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महाकवि‍ जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री की याद

महाकवि‍ जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री की याद 

संस्‍मरण 0 श्‍याम बि‍हारी श्‍यामल…



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Added by Shyam Bihari Shyamal on November 26, 2011 at 6:30am — 4 Comments

हे चित्रकार !

मिलन की ओस से निखरा ये गुलाबी चेहरा

आखिरी लम्हों की कुछ भर दो सफेदी इनमे…

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Added by Arun Sri on November 23, 2011 at 1:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल - ऐसे झूटे' ख्वाबों के............

बस क़दमों की आहट आये' आने का' इमकान कहाँ,

ऐसे झूटे' ख्वाबों के सच होने का' इमकान कहाँ।



उम्मीदों के' बागीचे का' पत्ता पत्ता बिखर गया,

इस गुलशन में' फूलों के' फिर खिलने का' इमकान कहाँ।



दाना खाने' के चक्कर में' पंछी जो' उस पार गये,

खा पीकर भी वापिस उनके' आने का' इमकान कहाँ।



हाँ दौलत के' ढेर नहीं ये' माना माँ के आँचल में,

पर' दो वक्ता रोज़ी के ना' मिलने का' इमकान कहाँ।



डगमग होके' गोते खाए रूहें बाबा अम्मा की,

टूटी नय्या' पर…

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Added by इमरान खान on November 21, 2011 at 11:00am — 4 Comments

अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद

 

अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद

 

दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेगें

आज़ाद ही रहे हैं आज़ाद ही रहेगें

 

अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद को उपरोक्त पंक्तियां अत्यंत प्रिय थी। इन्हे वह अनेक बार गुनगुनाया भी करते थे। चंद्रशेखर आज़ाद ने 27 फरवरी 1931 को ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के कंमाडर इन चीफ की हैसियत से इलाहबाद के अलेफ्रेड…

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Added by prabhat kumar roy on November 10, 2011 at 8:00am — 3 Comments

एक तवायफ की दास्तान

कितनी बदली हुई तकदीर नज़र आती है--ये जवानी मेरी तस्वीर नज़र आती है !!



                    
                                                         हमने सोचा न था हालात कुछ ऐसे होंगे !…
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Added by Hilal Badayuni on October 31, 2011 at 12:30am — 16 Comments

एक कविता: कौन हूँ मैं?... --संजीव 'सलिल'

एक कविता:
कौन हूँ मैं?...
संजीव 'सलिल'
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता…
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Added by sanjiv verma 'salil' on October 30, 2011 at 10:29am — 6 Comments

व्यंग्य रचना: दीवाली : कुछ शब्द चित्र: संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:                                                                                  

दीवाली : कुछ शब्द चित्र:

संजीव 'सलिल'

*

माँ-बाप को

ठेंगा दिखायें.

सास-ससुर पर

बलि-बलि जायें.

अधिकारी को

तेल लगायें.

गृह-लक्ष्मी के

चरण दबायें.

दिवाली मनाएँ..

*

लक्ष्मी पूजन के

महापर्व को

सार्थक बनायें.

ससुरे से मांगें

नगद-नारायण.

न मिले लक्ष्मी

तो गृह-लक्ष्मी को

होलिका बनायें.

दूसरी को…

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Added by sanjiv verma 'salil' on October 26, 2011 at 8:00am — 4 Comments

कविता :- शब्द - दीप !

 कविता :-  शब्द - दीप !

 

एक दीप उस द्वार भी जले

खुला जो रहा कई बरस

रोशनी को जो रहा तरस…

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Added by Abhinav Arun on October 23, 2011 at 8:30pm — 10 Comments

आप सभी को दीपावली की बधाई व शुभकामनायें !

