लम्हा ...
ख़ामोश था
मैं जब तलक
हर तरफ़
इक शोर था
खोली जुबाँ
जो मैंने ज़रा
तो
हर शोर
ख़ामोश हो गया
इक लम्हा
ज़लज़ले में सो गया
इक लम्हा
ज़लज़ला हो गया
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 18, 2016 at 1:44pm — 4 Comments
अनबोले लम्स ....
आज मेरे
दिल के आईने में
मुझे
तुम नज़र आये थे
तन्हाई थी
मैं थी
और
तुम थे
अपने लम्स के साथ
मेरे ज़िस्म पर
बे-आवाज़
हौले हौले
रेंगते हुए
मेरी
हर
न को
तुम कुचलते रहे
खामोशियाँ
सरगोशियां करती रहीं
लौ भी
कहीं तारीक में
खो गयी
बस
शेष रही
मैं
और
मेरे ज़िस्म के
हर मोड़ पर
तुम्हारे…
Added by Sushil Sarna on October 17, 2016 at 7:51pm — 2 Comments
हार ...
ये इश्क-ओ-मुहब्बत के
बड़े अज़ब नज़ारे हैं
उनके दिए दर्दों से
हमने
तन्हा लम्हे सँवारे हैं
लोग
डरते होंगे ज़ख्मों से
मगर
सच कहते हैं
ये ज़ख्म
हमें बहुत प्यारे हैं
रिस्ते ज़ख्मों की
हर टीस पे
हमने सनम पुकारे हैं
अंगार बन के उठती हैं
यादें उनकी
तन्हाई में
कैसे बताएं ज़माने को
हम क्या जीते
क्या हारे हैं
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 12, 2016 at 1:13pm — 6 Comments
विष - एक क्षणिका :
मानव
तुम तो
सभ्य हो
फिर
विषधर का विष
कहां से
पाया तुमने
क्या
सभ्य वेश में
विषधर भी
रहने लगे
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 10, 2016 at 8:59pm — 8 Comments
प्रेमाभिव्यक्ति ......
प्रेम आस है
प्रेम श्वास है
प्रेम जीवन की अमिट प्यास है
प्रेम आदि है
प्रेम अन्त है
प्रेम जीवन का अमिट बसंत है
प्रेम चुभन है
प्रेम लग्न है
प्रेम जीवन की अमिट अगन है
प्रेम चंदन है
प्रेम बंधन है
प्रेम जीवन की अमिट गुंजन है
प्रेम रीत है
प्रेम जीत है
प्रेम जीवन की अमिट प्रीत है
प्रेम नीर है
प्रेम पीर है
प्रेम जीवन की प्रेम हीर…
Added by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:15pm — 2 Comments
वादा .....
मेरे ग़मगुसार ने
इक वादा किया था
कि वो हर लम्हा
मेरा ज़िस्म होगा
मेरा हर ग़म
उस पे आशकार होगा
फ़ना की तारीक वादियों में भी
वो मेरे साथ होगा
क्या सच में उसने
इस जहां से
उस जहां तक
साथ निभाने का
वादा किया था
लम्हा दर लम्हा
दूरी का अज़ाब बढ़ता गया
अकेलेपन की शाखाओं पे
यादों का शबाब
बढ़ता गया
साये गुफ़्तगू करने लगे
मेरी अफ़सुर्दा निगाहें
जाने ख़ला में…
Added by Sushil Sarna on October 6, 2016 at 2:02pm — 10 Comments
खामोश मौसम ....
अपनी ही आवाज़ों के साथ
बैसाखियाँ
आग में जलने लगी
समय
और सुईयों की रफ़्तार
अपनी बेख़ौफ़ चाल के साथ
ज़िन्दा होने का
सबूत देती रही
जज़्बात
हड्डियों की बैसाखियों पर
खामोशियों के लिबास पहने
खुद को ढोते रहे
एक बैसाखी दिल की
किसी शरर की उम्मीद में
तारीकियों से लिपटी
पल पल जलती हुई
ज़ख्मों की तलाशी लेती रही
जलते हुए ख़्वाब
शायद अपनी बैसाखियाँ…
Added by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 8:54pm — 14 Comments
ख़्वाबों की लहद ....
