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Pratibha pande's Blog (42)

ई मेल [लघु कथा ]

 सुबह  अचानक एक  सपने से उनकी नींद टूट गई    I बडा अजीब सपना था I बेटी  रिनी खाई में गिरी है, ,जोर जोर से चिल्ला रही है ,पर वो उसे बचा नहीं पा रहे हैं I   उन्होंने समय देखा I  सुबह के चार बजे थे I हल्की  ठण्ड के बावजूद माथे पर पसीना था I धीरे से उठ कर वो आगे कमरे में आ गए I   23 साल की बेटी  रिनी ,बेफिक्री से सो रही थी I उसके बच्चों जैसे मासूम  चेहरे को देखते हुए वो धीरे से कुर्सी पर बैठ गए और लैप टॉप खोल लिया I

परसों ही उनके दोस्त शर्मा जी का दिल्ली से फोन आया था I उनकी बेटी…

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Added by pratibha pande on November 17, 2015 at 10:30am — 17 Comments

कोख जाया [लघु कथा ]

नवेली बहू और बेटे के साथ आँगन में मेहमान जमे थे I तभी  जोर जोर से तालियाँ और मर्दानी आवाजों में गाते , चार हिजड़े घर में आ गए  I  घबरा कर वो अन्दर आ गई I तालियों की आवाज़ चेतना में हथौड़े चला रही थी I

"बहू वो नेग लेने आये हैं I तू भी बाहर आ जा ,दूल्हे की अम्मा है तू " सास अन्दर आ गई थी I "क्या हुआ ? थक गई है ?रहने दे ,आराम कर " I

सास के बाहर जाते ही वो  पलंग पर गिर गई Iआँखों से यादें बहकर चादर भिगोने लगीं Iपचास साल पहले उसके घर भी आये थे ये ,तालियाँ बजाते नेग लेने नहीं , छोटे…

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Added by pratibha pande on November 2, 2015 at 1:00pm — 9 Comments

मिसेज़ वर्मा [लघु कथा ]

"क्या बात है वर्मा जी i सत्तर की उम्र में भी आप युवाओं से ज्यादा चुस्त हैं " पार्क से निकलते हुए मैंने वर्मा जी  से कहा I

"पूरे नियम से रहता हूँ Iघूमना ,योग , स्वस्थ भोजन, पंद्रह सालों से टस से मस नहीं हुआ है नियम I "गर्व से दमक रहा था उनका चेहरा I

"बिल्कुल, वो तो दिखता है I"

"सुबह निम्बू शहद पानी से लेकर रात को सोने से पहले हल्दी के दूध तक ,एक भी दिन चूक नहीं होती है I"

"किससे?" 

"मिसेज़ से और किससे ,वो ही तो ध्यान रखती है रूटीन का Iऔर हाँ , घर में नौकर…

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Added by pratibha pande on October 22, 2015 at 9:19am — 13 Comments

खुद को ढूँढती फिरूँ,कूप कोई अंध में

कभी अतीत फंद में ,कभी भविष्य द्वन्द में 

खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में 

शब्द ठिठके से खड़े ,भाव बहने पे अड़े  

अश्रु भी लो अब यहाँ ,बन गए जिद्दी बड़े

अब रुकेंगे ये कहाँ छन्द  के किसी बंद में

खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में

प्रेम में रहस्य क्या ,जो छिपा वो प्रेम क्या

 प्रेम हो  कुछ इस तरह ,उदय  रवि लगे नया

खुल जाय हर इक गिरह, मुस्कान एक मंद में

खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में 

ह्रदय धरा…

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Added by pratibha pande on October 2, 2015 at 11:12am — 14 Comments

औरतें [लघु कथा ]

"आजकल सर काफी बदल गए हैं ,नोटिस किया ?"

तीन चार रोलिंग चेयर , कहने वाली की तरफ घूम  गईं  I

"हाँ ss ...मै भी   देख रही हूँ ,पहले तो एक्स रे जैसी  आँखें ,ऊपर से नीचे तक हमें  घूरती  रहती थीं I पर आज कल तो एकदम झुकी रहती हैं Iक्या हो गया मशीन को ?"

