22 122 12
गीता में लिक्खा गया
सिद्धिर्भवति कर्मजा
बिन फल की चिंता करे
सद्कर्म करिए सदा
दिखता है जो कुछ यहाँ
सब खेल है काल का
ऊर्जा का सिद्धांत है
लक्षण है जो आत्म का
बदले हैं बस रूप ही
ऊर्जा हो या आत्मा
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 8, 2018 at 4:51pm — 8 Comments
12122 12122 12122 12122
है दूर मन्ज़िल तिमिर घनेरा, अगर कलम की डगर कठिन है
नहीं थकेंगे कदम हमारे हमारा व्रत भी मगर कठिन है
चलो उठाओ तमाम बातें जवाब सारा कलम ही देगी
चले भले ही कदम अभी कम पता है हमको सफर कठिन है
मना ले जश्नां उड़ा मज़ाकाँ ज़माने दूँगा सलाम लाखों
सलाम वापस इधर ही होंगे हालाँकि तुमसे समर कठिन है
न पूछ काहें मैं अक्षरों की ये धार सब पर बिखेरुँ पल पल
है इक हिमालय यहाँ भी ग़म का सो आँसुओं की लहर कठिन…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 11, 2018 at 7:30pm — 9 Comments
122 212 122 212
ये शेर-ओ-शायरी? मुझे, इश्क़ है भई
सभी से, आप से; किसी ख़ास से नई
क़लम चिल्ला उठी, जहाँ के दर्द से
कुई तड़पा, निगाह नम हो गई
किसी नें राष्ट्र को तरेरी आँख तो
जिगर औ साँस में उतर आई मई
सुनो ए, नाज़नीं घमण्डी होने का
इसे इल्ज़ाम देने को बस तुम नई
महज़ खटती रहीं वो बच्चों के लिए
सभी माताओं की उम्र यूँ ही गई
मौलिक-अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2018 at 12:00am — 7 Comments
16 रुकनी ग़ज़ल
किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए
जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए
वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा
जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए
हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें
आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए
हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को
पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए
रातों की…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 28, 2018 at 1:30am — 18 Comments
1212 1122 1212 112
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 26, 2018 at 1:00am — 15 Comments
पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन
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हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू युक्त अटल।
आज जगत के इस बन्धन को त्याग हो गए मुक्त अटल।।
नैतिकता के मानदंड थे प्रेम राग के अनुरागी
सर्वधर्म समभाव के असली आप थे सच्चे अनुगामी
सकल विश्व में भारत की जो मान-प्रतिष्ठा आज बढ़ी
उसकी गाथा अटल बिहारी के द्वारा परवान चढ़ी
विश्व पटल पर एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है भारत जो
आप…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 16, 2018 at 6:00pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 8, 2018 at 12:00am — 10 Comments
पीड़ा के ताप से,
पिघल रही मन की हिमानी
दो आँखें हुई हैं यमुनोत्री गंगोत्री
कंठ क्षेत्र देव प्रयाग हुआ है
जहाँ अलकनंदा और भगीरथी
की धाराएं आकर मिल रहीं
और हृदय क्षेत्र-हरिद्वार को
भिंगों रहीं
आप इसे रोना कह सकते हैं
लेकिन मैं अपना दुःख बहा रहा हूँ
अपने बैलों के साथ मर चुके किसान के प्रति
अपना फ़र्ज़ निभा रहा हूँ
शायद इससे अधिक कुछ कर नहीं सकता?
ना!!!!
सच ये है कि इससे ज्यादा कुछ करना ही नहीं चाहता
ख़ैर, …
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 6, 2018 at 11:00pm — 9 Comments
122 122 122 122
युगों तक जगत में वही जी सका है
हृदय अपना जिसने समंदर किया है
हक़ीक़त से नज़रें हटाने से यारो
कभी झूठ भी क्या कहीं सच हुआ है?
कहाँ रात के मानकों से हो चिपके
उजाले का वाहक तो सूरज रहा है
गरल एकता के लिए पीना होगा
सिखाती सभी को परम शिव कथा है
'सुनो आइनो तुम भी पढ़ लो सुकूँ से
कि 'पंकज' ने सब सामने रख दिया है' (आदरणीय बाऊजी समर कबीर द्वारा…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 21, 2018 at 3:00pm — 15 Comments
212 212 212 212 212 212
जानें क्या बात है आज कल, दर्द अपना छिपाने लगा
हाल उसका पता कीजिए, वो बहुत मुस्कुराने लगा
हम उसे बस यूँ ही चारागर, झूठे ही तो नहीं लिख दिए
एक बेजान से बुत में भी, वो जो धड़कन चलाने लगा
उसको पागल नहीं जो कहें, तो भला नाम क्या और दें
एक निर्जन नगर में कोई, स्वप्न के घर बसाने लगा
शुक्रिया आपका शुक्रिया है ये तोहफा बहुत कीमती
देखिए तो विरह का असर शेर मैं गुनगुनाने लगा
उम्र भर की ख़लिश…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 20, 2018 at 12:00am — 14 Comments
212 212 212 212
स्वार्थ नें राष्ट्र की है सजाई चिता
जाति की अग्नि से चिट चिटाई चिता
भारती माँ तड़प कर कराहे सुनो
पूछती जीते जी क्यूँ सजाई चिता?
प्रीत के व्योम पर द्वेष धूम्राक्ष है
लोभियों नें वतन की जलाई चिता
राजगद्दी के लोभी हैं शामिल सभी
पूछिए मत कि किसनें लगाई चिता?
