Added by Dr.Prachi Singh on August 1, 2017 at 2:52pm — 3 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 26, 2017 at 1:25am — 8 Comments
कहाँ भला ख़ुशियों को ढूँढें
जब हर ओर विसंगतियाँ हैं...
क़समों-वादों के पत्तों पर सजे हुए हर ओर जुए हैं
सतहों तक स्पर्श रुके बस, कोर किसी ने कहाँ छुए हैं
कोशिश बिन रेशम से नाज़ुक बन्धन अब कैसे सँवरेंगे
जीवन की आपाधापी में रिश्ते जब बेमोल हुए हैं
उफ़! विकल्प हैं अपनों के भी
बाँचे कौन! कहाँ कमियाँ हैं ?
कहाँ भला ख़ुशियों को ढूँढें जब हर ओर विसंगतियाँ हैं...
मानवता का घूँघट ओढ़े दानव बैठे घात…
Added by Dr.Prachi Singh on June 14, 2017 at 9:15pm — No Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 31, 2017 at 11:17am — 5 Comments
वो मेरा अस्तित्व थे, मैं उनकी प्रतिछाप
खोए जब पदचिह्न तो, गूँज उठी यह थाप
गूँज उठी यह थाप, रहा संकल्प अधूरा
आखिर कैसे कौन करेगा उसको पूरा
इतना विस्तृत गहन रहा भावों का घेरा
जो उनका संकल्प, बना है अब वो मेरा
हाय! अबोला सब रहा, कह पाती सब काश
अब कह दूँ कैसे अकथ, तोड़ समय का पाश
तोड़ समय का पाश, धार को कैसे…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 25, 2017 at 8:00pm — 7 Comments
टिपर-टिपर-टिप
टिपर-टिपर-टिप
पानी की इक बूँद झूम कर
मुस्काई फिर ये बोली...
मैं अलमस्त फकीर
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
चंचलता जब ओस ढली तो
पत्तों नें भी जोग लिया,
उनके हिस्से जितना मद था
सब का सब ही भोग लिया,
बाँध सकी पर बूँदों को कब
कोई भी ज़ंजीर...
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
रिमझिम-रिमझिम जब बरसी तो
जीवन के अंकुर फूटे,
अम्बर की सौंधी पाती ने
जोड़े सब रिश्ते टूटे,
बूँदें ही…
Added by Dr.Prachi Singh on April 24, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
लिख दें इबारत इश्क की,
आओ ज़रा सा झूम लें..
इक दूसरे को जी सकें, कब वक़्त ही इतना मिला
बस दूरियाँ थामे रहीं नज़दीकियों का सिलसिला,
कुछ पल मिले हैं साथ के आओ इन्हें जी लें अभी
हमको मिलें ये पल न जाने ज़िंदगी में फिर कभी,
ले उँगलियों में उँगलियाँ
आओ ज़रा सा घूम लें ...
लिख दें...
जब प्यार के एहसास के पहलू कई हैं अनछुए
क्यों पूछते हैं आप फिर गुमसुम भला हम क्यों हुए ?
सपने हमारे…
Added by Dr.Prachi Singh on April 5, 2017 at 6:06pm — 4 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 29, 2017 at 3:00pm — 3 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 13, 2017 at 2:53am — 3 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 9:00am — 12 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 6, 2017 at 12:21pm — 9 Comments
इक क़तरा भी रह न जाए, करना होगा ख़ुद को अर्पण,
प्रेम कहाँ पूरा होता है, अगर अधूरा रहे समर्पण।
लहर-लहर लहरें इतराकर
जी भर चंचलता तो जी लें,
हो वाचाल अगर अंतः तो
कैसे फिर होठों को सी लें,
तृप्त हुई लहरें खुद थम कर आखिर बन जाती हैं दर्पण।
प्रेम...
बारी-बारी इक दूजे में
आओ हो जाएँ हम-तुम गुम,
मुझको भी अभिव्यक्ति मिले और
ख़ुद को भी अभिव्यक्त करो तुम,
रात दिवस से, दिवस रात से, यही कहा करते हैं क्षण-क्षण।
प्रेम...…
Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2017 at 12:00pm — 7 Comments
जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल
मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...
ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ
खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ
अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...
हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए
आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए
गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...
आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी
आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी
प्यार का विश्वास…
Added by Dr.Prachi Singh on February 12, 2017 at 11:00am — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 9, 2017 at 8:52am — 5 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 2, 2017 at 1:13pm — 10 Comments
नियति चक्र में
परिवर्तन निश्चित अंकित है,
होना है, हो कर रहता है...
समय प्रबल है
जोड़-तोड़ से कब बंधता है
बहना है, प्रतिपल बहता है...
आँख मींचते
आवरणों को क्यों पकड़ा है ?
छोड़ो इनको, हट जाने दो,
धुंध सींचते
संबंधों के रिसते बादल
गर्जन करके छट जाने दो,
मकड़जाल में
अपने मन के फँसे रहे तो
फिर क्या होगा? कुछ तो सोचो !
भीतर-बाहर
परिवर्तन तो करना होगा
जमी सोच की परतें…
Added by Dr.Prachi Singh on January 22, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
बुलबुल ने छोड़ा पंखों पर
अब बोझा ढोना,
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
अंतर्मन में गूँजी जबसे
सपनों की सरगम,
अपने रिसते ज़ख्मों पर रख
हिम्मत का मरहम,
झूठे बंधन तोड़ निकलना
सीख चुकी है वो,
बाहों में भर लेगी अम्बर
चाहे जो भी हो,
रहने देगी नहीं अनछुआ
कोई भी कोना....
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
क्यों बाँधे उसके पल्लू में
बस भीगे सावन,
भर लेना है हर मौसम से
अब उसको…
Added by Dr.Prachi Singh on January 5, 2017 at 2:00pm — 14 Comments
साल इक जाए प्यास देकर,
साल इक आए आस लेकर,
संग हम इनके
खिलखिलाएं,
आओ चलो
सपने फिर सजाऐं...
कोई यादों की खिड़कियों से
आए औ' धड़कन मुस्कुरा दे,
बिन कहे कहने जब लगे वो
अपने दिल के सारे इरादे,
ऐसा इक मीठा सा तराना
अनसुना करने का बहाना,
छोड़ कर
धुन ये गुनगुनाएं,
आओ चलो
सपने फिर सजाऐं...
तोड़ कर बंधन रोज भागें
थाम कर उँगली कब चली हैं,
इनका अम्बर ही है ठिकाना
ख्वाहिशें कितनी मनचली हैं,…
Added by Dr.Prachi Singh on December 31, 2016 at 8:30pm — 12 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on December 20, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on November 10, 2016 at 6:30am — 3 Comments
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