ये आंखें
न जाने कितने चेहरे
हर पल जीती हैं
हर चेहरे के
हज़ारों ग़म पीती हैं
मुस्कुराती हैं तो
ख़बर नहीं होती
मगर बरस कर
ये सफर को अंजाम
दे जाती हैं
ज़हन की मिट्टी को
किसी दर्द का
पैग़ाम दे जाती हैं
मेरी तन्हाईयों को
नापते -नापते
न जाने कितने आफ़ताब लौट गए
मेरी तारीकियों में
हर शरर ने
अपना वज़ूद खोया है
हर लम्हा
किसी न किसी लम्हे के लिए
वक्त की चौखट से…
Added by Sushil Sarna on September 30, 2016 at 3:24pm — 14 Comments
पुरानी किताबें ........
पुरानी किताबें
कुछ भी तो नहीं
सिवाय पुरानी कब्रों के
जिनमें दफ़्न हैं
चंद सूखे गुलाब
कुछ सिसकते हुए
मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़
कुछ पुराने पीले
टुकड़े टुकड़े से
अधूरे प्रेम के
प्रेम पत्र
पुरानी किताबें
जिनमें सो गयी
जीने की आस लिए
कई आकांक्षाएं
घुटी हुई सांसें
मोटी सी ज़िल्द की
अलमारी में
कैदियों से जीते
मौन कई अफ़साने
जंज़ीरों में…
Added by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 3:00pm — 12 Comments
1. एक तन .... (क्षणिकाएं) ...
लड़ते-लड़ते
धरा की गोद में
लहुलुहान
कोई सो गया
तिरंगे में
लिपटा हुआ
फिर एक तन
एक वतन
हो गया
... ... ... ... ... ... ... ... ...
2. शेष ....
गोली
बारूद
धमाके
लाशें
चीखें
धुऐं की गर्द
बस
हदों के झगड़ों का
यही था
शेष
... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
3. हल ....
लिपट गया
तिरंगे में
भारत माँ का
एक लाल…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 8:21pm — 2 Comments
बहुत याद आऊंगा ....
रोज की तरह
आज भी भानु रश्मियों ने
एक नये जोश के साथ
धरती पर अपने
पाँव पसारे
चिडियों की चहचहाट ने
वातावरण को अपनी मधुर ध्वनि से
अलंकृत कर दिया
साइकिल की घंटी बजाता दूधवाला
घर घर दूध की आवाज देने लगा
सड़क पर सफाई वालों ने भी
अपना मोर्चा सम्भाल लिया
ये सारा नजारा
मैं अपनी युवा काल से
आज तक
इसी तरह देखता हूँ
आज मैं
अपने बदन पर
चंद पतियों के साथ
सड़क के…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 3:16pm — 2 Comments
कमलनयनी ब्रांड .... ...
अरे!
ये क्या हुआ
कल ही तो वर्कशाप में
ठीक करवाया था
टेस्ट ड्राईव भी
करवाई थी
कार्य प्रणाली
बिलकुल ठीक पाई थी
माना
टक्कर बहुत भारी थी
दिल के
कई टुकड़े हो गए थे
पर वर्कशाप में
कमलनयनी ब्रांड के
नयनों के फैविकोल से
टूटे दिल के टुकड़े
अच्छी तरह चिपकाए थे
उसकी मधुर मुस्कान ने
ओके किया था
दिल फिर अपने
मूल रूप में
धड़कने लगा था
गज़ब
ठीक होते ही
वर्कशाप के मेकैनिक…
Added by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....
१.
ठहर जाती है
ज़िदंगी
जब
लंबी हो जाती है
अपने से
अपनी
परछाईं
...... .... .... .... ....
२.
एक सिंदूर
क्या रूठा
ज़िन्दगी
बेनूरी हो गयी
इक नज़र
क्या बन्द हुई
हर नज़र
सिंदूरी हो गयी
..... ..... ..... ..... ..... ....
३.
ज़ख्म
भर जाते हैं
समय के साथ
शेष
रह जाते हैं
अवशेष
घरौंदों में
स्मृतियों के
इक अनबोली
टीस के…
Added by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:55pm — 2 Comments
ढलक गया .... (क्षणिकाएं )
१.
बंद था
एक लम्हा
पलकों की मुट्ठी में
सह न सका
दस्तक
याद की
और
ढलक गया
हौले से
.... ... ... ... ... ...
२.
था
एक ख़्वाब
जो
हकीकत से पहले
जाने कब
हकीकत में
ख्वाब हो गया
.... .... .... .... .... ....
३.
वो
ज़िदंगी का
बीता कल था
जिया मरके
जिसमें
वो सुहाना पल था
वो पल
सुख का
रूह से
बतियाता रहा
मारने के बाद…
Added by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 4:39pm — 12 Comments
तुम मुझे मिल जाओगे ...
