Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 2, 2016 at 1:45am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2016 at 11:47pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 14, 2016 at 9:10pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 8, 2016 at 7:32pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 4, 2016 at 7:29pm — 11 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 29, 2016 at 10:41pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 15, 2016 at 5:39pm — 12 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2016 at 11:30pm — 17 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 6, 2016 at 9:18am — 15 Comments
'करूं या न करूं?' अनिर्णय की स्थिति में वह बंद कमरे में आइने के सामने आराम कुर्सी पर बहुत ही तनावग्रस्त बैठा हुआ था। तभी शैतान उसके दिमाग़ पर हावी होते हुए बोला- "अब क्या हुआ बंधु! इन्टरनेट पर सत्य कथायें पढ़कर भी कोई तरीक़ा नहीं अपना सके! मेरी बात मान लो, फाँसी ही सबसे उत्तम तरीक़ा है! आजकल इसी का ट्रैंड है युवा पीढ़ी में!"
"सही कह रहे हो तुम! देखो मैंने पूरी तैयारी भी कर ली थी, फाँसी लगाता या इस पाँचवीं मंज़िल से कूंद कर काम तमाम कर लेता, लेकिन ..."
"लेकिन क्या?" शैतान ने कुछ…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 23, 2016 at 6:30am — 13 Comments
बिना कोई ख़ास सफलता हासिल किए हुए भी 'सच' सदैव ख़ुद पर अभिमान कर रहा था। 'झूठ' के सामने वह हमेशा की तरह अपने ही गुणगान करते हुए बोला- "मैं हूं न ! सब समस्याओं का समाधान चुटकियों में करवा देता हूँ! जिसने मुझे समझा और अपनाया वह धन्य हो गया और महान कहलाया!"
'झूठ' जो पहले उसकी बचकानी बातें सुनकर मुस्करा रहा था, अब ठहाके मारकर हँसने लगा।
"अरे, इतना ही सुनकर ख़ुश होने लगे, अभी और भी तो सुनो!" - 'सच' ने शेख़ी मारते हुए कहा-" पुलिस विभाग हो या न्यायालय, परिवार हो या दुकान, उत्पाद हो या उसका…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 22, 2016 at 6:00am — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 16, 2016 at 5:11pm — 11 Comments
"भाभी, चाय खौल चुकी है, कहाँ खोई हुई हो तुम!" देवरानी ने गैस चूल्हा बंद करते हुए जिठानी से कहा।
"ओह, मैं चाय की पत्ती के बारे में सोच रही थी!"
"क्यों?"
"मैं भी यहाँ चाय की पत्ती ही तो हूँ!"
"क्या मतलब?"
"बिना शक्कर के सबको चाय कड़वी ही तो लगती है, मिठास मिले तो सबको मीठी चाय भाये!"
"लेकिन चाय मीठी हो या फीकी, रिश्ते मधुर बनाने में एक पहल तो करती ही है, बस यह ध्यान रहे कि कहां फीकी चलेगी और कहां मीठी!"
"सही कहा तुमने, लेकिन नौकरी पेशा औरत को जब मध्यमवर्गीय…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 13, 2016 at 4:00pm — 12 Comments
आज मौक़ा पाते ही बाबूजी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा- "देखो छोटे, या तो तुम्हारी पत्नी और तुम हमारी परम्परा के अनुसार चलो, या फिर अपने रहने की कोई और व्यवस्था कर लो!"
"क्यों बाबूजी, आपको हमसे क्या परेशानी होने लगी है?" छोटे ने हैरान हो कर पूछा।
"बेटे, परेशानी मुझे उतनी नहीं, जितनी बड़े को और उसके परिवार को है! उसे बिलकुल पसंद नहीं है घर पर भी फूहड़ पहनावा, बाज़ार का जंक और फास्ट फूड वग़ैरह और तुम्हारी पत्नी की बोलचाल! बच्चों से भी बात-बात पर 'यार' कहना, तू और तेरी कहकर बात करना!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 9, 2016 at 4:00pm — 16 Comments
"क्या कर रहा है बे, सब खा-पी रहे हैं और तू अपने स्मार्ट फोन में भिड़ा हुआ है!" थ्री-स्टार होटल में चल रही ज़बरदस्त पार्टी में दोस्तों के बीच बैठे दीपक ने असलम से कहा।
"माह-ए-रमज़ान का चाँद दिख गया है, मुबारकबाद के ढेरों संदेशों के जवाब दे रहा हूँ!" - असलम ने सोशल साइट्स पर अपना संदेश सम्प्रेषित करते हुए कहा और कोल्ड-ड्रिंक पीने लगा। आज वह दोस्तों से लगाई शर्त हार गया था, सो इतनी महँगी पार्टी देनी पड़ी थी।
"यार, ये तो बता कि तू भी सचमुच कल से रोज़े रखेगा, कैसे रह लेता है भूखे-प्यासे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 7, 2016 at 1:00am — 15 Comments
"तुम लोगों की बातचीत सुन रहा था। बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते हो, लगता है काफी पढ़े-लिखे हो!" आलोक नेे गृह-निर्माण कार्य में लगे कारीगरों से कहा।
"नहीं साहब, हम तो अंगूठा छाप हैं!" बड़े कारीगर ने ईंट के ऊपर सीमेंट-गारा डालकर उस पर दूसरी ईंट जमाते हुए कहा।
"तो फिर इतनी अच्छी हिन्दी कैसे बोल लेते हो?"
"हम पढ़-लिख नहीं पाये, तो टीवी देखकर पढ़े-लिखों की भाषा ध्यान से सुनकर सीखते हैं, आप लोगों की बातें सुनकर भी कुछ सीख लेते हैं!" कारीगर ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा।
"लेकिन तुम लोग तो…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 6, 2016 at 4:30pm — 9 Comments
क़ुरैशी साहब की रचनाएँ संभाग से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं, लेकिन दूसरे साथी लेखकों की प्रकाशित रचनाओं, संग्रहों और उनको मिलने वाले छोटे-बड़े सम्मानों से वे बहुत विचलित रहा करते थे। प्रकाशन की भूख उन्हें बहुत सताया करती थी, पर क्या करें न तो आर्थिक स्थिति अच्छी थी और न ही कोई सहारा। बहुत से सम्पादकों से मधुर संबंध होने के बावजूद जब कभी उनकी रचनाएँ अस्वीकृत हो जातीं, तो उनकी नींद हराम हो जाती थी। इस बार तो एक पत्रिका के संपादक…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 6:00am — 16 Comments
घर के मुख्य द्वार पर खाली प्लेट हाथ में लिए मालकिन को काम वाली बाई सन्नो ने आश्चर्य से देखते हुए पूछा:
"सब्ज़ी आज फिर सड़ गई थी क्या?"
"नहीं, पड़ोसी के घर से प्रसाद आया था, हम नहीं खाते उनके धर्म का प्रसाद, सो उस भूखे भिखारी को दे दिया"- मालकिन ने सन्नो से कहा।
सन्नो ने खिड़की से झांककर देखा कि वह भिखारी उसकी प्लेट में परोसा गया वह प्रसाद ज़ल्दी-ज़ल्दी खाने लगा था और कुछ निवाले पास खड़ी मरियल सी कुतिया के पास फेंकता जा रहा था।
"क्यों बाबा कौन से धर्म के हो तुम?" सन्नो ने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2016 at 6:00pm — 13 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2016 at 2:30pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 23, 2016 at 1:22pm — 2 Comments
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