हम के अस्तित्व से ....
बड़ा लम्बा सफर
तय करना पड़ता है
अंतस की व्यथा को
अधरों तक आने में
स्मृतिकोष के
पृष्ठों से किसी की
याद को मिटाने में
अनकहा
कुछ नहीं रहता
अवसाद के पलों में
अभिव्यक्ति
पलकों के पालने से
कपोलों पर
हौले हौले सरकती
किसी स्पर्श के इंतज़ार में
ठहर जाती है
शायद कोई
अपनत्व का परिधान ओढ़ कर
इक बूंद में समाये
विछोह के लावे को
अपनी उंगली के पोरों से उठा…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2016 at 5:16pm — 4 Comments
पुरानी तस्वीर ...
ये तुंद हवायें
रहम न खाएंगी
खिड़की के पटों पर
अपना ज़ोर अजमाएंगी
किसी के रोके से भला
ये कहां रुक पाएंगी
अाजकल की हवा
बेरोकटोक चलती है
इनको क्या गरज
इनकी बेफिक्री
किसी के
पांव उखाड़ सकती है
किसी खिड़की के
सामने की दीवार पर
सांस लेती नींव की
पुरानी तस्वीर
गिरा सकती है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 20, 2016 at 9:52pm — 10 Comments
चेहरा ...
एक चेहरा एक पल में
लाखों चेहरे जी रहा
कौन जाने कौन सा चेहरा
हंस के आंसू पी रहा
एक चेहरा लगता अपना
एक क्यों बेगाना लगे
कौन दिल की बात कहता
कौन होठों को सी रहा
कत्ल होता रोज इक चेहरा
रोज इक जन्म हो रहा
एक जागे किसी की खातिर
आगोश में इक सो रहा
एक चेहरा ख्वाब बन के
ख़्वाबों में बस जाता है
एक चेहरा अक्स बन के
नींदें किसी की पी रहा
एक चेहरा अपनी दुनिया
चेहरों में बसाता है
एक चेहरा दुनिया…
Added by Sushil Sarna on June 16, 2016 at 2:59pm — 6 Comments
मायाजाल ...
ये मकड़ी भी
कितनी पागल है
बार बार गिरती है
मगर जाल बुनना
बंद नहीं करती
बहुत सुकून मिलता है उसे
अपने ही जाल के मोह में
स्वयं को उलझाए रखने में
वो स्वयं को
वासनाओं के जाल में
लिप्त रखना चाहती है
शायद वो जानती है
जिस दिन भी वो
अपना कर्म छोड़ देगी
वो अपनी पहचान खो देगी
पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी
लेकिन इस तरह का मोक्ष
कभी उसकी पसंद नहीं होता
उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है…
Added by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 3:35pm — 12 Comments
एक गुंचा ...
(२१२ x ३ )
क्यूँ हवा में ज़हर हो गया
हर शजर बेसमर हो गया !!१ !!
एक लम्हा राह में था खड़ा
याद में वो खंडर हो गया !!२!!
भर गया ज़ख्म कैसे भला
किस दुआ का असर हो गया !!३!!
आँख से जो गिरा टूट कर
दर्द वो एक सागर हो गया !!४!!
गुमशुदा था शहर आज तक
जल के वो इक खबर हो गया !!५!!
एक गुंचा क्या खिला बाग़ में
ख्वाब का वो एक घर हो गया !!६!!
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 10, 2016 at 2:55pm — 2 Comments
अपना मकां बना जाता है ....
कितना अजीब होता है
उससे अपनापन निभाना
जो न होकर भी
सबा की मानिंद
करीब होता है
ये दिल
अपने रूहानी अहसास को
बड़ी निर्भीकता से
उस अदृश्य देह को कह देता है
जिसे देह की उपस्थिति में
व्यक्त करने में
इक उम्र भी कम होती है
हम उसे कह भी लेते हैं
और उसकी
अदैहिक अभिव्यक्ति को
बंद किताबों में
सूखते गुलाबों की
गंध की तरह
पढ़ भी लेते हैं
वो न…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 6, 2016 at 1:09pm — 2 Comments
टूटे पैमाने ....
२२ २२ २२ २
कुछ टूटे पैमाने हैं
कुछ रूठे दीवाने हैं
कुछ हैं सपनों में डूबे
कुछ खुद से अंजाने है
यादों के तहखानों में
बंद कई अफ़साने हैं
सोये शानों पर मेरे
टूटे ख़्वाब पुराने हैं
सहमे सहमे आँखों से
छलके दर्द दीवाने हैं
मुझको उसकी नज़रों से
बहते ज़ख्म चुराने हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 6:40pm — 12 Comments
दिल-ऐ-बिस्मिल में ...
