For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृजेश कुमार 'ब्रज''s Blog (106)

गीत-लोचन लोचन अश्रु बावरे बहते हैं अविराम (सरसी छंद)

विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

ह्रदय बसाये देवी सीता

वन वन भटकें राम

लोचन लोचन अश्रु बावरे

बहते हैं अविराम

सुन चन्दा तू नीलगगन से

देख रहा संसार

किस नगरी में किस कानन में

खोया जीवन सार

हे नदिया हे गगन,समीरा 

ओ दिनकर ओ धूप

तृण तृण से यूँ हाथ जोड़कर

पूछ रहे…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 10, 2020 at 7:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल-तुमसे ग़ज़ल ने कुछ नहीं बोला?

2122       2122        2122        2

चुप रहीं आँखें सजल ने कुछ नहीं  बोला

इसलिए  मनवा विकल ने कुछ नहीं बोला

भाव जितने हैं सभी को लिख दिया हमदम

क्या कहूँ! तुमसे ग़ज़ल ने कुछ नहीं बोला?

जिस  किनारे  बैठ  के  पहरों  तुम्हें  सोचूँ

उस जलाशय के कमल ने कुछ नहीं बोला?

एक  पत्थर  झील में  फेंका कि जुम्बिश हो

झील के  खामोश जल ने कुछ नहीं  बोला

साथ 'ब्रज' के रात भर पल पल रहे जलते

जुगनुओं  के नेक  दल ने…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 19, 2020 at 9:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल..कहीं लौकी कहीं कद्दू कहीं कटहल के ठेले हैं

मुफाईलुन*4

खरीदूँ कौन सी सब्जी बड़े लगते झमेले हैं

कहीं लौकी कहीं कद्दू कहीं कटहल के ठेले हैं

इधर भिन्डी बड़ी शर्मो हया से मुस्कुराती है

अजब नखरे टमाटर के पड़ोसी कच्चे केले हैं

तुनक में मिर्च बोली आ तुझे जलवा दिखाती हूँ

कहे धनिया हमें भी साथ ले लो हम अकेले हैं

शकरकंदी,चुकंदर ने सजाई नाज से महफ़िल

सुनाया राग आलू ने मगन बैगन,करेले हैं

घड़ी भर को जरा पहलु में लहसुन,प्याज आ बैठो

जुदाई में तुम्हारी 'ब्रज' ने…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2020 at 8:00pm — 7 Comments

गीत-तस्वीर तुम्हारी

सभी पंक्तियाँ 16-16 मात्राभार के क्रम में

घर के किस कोने में रख के

भूल गया तस्वीर तुम्हारी

रोज सवेरे से सिर धुनते

शाम ढले तक याद संभाली

एक सिरा न हाथ में आया

टुकड़े टुकड़े रात खंगाली

आँगन ढूढ़ा कमरा ढूढ़ा

ढूढ़ लिए दालान अटारी

घर के किस कोने में रख के

भूल गया तस्वीर तुम्हारी

देख पपीहे की अकुलाहट

आसमान में बादल आये

बुलबुल छेड़े खूब तराना

भँवरे फूलों पे मंडराये

तू भी कोयल बड़ी…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2020 at 11:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल-जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो

बह्र-ए-मीर
पतझर में भी गीत बसंती गाऊँ तो
जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो

अंदर का अँधियारा क्या छट जायेगा
कोशिश करके बाहर दीप जलाऊँ तो

शायद लौट चले आएं रूठे पलछिन
फूलों से जो उनकी राह सजाऊँ तो

कार्य हमारे भी सारे सध जायेंगे
सुविधा शुल्क लिये ये हाथ बढ़ाऊँ तो

जग सारा देखेगा 'ब्रज' के पांव फटे
जो चादर के बाहर पग फैलाऊँ तो


(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 14, 2020 at 10:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल-चाँद के चर्चे आसमानों में

लंबे अंतराल के बाद एक ग़ज़ल के साथ
2122 1212 22

चाँद के चर्चे आसमानों में
और मेरे सभी फसानों में

अय हवा बख्श दे अभी ये लौ
हैं अँधेरे गरीबखानों में

हम सुख़नवर से पीर ज़िंदा है
दर्द का मोल क्या दुकानों में

आँखों में आँसुओं का डेरा है
ख्वाब हैं क़ैद मर्तबानों में

पंछियों के लिए सदा रखना
कोई उम्मीद आबदानों में

दिल जला 'ब्रज' जरा सुकूँ आये
रौशनी भी रहे मकानों में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 8, 2020 at 3:16pm — 2 Comments

ग़ज़ल..डरावनी सी रात थी बड़ा अजीब ख्वाब था-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

