2122 2122
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पाप का अवसान मागूँ
पुण्य का उत्थान मागूँ
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सत्य की लम्बी उमर हो
झूठ को विषपान मागूँ
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व्यर्थ है आकाश होना
सिर्फ लधु पहचान मागूँ
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राजपथ की राह नीरस
पथ सदा अनजान मागूँ
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स्वर्ण देने की न सोचो
मैं तो बस खलिहान मागूँ
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कोयलों का वंश फूले
आज यह वरदान मागूँ
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साथ ही पर काक के हित
इक मधुर सा गान मागूँ
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मिल गए नवरात …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2015 at 11:31am — 26 Comments
2122 2122 212
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दोष ऐसा आ गया अब शील में
फासले कदमों के बदले मील में
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भर लिया तम से मनों को इस कदर
रोशनी भी कम लगे कंदील में
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देह होकर देह सा रहते नहीं
टाँगते खुद को वसन से कील में
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युग नया है रीत भी इसकी नई
आचरण से ध्यान जादा डील में / डील-दैहिक विस्तार
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अब बचे पावन न रिश्ते दोस्तो
तत तक बदले है खुद को चील में
***
भय सताता क्या …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 7:00am — 25 Comments
1222 1222 1222 1222
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बुरे की कर बुराई अब (बुरे को अब बुरा कह कर) बुराई कौन लेता है
यहाँ रूतबे के लोगों से सफाई कौन लेता है
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हँसी अती है लोगों को किसी की आँख नम हो तो
किसी की पीर हरने को बिवाई कौन लेता है
***
सभी हम्माम में नंगे किसे क्या फर्क पड़ता अब
जमाना भी न देखे जगहॅसाई कौन लेता है
***
मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब
सच्चाई …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2015 at 11:00am — 18 Comments
2122 2122 2122
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डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1
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एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब
चाँद से कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2
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थी कभी मैंने लगायी बोलियाँ भी
मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3
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आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए /4
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कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको
बाँधने सब दौड़ कर नित पास आए /5
रास आया है मुझे जब आज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments
1212 1122 1212 22
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किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती
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बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
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बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती
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चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
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बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
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कोशिशें पुरखों की यारों बेअसर मत कीजिए
नफरतों को फिर दिलों का यूँ सदर मत कीजिए
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मिट गये ये तो नरक सी जिंदगी हो जाएगी
प्यार को सौहार्द को यूँ दरबदर मत कीजिए
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कर रहे हो कत्ल काफिर बोलकर मासूम तक
नाम लेकर धर्म का ऐसा कहर मत कीजिए
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वो शहीदी कैसे जिनसे है फसादों की फसल
उनको ये इतिहास में लिख के अमर मत कीजिए
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दुश्मनी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:34pm — 22 Comments
2122 2122 2122 2122
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मन किसी अंधे कुए में नित वफ़ा को ढूँढता है
जबकि तन लेकर हवस को रात दिन बस भागता है
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तार कर इज्जत सितारे घूमते बेखौफ होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है
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जिंदगी भर यूँ अदावत खूब की तूने सभी से
मौत के पल मिन्नतें कर राह में क्यों रोकता है
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जाँच को फिर से बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव की मौजूदगी में दर्द …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 11:14am — 28 Comments
2122 1221 2212
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रूह प्यासी बहुत घट ये आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो
रूख से जुल्फें हटा चाँदनी रात में
चाँद को आह भरने का मौका न दो
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
सात फेरों की रस्में निभाओ मगर
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो
चाहिए अब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:00am — 10 Comments
२१२२ २१२२२ २१२
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हो गया है सत्य भी मुँहचौर क्या
या दिया हमने ही उसको कौर क्या
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कालिखें पगपग बिछी हैं निर्धनी
तब बताओ भाग्य होगा गौर क्या
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मार डालेगा मनुजता को अभी
जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या
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हैं परेशाँ आप भी मेरी तरह
धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या
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फूँक दे यूँ शूल जिनके घाव को
मायने रखता है उनको धौर क्या
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प्यार माथे का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 11:46am — 20 Comments
2122 2122 212
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बस गया है लाल बाहर क्या करे
हो गया है खेत बंजर क्या करे
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एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई
काटने को दौड़ता घर क्या करे
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चाँद लौटेगा नहीं अब, है पता
रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे
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ठोकरें खाना खिलाना भाग्य में
राह का टूटा वो पत्थर क्या करे
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रीत तो थी, जिंदगी भर साथ की
दे गया धोखा जो सहचर क्या करे
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हाथ आयी करवटों की बेबसी
मखमली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:26am — 14 Comments
2122 1221 2212
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चाँद आशिक तो सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ
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बोलने जब लगी रात खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ
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मिल भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच मझधार में यूँ नहाना हुआ
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जब पिघलने लगे ठूँठ बरसात में
घाव अपना भी ताजा पुराना हुआ
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देख खुशियाँ किसी की न आँसू बहे
दर्द अपना भी शायद सयाना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2015 at 12:30pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
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अजनवी सी सभ्यता के बीज बोकर रह गए
सोचकर अपना, किसी का बोझ ढोकर रह गए
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वक्त सोने के जगा करते हैं देखो यार हम
जागने के वक्त लेकिन रोज सोकर रह गए
***
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए
***
कसमसाकर दिल जो खोले है पुरानी पोटली
याद कर बचपन को यारो नैन रोकर रह गए
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मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2015 at 11:11am — 18 Comments
2122 2122 2122 212
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चाँद देता है दिलासा कह पुरानी उक्तियाँ
पतझड़ों में गीत उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/
कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में
फिर उदासी से निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/
स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में
बीच रिश्तों के रहेंगी तब न ऐसी सर्दियाँ /3/
सिर रखेगा फिर से यारो सूने दामन में कोई
आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/
डस रहा है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:05am — 18 Comments
2122 2122 2122
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जिंदगी का नाम चलना, चल मुसाफिर
जैसे नदिया चल रही अविरल मुसाफिर /1
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दे न पायें शूल पथ के अश्रु तुझको
जब है चलना, मुस्कुराकर चल मुसाफिर /2
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फिक्र मत कर खोज लेंगे पाँव खुद ही
हर कठिन होते सफर का हल मुसाफिर /3
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मानता हूँ आचरण हो यूँ सरल पर
राह में मुश्किल खड़ी तो, छल मुसाफिर /4
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रात का आँचल जो फैला है गगन तक
इस तमस में दीप बनकर जल मुसाफिर /5
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2014 at 12:30pm — 12 Comments
2122 2122 2122 212
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प्यार को साधो अगर तो जिंदगी हो जाएगी
गर रखो बैशाखियों सा बेबसी हो जाएगी /1
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बात कड़वी प्यार से कह दोस्ती हो जाएगी
तल्ख लहजे से कहेगा दुश्मनी हो जाएगी /2
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फिर घटा छाने लगी है दूर नभ में इसलिए
सूखती हर डाल यारो फिर हरी हो जाएगी /3
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मौत तय है तो न डर, लड़, हर मुसीबत से मनुज
भागना तो इक तरह से खुदकुशी हो जाएगी /4
***
मन मिले तो पास में सब, हैं दरारें कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2014 at 11:05am — 17 Comments
2122 2122 2122 212
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दिल हमारा तो नहीं था आशियाने के लिए
फिर कहाँ से आ गये दुख घर बसाने के लिए
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हम ने सोचा था कि होंगी महफिलों में रंगतें
पर मिली वो ही उदासी जी दुखाने के लिए
***
था सुना हमने बुजुर्गो से कि कातिल नफरतें
प्यार भी जरिया बना पर खूँ बहाने के लिए
***
जब सभल जाएगा तुझको पीर देगा अनगिनत
हो रहा बेचैन तू भी किस जमाने के लिए
***
जब बहाने थे नये तो दिल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:48am — 14 Comments
2122 2122 2122 2122
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हौसला देते न जो ये पाँव के छाले सफर में
हर सफर घबरा के यारो, छोड़ आते हम अधर में
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एक भटकन है जो सबको, न्योत लाती है यहाँ तक
कौन आता है स्वयं ही, यार दुख के इस नगर में
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एक वो है पालती जो, काजलों के साथ आँसू
कौन रख पाता भला अब, सौतने दो एक घर में
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आशिकी की इंतहाँ ये, खुदकुशी का शौक मत कह
हॅसते-हॅसते डाल दी जो किश्तियाँ उसने भवर में
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खो गया चंचलपना सब,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
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रहे अरमाँ अधूरे जो, लगे मन को सताने फिर
चला है चाँद दरिया में हटा घूँघट नहाने फिर /1/
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नसीहत सब को दें चाहे बताकर दिन पुराने फिर
नजारा छुप के पर्दे में मगर लेंगे सयाने फिर /2/
***
उन्हें मौका मिला है तो, करेंगे हसरतें पूरी
सितारे नीर भरने के गढे़ंगे कुछ बहाने फिर /3/
***
छुपा सकता नहीं कुछ भी खुदा से जब करम अपने
रखूँ मैं किस से पर्दा तब बता तू ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2014 at 10:30am — 8 Comments
2222 2222 2222 222
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रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
2122 2122 2122
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सिंधु मथते कर पड़ा छाला हमारे
हाथ आया विष भरा प्याला हमारे
***
धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों
देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे
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भाग्य सुख को ले चला जाने कहाँ फिर
डाल कर यूँ द्वार पर ताला हमारे
***
हर तरफ फैले हुए हैं दुख के बंजर
खेत सुख के पड़ गया पाला हमारे
***
राह देखी सूर्य की भर रात हमने
इसलिए तन पर लगा काला…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2014 at 11:14am — 10 Comments
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