कुछ भी तो नहीं बदला
नसीम-ऐ-सहर
आज भी मेरे अहसासों को
कुरेद जाती है
मेरी पलकों पे
तेरी नमनाक नज़रों की
नमी छोड़ जाती है
कहाँ बदलता है कुछ
किसी के जाने से
बस दर्द मिलता है
गुजरे हुए लम्हात के मरकदों पे
यादों के चराग़ जलाने में
और लगता है वक्त
लम्हा लम्हा मिली
अनगिनित खराशों को
जिस्म-ओ-ज़हन से मिटाने में
अपनी ज़फा से तुमने
वफ़ा के पैरहन को
तार तार कर दिया…
Added by Sushil Sarna on June 3, 2016 at 9:00pm — 8 Comments
दिल-ऐ-बिस्मिल में ...
कुछ भी तो नहीं बदला
नसीम-ऐ-सहर
आज भी मेरे अहसासों को
कुरेद जाती है
मेरी पलकों पे
तेरी नमनाक नज़रों की
नमी छोड़ जाती है
कहाँ बदलता है कुछ
किसी के जाने से
बस दर्द मिलता है
गुजरे हुए लम्हात की मरकदों पे
यादों के चराग़ जलाने में
और लगता है वक्त
लम्हा लम्हा मिली
अनगिनित खराशों को
ज़िस्म-ऐ-ज़हन से मिटाने में
अपनी ज़फा से तुमने
वफ़ा के पैरहन को
तार तार कर दिया
आरज़ू के हर अब्र…
Added by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 1:55pm — 6 Comments
(22 22 22)
छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी रातें
.
छोटे छोटे लम्हे
जीवन की सौगातें
.
भीगा भीगा मौसम
गुन गुन करती रातें
.
दिल में आग लगायें
रिमझिम सी बरसातें
.
तेरे मेरे सपने
दिल से दिल की बातें
.
आंसू आंसू शिकवा
आंसू आंसू बातें
.
याद रही खामोशी
भूले न मुलाकातें
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 1:30pm — 4 Comments
अपनी क़बा में .....
अहसासों की कभी
हदें नहीं होती
नफ़स और नफ़स के दरमियाँ
ये ज़िंदा रहते हैं
ये तुम्हारा वहम है कि
तुम मुझसे दूर हो
तुम जहां भी हो
मेरी साँसों की हद में हो
तुम कस्तूरी से
मेरी रूह में बसे हो
हर शब मैं तुम्हारी महक से लिपट
परिंदा बन जाती हूँ
तुम से मिलने की
इक अज़ीब सी ज़िद कर जाती हूँ
बंद पलकों में
तुम्हारे ख़्वाबों की दस्तक से
रूह जिस्मानी क़बा से
बाहर आ…
Added by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 8:14pm — 2 Comments
उदास चेहरा ...
तुम आये
और मैं तुम्हें
बंद पलकों से
निहारती रही
तुम्हारी हर आहट को
मैं अपने अंदर समेटती रही
वो चुप सा
तुम्हारा उदास चेहरा
मेरी मजबूरी को कचोटता रहा
तुम्हारे हाथों के गुलाब की
इक इक पंखुड़ी
अश्कों में भीगी
मुझपर गिरती रही
मैं तुम्हारे अश्कों की आतिश में
इक शमा सी पिघलती रही
तुम ज़मीं तक
मुझपर झुकते चले गए
बेबस पुकार मुझसे टकराकर
कहीं खला में खो गयी
तुम मेरी लहद में
आ…
Added by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:49pm — 12 Comments
इक जान हो जाएगी ....
बड़ा अज़ीब मंज़र होगा
जब बहार आएगी
हर गुलशन
गुलों की महक से
लबरेज़ होगा
सब कुछ नया नया होगा
हर गुल में
तू मेरा अक्स ढूंढेगी
हर पंखुड़ी में कसमसाती
मैं तेरी उठान देखूँगा
कितना सुखद अहसास होगा
जब मेरी नज़रों के लम्स
तेरे जिस्म से गुफ़्तगू करेंगे
तेरा हिज़ाब
तुझसे अदावत करेगा
तेरे लबों पे
तिलभर हंसी की जुम्बिश…
Added by Sushil Sarna on May 21, 2016 at 10:00pm — 4 Comments
इंतज़ार ....
