Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2012 at 10:00pm — 12 Comments
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 3, 2012 at 5:00pm — 15 Comments
कह-मुकरी
मन-मोहक मृदु रूप में आये.
सजे कलाई अति मन भाये.
नेह-प्रीति की वह है साखी.
क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!
रूपमाला/मदन छंद
आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार.
थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.
बादलों से…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:30pm — 32 Comments
राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....
स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................
आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी…
Added by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 1:18pm — 21 Comments
मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी
न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .
जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;
उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .
बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;
भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .
सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का…
ContinueAdded by DEEP ZIRVI on July 27, 2012 at 7:00pm — 1 Comment
सभी भाइयों और सभी बहनों को अलबेला खत्री की ओर से राखी के त्यौहार पर
लाख लाख बधाइयां और अभिनन्दन !
अधरों पर मुस्कान है, आँखों में उन्माद
रक्षा बन्धन आ गया, लेकर नव आह्लाद
आजा बहना बाँध दे, लाल गुलाबी डोर
तिलक लगा कर पेश कर, मुँह में मीठा कोर…
Added by Albela Khatri on August 1, 2012 at 9:47pm — 31 Comments
"किताबें "
किताबें
खटखटा रही हैं
दरवाजे दिमाग के
लायी हैं कुछ
सवाल कुछ जबाब
छू रहीं है
दिल को…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:13pm — 5 Comments
वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार.
हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..
नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर दे दें ध्यान.
कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान..…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 26, 2012 at 12:00am — 35 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 9:47pm — 5 Comments
वक़्त (कुछ दोहे)
Added by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 10:00am — 30 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on July 23, 2012 at 2:09pm — 6 Comments
छोड़ देना मत मुझे मेरे खुदा मझधार में.
सर झुकाए हूँ खडा मैं तेरे ही दरबार में.
राह में बिकते खड़े हैं मुल्क के सब रहनुमा,
रोज ही तो देखते हैं चित्र हम अखबार में.
देश की गलियाँ जनाना आबरू की कब्रगाह,
इक इशारा है बहुत क्या क्या कहें…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:00pm — 7 Comments
प्रीत के उपहार
Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments
तुम्हारी हक़ बयानी को कभी डर कर न लिक्खेंगे ...
कि आईने को हरगिज़ हम कभी पत्थर न लिक्खेंगे...
रहे इश्को वफ़ा में ये तो सब होता ही रहता है..
तुम्हारी आज़माइश को कभी ठोकर न लिक्खेंगे....
भरोसा क्या कहीं भी ज़ख्म दे सकता है हस्ती को........
हम अपने दुश्मने जां को कभी दिलबर न लिक्खेंगे.....
तू क़ैदी घर का है, हम तो मुसाफिर दस्तो सहरा के....
कहाँ हम और कहाँ तू हम तुझे हमसर न लिक्खेंगे.....
उड़ानों से हदें होती है कायम हर परिंदे कि…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 18, 2012 at 9:00am — 6 Comments
कभी अपने नाखून देखे हैं
अपने अल्फाजों के नाखून
हाँ यही बहुत पैने हैं तीखे हैं
चुभते हैं
ज़रा तराश लो इन्हें
इनकी खरोंचों से चुभन होती है
ये विदीर्ण कर जाते हैं
मेरे मोम से कोमल ह्रदय को…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 2:59pm — 9 Comments
रास्तों में मुश्किलें हैं आज इनसे होड़ ले.
जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा के दौड़ ले.
मंजिलें अलग-अलग हैं रास्ते जुदा-जुदा,
गर तू पीछे रह गया तो साथ देगा क्या खुदा,
हिम्मतों से काम लेके रुख हवा का मोड़ ले.
जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 1:00am — 32 Comments
वेदना संवेदना अपाटव कपट
को त्याग बढ़ चली हूँ मैं
हर तिमिर की आहटों का पथ
बदल अब ना रुकी हूँ मैं
साथ दो न प्राण लो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
निश्चल हृदय की वेदना को
छुपते हुए क्यों ले चली मैं
प्राण ये चंचल अलौकिक
सोचते तुझको प्रतिदिन
आह विरह का त्यजन कर
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश गौरव बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण…
Added by deepti sharma on July 5, 2012 at 1:00am — 49 Comments
वो बच्चा
बीनता कचरा
कूड़े के ढेर से
लादे पीठ पर बोरी;
फटी निकर में
बदन उघारे,
सूखे-भूरे बाल
बेतरतीब,
रुखी त्वचा
सनी धूल-मिटटी से,
पतली उँगलियाँ
निकला पेट;
भिनभिनाती मक्खियाँ
घूमते आवारा कुत्ते
सबके बीच
मशगूल अपने काम में,
कोई घृणा नहीं
कोई उद्वेग नहीं
चित्त शांत
निर्विचार, स्थिर;
कदाचित
मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा
रोज का किस्सा,
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में
चल पड़ता…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 9:24am — 20 Comments
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 16, 2012 at 1:01pm — 39 Comments
सानिध्य में सुदूर हर बात से मजबूर
सजग चिंतित, विराग अनुराग !
प्रतिकूल मंचन, मुलाक़ात सज्जन
फिर वहीँ आचार विचार संचन !
दिशाहीन नाव, अथाह सागर
मस्ती तूफ़ान ज्यों यादगार मगर !
अद्वैत, असहाय , निरुपाय
कुमकुम की कली तेज धुप अलसाय !
मधुर मिलन फिर वही चिंतन
अनुराग अपार तेजधार बहाव !
धूमिल क्षितिज , कलरव
अभिनव राग हज़ार बार !
हरित निष्प्राण मंद वायु यार
…
Added by Raj Tomar on June 20, 2012 at 10:58pm — 12 Comments
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