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Sushil Sarna's Blog (835)

चाँद के माथे पे शायद ...........

चाँद के माथे पे शायद .......

चाँद के माथे पे शायद

दुनिया के लिए सिर्फ दाग है

पर दाग वाला चाँद ही

आसमां का ताज़ है

करता वो अपनी चांदनी से

मुहब्बतों की बरसात है

है नहीं वो दिल ज़मीं पे

जिसमें वो बसता नहीं

हों खुली या बंद पलकें

ये हर पलक का ख़्वाब है

अब्र से सावन में छुपकर

वो झांकता है इस तरह

हो रही ज़ुल्फ़ों से जैसे

नूर की बरसात है

हर खुशी के लम्हों में

होते हैं पल कुछ ऐसे भी

बीती शब के दर्द के…

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Added by Sushil Sarna on September 1, 2015 at 5:41pm — 8 Comments

अंगूठी (लघु कथा ) ....

अंगूठी (लघु कथा )

'नहीं,नहीं … देखो अब इस घर में रहना शायद मुमकिन नहीं है। 'रेनू ने गुस्से में अपने पति रणधीर से कहा और बैग में अपने कपड़ों को रखने लगी। ''दीपू चलो अपने खिलोने उठाओ और अपने बैग में रखो। ''रेनू ने अपने सात साल के बेटे को करीब करीब डांटते हुए कहा। दीपू भौंचका सा डर कर अपने पापा की तरफ देखकर अपने खिलौने बैग में रखने लगा। ''देखो रेनू ! यूँ छोटी छोटी बातों पर रूठ कर ज़िंदगी के बड़े फैसले नहीं लिए जाते। क्या हुआ अगर मम्मी ने तुम्हें बर्तन साफ़ करने के लिए कह दिया। उनकी…

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Added by Sushil Sarna on August 31, 2015 at 2:39pm — 10 Comments

ख़्वाब :......

ख़्वाब :....

हकीकत के बिछोने पर

हर ख़्वाब ने दम तोड़ा है

नहीं, नहीं

ख़्वाब कहाँ दम तोड़ते हैं

हमेशा इंसान ने ही दम तोड़ा है

हर टूटता ख़्वाब

इक नए ख़्वाब का आगाज़ होता है

हर नया ख़्वाब

फिर इक तड़प दे जाता है

और चलता रहता है

सूखे हुए गुलाबों की

सूखी महक में जीने का सिलसिला

इंसान को शबनमी ख़्वाबों में

फ़ना होने की

आदत सी हो गई है

बस, ख्वाब को मंज़िल समझ

अंधेरों से लिपट कर जीता है

दर्द को साँसों में घोल…

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Added by Sushil Sarna on August 25, 2015 at 3:57pm — 4 Comments

चेप्टर-२ -कुछ क्षणिकाएँ :....

चेप्टर-२ -कुछ क्षणिकाएँ :

1.

वो साकार है या निराकार है

पता नहीं

वो है

मगर दिखता नहीं

फिर भी वो

जीवन का आधार है

शायद उसी को

दुनिया कहती है

ईश्वर



………………............

2.

कितना विचित्र है

हमारा साथ होना

एक लम्बी चुप

सांसें भी निःशब्द

एक दूसरे के वास्ते

भाव शून्यता

पत्थर सा प्यार

दम तोड़ते सात फेरों के वादे

उठायेंगे सात जन्म

जर्जर  होता …

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Added by Sushil Sarna on August 13, 2015 at 12:30pm — 2 Comments

ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा)......

 ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा).......

आज सुशील अपने बेटे के बर्थडे पर बहुत खुश था। कवि होने के नाते उसने अपने पितृभाव को तो कागज़ पर उतार दिया था लेकिन फिर भी सोचा कि इसके साथ अगर एक ग्रीटिंग कार्ड भी दे दिया जाए तो बेटा खुश हो जाएगा। ग्रीटिंग कार्ड की बड़ी सी शॉप में जाकर वो कार्ड देखने लगा। कुछ देर के बाद दुकानदार ने पास आकर कहा '' सर, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ। '' सुशील ने युवा जोड़ों की भीड़ में सकपकाते हुए कहा '' अरे हाँ , देखिये दरअसल मुझे बाप द्वारा बेटे को बर्थडे पर दिए…

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Added by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 3:50pm — 22 Comments

मील के पत्थर ....

