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गिरिराज भंडारी's Blog (299)

हाथ काटे जा चुके हैं फिर तू आंखें लाल कर ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122          2122            212

कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं 

हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं

हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब

ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 8:30pm — 38 Comments

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा ( गज़ल - गिरिराज भंडारी )

212    212    212     212 

.

छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा

 

सड़ चुकी मान्यता सांस फिर ले रही

दिन चढ़े तक कोई शख़्स ज्यों सो रहा  

 

ज़ाहिरन बात ये कह रहा है करम

बढ़ गया पाप जब तो कोई धो…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 12:00pm — 38 Comments

ग़ज़ल -- ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में

2122    2122    2122    212

अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में

क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में

कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा 

देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में

 

कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 18, 2013 at 7:00pm — 40 Comments

ग़ज़ल -- "भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही "

2122 2122 2122 212

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही

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तेज़ से भी छटपटाहट तेज़ जब…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 11:30am — 25 Comments

थक के हारा, कभी मरा भी है (ग़ज़ल)

2122 1212  22

कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है

जख़्म लेकिन, कही हरा भी है

जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर

प्यार से दिल मेरा भरा भी है

ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा

थक के हारा,…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 10:00pm — 35 Comments

ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं (गज़ल)

2122   1212     22 

धूप हमको निचोड़ देती है ,

ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।

 

पत्तियों को बड़ी शिकायत है,

ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।

 

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 7:00am — 19 Comments

नव गीत --आ चल फिर बच्चे हो जायें ( गिरिराज भंडारी )

नव गीत

*******

आ चल फिर बच्चे हो जायें

खेलें कूदे मौज मनायें

बिन कारण ही,

रोयें गायें , हँसे  हँसायें,

आ चल फिर बच्चे हो जायें !

 

मेरी कमीज़ है गन्दी…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 4, 2013 at 6:00pm — 30 Comments

पांच दोहे ( गिरिराज भंडारी )

पांच दोहे

 

खुद के अन्दर झाँक के, पढ़  ले तू आलेख

अपने ऐसे हाल का,  खुद  खींचा  आरेख

 

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास

 

पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 6:00pm — 42 Comments

किसने कहा ? आप स्वतंत्र नही हैं ( एक चिंतन )

किसने कहा ? आप स्वतंत्र नही हैं  

आप तो स्वभाव से स्वतंत्र हैं

और पहले भी थे , सदा से थे ।

जैसे आप स्वतंत्र हैं

हाथ घुमाने के लिये

तब तक , जब तक कि ,

किसी का चेहरा न सामने आये ।

मुश्किल तो यही…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 30, 2013 at 3:30pm — 13 Comments

गज़ल ----" इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है "

2122     2122     2122

पूछता मैं फिर रहा हूं हर किसी से      

क्या निकल सकते हैं ऐसी बेबसी से

मंज़िलों के वास्ते कितने हैं पागल  

हर किसी को पूछना है तिश्नगी से         

इस क़दर तारीक़ियों…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 9:00pm — 36 Comments

गज़ल --" क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है "

2122    2122   2122    2122

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क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है

 

बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 6:00pm — 36 Comments

!!!! खुद भी आज़ाद हो गईं !!!!

अंतस मे उमड़ती भावनायें,

उचित शब्द टटोलते,

शब्द कोशों को पार कर,

निष्फल प्रयासों से हार कर,

अंततः आवारा हो गईं !

और फिर आँखों के रास्ते ,

अश्रु बून्द के रूप में,…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 20, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

खुद से नितांत अनजान

ठीक है फैसला ,
जीवन और मृत्यु सा था ।
चुनाव भी तो तुम्हारा अपना था।
फैसला तुम्हारा खुद का था,  
तो, उदासी क्योँ ?
खुद का लिया फैसला, 
कभी…
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Added by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:00am — 14 Comments

‘ मै शब्द हूँ ’ !!! एक चिंतन !!!

मै शब्द हूँ  ।

मेरा जन्म  हुआ है आप का अंतस बाहर लाने के लिए ।

मै उतना ही सशक्त होता हूँजितनी आप की भावनाएं…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 18, 2013 at 9:00pm — 12 Comments

गुमशुदा खुशियां कहां रहने लगी है आज छुप कर

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर

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दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना

क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे

जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 8:00am — 33 Comments

मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

गीत

*********              

मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ

तुम नृप के भी हो नृपराज

पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी

मै हूँ अमा की काली रात  …

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Added by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments

अपना जीवन तो सुरंग है

जब अन्धियारा संग संग है,

सब रंगों का एक रंग है।

एक लड़ाई है बाहर तो,  

ख़ुद के अन्दर एक जंग है।

शहरों की गलियों से जादा,

गली दिलों की और तंग है।

कुछ करने की चाहत…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 11, 2013 at 8:00am — 7 Comments

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