स्नेह-धारा
कल्पना-मात्र नहीं है यह स्नेह का बंधन ...
उस स्वप्निल प्रथम मिलन में, प्रिय
कुछ इस तरह लिख दी थीं तुमने
मेरे वसन्त की रातें
मेरी समस्याओं ने
अव्यव्स्थाओं ने, अभिलाषाओं…
ContinueAdded by vijay nikore on March 29, 2020 at 8:00am — 3 Comments
प्रणय-परीक्षा
सुना है कुछ ऐसा केवल
स्वप्न-लोक में
या परियों की कहानी में होता है
सात समुद्र पार से आता है
घोड़े पर सवार
सात युगों का प्यार
पर हवा-सी झूमती
शैतानी-भरी हँसी हँसती
भरे आँखों में खुमारी की लालिमा
ऐसी गुड़िया से मिलना
मेरे जीवन के रंग-मंच पर
यह कोई सपना नहीं था
काट रही थी कब से मुझको
समय की तेज़ धार
मिला हवा की लहर-सा…
ContinueAdded by vijay nikore on March 23, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
बाँधा जो साँसों ने साँसों से धागा
आँसू में, कुछ मुस्कानों में
मिलन की वेला के सुख में मिश्रित
बिछोह की घड़ी की व्यथा अपार
डरते-मुस्कुराते चेहरे पर पाईं हमने
ढुलक आई थीं बूँदें जो भीगी पलकों से
मिला था उनमें प्राणों को प्रीति का दान
ऐसे में हृदय ने सुनी हृदय की मधुर धड़कन
मधुमय मूक स्वर उस अद्वितीय आलिंगन में
आच्छादित हुए ऐसे में ज्यों भीगे गालों पर गाल
मुझको लगा उस पावन…
ContinueAdded by vijay nikore on March 16, 2020 at 2:00pm — 6 Comments
सम्मोहन
सम्मोहन !
जानता था मन, शायद न लौटेंगे हम
वह प्रथम-मिलन की वेला ही होगी
शायद हमारा अंतिम मिलन
अंतिम मुग्ध आलिंगन
उस परस्पर-गुँथन में थी लहराती
चिन्तनशील यह उलझन गहरी
जी में फिर भी था अतुल उत्साह
कि रहेंगे जहाँ भी, खुले रहेंगे हमारे
सुन्दरतम मन-मंदिर के वातायन
खुले रहेंगे पूरम्पूर परस्पर प्राणों के द्वार
कि तड़पती भागती दिशाओं के पार भी
अजाने…
ContinueAdded by vijay nikore on March 8, 2020 at 12:30am — 6 Comments
सौन्दर्य-अनुभूति
नई जगह नई हवा नया आकाश
न जाने कितने बँधनों को तोड़
अनेक बाहरी दबावों को ठेल
सैकड़ों मीलों की दूरी को तय कर
मुझसे मिलने तुम्हारा चले आना
मानसिक प्रष्ठभूमि में होगी ज़रूर
पावन स्नेह के प्रति तुम्हारी साधना
और इस प्रष्ठभूमि में तुमसे मिलना
था मेरे लिए भी उस स्वर्णिम क्षण
सौन्दर्य का आकर्षण
हमारा वह प्रथम मिलन
सुखद सरल भाव-विनिमय
खुल गए थे…
ContinueAdded by vijay nikore on March 7, 2020 at 5:46am — 2 Comments
झोल खाई हुई खुशी
तारों भरी रात, फैल रही चाँदनी
इठलाता पवन, मतवाला पवन
तरू-तरु के पात-पात पर
उमढ़-उमढ़ रहा उल्लास
मेरा मन क्यूँ उन्मन
क्यूँ इतना उदास…
ContinueAdded by vijay nikore on March 2, 2020 at 4:30am — 4 Comments
प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है ...
जानता है उल्लसित मन, मानता है मन
तुम बहुत, बहुत प्यार करती हो मुझसे
गोधूली-संध्या समय तुम्हारा अक्सर चले आना,
गलें में बाहें, गालों पर चुम्बन, अपनत्व जताना
झंकृत हो उठता है मधुरतम पुरस्कृत मन-प्राण
मैं बैठा सोचता, सपने में भी कोई इतना अपना
आत्म-मंदिर में अपरिसीम मधुर संगीत बना
निज का साक्षात प्रतिबिम्ब बन सकता है कैसे
पलता है मेरी आँखों में प्रिय, यह प्यार…
ContinueAdded by vijay nikore on February 26, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
जीवन्तता
माँ
कहाँ हो तुम ?