मील के पत्थर....

पत्थर पर तो हर मौसम

बेअसर हुआ करता है

दर्द होता है उसको

जिसका सफ़र हुआ करता है

सिर्फ दूरियां ही बताता है

निर्मोही मील का पत्थर

इस बेमुरव्वत पे कहाँ

अश्कों का असर हुआ करता है

हर मोड़ पे मुहब्बत को

मंजिल करीब लगती है

हर मील के पत्थर पे

इक फरेब हुआ करता है

कहकहे लगता है

दिल-ऐ-नादाँ की नादानी पर

हर अधूरे अरमान की

ये तकदीर हुआ करता है

कितनी सिसकियों से

ये रूबरू होता है मगर

पत्थर तो पत्थर है…

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Added by Sushil Sarna on August 10, 2015 at 8:26pm — 12 Comments

कर सत्य को अंगीकार...

कर सत्य को अंगीकार  ....

आवरण से श्रृंगार किया

माया से किया प्यार

अन्तकाल संसार ने

सब कुछ लिया उतार

अद्भुत प्रकृति है जीव की

ये भटके बारम्बार

लौ लगाये न ईश से

पगला बिलखे सौ सौ बार

शीश झुकाये मन्दिर में

हो जैसे कोई मज़बूरी

अगरबत्ती भी यूँ जलाए

जैसे ईश पे करे उपकार

कपट कुण्ड में स्नान करे

और विकृत रखे विचार

कैसे मिलेगा जीव तुझे

उस पालनहार का प्यार

सत्य धर्म है,सत्य कर्म है

सत्य जीवन आधार

ईश स्वयं…

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Added by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 1:13pm — 8 Comments

चढ़ावा - लघुकथा.....

चढ़ावा - लघुकथा

''दादू .... !''

''हूँ .... !''

''हम मंदिर में पैसे क्यों चढ़ाते हैं … ?''

''बेटे , हर आदमी को अपनी नेक कमाई से कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार प्रभु के चरणों में अर्पण करना चाहिए। ''

''लेकिन दादू , आप तो कहते हैं कि हमारे पास जो भी है तो प्रभु का दिया है … . । ''

''हाँ तो … । ''

''तो जब सब कुछ प्रभु ही देते हैं तो हम फिर उन्हें पैसे क्यों चढ़ाते हैं ?''

दादू निरुत्तर हो पोते का मुख देखने लगे।

सुशील सरना

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 3:54pm — 12 Comments

कुछ क्षणिकाएँ :.....

कुछ क्षणिकाएँ :

१.

कितना अद्भुत है

ये जीवन

कदम दर कदम

अग्रसर होता है

एक अज्ञात

संपूर्णता की तलाश में

और ब्रह्मलीन हो जाता है

एक अपूर्णता के साथ

२.

छुपाती रही

जिसकी मधु स्मृति को

अपने अंतस तल की गहराई में

वो खारी स्याही से 

कपोल पर ठहर

इक बूँद में

विरह व्यथा का

सागर लिख गया

३.

