तुम यूँ ही बीच राह में
रोज़ तरूवर क़ी छाँव में
मुझे यूँ ही रोक लेते हो
और मैं भी रुक जाती हूँ
क्यों कि मैं भी रहती हूँ अधीर
तुमसे मिलकर बातें करने को!
तुम्हारा यूँ एकटक निहारना
मेरे दिल को भाता है बहोत*
मैं भी देखने लगती हूँ तुम्हें
सीधी कभी तिरछी नज़रों से
तुम मुस्कुरा देते हो शरारत से
मैं शर्माकर कुरेदती हूँ ज़मीन
पर ये सब भी कब तलक
जब ये कुहासा नहीं होगा
बढ़…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 3, 2020 at 12:43pm — 2 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया
जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।
करते नमन हैं उस को नित छोटा भले सही
जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।
कहते हैं राह रच के ही रहजन हुए मगर
अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।
साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी
पर अब फरेब झूठ को साधन बना लिया।४।
जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में
कैसा सुलगता देश का बचपन बना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2020 at 6:32am — 4 Comments
आओ और निकट से देखो
हिलोरें लेते इस पारावार को
हमारा जीवन भी ऐसा ही है
नीर जैसा स्वच्छ और निर्मल
जब पयोधि क़ी लहरें छूती हैं
रेत क़ी फ़ैली हुई कगार को
तब वह समेट लेती सब कुछ
और ले जाती है पयोनिधी में
हम मनुष्य भी तो ऐसे ही हैं
जब हम प्रेम में होते हैं तब
ढूंढते रहते हैं बस एक साहिल
ताकि समेट सकें स्वयं में सब कुछ
किंतु उदधि और मनुज क़ा प्रेम
उदर में ज्य़ादा काल नहीं…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:30pm — 6 Comments
2122 2122 2122
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जानते हैं तुम में ताकत हो गयी है,
और किस-किस पे ये आफत हो गयी है।
झूठ है जो, झूठ बिन कुछ भी नहीं, पर
अब जमाने में सदाक़त हो गयी है।
जब चमन का फूल होने का भरो दम,
क्यों चमन से ही अदावत हो गयी है?
जिस्म पर ठंडा लबादा, आग मुँह में,
जिसने रक्खे उसकी शुहरत हो गयी है।
कौम के अच्छे की खातिर काम हो अब,
छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है।
हर खुशी पर, मेरी बोलो तो भला क्यों,…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
चलो, विश्वास भरें
गया पुरातन वर्ष
नवीन विचार करें
आपस के सब मनमुटाव कर दूर
चलो, विश्वास भरें
बैर भाव से हुए प्रदूषित
जो मन, बुद्धि , धारणाएँ
ज्ञानाग्नि से , सर्व कलुष कर दग्ध
सभी संत्रास हरें
आपस के सब मनमुटाव कर दूर
चलो, विश्वास भरें
है अनेकता में सुन्दर एकत्व
उसे अनुभूति करें
कर संशय, भ्रम दूर
नेह, सतभाव वरें
आपस के सब मनमुटाव कर दूर
चलो,…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 1, 2020 at 9:12pm — 5 Comments
Added by Vivek Pandey Dwij on January 1, 2020 at 9:00pm — 7 Comments
नव विहान का गीत मनोहर गाता चल।
जीवन में मुस्काता चल।।
मन मराल को कभी मनोहत मत करना ।
हो कण्टक परिविद्ध तनिक भी ना डरना।
गम को भूल सभी से नेह लगाता चल।
जीवन में मुस्काता चल।।
वैर भाव की ये खाई पट जाएगी।
वर्गभेद तम की बदली छँट जाएगी।
बनकर मयार मधुत्व रस छलकाता चल।
जीवन में मुस्काता चल।।
महदाशा रख मर्ष भाव अंतर्मन में
जानराय बन ओज जगाओ जनजन में।
हो भवितव्य पुनर्नव राह बनाता चल।
जीवन में मुस्काता…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on January 1, 2020 at 1:00pm — 8 Comments
छोटी बातों से तू इतना, विचलित क्यूँ कर होता है
जीवन धार नदी की, इसमें उन्नीस बीस तो होता है
दुनियाँ का दस्तूर है, ज्यादा रोते को रुलवाने का
कितना समझाया तुझको तू, फिर भी नयन भिगोता है