"वैरी फनी ,पर सच में यार ,कुछ भी ख़ास पहनो ,बार बार अपने केबिन  में बुला लेते थे  बहाने से "I

"हाँ ss ..  इतना कांशस कर देते थे न कभी कभी , पर अब तो गुड मॉर्निंग का जवाब भी नज़रें नीची कर के देते हैं, चक्कर क्या है…

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Added by pratibha pande on September 20, 2015 at 10:00am — 17 Comments

दही हांडी [लघु कथा ]

"बहुत खुश दिख रहा है ,क्या हुआ रे ?"अपने दस साल के बेटे को नाचते हुए झुग्गी में घुसते  देख उसने पूछा I

"अरे ,मै आज हीरो बन गया I एक बारी में चढ़ के दही हांडी फोड़ दी  ,झक्कास ...सबने कंधे पर उठा लिया था Iखूब मिठाई परसाद मिला है  देखI"

"अरे वाह " उसके सर  के ऊपर से फिराकर माँ नेअपने  माथे के दोनों ओर उंगलियाँ चटका दीं I

"अब अगले साल भी ऐसे ही फोड़ दूंगा ,उसके अगले साल भी और .." ख़ुशी उसके सारे शरीर से फूट रही थी I  माँ को पकड़ कर वो गोल गोल घूमने लगा I

"अरे बाबा हर साल…

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Added by pratibha pande on September 12, 2015 at 11:00pm — 2 Comments

तो क्या ? (लघुकथा) शिक्षक दिवस पर विशेष

"बहू, पेपर पढ़ा आज का ? एक तरफ द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने वाले शिक्षकों के बारे में लिखा है ,वहीँ दूसरी तरफ एक दूसरे गुरूजी  की महिमा मंडिता है I ये महाशय अपने शिष्यों से दूसरों  के खेतों से सब्जी और भुट्टे  चोरी  करवा के मंगवाते हैं " दादाजी भुनभुना रहे थे I

"ये तो कुछ भी नहीं है बाबूजी Iआजकल के टीचर्स के बारे में कितनी बातें पढने में आती हैं ,जिन्हें पढ़कर सिर शर्म से झुक जाता है "बहू ने अपना ज्ञान जोड़ा I

"तो क्या हो गया दादाजी ?"  ये 17..18 वर्ष का पोता थाI

"क्या हो गया…

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Added by pratibha pande on September 5, 2015 at 9:00am — 16 Comments

आश्वासन [लघुकथा]

"मम्मा ,देखो आपके वाइट बाल.. वन ,टू.."  लाड़ से उसके बालों में कंघी करते हुए,  उसकी सात साल की बेटी चिल्लाई I

"मेरे बालों  में दर्द हो रहा है, अब छोड़ " किताब में आँखें  गड़ाए वो बोली I

बिटिया अचानक चुप हो गई थी I कंघी करते हुए हाथ भी रुक गए थे I

"क्या हुआ "? उसने बेटी को आगे खींचते हुए पूछा I

"मम्मा ,जिसके बाल वाइट हो जाते हैं वो ओल्ड हो जाता है ना  ? बंटी की दादी के भी बाल वाइट हैं ,वो अलग कमरे में रहती हैं ,कोई उनके पास भी नहीं जाता I मम्मा क्या आप भी कभी ओल्ड हो…

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Added by pratibha pande on September 1, 2015 at 10:00pm — 14 Comments

इसीलिए फूले फिरते हो [कविता ]

 दुःख से अब तक नहीं मिले हो

इसीलिए फूले फिरते हो I

 

 ज्ञान  ध्यान की बातें सारी 

सुख सुविधा संग लगती प्यारीI

चेहरे पर पुस्तक  चिपकाये

दूजों को ही पाठ पढ़ाये

खुद  उनको तुम सीख न पाए I

खुद को पढ़ना  भूल गए  हो

इसीलिए  फूले फिरते हो I

 

 चीज़ों का बस संचय करना

अलमारी को हर दिन भरना I 

नया जूता जो देता छाला

लगता कितना  पीड़ा वाला I

नंगे पैरों के छालों से

अब तक शायद नहीं मिले…

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Added by pratibha pande on August 30, 2015 at 6:00pm — 9 Comments

फ़ास्ट फॉरवर्ड [लघु कथा ]

"यहाँ आम ,यहाँ अमरुद और वहां पर पपाया के पेड़ लगायेंगे ,ठीक मम्मा ? पेड़ लगाने के लिए उसके दस साल के बेटे का उत्साह फूटा पड़ रहा था I

एक महीने पहले ही वो लोग अपने इस नए बने घर में आये थे Iबगीचे वाले घर का उसका बचपन का सपना अब आकार  ले रहा थाI क्यारियाँ तैयार थीं ,बस पौधे  रोपने थे I

"मम्मा ,अपना बगीचा भी बुआ दादी के बगीचे जैसा बन जायेगा ना एक दिन ?खूब सारे बड़े बड़े पेड़ और ...."I

बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...Iबेटा बहु  ,पोते पोती…

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Added by pratibha pande on August 24, 2015 at 6:30pm — 14 Comments

गुलाबी जिल्द वाली डायरी [कविता ]

वो थी एक डायरी

गुलाबी जिल्द वाली

अन्दर के चिकने पन्ने

खुशनुमा छुअन लिए

मुकम्मल थी एकदम

कुछ खूबसूरत सा

लिखने के लिए I

 

सिल्क की साड़ियों की

तहों के बीच,

अल्मारी में सहेजा था उसे   

उन मेहंदी लगे हाथों ने,  

सेंट की खुशबू

और ज़री की चुभन

 को   करती रही थी वो  जज़्ब,

हर दिन रहता था      

बाहर आने का  इंतज़ार 

अपने चिकने  पन्नों पर

प्यारा सा कुछ

लिखे जाने का इंतज़ार…

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Added by pratibha pande on August 20, 2015 at 5:00pm — 17 Comments

विदाई [लघु कथा ]

"क्या कर रहा है i,बार बार साँस तोड़ कर सुर गड़बड़ा रहा है ..ध्यान कहाँ है तेरा ?"

"जी ,वो रात से घरवाली की हालत बहुत खराब है ,..यहाँ से फारिग हो जाऊं ,और पैसे मिल जाएँ तो अस्पताल ले जाऊं "

"मिल जाएंगे पैसे , करोड़ों की इस शादी का इंतजाम लिया है मैंने ,तू अच्छी शहनाई बजाता है खासकर बिदाई की ,इसलिए तुझे पूरे दो हज़ार दे रहा हूँ एक घंटे के  ,बस 10-15 मिनट में  हो जाएगी बिदाई,  चले जाना "I

उसने शहनाई पर होंठ रखे ही थे कि कंधे पर हाथ महसूस किया ,छोटा भाई था .. बदहवास, चेहरा…

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Added by pratibha pande on August 18, 2015 at 10:30am — 22 Comments

तरक्की [ लघु कथा ]

"'अरे छोरा छोरी आ जाओ  देखो कित्ती सारी चीज़ें मिली हैं आज..."कम्मो भिखारन अपनी जर्जर झुग्गी में कदम रखते हुए चिल्लाई

तीनों बच्चों ने उसे घेर लिया.

"सारा दिन बगल में टीवी देखना है बस्स ..माँ भीख मांगती फिरे ...., वो आज झंडे वाला दिन है ना , देखो क्या क्या मिला है ....लड्डू ,पूड़ी नमकीन ....."कम्मो झोले में से खाने के सामान की छोटी छोटी पौलीथीन की थैलियाँ निकालने  लगी .

कचरे से मिले एंड्राइड फोन के कवर पर हाथ फिराता, बारह साल का पप्पू बोला "अम्मा, तू धीरे धीरे ,एक एक करके…

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Added by pratibha pande on August 12, 2015 at 11:30am — 16 Comments

ट्रॉफी [लघु कथा]

"बधाई कर्नल कपूर i बेटे ने नाम रौशन कर दिया " कमांडेंट साहब ने गर्म जोशी से कर्नल से हाथ मिलाते  हुए कहा

 

"थैंक्यू सर "

 

आकाश देख रहा था अपने पिता को जो गर्व से फूले फिर रहे थे अपने ऑफिसर्स दोस्तों के बीच और सबकी बधाइयाँ ले रहे थे

 

उसके  काव्य संकलन को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला था ,हफ्ते भर से टीवी ,अखबारों में उसी के चर्चे थे

 

वो सोचने लगा .. ,' उसके जैसा  नाकारा बेटा जो आर्मी में नहीं गया ,  जिसने हिंदी साहित्य विषय चुना  और…

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Added by pratibha pande on August 9, 2015 at 1:30pm — 10 Comments

रंगीन छाता (लघुकथा)

"बेटा आज  तेरा जन्म दिन है ..मंदिर में पूजा करनी है , बाहर बूंदाबांदी है ..गाड़ी में मंदिर ले चलेगा ?" उसने कमरे के बाहर  से ही पूछा

"माँ i  जनम दिन भागा नहीं जा रहा है कहीं .. सोने दो , आज सन्डे है ...और आप भी ये खाली पेट  पूजा का नाटक छोड़ दो "

पीछे से बहू के भुनभुनाने की आवाज़ भी उसने साफ़ सुन ली थी

वो चुपचाप बाहर आ गई ,गाल में ढुलक आये आंसूओं को  उसने जल्दी से पोंछा और छाता ढूँढने  लगी

"चलो दादी मै चलता हूँ ,छाता भी है मेरे पास " अपना रंग बिरंगा बच्चों वाला छाता…

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Added by pratibha pande on August 5, 2015 at 12:30pm — 15 Comments

भूत [ कविता ]

क्यों तू बात नहीं करता

उस  नीम के पेड़ की?

