शिक्षक दिवस के दोहे
बनते शिष्य महान तब, शिक्षक अगर महान
शिक्षक बिन हर इक रहा, अधकचरा इन्सान।१।
जिसने जीवन भर किया, शिक्षक का सम्मान
जग ने उसका है किया, इत उत बड़ा बखान।२।
शिक्षक थोड़ा सा अगर, दे दे जो उत्साह
भटका बालक चल पड़े, सदा सत्य की राह।३।
पथ की बाधा नित हरी, जिसने राह बुहार
दे थोड़ा सा मान कर, शिक्षक का आभार।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2018 at 9:00pm — 9 Comments
मुहब्बत भी कहानी हो गयी हमसे
बहुत बद ये जवानी हो गयी हमसे।१।
कोई देकर गया था इक खुशी यारो
कहीं गुम वो निशानी हो गयी हमसे।२।
जमाना सारा ही दुश्मन हुआ है यूँ
जरा सी सच बयानी हो गयी हमसे।३।
कसक सी दिल में उठ्ठी है कहीं यारो
किसी से बद जबानी हो गयी हमसे।४।
भला यूँ कम कहाँ हम थे मगर अब तो
ये दुनिया भी सयानी हो …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:55am — 10 Comments
२२ २२ २२ २
पूछ न इस रुत कैसा हूँ
अबतक तो बस तन्हा हूँ।१।
बारिश तेरे साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।
आता जाता एक नहीं
मैं भी कैसा रस्ता हूँ।३।
जब तन्हाई डसती है
सारी रात भटकता हूँ।४।
हाथों में चुभ जाते हैं
काँटे जो भी चुनता हूँ।५।
जाने कौन चुनेगा अब
उतरन वाला कपड़ा हूँ।६।
तारों सँग कट जाती है
शरद अमावस रैना हूँ।७।
अनमोल भले बेकार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 11:57am — 18 Comments
सुखिया को संसार में, सब कुछ मिलता मोल
पर दुखिया के वास्ते, सकल जिन्दगी झोल।१।
हर देहरी पर चाह ले, आँगन बैठे लोग
भूखों को दुत्कार नित, मंदिर मंदिर भोग।२।
पाले कैसी लालसा, हर मानव मजबूर
हुआ पड़ोसी पास अब, सगा सहोदर दूर।३।
बिकने को कोई बिके, पर ये दुख का योग
औने-पौने बिक रहे, ऊँचे कद के लोग।४।
घुट्टी में सँस्कार की, अब क्या क्या खास
रिश्तों से आने लगी, अब जो खट्टी बास।५।
मौलिक व…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2018 at 5:28pm — 12 Comments
२२१ २१२१ २२२ १२१२
कहते नहीं हैं आपसे रस्ता सुझाइये
राहों में यूँ न देश की रोड़ा लगाइये।१।
आता है भेड़िया तो कुछ हरकत दिखाइये
कमजोर गर ये हाथ हैं हल्ला मचाइये।२।
कहते हो दूसरों की है सूरत अगर मगर
खुद को भी रोशनी में ये दर्पण दिखाइये।३।
होती नहीं है भोर इक सूरज उगे से ही
गर देखनी हो भोर तो खुद को जगाइये।४।
बातों को दिल की रोज ही ऐ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 7, 2018 at 12:00pm — 13 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
जितना भी सनम माँगा यूँ हमने है कम माँगा
मरने की नहीं हिम्मत जीने का ही दम माँगा।१।
होते ही सवेरा नित साया भी डराता है
घबरा के उजाले से यूँ रात का तम माँगा।२।
सुनते हैं सभी कहते कम अक्ल हमें लेकिन
खुशियों में अकेले थे इस बात से गम माँगा।३।
चौपाल से बढ़ शायद महफूज लगा हो कुछ
ऐसे ही नहीं उसने रहमत में हरम माँगा।४।
ऐसे ही नहीं शबनम पड़ जाती है रातों को
धरती का रह इक कोना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:30am — 16 Comments
२२१ /२१२१ /२२२ /१२१२
खासों से बढ़ के खास यूँ होते हैं आम भी
जिसने समझ लिया उसे मिलते हैं राम भी।१।
कैसे अजब हैं लोग जो कहते हैं यार ये
बदनामियों के साथ ही होता है नाम भी।२।
आती है जिसको भोर यूँ झट से अगर कहीं
ढलती है उसकी दोस्तो ऐसे ही शाम भी।३।
अभिषेक हो रहा है अब सुनते शराब से
करने लगी हवस पतित देवों का धाम भी।४।
जब से गमों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2018 at 7:35pm — 21 Comments
2122 1122 1122 22
तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो
डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।
दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे
धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।
कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।
आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से
न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।
सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे
कैसे करता है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2018 at 7:00pm — 18 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २२२
पोथा पढ़ना पंडित भूले शुभ मंगल में आग लगी
जो माथे को शीतल करता उस संदल में आग लगी।१।
जहर भरा है खूब हवा में हर मौसम दमघोटू है
पंछी अब क्या घर लौटेंगे जिस जंगल में आग लगी।२।
कैसी नफरत फैल गयी है बस्ती बस्ती देखो तो
जिसकी छाँव तले सब खेले उस पीपल में आग लगी।३।
धन दौलत की यार पिपासा इच्छाओं का कत्ल करे
चढ़ते यौवन जिसकी चाहत उस आँचल में आग लगी।४।
किस्मत फूटी है हलधर की नदिया पोखर सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2018 at 4:55pm — 19 Comments
घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह
बिन माँ के भुतहा लगे, चाहे सज्जित गेह।१।
माँ ही जग का मूल है, माँ से ही हर चीज
माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।
सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल
हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।
शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप
जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।
रखे कसौटी पाँव को, कंटक बो संसार
करे सरल हर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2018 at 7:30am — 8 Comments
बढ़ते ही नित जा रहे, खादी पर अब दाग
नेता जी तो सो रहे, जनता तू तो जाग।१।
जन सेवा की भावना, आज बनी व्यापार
चाहे केवल लाभ को, कुर्सी पर अधिकार।२।
मालिक जैसा ठाठ ले, सेवक रखकर नाम
देश तरक्की का भला, कैसे हो फिर काम।३।