अभी भी थपकियों में तुम्हारी
मैं मुँह दुबका सकता हूँ क्या
तुम्हारा चेहरा सलवटों भरा
मन शाँत स्वच्छ निर्मल
पथरीले…
ContinueAdded by vijay nikore on February 24, 2020 at 5:30am — 4 Comments
प्यार का प्रपात
प्यार में समर्पण
समर्पण में प्यार
समर्पण ही प्यार
नाता शब्दों का शब्दों से मौन छायाओं में
आँखों और बाहों का हो महत्व विशाल
बह जाए उस उच्च समर्पण में पल भर…
ContinueAdded by vijay nikore on February 21, 2020 at 3:30am — 4 Comments
गुज़ारिश
मुहब्बत में मज़हब न हो
मज़हब में हो मुहब्बत
मुहब्बत ही हो सभी का मज़हब
तो सोचो, हाँ, सोचो तो ज़रा
कैसी होगी यह कायनात
कैसी होगी यह ज़मीन
खुश होगा कितना…
Added by vijay nikore on February 15, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
डूब गया कल सूरज
कल ही तो था जो आई थी तुम
बारिश के मौसम की पहली सुगन्ध बनी
प्यार की नई सुबह बन कर आई थी तुम
मेरे आँगन में नई कली-सी मुस्कराई थी तुम
याद है मुझको वसन्त रजनी में
कल…
ContinueAdded by vijay nikore on February 15, 2020 at 6:30am — 4 Comments
नया साल चढ़ा है
कुछ बुदबुदाता हुआ
आया है नया साल
ओढ़े बबूलपन के संग
बुद्धी की सचाई की
मुरझाई पुष्पलता
हो सकता है यह पहनावा
नया…
ContinueAdded by vijay nikore on February 6, 2020 at 6:30am — 4 Comments
आँख-मिचौनी
साँझ के रंगीन धुँधलके ...
आँख-मिचोनी खेलते
एक दूसरे को टटोलते
मद्धम रोशनी में उभरती रही
कोई पवित्र विलुप्त लालसा
आवेगों में खो जाने की…
ContinueAdded by vijay nikore on February 2, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
समय के साय
समय पास आकर, बहुत पास
कोई भूल-सुधार न सोचे
अकल्पित एकान्तों में सरक जाए
झटकारते कुछ धूमैले साय अपने
गहरे, कहीं गहरे बीच छोड़ जाए
कुछ ऐसे घबराय बोझिल…
ContinueAdded by vijay nikore on January 30, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
नियति का आशीर्वाद
हमारे बीच
यह चुप्पी की हलकी-सी दूरी
जानती हो इक दिन यह हलकी न रहेगी
परत पर परत यह ठोस बनी
धातु बन जाएगी
तो क्या नाम देंगे हम उस धातु को ?…
ContinueAdded by vijay nikore on January 27, 2020 at 12:30pm — 4 Comments
प्रथम मिलन की शाम
विचारों के जाल में उलझा
माथे पर हलका पसीना पोंछते
घबराहट थी मुझमें --
मैं कहीं अकबका तो न जाऊँगा
यकीनन सवाल थे उगल रहे तुम में भी
कैसा होगा हमारा यह प्रथम…
ContinueAdded by vijay nikore on January 23, 2020 at 8:30am — 4 Comments
समय पास आ रहा है
बहता रहा है समय
घड़ी की बाहों में युग-युग से
पुरानी परम्परा है
घड़ी को चलने दो
समय को बहना है, बहने दो
हँसी और रुदन के बीच भटक-भटक…
ContinueAdded by vijay nikore on January 20, 2020 at 10:30pm — 7 Comments
प्रतीक्षा
आँधी में पेड़ों से पत्तों का गिरना
पेड़ों की शाख़ों के टूटे हुए खण्ड गिनना
उड़ते बिखरे पत्तों से आंगन भर जाना
यह नज़ारा कोई नया नहीं है
फिर भी लगता है हर आँधी के बाद
नदियों पार “हमारे” उस पुल को चूमकर आई
यह आँधी मुझसे कुछ बोल गई
गिरे पत्तों की पीड़ा मुझमें कुछ घोल गई
हर आँधी की पहचान अलग, फैलाव नया-सा
कि जैसे अब की आँधी में नि:संदेह
कुलबुलाहट नई है, कोलाहल कुछ और है
मेरी ही गलती है हर गति…
ContinueAdded by vijay nikore on January 17, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
प्रकृति-सत्य
मेरे पिछवाड़े के पेड़ों के पत्ते
पतझर में अब पीले नहीं होते
ऋतु परिवर्तन से पहले ही, डरे-डरे
तन-मन हारे मारे-मारे उढ़ते फिरते
कि जैसे यह अकुलाते पत्ते नहीं हैं
हज़ारों घायल पक्षी…
ContinueAdded by vijay nikore on January 13, 2020 at 8:00am — 4 Comments
नियति-निर्माण
नियति मेरी, पूछूँ एक सवाल
इतना तो बता दो मुझको
वास्तव में यह हिंसक नहीं है क्या
घोर अन्याय नहीं है क्या ...
कि हाथों में तुम्हारे रही है हमेशा
मेरे भविष्य की डोर
और मैं ...
ज़िन्दगी की इमारत की
किसी भी मंज़िल पर पहुँचा तो जाना
जागते सोचते हर धूलभरे कमरे में पाया
उदासीन खालीपन
और मेरी छाती में रहीं गिरफ़्तार
कितने अधबने अनबुने नामहीन
सनातन…
ContinueAdded by vijay nikore on January 9, 2020 at 9:30pm — 4 Comments
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