकार
फिर माँ का प्यार भरा पुचकार
मेरे किशोरोपन में भी कई तस्वीरे बन रही थी
किसी लड़की पे मर जाना,
फिर उससे लड़ना झगड़ना,और मनाना
फिर आ पंहुचा आज में,
एक सड़े हुए कूड़ेदान में,
घर…
Continue
Added by Biresh kumar on July 20, 2010 at 9:00pm —
4 Comments
सादर नमस्कार,
ये लेख मैंने मुंबई आतंकी हमले के तुरंत बाद लिखी थी। चाहता हूँ कि इ लेख के माध्यम से अपने विचार आप लोगों के साथ भी बाँटूँ। आप भी अपने विचारों से हमें अवगत कराने की कृपा करें। सादर धन्यवाद।।
बाबूजी मुंबई से आए हैं और बहुत उदास हैं। कह रहे हैं कि छोटा-मोटा काम अपने गाँव-जवार में ही मिल जाएगा तो करूँगा पर अब मुंबई नहीं जाऊँगा। अब वहाँ के जीवन का कोई भरोसा नहीं है, कब क्या हो जाएगा कोई नहीं जानता। अब तो पूरे भारत में आतंकवाद ने अपना पैर पसार लिया है। इन सब…
Continue
Added by Prabhakar Pandey on July 20, 2010 at 11:08am —
3 Comments
आज मेरे दिल को बहुत बड़ा सदमा लगा है, मुझे एक पल को लग रहा है की मेरी ज़िंदगी अब किसी काम की नही है मगर दूसरे ही पल अनेक तरह के सवाल मन मे उठने लगते हैं, आज मुझे एक बात का अहसास हो गया की अगर आपकी पहुँच नही है उपर तक तो आप बिल्कुल शुन्य हैं,इस धरती पर आपकी सुनने वाला कोई नही है ,आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है,एकबारगी तो मन आत्महत्या तक सोचने लगा था मगर मैने उसे समझाया,की नही ऐसा मत कर , ये काम तो कयरों का है, मगर ये दिल उस वाक्य को सुनकर एक अजीब सी उलझन मे है,समझ मे नही आ रहा है की क्या करूँ क्या…
Continue
Added by ABHISHEK TIWARI on July 19, 2010 at 8:05pm —
2 Comments
आशा .....
एक बीज है
जो रोपा जाता है
मन -मस्तिष्क की उर्वर भूमि में
और यह बीज
अंकुर कर वृक्ष बनता है
जब इसे मिलती है गर्माहट
समाज और स्वं के रिश्ते की ॥
आओ !!!
हम सब इस बीज को
मेहनत की नीर से सींचे ॥
आशा .......
एक चिड़िया है
जो उड़ती है
व्यक्ति के मन -मस्तिष्क के आकाश में ॥
आओ !!!
आशा नाम की इस चिड़िया को
मेहनत का मजबूत पंख लगायें ॥
Added by baban pandey on July 19, 2010 at 6:37am —
1 Comment
उसके भी
दो आँख /दो कान /एक नाक है
थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥
मेरा हाथ उठाता है कलम
मगर
उसके हाथ उठाते है कुदाल
और इसी कुदाल से
लिख लेता है वह
अनजाने में ही
देश प्रेम की गाथा ॥
मेरी माँ कहती है
भूख लगे तो खा लो
नहीं तो भूख मर जाती है ॥
जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है
उसकी भूख मर जाती है
कई बार /बार -बार ॥
ओ ...बंद कराने वाले नेताओ
आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों
क्या आपकी भी…
Continue
Added by baban pandey on July 18, 2010 at 6:18pm —
5 Comments
वर्षा में नाले जाम है
नगर निगम वाले आते ही होंगें
दोषी , और मैं
क्या कह रहे है आप ?
मैंने क्या किया भाई
बस
घर के थोड़े से कचड़े
पोलीथिन में बाँध कर
नाले में इसलिए डाल दी
क्योकि ......
कचड़े का कंटेनर
मेरे घर से मात्र २०० फिट दूर है ॥
मैं अफसर हो कर
२०० फिट दूर क्यों जाऊ
नाक कट जायेगी मेरी
महल्ले वाले क्या कहेगे ॥
उधर , राजघाट पर
एक विदेशी सज्जन ने
लाइटर से सिगरेट जलाई
और राख एक…
Continue
Added by baban pandey on July 17, 2010 at 10:00pm —
4 Comments
मैं घबरा जाता हूँ यह सोच सोच कर ,
कैसे कोई गरीब अपना घर चलाता होगा,
सौ लाता है मजदूर पूरे दिन मर कर,
कैसे भर पेट दाल रोटी खा पाता होगा,
बीमार मर जायेगा दवा का दाम सुनकर,
हे! ईश्वर कैसे वो ईलाज कराता होगा,
मुर्दा डर जायेगा लकड़ी की दर सुनकर,
कैसे कोई मजलूम शव जलाता होगा ,
लगी है आग गंगा में महंगाई की "बागी",
कैसे कोई अधनंगा डुबकी लगाता होगा ,
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 17, 2010 at 3:00pm —
16 Comments
कुर्क हो जाती है आत्मा मेरी तुम्हारी मुस्कान से हर बार
सुर्ख मधुर अधरों से गूंजा सा मेरा नाम जब पुकारती हो तुम
स्वेक्षा से अपने आप को को मरता हुआ सा देख सकता हु
मार डालो मुझे मृत्यु तुम्हारे अधरों पे लटका देख सकता हु
नित तुम्हारा नाम लेता हु चेहरा मस्तिस्क में लिए फिरता हु
हम तुम शब्दों के पुष्प उछाल रहे हैं दिल का स्पंदन जब्त सा है
मुक्त करो तुम्हारी यादो के भरोसे से संजोकर मुझे आज
तुम में पूरा डूबा मैं अब किनारे पर सूखने की कोशिश में…
Continue
Added by Anand Vats on July 17, 2010 at 2:30pm —
6 Comments
एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥
संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥
इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥
सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥
Added by baban pandey on July 17, 2010 at 7:26am —
3 Comments