मैंने सौंप दिया

सर्वस्व अपना

जिसे अपना मान

छल गया वही

पावन प्रीत को …

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Added by Sushil Sarna on August 4, 2015 at 1:30pm — 8 Comments

बुनियाद (लघुकथा)

''सुनो बंटी के पापा , काहे इतना विलाप करते हो। ''

''बंटी की माँ .... तुम्हें क्या पता ,पिता के जाने से मेरे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त हो गया। ''

'' मैं आपके दुःख को समझ सकती हूँ। मुझे भी पिता जी के जाने का बहुत दुःख है लेकिन धीरज तो रखना पड़ेगा। आप यूँ ही विलाप करते रहेंगे तो उनकी आत्मा को चैन कहाँ मिलेगा। '' धर्मपत्नी ने ढाढस देते हुए कहा।

''वो तो ठीक है बंटी की माँ … लेकिन आज पिता के गुजर जाने से न केवल मेरे सिर से वटवृक्ष की छाया चली गयी बल्कि ऐसा लगता है मेरा जीवन की…

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Added by Sushil Sarna on July 31, 2015 at 8:00pm — 6 Comments

ये ज़िंदगी ....

ये ज़िंदगी ....

ज़िंदगी हर कदम पर रंग बदलती है

कभी लहरों सी मचलती है

कभी गीली रेत पे चलती है

कभी उसके दामन में

कहकहों का शोर होता है

कभी निगाहों से बरसात होती है

संग मौसम के

फ़िज़ाएं भी रंग बदलती हैं

कभी सुख की हवाएँ चलती हैं

कभी हवाएँ दुःख में आहें भरती हैं

बड़ी अजीब है ज़िंदगी की हकीकत

जितना समझते हैं

उतनी उलझती जाती है

अन्ततः थक कर

स्वयं को शून्यता में विलीन कर देती है

न जाने कब

ज़हन में यादों का…

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Added by Sushil Sarna on July 29, 2015 at 8:10pm — 2 Comments

अपने अधरों से ....

अपने अधरों से ....

अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना

अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना

श्वास  सुरों  में स्पंदन तुम्हारा

स्मृति  भाल पे चंदन  तुम्हारा

प्रेम  पंथ  की मन  कन्दरा  में

कोई विरह प्रथा न लिख जाना

अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना

अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना

संचित पलों  की  मृदुल अनुभूति

अभी रक्ताभ अधरों पर जीवित है

तुम नीर भरे नयनों के भाग्य…

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Added by Sushil Sarna on July 23, 2015 at 5:23pm — 4 Comments

चाँद मेरा आया है.........

चाँद मेरा आया है....

क्यों अपने रूप पे

ऐ चाँद तूं इतराया है

आसमां के चाँद सुन

मेरे चाँद का तू साया है

अक्स पानी में तेरा तो

इक हसीँ छलावा है

अक्स नहीं हकीकत है वो

जो इन बाहों में समाया है

वो ख़्वाब है मेरी नींदों का

हकीकत में हमसाया है

अपने हाथों से ख़ुदा ने

महबूब को बनाया है

एक शबनम की तरह

वो हसीं अहसास है

देख उसके रूप ने

तेरे रूप को हराया है

किसकी ख़ातिर बेवज़ह

देख तू शरमाया है

मुझसे मिलने चांदनी…

Added by Sushil Sarna on July 12, 2015 at 10:43pm — 4 Comments

चेप्टर-२ - विविध दोहे

चेप्टर-२ - विविध दोहे

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय

छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय

वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय

न्यून  वस्त्र  में आ गयी, वर्तमान  की नार

लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार

औछे  करमन से भला, कैसे सदगति होय

जैसी संगत  साथ हो,  वैसी  ही मति होय

पुष्प  छुअन  में शूल से,  कैसे दर्द न होय

टूट  के डारि  से भला,…

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Added by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments

सिर्फ देखा है जी भर के …

सिर्फ देखा है जी भर के …

सिर्फ देखा है जी भर के  हमने तुम्हें

इस ख़ता पे  न  इतनी सज़ा दीजिये

ज़िंदगी भर हम ग़ुलामी करेंगे मगर

रुख़ से चिलमन ज़रा ये हटा दीजिये

सिर्फ देखा है जी भर  के हमने तुम्हें

इस ख़ता पे न  इतनी  सज़ा दीजिये

हम फ़कीरों  का  दर कोई होता नहीं

हर दर  पे  फ़कीर  कभी  सोता नहीं

अब  खुदा  आपको  हम बना बैठे हैं

अब पनाह दीजिये या मिटा दीजिये

सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें

इस ख़ता पे न…

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Added by Sushil Sarna on July 7, 2015 at 4:15pm — 18 Comments