1212   1212    1212    1212



निगाह  में उदासियां  छुपा हुआ अज़ाब था

डरावनी सी रात थी बड़ा अजीब ख्वाब था

दिखी नहीं कली कहीं ख़ुशी से कोई झूमती

लबों लबों कराह और आँख आँख आब था

चमन में छा रही थीं बेशुमार बदहवासियां

न  टेसुओं  पे नूर था  न सुर्खरू  गुलाब था

मिला न साथ दे सका जो चाहिए मिला नहीं

थी चार दिन की ज़िंदगानी दर्द बेहिसाब था

फ़ुज़ूल थे सवाल और चीखना फ़ुज़ूल…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2019 at 12:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल-कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के-बृजेश कुमार 'ब्रज'

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर

मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन



ये वक़्त के फ़साने सब पैतरे हैं छल के

तुम भी बिखर न जाना यूँ मेरे साथ चल के

उस डायरी में तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा

कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के

ये याद भी नही है शोला थ याकि शबनम

हालाँकि उस बला ने देखा तो था मचल के

अब क्या तुम्हें बताएं किस बात का गुमां है

कल रात चाँद मेरी छत पे गया टहल के

किस बात से…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 1, 2019 at 12:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल-लालफीताशाही-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मंच को प्रणाम करते हुए ग़ज़ल की कोशिश

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

लालफीताशाही कितनी मिन्नतों को खा गई

ये व्यवस्था  ढेर  सारे  मरहलों  को खा गई

ये  कहा था  साहिबों  ने घर नये  देंगे  बना

साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई

अब तरक़्क़ी की बयारें इस क़दर काबिज़ हुईं

पेड़ तो काटे  जड़ों से कोपलों  को खा गई

कुछ गवाही दे रही है मयक़दे की रहगुज़र

मयकशी हँसते हुये कितने घरों को खा गई

भूख  से बेहाल…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 19, 2019 at 2:29pm — 9 Comments

नवगीत-वेदना तुझको बुलाऊँ-बृजेश कुमार 'ब्रज'

छा रहा नभ में अँधेरा

जुगनुओं  ने सूर्य घेरा

नेह भावों से  निचोड़ूँ  दीप  मैं घर घर  जलाऊँ

वेदना तुझको बुलाऊँ

रो दिए वीरान पनघट

टूट के बिखरे हुए घट

हैं बहुत मुश्किल समय के ये थपेड़े सह न पाऊँ 

वेदना तुझको बुलाऊँ

अश्रुओं से सिक्त वीणा

न कहूँ अंतस की पीड़ा 

रिक्त भावों से पड़े तो किस तरह ये गीत गाऊँ

वेदना तुझको बुलाऊँ…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2019 at 10:30am — 8 Comments

नवगीत-वेदना ने नेत्र खोले-बृजेश कुमार 'ब्रज'

वेदना ने नेत्र खोले

रात ने उर लौ लगाई
चांदनी कुछ मुस्कुराई
आज फिर चन्दा गगन में बादलों के बीच डोले
वेदना ने नेत्र खोले

रातरानी खिलखिलाई
रुत रचाती है सगाई
आ गया मौसम बसंती प्रीत पंछी ले हिंडोले
वेदना ने नेत्र खोले

ओ बटोही देश आजा
छोड़कर परदेश आजा
टेरती कोयल सलोनी मन पपीहा नित्य बोले
वेदना ने नेत्र खोले
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2019 at 6:11pm — 8 Comments

ग़ज़ल... जिस रास्ते पे उनकी मन्ज़िलें नहीं

बह्र ए मीर
अब तक रहे भटकते उजड़े दयार में
अब कौन बसा आन दिले बेक़रार में

जिस रास्ते पे  उनकी मन्ज़िलें  नहीं
उस  राह में  खड़े  हैं  इन्तज़ार  में

बेकार  हर सदा है कितना पुकारता
ये कौन सो रहा है गुमसुम मज़ार में

उस फूल को ख़िज़ायें ले के कहाँ गईं
जिस फूल को चुना था लाखों हजार में

ऐ मीत इस कदर भी मत आज़मा मुझे
आ जाये न कमी 'ब्रज' के ऐतबार में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments

गीत-युगों से जुदा हैं नदी के किनारे-बृजेश कुमार 'ब्रज'

उन्हें कौन पूछे उन्हें कौन तारे

युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

उदासी उदासी उदासी घनेरी

विरह वेदना प्रीत की है चितेरी

अँधेरे खड़े द्वार पे सिर झुकाये

तभी रात ने स्वप्न इतने सजाये

उसी रात को छल गये चाँद तारे

युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

लगी रात की आँख भी छलछलाने

अँधेरा मगर बात कोई न माने

क्षितिज पे कहीं मुस्कुराया सवेरा

तभी रूठ कर चल दिया है अँधेरा

नजर रोज सुनसान राहें बुहारे

युगों से जुदा हैं नदी के…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 21, 2018 at 4:30pm — 10 Comments

गीत...दीप कहाँ से लाऊँ

इस गीत के साथ ओबीओ परिवार के सभी मनीषियों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं

सारा जग उजियारा कर दे

दीप कहाँ से लाऊँ

अंधकार ने फन फैलाया

मैला हर इक मन है

सूरज भी गुमसुम सा बैठा

विस्मित नील गगन है

मन को मनका मोती कर दे

सीप कहाँ से लाऊँ

सारा जग उजियारा कर दे

दीप कहाँ से लाऊँ

गली गली में घूमे रावण

हर घर में इक लंका

प्यार मुहब्बत भाईचारा

मिटने की आशंका

कण कण राम बिराजें ऐसा

द्वीप…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2018 at 11:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल...ले ली मेरी जान सलीके से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

वो बैठा दिल में आन सलीके से

फिर ले ली मेरी जान सलीके से

यूँ ही पहले थोड़ी सी बात हुई

बन बैठे फिर अरमान सलीके से

पल भर को पहलू में आओ चन्दा

इतना तो कर अहसान सलीके से

काफी है पलकों का उठना गिरना

तू नैन कटारी तान सलीके से

दिल की दुनिया लूट गईं दो आँखें

फिर होती हैं हैरान सलीके से

कोने की उस जर्जर अलमारी में

रख छोड़े कुछ अरमान सलीके से

जिनको थी लाज बचानी कलियों की

बन…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2018 at 5:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल...लाज की मारी न रोये द्रोपदी

इस ग़ज़ल के साथ ओबीओ परिवार को नवरात्री की शुभकामनाएं.. जय माता की

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन

हर कली में देवियों का वास हो

पत्थरों को दर्द का अहसास हो

फिर कोई अवतार आये भूमि पे

निश्चरों को मृत्यु का आभास हो

लाज की  मारी न रोये  द्रोपदी

अब नहीं वैदेही को वनवास हो

पीर की तासीर जाओगे समझ

लुट चुका कोई तुम्हारा खास हो

बात इतनी सी समझते क्यों नहीं

घात मिलती है जहाँ बिस्वास हो

(मौलिक एवं…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 12:30pm — 17 Comments

गीत-इसलिये हैं नैन घायल आँसुओं से तर-ब-तर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

किसलिये हैं नैन घायल

आँसुओं से तर-ब-तर?

फिर किसी सुनसान कोने

चीख कोई जो उठी

रात की खामोशियों में

रातरानी रो उठी

दानवी अट्टाहसों में

आह तड़पी घुट गई

टूटती साँसें समेटे

लड़खड़ाती वो उठी

इस कदर बरपी क़यामत

बन गई मातम सहर

इसलिये हैं नैन घायल

आँसुओं से तर-ब-तर

है नहीं जग में ठिकाना

आँख जाए नीर का

मोल कोई दे सकेगा

वेदना का पीर का

जिस नज़र पे था भरोसा

घात भी उससे मिली

हाथ…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 6:00pm — 20 Comments

गीत...तितलियाँ अब मौन हैं-बृजेश कुमार 'ब्रज'

शोर भौरों का सुनोगे

तितलियाँ अब मौन हैं

रक्त रंजित हो उठा मन

रोज के अख़बार से

हर कली सहमी हुई है

आह अत्याचार से

इस चमन में भेड़ियों से

आदमी ये कौन हैं

शोर भौरों का सुनोगे

तितलियाँ अब मौन हैं

प्रीत का संगीत गुमसुम

भाव के व्यापार में

सत्य का उपहास करता

छल कपट संसार में

प्रेम है अनुबंध जैसा

प्रेम परिणय गौण है

शोर भौरों का सुनोगे

तितलियाँ अब मौन हैं

(मौलिक एवं…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 17, 2018 at 6:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल...यादों के सरमाये-बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मीर पर आधारित ग़ज़ल

कमबख्त कहाँ से आये इतनी रात गये

उनकी यादों के साये इतनी रात गये

आज उभर के आया है इक दर्द पुराना

बेलौस हवा सहलाये इतनी रात गये

कश्ती कागज की गहरे यादों के दरिया

अब नींद कहाँ से आये इतनी रात गये

गीली मिटटी की सौंधी सौंधी सी खुशबू

अंतस में आग लगाये इतनी रात गये

किस प्रियतम के लिए हुआ बैचैन पपीहा

जो घड़ी घड़ी चिल्लाये इतनी रात गये

दूर उफ़क़ से आती हैं ग़मगीन…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 1, 2018 at 4:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल....दिल जला के रौशनी होती नहीं है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन

दर्द अपना यूँ सर-ए-बाज़ार कर के

क्या मिलेगा वक़्त से तक़रार कर के

कुछ नहीं हासिल,समझते क्यों नहीं हो

गम उठाना आह भरना प्यार कर के

सामने उस मोड़ पर कुछ अनमना सा

शख़्स इक बैठा है सब न्योछार कर के

बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में

वो नहीं आया अना को पार कर के

दिल जला के रौशनी होती नहीं है

ये भी 'ब्रज' ने देखा है सौ बार कर के



(मौलिक एवं अप्रकाशित)…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 25, 2018 at 6:00pm — 23 Comments

Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
12 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service