Added by Rash Bihari Ravi on March 20, 2010 at 2:34pm — 5 Comments
Added by PREETAM TIWARY(PREET) on March 17, 2010 at 9:19pm — 7 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on March 15, 2010 at 12:30pm — 5 Comments
Added by Admin on March 14, 2010 at 8:50am — 2 Comments
Added by विवेक मिश्र on March 12, 2010 at 12:00am — 6 Comments
Added by Admin on March 11, 2010 at 10:30pm — 6 Comments
जिन्दगी आधी बीत गई,
कभी न किया धर्म का काम,
पूलिस पिछे जब पड़ी तो,
साधु बन बोले राम राम,
लूट मार, चोरी डकैती,
किये बहुत कुकर्म मे नाम,
सभी पाप छिप गया,
जनता पूजे अब सुबह शाम,
जनता पूजे सुबह शाम,
अब मजा ही मजा है,
पहले पुलिस से छुप के,
करना पड़ता था गन्दा काम,
अब नेता पुलिस करते रखवाली,
खुब है ऐशोआराम,
खुब है ऐशोआराम,
आप भी बाबा के बन…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 11, 2010 at 7:00am — 1 Comment
Added by santosh samrat on March 10, 2010 at 10:24am — 5 Comments
मेरी पहली कविता जो मैने १९९६ मे लिखी थी .....
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 9, 2010 at 9:00am — 1 Comment
Added by Rash Bihari Ravi on March 8, 2010 at 7:46pm — 3 Comments
Added by Admin on March 7, 2010 at 9:29pm — 2 Comments
कवि - निदा फाज़ली
Added by Admin on February 24, 2010 at 10:20am — 3 Comments
कवि - श्री बालश्वरुप राही
Added by Admin on February 24, 2010 at 10:14am — 4 Comments
कवि - श्री अटल बिहारी बाजपेयी
Added by Admin on February 24, 2010 at 10:05am — 3 Comments
1222 1222 122
बहाना ही बहाना चल रहा है
बहाने पर ज़माना चल रहा है
बदलना रंग है फ़ितरत जहाँ की
अटल सच पर दिवाना चल रहा है
नही गम में हँसा जाता है फिर भी
अबस इक मुस्कुराना चल रहा है
निव%
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 30, 1999 at 12:00pm — No Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 30, 1999 at 12:00pm — No Comments
Added by kanta roy on November 30, 1999 at 12:00pm — No Comments
नई सुबह का इन्तिज़ार
मुझे भी है.....
काले पीले पत्ते पेड़ों पर
सूखगए हैं, किसी नमी
आँखों में पानी नहीं है
हो गयी हैं निष्ठुर पीतल सी !
नई सुबह क्या बेहतर होगी
प्रश्न खड़ा है, मेरे सम्मुख
नये साल का मैं लिखूँ क्या
आमुख.......?
हर दिन एक नया दिन होता है
कल से आज सदा बेहतर होता है
निर्विवाद यह उक्ति अब तो
शरमाई सी अलग खड़ी है......!
नई सुबह का इन्तिज़ार भी
करना बेमानी है, यारो !
परिवेश जब इतना अंधकार मय है
पौ…
Added by Chetan Prakash on January 1, 1970 at 12:00am — 1 Comment
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