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Rahila's Blog (78)

मोह(लघुकथा)राहिला

वह सात दिन लगातार चलते हुए आखिर अपने घर तक पहुँच ही गयी।लेकिन अपने घास पूस के टपरे में कदम रखने से पहले ही उसकी हिम्मत जबाब दे गयी और वह धम्म में जमीन पर ऐसी गिरी की लाख कोशिशों के बाद भी उठ ना सकी।आज ही के दिन उसके घर वालो ने उसे गैरों के हवाले किया था।पूरे रस्ते वह कितना रोई ।उस जैसी कई थी उस गाड़ी में ,श्यामा भी।

"बस कर गौरा!मत रो.., जब अपनों ने ही अपना नहीं समझा तो किस की जान को रो रही हो।"

"तू बता श्यामा!क्या ये अन्याय नहीं है?जिस उम्र में हमें उन की,अपने घर की, सबसे ज्यादा…

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Added by Rahila on September 3, 2016 at 9:35am — 21 Comments

रामभरोसे (लघुकथा)राहिला

"अरे अब चुप भी हो जा।लड़के के नम्बर तेरे नाराज़ होने से बढ़ नहीं जायेंगे।जैसे तू डाक्टर बन गया ,वो भी बन जायेगा।सीटें तो मिलनी ही हैं वो कहाँ जाएँगी।"

"आप उसे बढ़ावा ना दें पिताजी!"

"अरे भई!मैं उसे कोई बढ़ावा नहीं दे रहा।बस,तू अब ये किच-किच बंद कर।मेरी तबियत वैसे भी सुबह से कुछ ठीक नहीं हैं।कह कर वो धम्मसे सौफे पर गिर गए और पसीने - पसीने हो गए।

"क्या हुआ आपको? "घबराकर राजेश ने उन्हें सम्हाला।लेकिन जल्दी ही एक हृदय रोग विशेषज्ञ होने के नाते उसे समझते देर ना लगी ,मामला हृदयघात का… Continue

Added by Rahila on August 23, 2016 at 1:30pm — 4 Comments

टीस(लघुकथा)राहिला

"अब आप रंज ना करें महात्मा जी!ऐसे भविष्य का भान आपको ही क्या ,किसी को ना था ।हमने तो सुनहरे भारत का सपना संजोया था।अब यूँ रंजीदा होने से क्या हासिल।"

"रंज, बहुत छोटा शब्द है पटेल साहब!हम सब ने अपने वतन की एकता को लाखों के खून से सींचा था ।और आज उस वृक्ष के अस्तित्व के नाम पर सिर्फ यहाँ समृति चिन्ह नजर आ रहा है।"

"आपको क्या लगता है , क्या हमने अपना प्यारा वतन गलत हाथों में सौंप दिया?"भगत जी व्याकुल हो बोले।

"नहीं भगत जी ऐसा नहीं हो सकता ।आप ऐसा ना कहें ।ये न भूलें आप जिनकी बात कर… Continue

Added by Rahila on August 20, 2016 at 12:02pm — 5 Comments

हाय(लघुकथा)राहिला

"देखो भूरी बिलैया भूरे कान,देखो भूरी बिलैया भूरे कान"रसोई सूनी होते ही नयी बहू द्वारा नए सिरे से सजाये नॉनस्टिक बर्तन ,सास के कहने पर रख छोड़ी प्रसाद बनाने की छोटी सी एल्युमीनियम की कड़ाही को फिर से चिड़ाने लगे।उसका जी किया वो जोर ,जोर से रो ले।

"हे भगवान इससे तो अच्छा होता,मुझे भी अपने सगे सम्बन्धियों के साथ रसोई निकाला मिल जाता।"कहते हुए दो आंसू आँखों से लुढक पड़े ।लेकिन किसी सयाने ने खूब कहा कि इतिहास खुद को दोहराता है। उसे वो वक्त याद आने लगा जब उनके आने से इसी रसोई के पुराने पीतल के… Continue

Added by Rahila on August 12, 2016 at 3:10pm — 3 Comments

धंधे का उसूल(लघुकथा)राहिला

एक भिखारी के झोपड़े में आग क्या लग गयी,सारी मीडिया मछों की तरह भिनभिन करती मौका-ए-वारदात पर पहुँच गयी ।ये एक सामान्य आगजनी की घटना हो सकती थी ,लेकिन उस झोपड़े से जो जले हुए नोटों के बोरे के बोरे बरामद हुए ,ये खास खबर थी ।अब इस घटना को किस तरह सारे दिन की खबर बनाना है इसकी कबायत में मीडिया बाल की खाल निकल रही थी।

"बाबा!भीख मांग ,मांग कर करोड़ों रुपये जमा किये।और आज उनमें आग लग गयी।इससे तो अच्छा होता आप इन रुपयों का भरपूर उपयोग कर लेते।अच्छा खाते ,अच्छा पहनते।"

"आपके कहने का मतलब है हम… Continue

Added by Rahila on August 4, 2016 at 6:30am — 17 Comments

इच्छापूर्ति(लघुकथा)राहिला

"चलो अच्छा है,आखिरकार जीजाजी के सर का बोझ कुछ तो हल्का हुआ"

"अरी! अब तो बाकी की दोनों लड़कियाँ झट से निपट जाएँगी ।ये तो सुचि ही रंगरूप में इतनी गयीबीती थी, कि चार साल लग गए मौसाजी को चप्पल चटकाते ।उन दोनों के रिश्तों की तो लाइन लगी है।"

"वो तो आज भी चप्पल ही चटकाते फिरते ,अगर सुचि ने लड़का खुद पसंद न किया होता तो।"

"हाय...,क्या कह रही हो? तो क्या ये पसंद की शादी है।"

"और क्या। सहकर्मी है सुचि का।"

"लेकिन लड़के ने इसमें क्या देखा ?"

"उसकी सरकारी नौकरी और क्या?"वो मुँह… Continue

Added by Rahila on July 21, 2016 at 3:12pm — 14 Comments

अक़ल का चश्मा(लघुकथा)राहिला

किसी भी सफ़र की बेहद आम,लेकिन जबरदस्त मानसिक प्रताड़ना वाली हरक़त से सोमी दो चार हो रही थी।उसके बगल में बैठे सज्जन गाहे वाहे हर संभव मौके पर उसे छूने का कोई अवसर हाँथ से नहीं गवां रहे थे।सफर लंबा था और बर्दास्त की हद हो रही थी।लेकिन संकोची स्वभाव आज उसपर भारी पड़ रहा था।ऐसे में अचानक उसकी नज़र मोबाइल पर पड़ी।और पता नहीं क्या सोचकर उसने अपनी सहेली को संदेश लिखना शुरू किया।

"सुन यार!इस समय बस में हूँ।और मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है।"

"क्यों.. क्या हुआ?"

"क्या कहूँ यार!मेरी बगल में एक छिछोरा… Continue

Added by Rahila on July 13, 2016 at 4:19pm — 16 Comments

बाँझ निवास (लघुकथा)राहिला

"अरी विभा देख जरा वहां"बस के आगे जा रहे वाहन की ओर इशारा करके सुधा बोली।

"क्या दिखाना चाह रही हो ,वो ट्रॉली?"

"हाँ,क्या ऐसा नहीं लग रहा उसे देख कर, जैसे सैकड़ो नन्हें मुन्ने नर्सरी के बच्चे पहली बार विद्यालय वाहन में सवार हो,झूमते ,गाते ,तालियाँ बजाते चले जा रहे हों।"

"फिर दौड़ाये तूने कल्पना के घोड़े"

"तो तू भी दौड़ाकर देख ,एक बार मेरी तरह।"

सुधा द्वारा चित्रित किये दृश्य को जब उसने ,उसकी नज़र से देखा तो भाव विभोर होकर बोली।

"कसम से सुधी! ये नर्सरी  वाहन…

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Added by Rahila on July 9, 2016 at 1:01pm — 25 Comments

अक़लदाढ़(लघुकथा)राहिला

"यार रमेश!याद है परसों एक पंडित जी अपनी जमीन के किसी मसले को लेकर अपने कलेक्टर साहब से मिलने आये थे।"

"हाँ यार,क्या ओज था उस व्यक्ति के चेहरे पर।कोई भी प्रभावित हुए बगैर नही रह सकता था।मैंने तो खुद अपने बालक के बारे में पूछा था उनसे । ज्योतिष का खूब ज्ञाता था।"

"हाँ ,यही तो मैं बता रहा हूँ, अपने कलेक्टर साहब ! भी नहीं बच पाये।"

"मतलब अपनी तरह उन्होंने भी कुछ पूछा क्या? लेकिन आपको कैसे पता चला?"

"अपना रघु जिंदाबाद ,चाय पानी देने गया था अंदर, बस... ।"

"ऐसा क्या पूंछ… Continue

Added by Rahila on July 4, 2016 at 1:53pm — 20 Comments

मक्खियाँ (लघुकथा) राहिला

सौम्या की खास सहेली काफ़ी जतन के बाद भी लन्दन से शादी के एक दो दिन पहले ना पहुँच, ठीक उसी दिन पहुँच पायी।अपनी प्रिय सखी की पसंद को लेकर उसके मन में काफ़ी सवाल थे,जो मौका पाते ही निकल पड़े।

"तू बस एक वजह बता दे इस कोयले की खान से शादी करने की?"उसने एक नज़र स्टेज पर खड़े उसके दूल्हे डाल कर कहा।

"तमीज से बोल रमा!इतना तो याद रख ,तू मेरे पति के बारे में बात कर रही है।"

"अच्छा!!खूब ,जरा देख..,अपने पूरे कुटुंब को एक नज़र।इतनी हेठी शख्सियत तो तेरे ड्राइवर की भी नहीं।"

"शक्ल…

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Added by Rahila on July 1, 2016 at 3:00pm — 18 Comments

एक क्लिक(लघुकथा)राहिला

पोते को पूरे समय लेपटॉप के आगे आंखे गड़ाये देख शर्मा जी! को खासी चिंता होने लगी।लेकिन जब भी वो इस बारे मेंउससे कुछ बोलते, वो उखड़ के कहता-"दादाजी नेट पर जरूरी काम कर रहा हूँ, फालतू समय बरबाद नहीं।" परन्तु उसकी ये बात उन्हें तनिक भी मुतमईन ना कर पाती।तब उन्होंने अपने बेटे से इस बारे में बात की तो-

"अरे बाबूजी!आपको तो इस बात की ख़ुशी होना चाहिये, कि इंटरनेट से दिन बा दिन उसकी जानकारी का स्तर बढ़ रहा है और एक आप हैं कि...।"

"बेटा जानकारी होना अच्छी बात है परंतु उसकी कोई सीमा तो होनी…

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Added by Rahila on June 25, 2016 at 1:00pm — 17 Comments

दंड(लघुकथा)राहिला

"सूरज देवता! दया करो प्राणी जगत पर।आपके क्रोध की अग्नि में सब कुछ झुलस गया । "

पवन रानी हाथ जोड़ कर बोलीं ।

"देवी! आपको भ्रम हुआ है । मैं कतई क्रोधित नहीं हूं । मैं तो सदियों से जैसा था वैसा ही हूं।"

"प्रभु! फिर धरती पर इतनी तपन क्यों? अब तो मेरा भी दम घुटने लगा है । मनुष्य और जीवों में त्राहि-त्राहि मची है । "

"इसका कारण कोई और नहीं,स्वंय मनुष्य है। प्रकृति के साथ निरंतर छेड़छाड़ और स्वार्थ की हद तक धरती के साथ दुर्व्यवहार का नतीजा है ये।"

"परन्तु कोई तो समाधान होगा… Continue

Added by Rahila on June 20, 2016 at 1:00pm — 12 Comments

इतिहास गवाह है(लघुकथा )राहिला

एक बड़े ही अनुकूल सर्व सुविधा युक्त घूरे पर बर्षों से घरेलू मक्खियों की पीढ़ियां मजे से जिंदगी बसर कर रही थीं। ऐसे में ना जाने कौन साफ तबियत वाले ने नगर पालिका को घूरा हटाने का आवेदन दे मारा । इसकी खबर जैसे ही मख्खियों को लगी, उनमें खलबली मच गई । उन्हें इतना व्यथित देख,एक बूढ़ी सियानी मक्खी ने सांत्वना दी ।

"अरे इतना क्यूं घबरा रही हो? इतिहास गवाह है, आजतक हमें कोई नहीं मिटा पाया । "

"लेकिन दादी मख्खी! अगर नगर पालिका वाले सचमुच आ गये तो,हम बच्चों को लेकर कहाँ जायेंगे? "

"कहीं…

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Added by Rahila on June 4, 2016 at 7:00am — 13 Comments

टू इन वन (लघुकथा)राहिला

"बड़ी जटिल समस्या में फंस गये हो भई! "

"ये आप क्या कह रहें हैं बाबा! हम तो बड़ी आस लेकर आये हैं आपके पास, देखिये कल रात कैसी लाल नीली पीठ कर दी इसने!"

"अरे ब्याहनें एक गये और दो-दो ब्याह के लाओगे तो और क्या होगा? "

"दो -दो मतलब? "

"मतलब ये दूल्हे राजा!कि ये जो दीख रही है ना, ये तो तू जान के ले आया और जो तेरा ये हाल कर रही है वो तो अनजाने में तुझसे बंध गई। "

"मतलब? "जितना उसकी समझ में आया उससे, उसके पसीने छूट गये ।

"मतलब, मतलब ना कर छोरा !ये जो दूजी है किसी से धोखा… Continue

Added by Rahila on May 28, 2016 at 7:00am — 4 Comments

चोचले (लघुकथा )राहिला

"देख जरा कैसी मशहूर होकर देश-विदेश में चर्चा का विषय बन गई अपनी शादी । और तो और पूरे दो लाख खर्च किये मालिक ने हमारी शादी पर।"

"हूंहsss...।"उसने बुरा सा मुंह बनाया ।

"क्यूं तुझे खुशी ना हो रही?तू टी.व्ही. पर आयेगी,अखबार में छपेगी ।"

"देखो..,अगर तुम ये सोचकर खुश हो रहे हो कि हमारी शादी हो जायेगी और मैं हमेशा के लिये खूंटा गाड़ कर सिर्फ तुमसे बंधी रहूंगी तो ये ख्याल अपने दिलोदिमाग से निकाल दो ।मैं इन इंसानो के चोचलों में अपनी आजादी, अपना जन्म सिद्ध अधिकार नहीं खो सकती ।… Continue

Added by Rahila on May 17, 2016 at 3:53pm — 13 Comments

गुस्ताख सवाल(लघुकथा)राहिला

स्वर्ग के प्रवेश द्वार के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई थीं ।तभी खुद से बहुत आगे आ़ला दर्ज़े के स्वर्ग वाली कतार में अपने खा़दिम को खड़ा देख, उनकी अना को जबरदस्त ठेस पहुंची।लेकिन ये वो जगह नहीं थी जहां किसी के मन में किसी प्रकार की शिकायत या सवाल रह जाये ।सो मन में सवाल का आना हुआ नहीं कि वहाँ के दो कर्मचारियों ने फौरन उसे कतार से उठा कर परमेश्वर के समक्ष ला खड़ा किया ।

"बोलो. .!हमारे न्याय पर तेरे मन में क्या सवाल खड़ा हुआ है? "

"प्रभु! समस्त जीवन मेरा दान, पुण्य,पूजा-पाठ में गुजरा ।… Continue

Added by Rahila on May 13, 2016 at 4:24pm — 14 Comments

भगौड़े (लघुकथा) राहिला

मरणोपरांत मृतक युवक के कर्मो का हिसाब किताब करने की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी। दूसरी दुनिया का दरोगा लेखा-जोखा देखने वाले से पूछताछ कर रहा था ।

"इस लड़के की उम्र विधाता ने कम लिखी थी क्या? "

"नहीं दरोगा साहब! उम्र तो खूब लिखी थी। लेकिन इसने खुदकुशी कर ली ।"

"क्यूं? "

"इसका इम्तेहान चल रहा था, पर ये बीच में ही भाग निकला। "

"क्यूं क्या इसने जीने की कला नहीं सीखी? "

"नहीं, ये सतयुग के प्राणी नहीं, कलयुग की खुदपरस्त पीढ़ी है।ना सब्र,ना मर्यादा, ना अनुशासन और ना…

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Added by Rahila on April 25, 2016 at 7:30pm — 49 Comments

गड़ाधन (लघुकथा )राहिला

"गुरूदेव महाराज!बड़े ही सही समय पर आगमन हुआ आपका।अब आप ही समझाओ इनको।"कहते-कहते रमा की आँखों से आँसू छलक पड़े।

"चिंता मत करो बेटी! मुझे जैसे ही रामदयाल के बीमार होने की सूचना मिली,मैं तुरंत ही आ गया।"

परिवार के धर्म गुरू ने रमा को तसल्ली दी।रमा उन्हें पति के कमरे में ले गई ।जहां बीमारी से कमजोर रामदयाल अचानक गुरूदेव को देखकर भावुक हो गया। रूंधे हुये गले से अभिनंदन कर,बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठा ।

"ये क्या हाल बना रखा है रामू?"

"अब आप से क्या छुपा महाराज!बड़े भाईयों ने गद्दारी… Continue

Added by Rahila on April 2, 2016 at 8:00pm — 15 Comments

जोंक (लघुकथा )राहिला

"हजूर,मांई बाप! कुछ रूपया मिल जाता तो बड़ी मेहरबानी हो जाती।"

"कितने चाहिये?"आवाज में दबंगी की खनक थी ।

"यात्रा लाक(लायक)हजूर!बस दो हजार।"

"अच्छा...चैत काटने जा रहे हो।"

"हओ मालिक! "

"हूँsss..कोई गारंटी या कुछ गिरवी रखने लाये हो?"जोंक को जैसे शिकार मिला ।

"काहे मजाक करते हो सरकार!हम गरीबों के पास क्या धरा?"

"देखो भई!मैं लेनदेन का काम कच्चा करता ही नहीं ।बिना कुछ गिरवी रखे एक दमड़ी नहीं दूंगा।"शब्दों को चबाते हुये वे कुछ रूके,फिर पुनः बोले-वैसे...,एक चींज है… Continue

Added by Rahila on March 20, 2016 at 11:10pm — 18 Comments

कहर (लघुकथा) राहिला

पकी फसल पर असमय बरसात और ओलों के कहर ने किसानों के पेट और कमर पर जो लात मारी थी। उसी का सर्वे चल रहा था। कौन किस हद तक घायल है उसी हिसाब से मुआवजा मिलना था। सो,दो सरकारी मुलाजिम एक पुरवा से दूसरे पुरवा जा जाकर कागज़ रंग रहे थे।

"भाग यहाँ से साsssले, यहाँ आया तो तेरी खैर नहीं। हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? तेरा मन नहीं भरा मेरे बाल बच्चे खा कर? और कितनों को खायेगा?आ..ले,खाले...सब को खाजा..आजा,आ के दिखा तुझे अभी मजा चखाता हूं"कह कर वो अंधाधुंध पत्थर मारने लगा। उसकी विक्षिप्त सी हालत देख…

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Added by Rahila on March 15, 2016 at 1:30pm — 31 Comments

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