अरकान : 221 2121 1221 212
इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा
ख़ुद को लगा के आग धुआँ देखता रहा
दुनिया बनाने वाले को दीजे सज़ा-ए-मौत
दंगे में मरने वाला यही बोलता रहा
मेरी ही तरह यार भी मेरा अजीब है
पहले तो मुझको खो दिया फिर ढूँढता रहा
रोता रहा मैं हिज्र में और हँस रहे थे तुम
दावा ये मुझसे मत करो, मैं चाहता रहा
कुछ भी नहीं कहा था अदालत के सामने
वो और बात है कि मैं सब जानता…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on December 10, 2019 at 10:00am — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 6:36pm — 6 Comments
सागर ....
नहीं नहीं
सागर
मुझे तुम्हारे कह्र से
डर नहीं लगता
तुम्हारी विध्वंसक
लहरों से भी
डर नहीं लगता
तुम्हारे रौद्र रूप से भी
डर नहीं लगता
मगर
ऐ सागर
अगर तुम
वहशियों से नोचे गए
मासूमों के
क्रंदन सुनोगे
तो डर जाओगे
किसी खामोश आँख में
ठहरा समंदर
देखोगे
तो डर जाओगे
खिलने से पहले
कुचली कलियों के
शव देखोगे
तो डर जाओगे
सदियों से तुमने
अपने गर्भ में
न…
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 1:33pm — 2 Comments
'कभी - कभी विपरीत विचारों में टकराव हो जाया करता है। चाहे - अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियां प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य - व्यवसाय के लोगों के बीच अपने - अपने कर्तव्य - निर्वहन को लेकर मरने - मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा कदा तो परस्पर की लड़ाई भिड़ाई में प्राणी इहलोक - परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहां हैं,तो तुरंत ऊपर पहुंच जाते हैं।पहुंचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुंह देखते रह गए।
'…
Added by Manan Kumar singh on December 9, 2019 at 7:00am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
कुछ मुहब्बत कुछ शरारत और कुछ धोका रहा ।
हर अदा ए इश्क़ का दिल तर्जुमा करता रहा ।।
याद है अब तक ज़माने को तेरी रानाइयाँ ।
मुद्दतों तक शह्र में चलता तेरा चर्चा रहा ।।
पूछिए उस से भी साहिब इश्क़ की गहराइयाँ ।
जो किताबों की तरह पढ़ता कोई चहरा रहा ।।
वो मेरी पहचान खारिज़ कर गया है शब के बाद ।
जो मेरे खाबों में आकर गुफ्तगू करता रहा ।।
साजिशें रहबर की थीं या था मुकद्दर का कसूर ।
ये मुसाफ़िर…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 12:33am — No Comments
221 2121 1221 212
कैसे कहें की इश्क़ ने क्या क्या बना दिया
राधा को श्याम श्याम को राधा बना दिया
उस बेर की मिठास तो बस जाने राम जी
सबरी ने जिसको चख के है मीठा बना…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on December 8, 2019 at 5:00am — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on December 7, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
'भूं भूं...भूं' की आवाज सुन भाभी भुनभुनाई--
' भोरे भोरे कहां से यह कुक्कुड़ आ गया रे?'
' कुक्कुड़ मत कहना फिर, वरना....', बगल वाली आंटी गुर्राई।
' अरे तो क्या कहूं, डॉगी?'
' नहीं।'
' तो फिर?'
' पपलू है यह।पप्पू के पापा इसे प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं।समझ गईं, कि नहीं?'
' बाप रेे..ऐसा?'
' और क्या?हमारे परिवार का हिस्सा है अपना पपलू। हमारे संग नहाता - धोता,खाता - पीता है यह।'
' और सब....?'
' और..?सब कुछ हमारे जैसा ही करता…
Added by Manan Kumar singh on December 7, 2019 at 11:00am — 1 Comment
१२२२/१२२२/१२२२
अमरता देवताओं का खजाना है
मनुज तूने कभी उसको न पाना है।१।
यहाँ मुँह तो बहुत पर एक दाना है
लिखा जिसके उसी के हाथ आना है।२।
सरल है चाँद तारों को विजित करना
कठिन बस वासना से पार पाना है।३।
रही है धर्म की ऊँची ध्वजा सब से
उसी पर अब सियासत का निशाना है।४।
व्यवस्था जन्म से लँगड़ी बुढ़ापे तक
उसी के दम यहाँ पर न्याय काना है।५।
जला पुतला निभा दस्तूर देते हैं
भला लंकेश को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 10:59am — 4 Comments
दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......
शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।
ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।
.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -
उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।
.........................................................
पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।
यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।
सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-
कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये…
Added by Sushil Sarna on December 6, 2019 at 5:32pm — 6 Comments
दुनियाँ कहे मै पागल हूँ
मै कहता पागल नहीं, बस घायल हूँ
कभी व्यंग्य, कभी आक्षेप को
खुद पर रोज मैं सहता, अपनी व्यथा किसे सुनाऊ
कितनी चोटों से घायल हूँ
जीने की मै कोशिश करता, मै इस समाज की रंगत हूँ ||
क्यूँ पागल मै कैसे हुआ
पुंछने वाला ना हमदर्द मिला, जो मिला वो ताने कसता
देख उसे अब मै हँसता हूँ
पल भर में ये वक़्त बदलता
कौन जाने, तेरा आने वाला कल मै ही हूँ
कितनी चोटों से घायल हूँ ||
कोई प्रेम…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 6, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
मुझको पता नहीं है, मैं कहाँ पे जा रही हूँ
तेरे नक़्श-ए-पा के पीछे,पीछे मैं आ रही हूँ
उल्फत का रोग है ये, कोई दवा ना इसकी
मैं चारागर को फिर भी,दुःखड़ा सुना रही हूँ
सुन के भी अनसुनी क्यूँ,करते हो तुम सदाएँ
फिर भी मैं देख तुमको यूँ मुस्कुरा रही हूँ
बेचैनियों का मुझ पर, आलम है ऐसा छाया
क्यो खो दिया है जिसको, पा कर ना पा रही हूँ
मुझे भूलना भी इतना ,आसाँ तो नहीं होगा
दिन रात होगें भारी, तुमको बता रही…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 6, 2019 at 11:30am — 1 Comment
शोहरतों का हक़दार वही जो,
न भूले ज़मीनी-हकीक़त,
न आए जिसमें कोई अहम्,
न छाए जिसपर बेअदबी का सुरूर,
झूठी हसरतों से कोसों दूर,
न दिल में कोई फरेब,
न किसी से नफ़रत,
पलों में अपना बनाने का हुनर,
ज़ख्मों को दफ़न कर,
सींचे जो ख़ुशियों को,
चेहरे पर निराला नूर,
आवाज़ में दमदार खनक,
अंदर भी…
मेरा चेहरा मेरे जज़्बात का आईना है
दिल पे गुज़री हुई हर बात का आईना है।
देखते हो जो ये गुलनार तबस्सुम रुख़ पर
उनसे दो पल की मुलाकात का आईना है।
आड़ी तिरछी सी इबारत दिखे रुख़सारों पर
दिल मे लिक्खे ये सफ़ाहात का आईना है।
बाद मुद्दत के उन्हें देख के दिल भर आया
ये मुहब्बत के निशानात का आईना है।
अश्क् और आहें फ़ुगाँ और तराने ग़म के
आपके प्यार की सौगात का आईना है।
दामे दौलत के इशारात में फंस कर देखो
हर…
Added by Manju Saxena on December 5, 2019 at 12:30pm — 1 Comment
आदम युग से आज तक, नर बदला क्या खास
बुझी वासना की नहीं, जीवन पीकर प्यास।१।
जिसको होना राम था, कीचक बन तैयार
पन्जों से उसके भला, बचे कहाँ तक नार।२।
तन से बढ़कर हो गयी, इस युग मन की भूख
हुए सभ्य जन भेड़िए, बिसरा सभी रसूख।३।
तन पर मन की भूख जब, होकर चले सवार
करती है वो नार की, नित्य लाज पर वार।४।
बेटी गुमसुम सोच ये, कैसा सभ्य विकास
हरमों से बाहर निकल, रेप आ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2019 at 8:30pm — 5 Comments
ग़ज़ल
हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।
न जाने कितने क़ातिल घूमते हैं शह्र में तेरे ।
यहाँ कानून की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।
सियासत के पतन का देखिये अंजाम भी साहब ।
दरिन्दों को मिली जो कुर्सियां अच्छी नहीं लगतीं।।
वो सौदागर है बेचेगा यहाँ बुनियाद की ईंटें ।
बिकीं जो रेल की सम्पत्तियां अच्छी नहीं लगतीं ।।
बिकेगी हर इमारत…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 4, 2019 at 2:02am — 7 Comments
कुछ क्षणिकाएँ : ....
बढ़ जाती है
दिल की जलन
जब ढलने लगती है
साँझ
मानो करते हों नृत्य
यादों के अंगार
सपनों की झील पर
सपनों के लिए
...................
आदि बिंदु
अंत बिंदु
मध्य रेखा
बिंदु से बिंदु की
जीवन सीमा
.......................
तृषा को
दे गई
दर्द
तृप्ति को
करते रहे प्रतीक्षा
पुनर्मिलन का
अधराँगन में
विरही अधर
भोर होने…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 3, 2019 at 8:07pm — 4 Comments
2122 1122 1122 22
अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है
बेटी मुफ़लिस की खुले घर मे भी सो लेती है
मेरे दामन से लिपट कर के वो रो लेती है
मेरी तन्हाई मेरे साथ ही सो लेती है
तब मुझे दर्द का एहसास बहुत होता है
जब मेरी लख़्त-ए-जिगर आंख भिगो लेती है
मैं अकेला नहीं रोता हूँ शब-ए-हिज्राँ में
मेरी तन्हाई मेरे साथ में रो लेती है
अपने दुःख दर्द…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on December 3, 2019 at 6:41pm — 5 Comments
अरकान : 2122 1122 22
चाहा था हमने न आए आँसू
उम्र भर फिर भी बहाए आँसू
कोई तो हो जो हमारी ख़ातिर
पलकों पे अपनी सजाए आँसू
मार के अपने हसीं सपनों को
ख़ून से मैंने बनाए आँसू
वक़्त बेवक़्त कहीं भी आ कर
याद ये किसकी दिलाए आँसू
कोई भी तेरा न दुनिया में हो
रात दिन तू भी गिराए आँसू
दुनिया में इनकी नहीं कोई क़द्र
इसलिए मैंने छुपाए आँसू
आपसे मिल के ये पूछूँगा मैं
आपने…
Added by Mahendra Kumar on December 3, 2019 at 5:46pm — 4 Comments
प्रकृति हम सबकी माता है
सोच, समझ,सुन मेरे लाल
कभी अनादर इसका मत करना
वरना बन जाएगी काल
गिरना उठना और चल देना
तू स्वंय को रखना सदा संभाल
इतना भी आसाँ ना समझो
बनना सबके लिए मिसाल
सत्य व्रत का पालन करना
कभी किसी ना तू डरना
विपदाओं को मित्र बनाकर
बस थामे रहना ‘दीप’ मशाल
मौलिक…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 3, 2019 at 12:30pm — 2 Comments
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