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हे मनुज! तुम दिया बनो

हे मनुज! तुम दिया बनो
वो दिया...जो जलता है
प्रकाश के लिए, 
नवनिर्माण के लिए,
भटके को राह दिखाने के लिए,
प्रभु की आराधना के लिए,
हे आर्य! आत्मसात कर लो
इसके गुणों को,
अपना लो इसका स्वभाव,
प्रतीक बनो क्रांति के आगमन का,
सूचक हो परिवर्तन का,
मिटा…
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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2012 at 10:00pm — 12 Comments

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

 

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

 

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

 

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

 

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 3, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

समस्त ओबीओ परिवार की ओर से आप सभी को श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई !

 

कह-मुकरी

मन-मोहक मृदु रूप में आये.

सजे कलाई अति मन भाये.

नेह-प्रीति की वह है साखी.

क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!

 

रूपमाला/मदन छंद

आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार. 

थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.

बादलों से…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:30pm — 32 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रक्षा बंधन - स्मृतियाँ



राह तकती है तुम्हारी,

आज यह सूनी कलाई....

स्मृति बस स्मृति ही ,

शेष है सूने नयन में

बिम्ब दिखता है तुम्हारा,

आज मधु मंजुल सुमन में

यूँ लगा कि द्वार खुलते

ही मुझे दोगी दिखाई

राह तकती है तुम्हारी

आज यह सूनी कलाई.........................

आरती की थाल कर में

दीप आशा का जलाये

इस धरा पर कौन है जो

नेह की सरिता लुटाये

श्रावणी वर्षा हृदय में

आज मेरे है समाई

राह तकती है तुम्हारी

आज यह सूनी…

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Added by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 1:18pm — 21 Comments

राखी .

मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी

न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .

 

जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;

उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .

 

बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;

भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .

 

सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का…

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Added by DEEP ZIRVI on July 27, 2012 at 7:00pm — 1 Comment

रक्षा-बन्धन के दोहे........



सभी भाइयों और सभी बहनों को  अलबेला खत्री  की ओर से राखी के त्यौहार पर 

लाख लाख बधाइयां और अभिनन्दन !



अधरों पर मुस्कान है, आँखों में उन्माद

रक्षा बन्धन आ गया, लेकर नव आह्लाद



आजा बहना बाँध दे, लाल गुलाबी  डोर

तिलक लगा कर पेश कर, मुँह में मीठा कोर…



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Added by Albela Khatri on August 1, 2012 at 9:47pm — 31 Comments

किताबें

"किताबें "

 

किताबें

खटखटा रही हैं

दरवाजे दिमाग के

लायी हैं कुछ

सवाल कुछ जबाब

छू रहीं है

दिल को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:13pm — 5 Comments

पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित दोहे

वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार.

हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..

 

नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर दे दें ध्यान.  

कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान..…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on July 26, 2012 at 12:00am — 35 Comments

सावन का सवैया

सावन का सवैया

(प्रस्तुत रचना "सिंहावलोकन सवैया" में रचित है,जिसे सवैया के सभी प्रकारों में लिखा जा सकता है(मेरी रचना मदिरा सवैय पर आधारित है)।सिंहावलोकन सवैया जिन वर्णों और शब्दों से प्रारम्भ किया जाता है,उसी पर अन्त भी किया जाता है।चरणान्त के शब्द चरण के आगे के शब्द होते हैं।)

*****************************

सावन में गरजे बदरा,

मन मोर नचै वन कानन में।

कानन में मनमोह छटा,

घनघोर घटा घिरि गागन में॥

गागन में चमके बिजुरी,

सिकुरी सुनरी निज आंगन में।

आंगन… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 9:47pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वक़्त (कुछ दोहे)

वक़्त (कुछ दोहे)

**************************************************
वक़्त चिरैया उड़ रही , नित्य क्षितिज के पार l 
राग सुरीले छेड़ती , अपने पंख पसार ll
**************************************************
वक़्त परिंदा बाँध ले , बन्ध न ऐसो कोय l
थाम इसे जो उढ़ चले , जीत उसी की होय ll
**************************************************
बीते पल की थाप पर , मूरख नीर बहाय l
खुशियों को ढूँढा…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 10:00am — 30 Comments

श्रावणी हाइकू.

फिर लो आया

झीनी फुहारें लाया

सावन आया.

:

लो फूल खिले

कलियाँ भी…

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Added by Ashok Kumar Raktale on July 23, 2012 at 2:09pm — 6 Comments

गजल

छोड़ देना मत मुझे मेरे खुदा मझधार में.

सर झुकाए हूँ खडा मैं तेरे ही दरबार में.

राह में बिकते खड़े हैं मुल्क के सब रहनुमा,

रोज ही तो देखते हैं चित्र हम अखबार में.

देश की गलियाँ जनाना आबरू की कब्रगाह,

इक इशारा है बहुत क्या क्या कहें…

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Added by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:00pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
प्रीत के उपहार

प्रीत के उपहार

छंद रूपमाला (१४ +१० ) अंत गुरु-लघु ,समतुकांत
*****************************************************
झनक झन झांझर झनकती , छेड़ एक मल्हार .
खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार .
फहर फर फर आज आँचल , प्रीत का इज़हार .
बावरा मन थिरक चँचल , साजना अभिसार .
*****************************************************
धडकनें मदहोश पागल , नयन छलके…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments

जो लिक्खेंगे ज़माने से कभी हट कर न लिक्खेंगे....