ये सृष्टि
इतनी बड़ी भी नहीं
कि तुम मेरी दृष्टि की
दृश्यता से
ओझल हो जाओ
असंख्य मकरंदों की महक भी
तुम्हारी महक को
नहीं मिटा सकती
तुम मेरी स्मृति की
गहन कंदरा में
किसी कस्तूरी गन्ध से समाये हो
सच कहती हूँ
तुम मेरे रूहानी अहसासों की
हदों को तोड़ न पाओगे
क्यूँ असंभव को
संभव बनाने का
प्रयास करते हो
अपने अस्तित्व का
मेरे अस्तित्व से
इंकार…
Added by Sushil Sarna on September 12, 2016 at 4:58pm — 4 Comments
रिश्तों को समझ जाएगी ...
न आवाज़ हुई
न किसी ने कुछ महसूस किया
इक जलजला आया
इक सूखा पत्ता
दरख़्त से गिरा
और बेनूर हुआ
इक आदि का
अंत हुआ
सीने में ही घुट गया
किसी अपने के खोने का दर्द
हरी कोपल हँसी
जीवन के इस खेल का
ए दरख़्त
अफ़सोस कैसा ?
नमनाक नज़रों से
दरख़्त
आरम्भ को देखता रहा
गिरते हुए पत्तों में
रिश्तों का अंत
देखता रहा
वो अंश था मेरा
जो इस तन से
टूट…
Added by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 1:30pm — 8 Comments
मृत्यु फिर जीत गयी .......
लम्हे यादों के
बढ़ती शब् के साथ
पिघलते रहे
मेरे अहसास
लफ़्ज़ों के पैरहन में
गूंगे बन
सिरहाने रखीं किताब में
पिघलते रहे
दीवारों पर
छाई शून्यता की काई में
ये नज़रें
किसी के बहते लावे के साथ
पिघलती रही
मैं और तुम
का अस्तित्व
पिघलकर
एक हुआ
ज़िस्म केज़िंदाँ में
अनबोले लम्स
पिघलते रहे
ज़िस्म मिटे
साये…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2016 at 4:00pm — 12 Comments
तन्हा रह जाता है ....
कल की तरह
ये आज भी गुजर जाएगा
स्मृतियों की कोठरी में
फिर कुछ और पल समेट जाएगा
हर कल के साथ
अपने अस्तित्व की शिला से
अपने अमिट होने का
दम्भ को पुष्ट करता रहेगा
हर कल का सूरज
अस्त्तित्वहीन होकर
किसी कल के गर्भ में
लुप्त हो जाएगा
क्या है जीवन
वो
जो गुजर गया
या वो
जो आज है
या फिर वो
जो आने वाले
काल के गर्भ में
सांसें ले रहा है
हर रोज़
इक मैं जन्म लेता…
Added by Sushil Sarna on September 2, 2016 at 9:05pm — 6 Comments
रिश्तों के सीनों में ......
कितनी सीलन है
रिश्तों की इन क़बाओं में
सिसकियाँ
अपने दर्द के साथ
बेनूर बियाबाँ में
कहकहों के लिबासों में
रक़्स करती हैं
न जाने
कितने समझौतों के पैबंदों से
सांसें अपने तन को सजाये
जीने की
नाकाम कोशिश करती हैं
ये कैसी लहद है
जहां रिश्ते
ज़िस्म के साथ
ज़मीदोज़ होकर भी
धुंआ धुंआ होती ज़िन्दगी के साथ
अपने ज़िन्दा होने का
अहसास…
Added by Sushil Sarna on September 1, 2016 at 9:30pm — 10 Comments
ये तो ख़्वाब हैं ...
शब् के हों
या सहर के हों
सुकूं के हों
या कह्र के हों
ये तो ख़्वाब हैं
ये कभी मरते नहीं
ज़ज़्बातों के दिल हैं ये
ये किसी कफ़स में
कैद नहीं होते
ये नवा हैं (नवा=स्वर)
ये हवा हैं
ये ज़ुल्मों की आतिश से
तबाह नहीं होते
ये हर्फ़ हैं
ये नूर हैं
किसी सनाँ के वार से (सनाँ=भाला)
इन्हें अज़ल नहीं आती
पलकों की ज़िंदाँ में (ज़िंदाँ =कारागार)
ये सांस लेते हैं
ज़िस्म फ़ना होते हैं मगर…
Added by Sushil Sarna on August 20, 2016 at 9:02pm — 8 Comments
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