नीला नभ
फिर निखर गया
लौट चले
बादल के यूप
कच्चे गुड़ की
गंध समेटे
नाच रही
मायावी धूप
खिलखिल करती
कास की पंगत
कासर घंटे
अगरू धूप
फुदक रही
फिर से गौरैया
माटी सोना
चांदी धूप
Added by राजेश 'मृदु' on November 1, 2012 at 5:00pm — No Comments
अनायास
तरंगित कल्मषों
बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर
किसी निविड़ एकांत में
जब समस्त दिशाएं खो चुकी हों
अपनी पगध्वनि
सारे पदक्षेप
और तिरोहित हो चुके हों
निष्ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,
अपनी सारी भभक सारी तपिश
और साथ लेकर अपने
सारे चटकीले रंग
आना तुम भी
बस एक बार…
Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
कुहरीले जंगल में हंसती
हरी हवा सी चलती हूं
मुक्त गगन से गिरी ओस हूं
तृण टुनगों पर पलती हूं
हू हू करता आंख दिखाता
रे तमस किसे भरमाता है
देख मेरा बस एक नाद ही
कैसे तुझे जलाता है
अभी जरा निष्पंद पड़ी हूं
कहां अभी तक हारी हूं
भूल न करना मरी पड़ी हूं
अबला,बाल,बेचारी हूं
अरे कुटिल यह चाप तुम्हारा
वृथा चढ़ा रह जाएगा
तेरा ही तम कहीं किसी दिन
तुझको भी डंस…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments
कैसे कह दूं हिंद हूं मैं
चीन हूं या अमरीका हूं
यूरोप शुष्क भावों की धरती
या अंध देश अफ्रीका हूं
प्रिय विछोह के विरह ताप से
सहस्त्र युगों तक तप्त रही मैं
निर्जनता के दु:सह शाप से
सदियों तक अभिशप्त रही मैं
लखकर तब मेरे विषाद को
दृग केशव के भर आए थे
असंख्य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर
अश्रु के अर्ध्य चढ थे
मुरली से फिर जीवन फूटा
उल्लासित दशों दिशाएं थी
ओढ ओस की झीनी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 3:58pm — 9 Comments
आंखें करे शिकायत किनसे
वही व्यथा क्यों ढोते हैं
बीज वपन तो करता मन है
वे नाहक क्यों रोते हैं
पलकों की बंदिश में हरदम
क्यों वे रोके जाते हैं
और तड़पते देह यज्ञ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 5, 2012 at 3:55pm — 7 Comments
तेरे भी ख्वाबों में कोई
अलबेली आई तो होगी
कनक कलश भर सुधा लुटाते
क्षितिज नए लाई तो होगी
उसकी कोरी एक छुअन से
पोर-पोर जागी तो होगी
पलक बंद कर तुमने भी तो
Added by राजेश 'मृदु' on October 4, 2012 at 7:31pm — 4 Comments
फूलों का सफर या
कांटों की कहानी
क्या कहूं कैसी है
ये जिंदगानी
कभी तो इसी ने
आंखों से पिलाया
बड़ी बेरूखी से
कभी मुंह फिराया
गम की इबारत या
जलवों की कहानी
क्या कहूं कैसी है
ये जिंदगानी
कभी सब्ज पत्तों पर
शबनम की लिखावट
कभी चांदनी में
काजल की मिलावट
कभी शोखियों की
गुलाबी शरारत
कभी तल्ख तेवर की
चुभती…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:46pm — 3 Comments
जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्या भूलूं क्या याद करूं
भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्या भूलूं क्या याद करूं
भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्या भूलूं क्या याद करूं
उजड़े उपवन के माली से
प्रस्तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं
क्या भूलूं क्या याद करूं
Added by राजेश 'मृदु' on September 26, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
जानूं नहीं ये मेरी उलझन
कहां ठिकाना पाएगी
कबतक जीवन यूं ही मुझको
चौराहों तक लाएगी
जिसको भी आवाज लगाई
वही मिला घबराया सा
घनी धुंध की परत लपेटे
सुबह भी था कुम्हलाया सा
जाने कौन गढ़े जा रहा
दीवारों पर ठिगने साए
खोह-कन्दरा-तमस छुपाके
नीले पड़ गए हमसाए
स्वर्ण छुआ तो राख मिली
राई-रत्ती भी खाक मिली
बस कोहरे ही रह गए हमारे
फूलों में भी आग मिली
जो करीब थे दूर हुए
सुख के पल कर्पूर हुए
शेष बची जो थोड़ी…
Added by राजेश 'मृदु' on September 13, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
कई मोड़ हैं
मेरी हथेली पर
हांफते हुए
ख्वाब में डूबे
कुछ चश्में भी तो हैं
कांपते हुए
नीले पड़ाव
धुंध में फिसलते ...