जिसके भूत की बातों से,

बचपन में मुझे डराता था

और फिर मजे लेकर

मेरी हंसी उडाता  थाI

 

उस कुँए की भी तू

अब बात नहीं करता ,

जिसमे पत्थर फेंक

हम दोनों चिल्लाते थे ,

फिर कुँए के भूत भी

पलटकर आवाज़ लगाते थेI

 

उन इस्माइल चाचा का भी

जिक्र    तू टालता है

जिनके बाग़ से कच्चे 

अमरुद खाते थे और  

वो कितना चिल्लाते थे, 

पर रात को पके…

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Added by pratibha pande on August 2, 2015 at 11:08pm — 12 Comments

सूर्य नमस्कार (लघुकथा)

पांच दिनों की लगातार बारिश के बाद कल शाम से आसमान साफ़ है और आज सुबह से सूरज खिला है 

जॉगर्स पार्क में आज रौनक है I पार्क का योगा हॉल ' हा हा  हो हो ' से गूँज रहा है , एक तरफ खुल कर हंसने की  और दूसरी तरफ सूर्य नमस्कार की कवायद  जारी हैI

बुधवा ने अपनी झुग्गी से बाहर निकल कर आसमान की तरफ देखाऔर चिल्लाया 

"अरे अम्मा i  सूरज देवता आय गए हैं , परेसान मत हो  , आज तो दिहाड़ी मिल ही जाएगी , रासन भी ले आऊँगा और तेरी दवाई भी "

उसका मन किया झुग्गी  के बाहर भरे पानी…

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Added by pratibha pande on July 31, 2015 at 10:00am — 4 Comments

आशा का लाभ (लघुकथा)

बर्न वार्ड के बाहर भैंसे  पर सवार यमराज खड़े थे 

" प्रभु क्या सोच रहे हैं ? जल्दी प्राण हरिये और चलिए I आप तो मेरे ऊपर सवार घंटे भर से उस स्त्री को देखे जा रहे हैं,मेरी पीठ की दशा का भी कुछ ध्यान है ?"

"इस पुरुष ने अपनी पत्नी को जलाने का प्रयास किया और स्वयं जल गया I और ये स्त्री ,अपने सारे गहने बेच कर इसका इलाज करवा रही है, देखो कैसे बदहवास बाहर खड़ी रोये जा रही है Iमैं सोच रहा हूँ पुत्र ..............."

"कि इसके प्राण छोड़ दूं .,यही ना प्रभु ?और ये पुरुष ठीक होकर फिर से…

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Added by pratibha pande on July 28, 2015 at 9:30am — 22 Comments

बाँझ [लघुकथा]

"रिपोर्ट्स  आ गईं  बहू ?''

"जी "

"इतना परेशान होने की ज़रुरत नहीं है I चार साल  ही तो हुए हैं शादी को I  लग कर इलाज करवाना , सब ठीक होगा I  नारी  की पूर्णता माँ बनने में ही है ,   ऐसी  दकियानूसी  बातें  मत सोचना I  तुम्हे  एक  मॉर्डन सास मिली है , भाग्यशाली हो तुम "I

"पर मेरी सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल है , प्रॉब्लम इनकी रिपोर्ट्स में है "I

"क्या ? इसने भी करवाया था टेस्ट ?"

"हाँ , और  मै  भी  इन्हें ये ही समझा रही थी  कि  सब ठीक हो जायगा I  और ये भी समझाया कि…

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Added by pratibha pande on July 20, 2015 at 5:30pm — 20 Comments

वो खोया बच्चा

घर  से  बाहर  जिसे  मैं ,

दर दर  ढूँढता  फिरा 

वो  बच्चा,

 मेरे  ही घर में  छिपकर 

मेरी  बौखलाहट पे ,

हँसता   रहा I

मै रहा  देहरियाँ  चूमता ,

मज्जिद  बुतखाने  की

मेरे दर पे बैठा वो ,

राह तकता  रहा 

मेरे  घर  लौट  आने की I

ढली  शाम ,  खाली   हाथ 

अब मैं  हूँ  लौट आया ,

किया  ढूँढने में  जिसे  

सारा  दिन जाया 

हाय , घर के अन्दर उसे

 मुस्कुराते पाया…

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Added by pratibha pande on July 14, 2015 at 11:30am — 14 Comments

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