तुम्हारी हक़ बयानी को कभी डर कर न लिक्खेंगे ...

कि आईने को हरगिज़ हम कभी पत्थर न लिक्खेंगे...



रहे इश्को वफ़ा में ये तो सब होता ही रहता है..

तुम्हारी आज़माइश को कभी ठोकर न लिक्खेंगे....



भरोसा क्या कहीं भी ज़ख्म दे सकता है हस्ती को........

हम अपने दुश्मने जां को कभी दिलबर न लिक्खेंगे.....



तू क़ैदी घर का है, हम तो मुसाफिर दस्तो सहरा के....

कहाँ हम और कहाँ तू हम तुझे हमसर न लिक्खेंगे.....



उड़ानों से हदें होती है कायम हर परिंदे कि…

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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 18, 2012 at 9:00am — 6 Comments

नाखून

कभी अपने नाखून देखे हैं

अपने अल्फाजों के नाखून

हाँ यही बहुत पैने हैं तीखे हैं

चुभते हैं

ज़रा तराश लो इन्हें

इनकी खरोंचों से चुभन होती है

ये विदीर्ण कर जाते हैं

मेरे मोम से कोमल ह्रदय को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 2:59pm — 9 Comments

“जिन्दगी का गीत”

रास्तों में मुश्किलें हैं आज इनसे होड़ ले.

जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा के दौड़ ले.

 

मंजिलें अलग-अलग हैं रास्ते जुदा-जुदा, 

गर तू पीछे रह गया तो साथ देगा क्या खुदा,

हिम्मतों  से काम लेके रुख हवा का मोड़ ले.

जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 1:00am — 32 Comments

प्राण प्रिये

वेदना संवेदना अपाटव कपट

को त्याग बढ़ चली हूँ मैं

हर तिमिर की आहटों का पथ

बदल अब ना रुकी हूँ मैं

साथ दो न प्राण लो अब

चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।



निश्चल हृदय की वेदना को

छुपते हुए क्यों ले चली मैं

प्राण ये चंचल अलौकिक

सोचते तुझको प्रतिदिन

आह विरह का त्यजन कर

चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।



अपरिमित अजेय का पल

मृदुल मन में ले चली मैं

तुम हो दीपक जलो प्रतिपल

प्रकाश गौरव  बन चलो अब

चलने दो मुझे ओ प्राण…

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Added by deepti sharma on July 5, 2012 at 1:00am — 49 Comments

वो बच्चा...

वो बच्चा

बीनता कचरा

कूड़े के ढेर से

लादे पीठ पर बोरी;

फटी निकर में

बदन उघारे,

सूखे-भूरे बाल

बेतरतीब,

रुखी त्वचा

सनी धूल-मिटटी से,

पतली उँगलियाँ

निकला पेट;

भिनभिनाती मक्खियाँ

घूमते आवारा कुत्ते

सबके बीच

मशगूल अपने काम में,

कोई घृणा नहीं

कोई उद्वेग नहीं

चित्त शांत

निर्विचार, स्थिर;

कदाचित

मान लिया खुद को भी

उसी का एक हिस्सा

रोज का किस्सा,

चीजें अपने मतलब की

डाल बोरी में

चल पड़ता…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 9:24am — 20 Comments

उगता सूरज -धुंध में

उगता सूरज -धुंध में

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कर्म फल -गीता

क्रिया -प्रतिक्रिया

न्यूटन के नियम

आर्किमिडीज के सिद्धांत

पढ़ते-डूबते-उतराते

हवा में कलाबाजियां खाते

नैनो टेक्नोलोजी में

खोजता था -नौ ग्रह से आगे

नए ग्रह की खोज में जहां

हम अपने वर्चस्व को

अपने मूल को -बीज को

सांस्कृतिक धरोहर को

किसी कोष में रख

बचा लेंगे सब -क्योंकि

यहाँ तो उथल -पुथल है

उहापोह है ...

सब कुछ बदल डालने की

होड़ है -कुरीतियाँ… Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 16, 2012 at 1:01pm — 39 Comments

सानिध्य में सुदूर

 

      सानिध्य में सुदूर हर बात से मजबूर 

      सजग चिंतित, विराग अनुराग !

      प्रतिकूल  मंचन, मुलाक़ात सज्जन 

      फिर वहीँ आचार विचार संचन !

      दिशाहीन नाव, अथाह सागर 

      मस्ती तूफ़ान ज्यों यादगार मगर !

      अद्वैत, असहाय , निरुपाय 

      कुमकुम  की कली तेज धुप अलसाय !

      मधुर मिलन फिर वही चिंतन 

      अनुराग अपार तेजधार बहाव !

      धूमिल क्षितिज , कलरव 

      अभिनव राग हज़ार बार !

      हरित निष्प्राण मंद वायु यार

 …

Continue

Added by Raj Tomar on June 20, 2012 at 10:58pm — 12 Comments

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