सैलाब भी हैं
सुर्ख परियां
वजू करते हाथ
हुबाब भी हैं
कम भी नहीं
इतनी खामोशियां
जीने के लिए
बेदर्द जख्म
काफी है इतना ही
अभी के…
Added by राजेश 'मृदु' on September 12, 2012 at 3:30pm — 6 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on September 11, 2012 at 2:52pm — 9 Comments
याद है तुम्हें वे ढाक के पेड़
जहां ऐसे ही सावन में
हम-तुम भींगे थे.....
और....कितना रोया था मैं
कि पहली छुअन की सिहरन
को पचा नहीं पाया ...
उस विशाल मैंदान की मांग.....
जब मेरे साइकिल पर
तुम बैठी थी और
Added by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 2:40pm — 2 Comments
जब भी गुमसुम तन्हा तट पर
बरबस तुम आ जाओगे
वहीं लहर के श्रृंग तोड़ते
मुझको तुम पा जाओगे
बिछुड़े पल के दीप तले
जब अश्रु अर्घ्य चढ़ाओगे
वहीं शिखा की छाया छूते
मुझको तुम पा जाओगे
छोड़-छोड़ सौन्दर्य प्रसाधन
जब कुंतल तुम बिखराओगे
वहीं किसी दर्पण में हंसते
मुझको तुम पा जाओगे
ना कहना ना मुझको छलिया
फिर किसको प्रीत सिखाओगे
पायल,कंगन,बिंदी,अंजन में
मुझको तुम पा…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on August 23, 2012 at 4:08pm — 9 Comments
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
जग सा ही बदहाल रहा हूँ
फटा-चिटा कल टाल रहा हूँ
किसी ठूँठ सा जड़ित धरा पर
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
हरित प्रभा, बिखरी तरुणाई
पतझड़ पग जब फटी बिवाई
ओस कणों पर प्यास लुटाए ...
घूर्णित पथ बेहाल चला हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
पतित-पंथ को जब भी देखा
दिखी कहाँ आशा की रेखा
बड़ी तपिश, था झीना ताना…
Added by राजेश 'मृदु' on August 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
जब मेरे जीवन की बाती
फफक-फफक बुझने लगे
और मोह छनकर हृदय से
प्राण को दलने लगे
लोचन मेरे जब नीर लेकर
मन के कलुष धोने लगे
और पाप नभ सा मेरा वो
प्रलय-नाद करने लगे
Added by राजेश 'मृदु' on August 19, 2012 at 1:19am — 2 Comments
कवि तेरे भी
कवि तेरे भी मन में
कोई तो विरहिणी
रहती है
श्वेत शीत पड़ी
किरण देह सी…
Added by राजेश 'मृदु' on August 14, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
ऑनर किलिंग पर एक रचना
बेटियां मरती नहीं
मेरे बालों में
वही फूलोंवाली क्लिप
अभी भी लगी है
और फैली है
मेरे चेहरे पर
तुम्हारी…
Added by राजेश 'मृदु' on August 13, 2012 at 9:50pm — 7 Comments
किसके मन में नहीं वेदना
विकल प्राण की धरणी है
कौन प्रतापी धूसर पग से
पार हुआ वैतरणी है ?
किसके मन में ......
कौन विधु परिपूर्ण कला से
गगन खिला अभिराम लला से
कल्पवृक्ष यहां किसे मिला है
कौन अमर निर्झरणी है ?
किसके मन में.....
किसके पगतल भंवर नहीं हैं
गुहा-गर्त कुछ गह्वर नहीं हैं
दशो दिशा किसकी पूरब है ?
कौन वृत्त विकर्णी है ?
Added by राजेश 'मृदु' on August 13, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
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