चेप्टर -1 - दोहे

चेप्टर -1 - दोहे

निंदा को आतुर रहें, करें नहीं गुणगान
मैल हिया में देख के ,रूठ गए भगवान

मालिक कैसा हो गया ,  तेरा ये इंसान
बन्दे तेरे लूटता , बन  कर वो भगवान


तेरा  अजब  संसार  है,हर  कोई  बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल


संस्कार  सब  खो गए ,  बढ़ने  लगी  दरार
जनम जनम के प्यार का, टूट गया आधार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 4:01pm — 22 Comments

संशोधित दोहे :...........

संशोधित दोहे :



कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान

विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान

पैसा  काम न  आयेगा, जब आएगा काल

रह  जाएगा  सब यहीं , काहे  करे  मलाल

काया माया का  भला , काहे  करे   गुमान

नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान

ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़

चुका  न  पाया  दूध का , जीवन में वो क़र्ज़

मानव  दानव  बन  गया, किया खूब संहार

पाप  कर्म से  कर  लिया,  पापी  ने…

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Added by Sushil Sarna on June 24, 2015 at 4:30pm — 18 Comments

चेहरे की रेखाओं में …

चेहरे की रेखाओं में …

जाने कैसी बेरहम हो तुम

सिसकने की वजह देकर

खामोशी से चली जाती हो

चेहरे की रेखाओं में

दर्द के रंग भर जाती हो

स्मृति के किसी कोने में कुछ दृश्य

मेरे अन्तःमन को विचलित कर जाते हैं

और मैं बेबस निरीह सा

अपने सर को झुकाये

काल्पनिक लोक के दृश्यों से

स्वयं को जोड़ने का

बेवजह प्रयत्न करता हूँ

जानता हूँ कि उन दृश्यों से

एकाकार असंभव है

फिर क्योँ तेरी प्रतीक्षा करूं

क्योँ तुझसे स्नेह करूं

ऐ नींद…

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Added by Sushil Sarna on June 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments

मेरे 3 मुक्तक ....

1.

थोड़ा सा झूठा  हूँ  ....

थोड़ा सा झूठा  हूँ थोड़ा  सा सच्चा हूँ

थोड़ा सा  बुरा  हूँ थोड़ा  सा अच्छा हूँ

भुला देना दिल से  मेरी गल्तियों को

दिल से तो यारो मैं थोड़ा सा बच्चा हूँ

सुशील सरना

......................................................

2.

तेरे अल्फ़ाज़ों से....

तेरे अल्फ़ाज़ों से हसीन जज़्बात बयाँ होते हैं

तेरे ख़तूत में कुछ बीते लम्हात निहाँ होते हैं

हर शब तेरे जिस्म की बू  से लबरेज़ होती है

हर ख़्वाब में बस तेरे…

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Added by Sushil Sarna on June 13, 2015 at 1:30pm — 4 Comments

धड़कन भी खो जायेगी....

आओ न !

मेरे शब्दों को सांसें दे दो

हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में

मेरे स्नेहिल शब्द

तुम्हें सम्बोधित करने को

आकुल रहते हैं

गयी हो जबसे

मयंक भी उदासी का

पीला लिबास पहन

रजनी के आँगन में बैठ

तुम्हारे आने का इंतज़ार करता है

न जाने अपने प्यार के बिना

तुम कैसे जी लेती हो

यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है

तुम बिन हर सांस अंतिम सांस है

तुम नहीं जानती

तुम्हारी न आने की ज़िद क्या कहर ढायेगी

जिस्म रहेंगे मगर

जिस्मों से…

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Added by Sushil Sarna on June 9, 2015 at 2:44pm — 16 Comments

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