सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?
आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ;
पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ?
लिखते…
Added by shikha kaushik on September 4, 2012 at 3:00pm — 15 Comments
ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं;
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; (१)
फिर कहानी सुनाओ वही मुझको माँ,
चाँद की रौशनी, बादलों की ज़मीं; (२)
वक़्त की मार ने सब भुला ही दिया,
आसमां ख़ाब का, हसरतों की ज़मीं; (३)
जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४)
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी,
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५)
गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी,
बन गई आज ये असलहों…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 3, 2012 at 3:00am — 32 Comments
मर्यादित आचरण ही,सद्चरित्र व्यवहार,
सद्चरित्र व्यवहार से,हो दर्शन करतार //
कर दर्शन करतार के, सदाचार सोपान,
सदाचार सोपान से, होगा बेडा पार //
होगा बेडा पार तब,परहित तेरे कर्म,
परहित तेरे कर्म हो, उसेही मनो धर्म //
पुरुषोत्तमश्री राम का, है मर्यादित चरित्र,
अनुशासित नित्कर्म, है आचरण पवित्र //
जीवन दर्शन तत्व को,कृष्ण ही समझाय
युक्ति संगत करम को, कर्मयोगी बतलाय //
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:30am — 16 Comments
जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?
मैं जब सोचती हूँ तुम्हें
और खोती हूँ ,
तुम्हारे ख्यालों में ,
सपने सजाती हूँ नयनों में ,
और मुझे बहुत दूर जहाँ
के पार ले जाते है मेरे सपने
वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास
मैं नहीं खोलती अपना मुंह
फिर भी मैं बतयाती हूँ
फूलों से,तितलियों से, बहारों से
और तुमसे .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती…
Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments
जिंदगी एक रेल होती है
ये न समझो कि खेल होती है।
जिंदगी का सफर बहुत लम्बा,
रूक गये तो ये फेल होती है।
वो जहाँ चाहे मोड दे हमको,
हाथ उसके नकेल होती है।
आजकल जिंदगी की भागमभाग,
पानी कम ज्यादा तेल होती है।
आज कानून ही बदल गया है,
बोल दो सच तो जेल होती है।
अब तो राशन की लाइने या सडक,
हर जगह धक्का पेल होती है।।।।
सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 11:00pm — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 1:02pm — 7 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:30am — 17 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:41am — 10 Comments
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 27, 2012 at 3:00pm — 26 Comments
सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!
धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!
संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!
संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!
जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!
परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!
तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!
पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!
सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!
सो…
Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 10:04pm — 5 Comments
नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय,
सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय.
मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई.
तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई.
'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू.
नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 22, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
********************
तुम हकीकत हो
या ख़्वाब?
बतादो ना.
अरज है मेरी
ज़नाब
बतादो ना.
तुम्हारे ही ख़्वाबों में
मैं जीता हूँ,तुम्हारी आँखों से ही
मैं पीता हूँ.
तुम अमृत हो
या शराब ?
बतादो ना.
अपनी जिंदगी का अक्स
तुम्हीं में देखता हूँ,
अपनी जिंदगी के मायने
तुम्हीं में पढता हूँ.
तुम आईना हो
या किताब?
बतादो ना.
जिंदगी के समंदर का
ज्वार भी तुम हो,
मेरी कश्ती और
पतवार भी तुम हो.
तुम सवाल हो
या…
Added by अशोक पुनमिया on August 20, 2012 at 2:55pm — 11 Comments
कवि तेरे भी
कवि तेरे भी मन में
कोई तो विरहिणी
रहती है
श्वेत शीत पड़ी
किरण देह सी…
Added by राजेश 'मृदु' on August 14, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
जो कह गए शहीद, चलो उसको दुहराएँ |
आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||
है दिन जिसको वीर, जीत कर के लाए थे,
चट्टानों को चीर, मौत से टकराए थे |
कर लें उनको याद, जिन्होंने शीश कटाए,
आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 11, 2012 at 8:21am — 8 Comments
घनाक्षरी :
शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 2:00am — 15 Comments
मित्रों, एक ताज़ा ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है ....
जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे
क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे
खेत के पार जब कारखाने लगे
गाँव के सारे बच्चे कमाने…
Added by वीनस केसरी on August 12, 2012 at 11:30pm — 10 Comments
कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ
व्रत ले शुभ सब -नैना तरसें और नहीं तरसाओ
जाल –जंजाल- काल सब काटे बन्दी गृह में आओ…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 10, 2012 at 8:00am — 10 Comments
सारे रिश्ते देह के, मन का केवल यार
यारी जब से हो गई , जीवन है गुलज़ार
मन ने मन से कर लिया आजीवन अनुबन्ध
तेरी मेरी मित्रता स्नेहसिक्त सम्बन्ध
मित्र सरीखा कौन है, इस…
Added by Albela Khatri on August 5, 2012 at 1:00pm — 38 Comments
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |