(मफाईलुन-मफाईलुन-फऊलन )
जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है|
ये दिल फिर उसकी हसरत कर रहा है |
लगाए ज़ख़्म देने वाला मरहम
ये दिल यूँ ही न हैरत कर रहा है |
वफ़ा मिलती कहाँ है हुस्न में वो
जिसे पाने की जुरअत कर रहा है |
दिले नादां दगा जिसकी है फ़ितरत
उसी से तू महब्बत कर रहा है |
मरीज़े इश्क़ की लौटी हैं साँसें
कोई शायद अयादत कर रहा है |
मिलेंगे हश्र में यह बोल कर वो
मुझे कूचे…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 21, 2018 at 8:30pm — 12 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन- फइलातुन-फेलुन )
दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे |
कूचये यार में वो अपना ठिकाना चाहे |
मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत
उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |
थाम के हाथ जो देता हो हमेशा धोका
कौन उस शख्स से फिर हाथ मिलाना चाहे |
फितरते शमअ जलाना है तअज्जुब है मगर
जान परवाना वहाँ फिर भी लुटाना चाहे |
मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना
तेरी दहलीज़ पे सर कौन…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 12:30pm — 23 Comments
ग़ज़ल (मुझको अपना बना कर दगा दे गया )
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(फाइलुन-- फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)
कोई उल्फ़त का बहतर सिला दे गया |
मुझको अपना बनाकर दगा दे गया |
जो खता मैं ने की ही नहीं प्यार में
उफ़ मुझे वो उसी की सज़ा दे गया |
दास्ताँ मैं तबाही की कैसे कहूँ
वो मुझे प्यार का वास्ता दे गया |
दूर यूँ मौत से कब हुई ज़िंदगी
कोई जीने की मुझको दुआ दे गया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2018 at 10:43pm — 10 Comments
(मफ़ाईलुन -मफ़ाईलुन- फ़ऊलन)
मैं क़िस्मत आज़माई कर रहा हूँ |
शुरूए आशनाई कर रहा हूँ |
चुरा कर वो नज़र कहते यही हैं
मैं उनसे बेवफ़ाई कर रहा हूँ |
दिया है सिर्फ़ शीशा एब जू को
मैं कब उसकी बुराई कर रहा हूँ |
जमी जो धूल दिल के आइने पर
उसी की मैं सफ़ाई कर रहा हूँ |
सितमगर सिर्फ़ हक़ माँगा है अपना
मैं कब बेजा लड़ाई कर रहा हूँ |
परख लेना कभी भी वक़्ते मुश्किल
नहीं मैं ख़ुद नुमाई…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2018 at 12:30pm — 13 Comments
ग़ज़ल ( निकल कर तो आओ कभी रोशनी में )
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(फऊलन-फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चलाओ न तीरे नज़र तीरगी में |
निकल कर तो आओ कभी रोशनी में |
कमी दर्दे दिल में तो अब भी नहीं है
मज़ा आ रहा है तुम्हें दिल लगी में |
मेरी ही नहीं है यह सबकी ज़ुबा पर
लुटे क़ाफ़िले सब तेरी रहबरी में |
करूँ फ़ख़्र मैं क्यूँ न क़िस्मत पे अपनी
दिवाना हुआ हूँ तुम्हारी गली में |
यूँ…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 9:59pm — 10 Comments
ग़ज़ल (शिकायत भला हम करें क्या किसी से )
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(फऊलन- फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चुने हैं ग़मे यार अपनी ख़ुशी से |
शिकायत भला हम करें क्या किसी से |
मिले सिर्फ़ धोके ही अपनों से हम को
वफ़ा अब करेंगे किसी अजनबी से |
खिज़ाओं ख़बरदार उनकी है आमद
सदा फूल खिलते हैं जिनकी हँसी से |
मिला कर नज़र से नज़र यह बताएँ
हुआ दिल ये बर्बाद किस की कमी से |
कभी दोस्तों…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 9:33pm — 10 Comments
ग़ज़ल( उठ न जाए क़ियामत नये साल में )
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( फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)
उन पे आई बुलूगत नये साल में |
उठ न जाए क़ियामत नये साल में |
भूल बैठे पुरानी अदावत को वो
देख कर मेरी मिन्नत नये साल में |
बाग़बाने चमन ज़ुल्म से बाज़ आ
वरना होगी बग़ावत नये साल में |
दिल में घर कर नहीं पाएँ शिकवे कभी
डालिए एसी आदत नये साल में |
राह तकता हूँ मुद्दत से…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on December 31, 2017 at 10:10pm — 22 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन)
यूँ नहीं मैं ने ज़माने से बग़ावत की है |
मुझ से उस शोख़ ने बे लौस मुहब्बत की है |
दिल ने मजबूर बहुत कर दिया मुझको वर्ना
मैं ने कब मर्ज़ी से उस शोख़ की हसरत की है |
मुझ से उम्मीद वफ़ा की है उसी को यारो
उम्र भर जिसने मेरे साथ अदावत की है |
रहनुमाई के लिए मैं ने चुना था जिसको
हाए उसने भी मेरे साथ सियासत की है |
सोच लेना वो कोई ग़ैर नहीं अपने हैं
तुमने…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 27, 2017 at 2:00pm — 24 Comments
ग़ज़ल (मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे )
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(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फऊलन )
मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे |
निकल जाएगा दिल से डर धीरे धीरे |
मुहब्बत में अंजाम की फ़िक्र मत कर
करे है यह दिल पे असर धीरे धीरे |
अभी तुझको जी भर के देखा कहाँ है
निगाहों में आ के ठहर धीरे धीरे |
मिलेगा वफ़ा का सिला सब्र तो कर
वो लेते हैं दिल की ख़बर धीरे धीरे |
यही इंतहा है…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on December 16, 2017 at 8:28pm — 24 Comments
(मफाईलुन-मफाईलुन -फऊलन )
किसी खंजर का मत अहसान लीजिए |
हमारी मुस्करा कर जान लीजिए |
जिसे अपना बनाने जा रहे हैं
उसे अच्छी तरह पहचान लीजिए |
हमारा साथ दोगे ज़िंदगी भर
वफ़ा से पहले दिल में ठान लीजिए |
मुझे तो बाद में चुन लीजिएगा
जहाँ की खाक पहले छान लीजिए |
किसे है ख़ौफ़ दिलबर इम्तहाँ का
कमाँ हाथों में अपने तान लीजिए |
किसी का लीजिए अहसान लेकिन
न दौलत मंद का अहसान लीजिए…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 7, 2017 at 2:00pm — 12 Comments
(फाइलातुन -फ़इलातुन-फ़इलातुन-फेलुन )
जिन से आबाद हर इक गोशा है वीराने का |
नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का |
इंतज़ारी में कटी उम्र नहीं इसका गम
रंज है आपका वादे से मुकर जाने का |
कमसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो
वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |
लाख तू मेरी वफ़ाओं को भुला दे दिल से
अज़्म मुहकम है मेरा प्यार तेरा पाने का |
कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए
खूब दस्तूर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 17, 2017 at 11:00am — 24 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन )
आने वाला कोई फिर दौरे परेशानी है |
यक बयक करने लगा कोई महरबानी है |
देखता है जो उन्हें कहता है वो सिर्फ़ यही
इस ज़माने में नहीं उनका कोई सानी है |
आएगा सामने उसका भी नतीजा जल्दी
वक़्त के हुक्मरा की तू ने जो मनमानी है |
ख़त्म हो जाएगी हर चीज़ ही क्या है दुनिया
सिर्फ़ उल्फ़त ही वो शै है जो नहीं फानी है |
आ गया जब से मुझे उनका तसव्वुर करना
हो गई तब से…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 8, 2017 at 10:30pm — 14 Comments
(फेलुन -फइलुन -फेलुन -फेलुन -फेलुन -फइलुन -फेलुन -फेलुन )
लल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |
छल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |
ज़ालिमकेमुक़ाबिल लब यारों मैं खोलभीदूँगाअपने मगर
बल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |
लम्हे जो गुज़ारे उल्फ़त में मुश्किल से मैं उनको भूला हूँ
पल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |
तूफ़ां से बचा कर कश्ती को लाया तो हूँ साहिल पर लेकिन
जल का न करे कोई…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 20, 2017 at 6:00pm — 6 Comments
मफऊल -फ़ाइलात -मफाईल -फाइलुन
दिल में चरागे इश्क़ तो पहले जलाइए |
नफ़रत मिटा के दीपावली फिर मनाइए |
तहवार भाई चारे का अहले वतन है यह
लग कर गले से रस्मे महब्बत निभाइए|
होने लगीं हवाएँ भी ज़हरीली दोस्तों
आतिश फशाँ पटाखे न घर में चलाइए |
करवा के बंद हर तरफ होता हुआ जुआ
रुसवाइयों से दीपावली को बचाइए |
फरहत ही जिस ग़रीब की मंहगाई खा गई
कैसे मनाए दीपावली वो बताइए…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on October 20, 2017 at 9:00am — 6 Comments
फइलात -फ़ाइलातुन -फइलात -फ़ाइलातुन
सरे राह उसने देखा जो मुझे पलट पलट के |
उसी दिन से रह गया हूँ मैं मुआशरे से कटके |
अभी रूठ कर उठे थे कि कड़क के बर्क़ चमकी
मेरी बाहों में वो सहमे हुए आ गये सिमट के |
बड़ी रात जा चुकी है कोई ख़ाक आएगा अब
शबे ग़म मेरी इधर आ तुझे रो लूँ मैं लिपट के |
जो ग़रीब हौसला है उसे होगा कुछ न हासिल
वही जाम पा सकेगा जो उठा ले ख़ुद झपट के |
जिन्हें गुमरही का डर था वही पा गये हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 6:00pm — 20 Comments
मफऊल -फाइलातुन -मफऊल -फाइलातुन
मेरे हबीब इस में तेरी खता नहीं है |
इल्ज़ामे बे वफ़ाई किस पर लगा नहीं है |
ओ प्यार के मुसाफिर इस पर भी ग़ौर कर ले
यह राहे ग़म है इस में कोई मज़ा नहीं है |
माली तेरी कमी से गुलशन में है तबाही
तू अब भी कह रहा है तुझको पता नहीं है |
दीदार मैं अभी तक चहरे का कर रहा हूँ
ठहरो अभी न जाओ यह दिल भरा नहीं है |
ग़मदीदा दिलसे उल्फ़त तुझसे न निभ सकेगी
कर तर्के इश्क़ कुछ भी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 4:30pm — 12 Comments
फाइलातुन -मफ़ाइलुन -फेलुन
दिल की हसरत यही है मुद्दत से |
कोई देखे हमें महब्बत से |
नामे उल्फ़त से जो नहीं वाक़िफ़
देखता हूँ मैं उसको हसरत से |
सब्र का फल तो खा के देख ज़रा
क्यूँ है मायूस उसकी रहमत से |
जिस ने देखा उन्हें यही बोला
उनको रब ने बनाया फ़ुर्सत से |
उसके हाथों में आइना दे दो
बाज़ आए नहीं जो गीबत से |
देखिए तो करम अज़ीज़ों का
वो हैं बे ज़ार मेरी सूरत से…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2017 at 12:00pm — 16 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फइलुन /फेलुन)
आ गया हूँ वहाँ जिस जा से मैं जा भी न सकूँ |
मा सिवा उनके कहीं दिल को लगा भी न सकूँ |
इस तरह बैठे हैं वो फेर के आँखें मुझ से
उनके सोए हुए जज़्बात जगा भी न सकूँ |
मेरी महफ़िल में किसी ग़ैर को लाने वाले
दिल से मजबूर हूँ मैं तुझको जला भी न सकूँ |
फितरते तर्के महब्बत है तेरी यार मगर
तेरी इस राय को मैं अपना बना भी न सकूँ |
इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 24, 2017 at 9:00am — 16 Comments
ग़ज़ल (अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम )
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(फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन)
अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम |
उनके कुचे से वापस न जाएँगे हम |
ज़ुल्म कितने भी ढा ले सितमगार तू
ग़म के हर दौर में मुस्कराएँगे हम |
आपको तो अज़ीज़ों से फ़ुर्सत नहीं
किस तरह हाल दिल का सुनाएँगे हम |
जब भी मिलता है देता है वो ज़ख़्मे नौ
दस्त उलफत का कब तक मिलाएँगे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 14, 2017 at 10:23pm — 14 Comments
ग़ज़ल ( हाए वो शख़्स निकलता है सितमगर यारो )
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(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन )
मुन्तखिब करता है दिल जिसको भी दिलबर यारो |
हाए वो शख़्स निकलता है सितम गर यारो |
उनके चहरे से नज़र हटती नहीं है मेरी
किस तरह देखूं ज़माने के मैं मंज़र यारो |
कूचए यार से जाएँ तो भला जाएँ कहाँ
राहे उलफत में लुटा बैठे हैं हम घर यारो |
आस्तीनों में जो रखते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 5, 2017 at 6:14pm — 17 Comments
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