दो पल की है ज़िन्दगी,हँस के जी लो यार !
कटुता को अब भूलकर ,बाटो थोड़ा प्यार!!
देने से मिलता सदा,खुद को भी सम्मान !
इस निवेश की गूढ़गति ,ध्यान रखें श्रीमान !!
रोम रोम पुलकित हुआ ,कितना कोमल वार !
अधरों पर मुसकान है ,तिरछे नैन कटार!!
मधुर कंठ की स्वामिनी,कोमल मृदु बर्ताव !
कष्टों पर औषधि सदृश ,भर जाती है घाव !!
घर घर में दिखते मुझे,दुस्शासन लंकेश !
फिर कैसे बँधते भला,द्रुपद सुता के केश!!
गिरते पत्ते…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on December 11, 2013 at 12:08am — 24 Comments
व्यर्थ प्रपंचन छोड़कर,मीठी वाणी बोल!
कर तू खुद ही न्याय अब,अंतर के पट खोल !!
धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !
जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !!
लोगों को क्या हो गया,करते उल्टी बात !
कहें रात को दिवस अब ,और दिवस को रात !!
शब्दों के सामर्थ्य का, ऐसा हो अध्याय।
चले लेखनी आपकी, लिखे न्याय ही न्याय॥
नीति नियम दिखते नहीं ,भ्रष्ट हुए सब तंत्र !
जिसे देखिये रट रहा ,लोलुपता का…
Added by ram shiromani pathak on November 26, 2013 at 11:30pm — 28 Comments
पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!
कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!
अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!
प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!
विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह…
Added by ram shiromani pathak on November 20, 2013 at 11:30pm — 31 Comments
चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै !
लाल कपोल लगे उसके अरु ,होंठ कली जइसे मुसकावै !!
भाग रहा नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै !
नेह भरे अपने कर से फिर ,लाल दुलारत जात खिलावै !!
******************************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 1:30pm — 28 Comments
१-डर
भयातुर आँखें
शक की नज़रों से देखती सबको
विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज
कब क्या कर बैठे किसे पता
२-सत्य
जीवन एक तहखाना है
हम सब कैदी
जो ईश्वर से प्यार नहीं करता
वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है
और जो ईश्वर से प्यार करता है
वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है
३-रहस्य
ये कैसा रहस्य है
सारी उन्मनता.
सारी व्यग्रता
सारी म्लानता
तुम्हारे नेह की तरलता…
Added by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 10:22pm — 21 Comments
ज्योतिपर्व की रात में ,करो तिमिर का नाश!
सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!
शांतिदीप घर घर जले ,समय तभी अनुकूल !
आपस में सौहार्द हो,कटुता जाओ भूल !!
ज्योतिपर्व की रात में ,तुम्हे समर्पित तात !
जीवन यूँ जगमग रहे ,दीपों की सौगात!!
मन में शुभ संकल्प लो,हाँथो में ले दीप !
अंतस का कल्मष छटे ,मन का आँगन लीप !!
मन का अँधियारा छटे,कटे दम्भ का जाल !
पहनाओ कुछ इस तरह ,दीपों की इक माल !!
ज्योतिपर्व…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on November 3, 2013 at 11:30am — 26 Comments
१-सुकून
सुनों
आज के बाद तंग नहीं करूँगा
चला जाऊँगा
बस एक बार क्षण-भर
आओ बैठो मेरे पास
तुम्हारे आने से
जिंदा हो उठता हूँ
२-अकेला
दुख के सन्नाटे से
लड़ रहा हूँ
तभी तो
आज फिर अकेला हूँ
३-मंत्री भूखानंदजी
करोड़ों का माल गटक गए
सुना है आज फिर
भूख हड़ताल पे बैठे है
४-साथ
मै तो ग़मों का रेगिस्तान था
वो तो तुम्हारे आने से सादाब हो…
Added by ram shiromani pathak on October 28, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
लोभ कपट को त्यागकर ,रखो परस्पर नेह !
शुद्ध विचारों से करो ,शीतल अपनी देह !!१
याचक भी राजा बना ,राजा मांगे भीख !
काल चक्र से भी तनिक ,ले लो भाई सीख !!२
इतना तुम क्यूँ रो रहे ,भाई घोंचू लाल !
किसने पीटा आपको ,गाल दिखे हैं लाल!!३
अधर तुम्हारे पुष्प से ,मेरे प्यासे नैन !
जिस दिन तुम दिखती नहीं ,रहता हूँ बेचैन !!४
उन्हें देख जलने लगा ,मन का बुझा चिराग !
शनै: शनै: अब फैलती ,पूरे तन में आग…
Added by ram shiromani pathak on October 25, 2013 at 6:51pm — 24 Comments
१-मीठा ज़हर
आज फिर खाली हाथ लौटा घर को
मायूसी का जंगल उग आया है
चारों तरफ
फिर भी मै
हँस के पी जाता हूँ दर्द का मीठा ज़हर
२- एहसान
एक एहसान कर दो
जाते जाते
समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।
आज जी भर कर सोना है मुझे
३-महान
सम्मान बेचकर भी
ह्रदय अब तक स्पंदित है
आप महान हो
४-तकिया
अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे
पता है क्यूँ?…
Added by ram shiromani pathak on October 25, 2013 at 4:30pm — 32 Comments
गाँव बसे कैसे भला ,करते बंदरबांट !
कम्बल तो देते मगर ,लूट लिये सब खाट !!१
हंस देखता रह गया ,बगुले के सर ताज !
गीदड़ अब राजा बना ,गीदड़ सिंह समाज !!२
आदि अंत सब हैं वही ,उनका ही संसार !
वो मिटटी के तन गढ़े ,कितने कुशल कुम्हार !!३
धन की चंचल चाल का ,फैला है भ्रमजाल !