आग है जो लगी आप जल जाएंगे
बढ़ के आगे न यदि जो बुझाई चिता
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 4, 2018 at 11:30pm — 14 Comments
122 122 122 122
मुझे ढ़ाल दे अपने ही ढंग से अब
सराबोर कर खुद के ही रंग से अब
ज़रूरी है ख़श्बू फ़िज़ाओं में बिखरे
बदन की तुम्हारे मेरे अंग से अब
न मुझसे चला जा रहा होश में है
तू मदहोश कर रूप की भंग से अब
है महफ़िल में भी मन हमारा अकेला
उमंगें इसे दे तेरे संग से अब
न जाने है कैसी जो मिटती नहीं है
मनस सींच तू प्रीत की गंग से अब
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 2, 2018 at 10:30am — 8 Comments
2122 2122 122
दिल में नफ़रत होठों पे मुस्कुराहट
सबके वश में है क्या ऐसी बनावट?
कान मेरी ओर मत कीजिएगा
दिल जो टूटे तो नहीं होती आहट
आसमाँ में रंग बिखरेगा फिर से,
कह रहा था स्वप्न, मैंने कहा; हट
मान जा मन छोड़ उद्दंडता अब
दौड़ना अच्छा नहीं, ऐसे सरपट?
कोई जादू तेरी आँखों में तो है
वर्ना खुलता ही कहाँ ये मनस-पट
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 17, 2018 at 1:28pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है
क्या किसी तारे का फिर से नव सृजन प्रारम्भ है
इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ
प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है
मन-जगत घर्षण से अंतस में अनल जो है प्रकट
भावनाओं का उसी से आचमन प्रारम्भ है
लेखनी नें स्वयं से संकल्प इक धारण किया
एकता के भाव का सो संवहन प्रारम्भ है
चक्षुओं पर जो लगा कर घूमते चश्मा उन्हें
ताप…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:07pm — 14 Comments
दोहा/ ग़ज़ल
चाहत के तूफान में, उजड़े चैन सुकून
चिंता में जल कर हुआ, भस्म खुदी का खून
गीता में लिक्खा गया, राहत का मजमून
लिप्सा के परित्याग से, खिलता आत्म-प्रसून
संग्रह का जो रोग है, बढ़ता प्रतिपल दून
लोभ अग्नि में हे! मनुज, यूँ खुद को मत भून
सुख का एक उपाय बस, इच्छा करिए न्यून
बाकी मर्ज़ी आपकी, खटिए चारो जून
मनस वेदना के लिए, यह बढ़िया माजून
सो पंकज नें कर लिया, लेखन एक जुनून
मौलिक…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 16, 2018 at 11:23am — 11 Comments
1212 1122 1212 22
तुम्हारे दीद की ख़ाहिश अभी अधूरी है
इसीलिए तो निगाहें खुली ही छोड़ी है
तमाम ख़ाब हैं आँखों में तेरी ही ख़ातिर
बुलाऊँ नींद, तेरा आना अब ज़रूरी है
किसी अज़ीज़ नें आख़िर मुझे सिखाया तो
यूँ रोज़ रोज़ ग़ज़ल लिखना बेवकूफ़ी है
जहाँ के लोगों के दुःख दर्द का गरल अपने
उतारा सीने में तब ही कलम ये पकड़ी है
बताऊँ कैसे उन्हें शायरी जुनून हुई
नसों में दौड़ती पंकज के, ये बीमारी है
मौलिक…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 11, 2018 at 5:41pm — 7 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
नैन में रैन गँवाए जाऊँ, वक्त पहाड़ जुदाई का
जाने सूरज कब निकले, है वक्त अभी रुसवाई का
उनको कोई ग़रज़ नहीं जो पूछें हाल हमारा भी
कोई दूजी वज्ह नहीं, परिणाम है कान भराई का…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:30pm — 14 Comments
22 22 22 22
उनसे मेरी बात हुई है
प्रतिबंधित मुलाक़ात हुई है
सारे स्वप्न तरल हैं मेरे
देखो तो बरसात हुई है
स्याही बन कर भस्म्है बिखरी
यूँ न अधेरी रात हुई है
मन खुद में ही खोज खुदी से
शांति कहाँ, आयात हुई है
दिल वो जीते दर्द मग़र हम
मत समझो बस मात हुई है
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 8, 2018 at 9:00pm — 18 Comments
जो हमसे मोहब्बत नहीं है तो हमको
बताओ कि हमसे लजाते हो क्यूँ तुम?
निगाहें मिला कर निगाहों को अपनी
झुकाते हो हमसे छिपाते हो क्यूँ तुम?
कभी फेरना पत्तियों पर उँगलियाँ,
कभी फूल की पंखुड़ी पर मचलना
अचानक सजावट की झाड़ी को अपनी
हथेली से छूते हुए आगे बढ़ना
ये शोखी ये मस्ती दिखाते हो क्यूँ…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 4, 2018 at 8:00am — 7 Comments
2122 2122 2122 212
आज अपना सारा ईगो ही जला देता हूँ मैं
बर्फ़ रिश्तों पर जमी उसको हटा देता हूँ मैं
मेरे होने की घुटन तुमको न हो महसूस अब
ज़िन्दगी खोने का खुद को हौसला देता हूँ मैं
नाम दूँ बदनामियाँ दूँ, मेरे वश में है नहीं
सो मेरे होठों को चुप रहना सिखा देता हूँ मैं
तेरे चहरे पर शिकन संकोच अब आए नहीं
इसलिए सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं
कुछ नहीं बस हार इक ला कर चढ़ा…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 2, 2018 at 9:00am — 22 Comments
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