जाने वाले साल को सारे, दुख अपने तू अर्पण कर दे तेरे भाग्य में फिर वो कैसे, बीज खुशी के बोता है
अस्त हुआ उन्नीस का भानु, बीस का दिनकर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 1, 2020 at 11:00am — 10 Comments
बर्षों से जब रहते आये दुख से मालामाल यहाँ
सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।
तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले
हमने तो हर पल है खोया उम्मीदों का साल यहाँ।।
शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो
खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।
साल नया कितनी उम्मीदें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2020 at 5:51am — 10 Comments
नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो
घर आँगन में उजियारा हो
दुःखों का दूर अँधियारा हो
हो नई चेतना नवल स्फूर्ति
नित नव प्रभात आभामय हो
नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो
नित नई नई ऊँचाई हो
हृद प्राशान्तिक गहराई हो
नित नव आयामों को चूमो
चहुँओर तुम्हारी जय जय हो
नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो
जो खुशियाँ अब तक नहीं मिलीं
जो कलियाँ अब तक नहीं खिलीं
जीवन के नूतन अवसर पर
उनका मिलना-खिलना तय हो
नव वर्ष तुम्हे मंगलमय…
Added by आशीष यादव on January 1, 2020 at 12:31am — 13 Comments
स्वागत हेतु सजी धरती उर में बहु सौख्य-समृद्धि पसारे
राग विराग हुआ सुर सज्जित हर्षित अम्बर चाँद सितारे
भव्य करो अभिनन्दन वन्दन लेकर चन्दन अक्षत प्यारे
स्नेह लिए नव अंकुर का अब द्वार खड़ा नव वर्ष तुम्हारे।।1
नूतन भाव विचार पले जड़ चेतन में निरखे छवि प्यारी
एक नया दिन जीवन का यह, हो जग स्वप्निल मंगलकारी
ओज अनन्त बसे सबके हिय राह नई निरखें नर नारी
दैविक दैहिक कष्ट न हो वरदान सुमंगल दें त्रिपुरारी।।2
प्यार दुलार करें सबसे नित, दुश्मन को हम…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 31, 2019 at 6:00pm — 12 Comments
सँस्कार की नींव हो, उन्नति का प्रासाद
मन की ही बंदिश रहे, मन से हों आजाद।१।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।२।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।३।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।४।
मदिरा में ना डूब कर, भजन करें भर रात
नये साल की दोस्तों, ऐसे हो शुरुआत।५।
स्नेह संयम विश्वास का,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2019 at 6:12am — 16 Comments
ईसा का जन्मदिन है जहां भर को मुबारक
मग़रिब के बिरादर ये बड़ा दिन हो मुबारक
क्रिसमस के है जश्नों में बहुत शाद ज़माना
सड़कें हैं ढकी बर्फ़ से और गर्म मकां हैं
इशरत का है आराम का सामान मुहइया
चीजों से लबालब लदे बाज़ार-ओ-दुकां हैं
हासिद तो नहीं हैं तेरी ख़ुश-क़ीस्मती से हम
सोचा है कभी दौलतें आईं ये कहाँ से
तुम लूट के जो ले गए सोने की थी चिड़िया
तहज़ीब-ओ-अदब तुमने मिटा डाले जहाँ से
क़ाबिज़ थे हुक़ूमत थी जहाँ पर भी तुम्हारी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on December 30, 2019 at 12:30pm — 10 Comments
लड़की को डायरिया थी।आज उसे इस तीसरे नामी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।रिपोर्ट की फाइलें साथ थीं।घरवाले परेशान थे,पर हॉस्पिटल तो जैसे देवालय हो।सब लोग बड़े आराम से अपनी अपनी ड्यूटी में लगे थे।डॉक्टर आया।सुना था कि बड़ा डॉक्टर है।उसने सरसरी निगाह से कुछ ताजा रिपोर्टें देखी।फिर दवाएं लिखने लगा।तीमारदारों में से एक ने यूरिन कल्चर की रिपोर्ट की तरफ इंगित करना चाहा,पर डॉक्टर ने कोई तवज्जो नहीं दी।दवाएं लिख दी।इलाज शुरू हुआ।लड़की की तबीयत बिगड़ती ही गई।पेट फूलता जा रहा था।फिर रात को घरवालों ने…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on December 29, 2019 at 12:42pm — 2 Comments