जो पाते वो भी विकल ,बिन पाए बेहाल !!४
पर पीड़ा दिखती नहीं, ऐसे कैसे लोग!
दीमक जैसा खा रहा ,लालच नामक रोग !!५…
Added by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 8:30pm — 21 Comments
सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१
प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२
प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३
रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४
अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को…
Added by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:30pm — 32 Comments
समय समय की बात है ,देखो बदली रीत !
मौन कोकिला हो गयी ,कौवे गाते गीत !!१
दुबका दुबका सच दिखे ,सहमा सहमा धर्म !
जबसे लोगों के हुए ,उल्टे गंदे कर्म !!२
मेरे प्यारे गाँव की ,बदल गयी तसवीर !
वही नदी है ,नाव है, किन्तु न दिखता नीर !!३
देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !!४
तन पर कपड़ों की कमी ,हाड़ कपाती शीत !
बना गरीबों के लिए ,यही दर्द का गीत !!५
लालच कटुता…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 4:38pm — 26 Comments
सत्कर्मों से जो सदा ,खेता है पतवार ,
समझो वो नर हो गया ,भवसागर से पार !!१
राम नाम ही सत्य है ,कहते वेद पुराण!
रमा राम के नाम जो ,उसका ही कल्याण !!२
ज्ञान चक्षु को खोलकर ,ऐसा दीपक बार !
जिससे घटता दंभ तम ,छटते मलिन विचार !!३
श्रद्धानत हो पूजते ,मन में दृढ़ विश्वास !
ऐसे नर के हिय सदा ,शिव शम्भू का वास !!४
सब धर्मों का सार यह ,सुनिये मेरी बात!
फल भी वैसा ही मिले ,जैसी करनी तात !!५
सहज नहीं…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 10:30am — 28 Comments
१ -उस दिन
रोज़ की तरह
उस दिन भी वो मिलीं मुझसे
हँसते हुए
लेकिन हँसी
अजीब सी लगी उनकी
जैसे कोई ईमानदार कर्मचारी
बेइमान अफ़सर को इस्तीफ़ा सौपे
और वो मुस्कुरा दे
**********************************
२-ऐसा भी
रक्त पिपासु कीड़ा
आखिरी बूँद तक चूस गया
अरे ये क्या?
शिकारी कुत्ते भी है
हड्डियाँ चबाने के लिए
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on September 16, 2013 at 10:07pm — 26 Comments
वज़न -२२१२ २२१२
ठगते रहे सब प्यार में!
बिकता रहा बाज़ार में !!
लेने चला मै रौशनी!
पागल सा अन्धे गार में !!
खुद ही बताता है जखम !
थी धार क्या औज़ार में !!
कैसे नहीं गिरती भला !
थी रेत ही दीवार में !!
कैसे करूँ तारीफ़ मै!
दम ही कहाँ अशआर में !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on September 16, 2013 at 9:00pm — 34 Comments
समय बड़ा बलवान है ,देता सबको सीख !
पड़ जाती है माँगनी ,राजा को भी भीख !!१
अपना अपना बोलकर ,भरते अपना पेट !
मानवता भी चढ़ गयी ,यहाँ स्वार्थ की भेंट !!२
जहर उगलते है यहाँ ,आपस में ही लोग!
फिर कैसे सौहार्द हो ,कैसे जाये रोग !!३
अज्ञानी देने लगा ,जबसे सबको ज्ञान !
ऐसे मूर्ख समाज का ,कैसे हो कल्यान !!४
ऊँच नींच कोई नहीं ,सुन ईश्वर पैगाम !
बड़े प्रेम से खा गए ,सबरी के फल राम !!५
पैसे से होती यहाँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on September 6, 2013 at 9:00pm — 28 Comments
उदित हुए रवि प्रेम के ,समय बड़ा अनुकूल !
ह्रदय प्रफुल्लित हो गया ,फूले मन के फूल !!1
प्रेम सुनाता है सुनों ,गाकर सुन्दर गीत !
यह जीवन दिन चार का ,सीखो करना प्रीति !!2
लिए पोटली प्रेम की ,सबसे हँसकर बोल !
प्रेम भरे दो बोल ही ,देते अमृत घोल !!3
मन में खिलते फूल है ,महकी महकी रात !
तन मन पुलकित हो गया, की है ऐसी बात !!4
बजी बाँसुरी प्रेम की ,सुन्दर कितनी तान !
मेरे मन को मोहती ,उनकी मृदु मुस्कान…
Added by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 7:51pm — 24 Comments
कई साल बाद लौटा
बहुत कुछ बदला लगा
विकास ही विकास
कस्बा अब शहर हो चुका है
अरे ये क्या ?
जहाँ पेड़ों का एक झुण्ड था
वहाँ बड़ी बड़ी इमारतें
सीना ताने खड़ीं है
मृत पेड़ों की देह पर
ठहाके मारती
कोई दुःख नहीं
पेड़ों की
अकाल मृत्यु पर
विकास रुपी राक्षस को बलि देकर
खुश थे लोग
******************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 8:27pm — 30 Comments
रात भर सोया नहीं
बस सोचता रहा
कब काली रात जायेगी
रवि अपनी किरणें फैलाएगा
बहुत लम्बी रात थी
जो नहीं था उसे खोजता रहा
अंतहीन धुंध के खौफ से
डरता कांपता
बार-बार खुद से यही पूछता
क्या सफल हो पाऊंगा?
सुबह हुई
पर कोई नयापन नहीं
अचानक
चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा
एक भी पत्ते नहीं थे
शायद !मुझसे कह रहा था
धैर्य रखो बसंत आने तक।
*******************************
राम…
Added by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 2:38pm — 27 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 2, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
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