ये बादे सबा
आज किसकी सदा लाई है
कुछ कम्पन्न है
कुछ नमी है
कुछ भीगी सी तन्हाई है
शायद ! अधूरे अहसासों ने
ज़हन में करवट ली है
लफ्ज़ लबों की हदों पर
तिश्नगी के अज़ाब में
डूबे नज़र आते हैं
इन साँसों की बेचैनियों में
जाने किस अजनबी का ख़ुलूस
करवटें लेता है
ये मेरी तदब्बुर में
किसके लम्स रक्स करते हैं
कोई तो नाख़ुदा होगा
जो मेरी हयात के सफ़ीने को
साहिल तक ले जाएगा
दबे पाँव आकर
मेरी…
Added by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 4:32pm — 16 Comments
फ़रेबी रात …
छोडिये साहिब !
ये तो बेवक्त
बेवजह ही
ज़मीं खराब करते हैं
आप अपनी अंगुली के पोर
इनसे क्यूं खराब करते हैं
ज़माने के दर्द हैं
क्योँ अपनी रातें
हमारी तन्हाई पे खराब करते हैं
ज़माने की निगाह में
ये नमकीन पानी के अलावा
कुछ भी नहीं
रात की कहानी
ये भोर में गुनगुनायेंगे
आंसू हैं,निर्बल हैं
कुछ दूर तक
आरिजों पे फिसलकर
खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे
हमारे दर्द हैं
हमें ही उठा लेने दीजिये…
Added by Sushil Sarna on May 16, 2016 at 4:31pm — 6 Comments
ख्वाब-ऐ-बशर ...
आज फिर
किसी का चूल्हा
उदास ही
बिन जले सो गया।
आज फिर
सांझ के दामन पे
भूख लिख गया कोई।
आज फिर
पेट की आग
झूठी आशा की बर्फ से
ठंडी कर
सो गया कोई।
आज फिर
कटोरे से
सिक्कों की आवाज़
रूठी रही।
आज फिर
खारा जल
पकी दाढ़ी को
धोता रहा।
आज फिर
निराशा का कफ़न ओढ़े
बिन साँसों के
सो गया कोई।
आज फिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 12, 2016 at 2:47pm — 6 Comments
ज़िंदगी के फ्रेम में ....
यादें
आज पर भारी
बीते कल की बातें
वर्तमान को अतीत करती
कुछ गहरी कुछ हल्की
धुंधलके में खोई
वो बिछुड़ी मुलाकातें
हाँ ! यही तो हैं यादें
ये भीड़ में तन्हाई का
अहसास कराती हैं
आँखों से अश्कों की
बरसात कराती हैं
सफर की हर चुभन
याद दिलाती हैं
जब भी आती हैं
ये ज़ख़्म कुरेद जाती हैं
अहसासों के शानों पर
ये कहकहे लगाती हैं
ज़हन की तारीकियों में
ये अपना घर बनाती हैं…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 3:54pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on May 7, 2016 at 7:30pm — 4 Comments
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...
दूर दूर तक
काली सड़कें
न पीपल न छाँव
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
नीला अम्बर
पड़ गया काला
अब धरा पे फैला धुंआ
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
कंक्ट्रीट के
जंगल फैले
अब दिखता नहीं कुआं
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
हल-बैल का
अब युग बीता
ट्रैक्टर हुआ जवां
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
सांझ के खेले
ढपली मेले
खो गए जाने कहाँ
अखियाँ ढूंढें अपना…
Added by Sushil Sarna on May 6, 2016 at 6:01pm — 6 Comments
ख़्वाबों के पैराहन से ....
कभी कभी ज़िंदगी
अपने फैसलों पर
खुद पशेमाँ हो जाती है
मुहब्बत के हसीं मंज़र
ग़मों की गर्द में छुप जाते हैं
थरथारते लबों पे
लफ्ज़ कसमसाते हैं
तल्खियां हर कदम राहों में
यादों के नश्तर चुभोती हैं
खबर ही नहीं होती
मौसम पलकों पे ही बदल जाते हैं
चार कदम के फासले
मीलों में बदल जाते हैं
हमदर्दियों के बोल
लावों में तब्दील हो जाते हैं
सांसें अजनबी बन जाती हैं
कोई अपना
कब चुपके से…
Added by Sushil Sarna on May 5, 2016 at 8:27pm — 4 Comments
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