जब अँधेरा ये मिटाने को सितारा निकला l
चाँद पीछे न रहा बन के हमारा निकला
उसने जब तक न सुनाई थी कहानी हमको
कौन हमको ये बताता वो सहारा निकला
हम तो निकले थे ज़माने को दिखाने उल्फ़त
पर हकीक़त में वही प्यार तुम्हारा निकला
सोच कर बात सुनाई है मगर फिर भी क्यूँ,
राहरौ और ग़लत उनका इशारा निकला
इस यकीं से ही उमीदों को जगाया हम ने
“तुझ से ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला”
जिंदगी हमने उधारी न गुज़ारी…
Added by मोहन बेगोवाल on December 29, 2019 at 8:30am — 1 Comment
ठूंठ - लघुकथा -
राम दयाल अपनी घर वाली की जिद के आगे झुक गया। हालांकि उसकी दलील इतनी मजबूत तो नहीं थी लेकिन वह घर में किसी प्रकार की क्लेश नहीं चाहता था। उसकी घर वाली का मानना था कि उसके सासु और ससुर की वजह से उसके बेटे की शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था।
अतः वह चाहती थी कि सासु ससुर जी को वृद्धाश्रम भेज दो।
आज मजबूरन राम दयाल उन दोनों को वृद्धाश्रम छोड़ कर घर वापस जा रहा था।लेकिन उसका मन इस कृत्य के लिये उसे धिक्कार रहा था।
वृद्धाश्रम से बाहर जैसे ही वह मुख्य सड़क…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 28, 2019 at 1:37pm — 8 Comments
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...
स्मृति घरौंदों में तेरा मैं
कालजयी श्रृंगार करूँ
अभिलाष यही है अंतिम पल तक
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ
श्वास सिंधु के अंतिम छोर तक
देना मेरा साथ प्रिय
उर -अरमानों के क्रंदन का
कैसे मैं परिहार करूँ
अभिलाष यही है अंतिम पल तक
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ
मेरी पावन अनुरक्ति का
करना मत तिरस्कार प्रिय
दृग शरों के घावों का मैं
कैसे क्या उपचार करूँ
अभिलाष यही…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2019 at 6:30pm — 6 Comments
क्या तुम्हारा जमीर ना जागता
क्यों घायल किसी को करते हो
पुलिस वाले भी अपने भाई-बंधु
पत्थर उनको क्यूँ मारते हो ||
विरोध करना, विरोध करो तुम
संविधान अधिकार ये देता है
उपद्रव ना मचाने की
हिदायत भी संविधान हमारा देता है ||
उपद्रव का ना मार्ग चुनो
शांति से विरोध करो
पुलिस करती रखवाली हमारी
उस पर बेवजह ना वार करो ||
दिन रात करती हमारी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 26, 2019 at 3:21pm — 4 Comments
जब पीड़ा आसुओं को मात दे,
और संभाले ना संभले मन।
जब यादें मेरी दिल पर दस्तक दें,
और बेचैन हो ये अंतर्मन।
तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये,
मैं आऊँगी भाव बनकर ज़रूर।
जब मेरी कमी तुमको खले,
और खोजे अक्श मेरा तुम्हारा मन।
जब बोझिल हो रातें काटे ना कटे,
और नींद से आँख-मिचौली खेले नयन।
तब तुम कोई सपना सजाना प्रिये,
मैं आऊँगी तुमसे मिलने ज़रूर।
जब पतझड़ में झड़ते हो पत्ते पुरातन,
और लहरों को देख विचलित हो मन।…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on December 26, 2019 at 2:00pm — 6 Comments
२१२२ १२१२ २२/११२
अब दिखेगी भला कभी हममें..
आपसी वो हया जो थी हममें ?
हममें जो ढूँढते रहे थे कमी
कह रहे, ’ढूँढ मत कमी हममें’ !
साथिया, हम हुए सदा ही निसार
पर मुहब्बत तुम्हें दिखी हममें ?
पूछते हो अभी पता हमसे
क्या दिखा बेपता कभी हममें ?
पत्थरों से रही शिकायत कब ?
डर हथेली ही भर रही हममें !
चीख भरने लगे कलंदर ही..
मत कहो, है बराबरी हममें !
नूर ’सौरभ’…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on December 25, 2019 at 11:30pm — 8 Comments
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