नेता जी की चाकरी, तन्त्र करे नित खूब
किस्मत में यूँ देश की, आज जमी है दूब।४।
मुखर हुए निज स्वार्थ हैं, गौंण हो गया देश
नेता खुद में मस्त हैं, क्या बदले परिवेश।५।
जाति धर्म तक हो गये, सीमित नेता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।
निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।
कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।
शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।
हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।
सुनकर अच्छे बोल दो, करता दूना काम।३।
वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।
तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।
आँधी वर्षा या रहे, सिर पर तपती धूप।
प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।
पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2018 at 7:39pm — 13 Comments
सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल
था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।
हम में दस ही मूर्ख हैं, नब्बे हैं हुशियार
लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।
मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान
इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।
भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास
मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।
दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 7:28am — 20 Comments
कविता कोरी कल्पना, कविता मन का रूप
कविता को कवि ले गया, जहाँ न पहुँचे धूप।१।
किसी फूल की पंखुड़ी, किसी कली का गाल
कविता रंगत प्यार की, नहीं शब्द का जाल।२।
आँचल में रचती रही, सुख दुख कविता रोज
पड़ी जरूरत जब कभी, भरती सब में ओज।२।
भूखों की ले भूख जब, दुखियों की ले पीर
कविता सबकी तब भरे, आँखों में बस नीर।४।
युगयुग से भाये नहीं, कविता को अनुबंध
हवा सरीखी ये बहे, लिए अनौखी गंध।५।
कविता सुख की थाल तो, है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2018 at 3:30pm — 12 Comments
माता भगिनी संगिनी, सुता रूप में नार
विपदा दुख पीड़ा सहे, बाँटे लेकिन प्यार।१।
रही जन्म से नार तो, सदा शक्ति का रूप
समझे कैसे खुद रहा, मर्द हवस का कूप।२।
जो नारी का नित करें, पगपग पर सम्मान
संतो सा उनका रहा, सचमुच चरित महान।३।
नारी को जो कह गये, यहाँ नरक का द्वार
सब जन उनको जानिए, इस भू पर थे भार।४।
मुझ मूरख का है नहीं, गीता का यह ज्ञान
देवों से बढ़ नार का, कर मानव सम्मान।५।
बन जायेगा सच कहूँ,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 11:30am — 15 Comments
होली के दोह
मन करता है साल में, फागुन हों दो चार
देख उदासी नित डरे, होली का त्योहार।१।
चाहे जितना भी करो, होली में हुड़दंग
प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।
तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल
रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।
फागुन में गाते फिरें, सब रंगीले फाग
उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।
घोट-घोट के पी रहे, शिव बूटी कह भाँग
होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments
221 2121 1221 212
सुनता खुदा न यार सदाएँ तो क्या करें
करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।
इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम
हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।
इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान से
देता न कोई आज सदाएँ तो क्या करें।३।
शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम
तूफान बन के टूटें हवाएँ तो क्या करें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:30pm — 6 Comments
दबे पाप ऊपर जो आने लगे हैं
सियासत में सब तिलमिलाने लगे हैं।१।
घोटाले वो सबके गिनाने लगे हैं
मगर दोष अपना छिपाने लगे हैं।२।
वतन डूबता है तो अब डूब जाये
सभी खाल अपनी बचाने लगे हैं।३।
रहे कोयले की दलाली में खुद जो
गजब वो भी उँगलीउठाने लगे हैं।४।
दिया था भरोसा कि लुटने न देंगे
वही बेबसी अब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 4:00pm — 20 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
खूब नजरें जो गढ़ाये हैं पराये माल पर
है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।
भूख बेगारी औ' नफरत है पसारे पाँव बस
अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।
आज सम्मोहन कला हर नेता को आने लगी
है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।
खुद पहन खादी चमकते पूछता हूँ आप से
दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।
ऐसा होता तो सुधर जाते सभी हाकिम यहाँ
वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 10:25pm — 8 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत
पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।
ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो
यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।
फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों
समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।
माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन
घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।
ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर
फतवों के मेरे हाकिम पैबंद लगाओ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2018 at 6:00am — 15 Comments
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