 

 

 

स्नेह मिलता रहे, दीप जलते रहें,



प्यार से हम सभी, रोज मिलते रहें,…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on October 25, 2011 at 12:30pm — 7 Comments

आज तिमिर का नाश हुआ

आज तिमिर का नाश हुआ
दीपों की लगी कतार
कार्तिक अमावस्या लेकर आई
यह आलोकित उपहार

द्वार द्वार पर दीप जलें
घर घर हुआ श्रृंगार
हर देहरी प्रदीप्त हुई
बिखरा हर्ष अपार

झाड़ बुहार आँगन को
लक्ष्मी को दें आमंत्रण
करबद्ध हो सब करें
मन से रमा का वंदन

सभी को शुभ दीपावली...
दुष्यंत..........

Added by दुष्यंत सेवक on October 24, 2011 at 6:38pm — 4 Comments

दोहा सलिला : दोहों की दीपावली: --संजीव 'सलिल'





दोहा सलिला :

दोहों की दीपावली:

--संजीव 'सलिल'



दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.

श्री गणेश के बिम्ब को, अलंकार अनुमान..



दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.

सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..



अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.

माटी का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..



मन का दीपक लो जला, तन की बाती डाल.

इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..



दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.

राह अलग हर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2011 at 5:00pm — 4 Comments

गुरु दोहावली

मन पागल बौराय है, इसे कोउ समझाय,

बीत गया है जो समय, लौट कभी न आय  !   
.
जिसकी जो गति वो लिखा वही बने तक़दीर ,
होनी तो होके रहे, सहज हो या गंभीर  ,
.
दुःख से घबराओ नहीं, सुख का ये आधार,
दुःख से डर के भागना, बदलो ये व्यवहार,…
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Added by Rash Bihari Ravi on October 22, 2011 at 2:00pm — 8 Comments

लघुकथा - बकाया !

लघुकथा -  बकाया !

डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती…

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Added by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 9:00am — 16 Comments

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

हमको  रहना  चाहिए  अब  सोह्बते  तलवार  में !

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार  में !!


जब  तलक  उलझा  रहेगा  दामने  दिल  खार  में !
हम  सुकू  से  रह  नहीं  पाएंगे  इस  गुलज़ार  में  !!


नकहते  गुल  सुबहे  नौ शम्सो  कमर  अंजुम  जिया ! 
नेमतें  क्या  क्या  छुपी  है  यार  के  दीदार  में !!


मुद्दतो  जिस …
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Added by Hilal Badayuni on October 15, 2011 at 5:00pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जो बीते... तो बीत गये --- सौरभ

 

कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .

गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --

करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.



निठल्ले आईने पर

सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं

जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं

उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..

 …

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Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जीवन-सार --- (छंद - घनाक्षरी) --- सौरभ

 

नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व

साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता

जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत

धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग

मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये  ॥4॥

***************

हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि

विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा  ||1||

हो खरा…

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Added by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ग़ज़ल - (तरही मुशायरा -15 में सम्मिलित)

 

ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये

जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||



एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा

कह उसे, उड़ने में भी आचार होना…

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Added by Saurabh Pandey on October 10, 2011 at 9:46am — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कसौटी जिन्दगी की .. (छंद - हरिगीतिका)

यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है

मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है

जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?

इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से    ||1||…



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Added by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 1:30pm — 33 Comments

मुँह छोटा पर बात बड़ी है।

पेट बडा है, भूख  बड़ी  है,

लोभ भरा है, सोच सड़ी है।

 …

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Added by Subhash Trehan on September 27, 2011 at 1:06pm — 5 Comments

३ कह मुकरियाँ

(१)

जब आए - तो रस बरसाए

न आए - तो बड़ा सताए

कोई न ऐसा मनभावन 

ऐ सखी साजन?? न सखी सावन ।


(२)

मोरे पास - तो करे मगन

दूजे के संग - देत जलन 

न जग मे कोई वाके जैसा 

ऐ सखी साजन?? न सखी पैसा |

 

(३)

हमरे जीवन कै आधार

वो ही तो सगरा संसार

बड़ा सोच के रचिन रचैया 

ऐ सखी साजन?? न सखी मैया

Added by Vikram Srivastava on September 23, 2011 at 3:00pm — 13 Comments

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

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