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Ashok Kumar Raktale's Blog (72)

गुरु (शिक्षक)

गुरु ऐसा दीजिये प्रभु,चेला बने महान II

गुरु की भी अटकी रहे,चेले में ही जान II

चेले में ही जान,काम ऐसे कर जाए I

खुद का जो हो नाम,मशहूर गुरु हो जाए II

चेला ले गुरु नाम,सदा इश्वर के जैसा I

होवे बेड़ा पार, मिले जीवन गुरु ऐसा II





शिक्षा सदा वशिष्ठ से, पाते हैं श्रीराम I


और है श्रीकृष्ण से,सांदिपनी का नाम II

सांदिपनी का नाम, इश्वर भाग्य विधाता I

चतुर चाणक्य नाम,याद बरबस आ जाता II…

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Added by Ashok Kumar Raktale on September 3, 2012 at 8:30am — 10 Comments

चंद कुंडलिया छंद!

नेता





नेता सा वह आदमी, होता था जो आम /

जा संसद में बैठता, होता है बदनाम //

होता है बदनाम, काम के लेता पैसे /

दिया अमूल्य वोट, दें फिर कैसे पैसे //

गया महल में बैठ, रहा झुग्गी में सोता /

बन गया ये खास, आम रहा नहीं नेता //





बोले हरदम झूठ जों, नेता वही कहाय/

ओछे करके काम जों, मोटा माल बनाय//

मोटा माल बनाय,निराले सपन दिखाता/

भूखा सोय गरीब, ये मोबाईल लाता//

बोले यही अशोक, बचो धोखे से भोले/

नेता वही कहाय, हरदम झूठ जों…

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 28, 2012 at 8:30am — 3 Comments

सावन.(कुंडलिया)

सावन   नभ  पर    छा गया,  हरियाए    सब  खेत/

हरियाली     छा   ने   लगी,  ओझल   बालू    रेत//

ओझल   बालू    रेत,     हरित    होते  सब  जंगल/

कल कल नदी का शोर, बहे झरने भी…

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 12:00am — 9 Comments

हरिगीतिका छंद एक प्रयास.

(चार चरण, १६ + १२ =२८ मात्राएं और अंत में लघु गुरु)

 

हरि जनम हो मन आस  लेकर, भीड़ भई  अपार  है/

हरि भजन गुंजत चहुँ दिसी अरु,भजत सब नर नार हैं//

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की  ठपकार  है/

मुरली बाजत  मधुर  शंख  ही,  गुंजाय   दरबार …

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 10:30pm — 11 Comments

मान या ना मान.

 

(सूर घनाक्षरी एक प्रयास)

कानों में रस घोलती, कोयल की मीठी तान,

अमवा पे है बोलती,  मान या ना मान.

                             .

दादीमाँ ने नुस्खे लिखे,ज्यों औषधियों की खान,

घर  में ही  सब मिले,मान या ना मान.

                             .

संकट में जो साथ दे, तू भाई उसे ही जान,

यूँ…

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Added by Ashok Kumar Raktale on July 26, 2012 at 8:00pm — 14 Comments

श्रावणी हाइकू.

फिर लो आया

झीनी फुहारें लाया

सावन आया.

:

लो फूल खिले

कलियाँ भी…

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Added by Ashok Kumar Raktale on July 23, 2012 at 2:09pm — 6 Comments

आभास!

“हूँ, कुछ कहा”. “कुछ भी तो नहीं”.”मुझे लगा शायद तुम कुछ बोले”. अक्सर ऐसा होता है जब किसी से बात करने का मन हो किन्तु जुबान खामोश हो.एक आवाज कान में गूंजने का आभास होता है.खामोशी में भी ये आवाज कहाँ से आती है?  ये आभास कैसे होता है? कभी नहीं जान सका. कई बार घर में अकेले बैठे हों और बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है जब हम वहाँ जाकर देखते हैं तो पता चलता है वहाँ तो कोई भी नहीं है.

कई बार पलंग पर पड़े…

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Added by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 7:30am — 11 Comments

मै वृक्ष हो गया.

पौधा था छोटा था

लगता था अब गया तब गया

कभी बारिश की बुँदे

सुहानी लगती थी

कभी लगता डूब गया डूब गया,

हिम्मत करके टहनियां बढ़ाई,

नयी कोपलें बिखराई,

अब गगनचुम्बी वृक्षों को

छूने लगी टहनियां,

लगा मै भी खडा हो गया खडा हो गया,

मगर पुष्पों के खिलने तक

अहसास नहीं हो पाया बड़ा होने का,

फलों से लदते ही लगा

मै बड़ा हो गया बड़ा हो गया,

मै भूल गया

वो छुटपन का अहसास

ना डर रहा कुछ खोने का

ना उत्साह और कुछ पाने का,

दे रहा हूँ आश्रय आने जाने…

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Added by Ashok Kumar Raktale on May 19, 2012 at 9:00am — 20 Comments

बचपन

याद तुम्हारी आते ही मन व्याकुल हो जाता है,
छूट गया वो साथ जो कभी नहीं फिर आता है.
 
कितना था आनंद कितना था फिर प्यार वहां,
कितने थे कोमल सपने कितने थे अरमान…
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Added by Ashok Kumar Raktale on May 7, 2012 at 6:00pm — 16 Comments

हाइकु

गुमनाम है

बड़ा बदनाम है

हाँ गुलाम है.

....................

रिश्ते नाते हैं

बड़ा ही रुलाते हैं.

टूट जाते हैं.

..................

वृक्ष रोते हैं

जनता हंसती है,

कैसी बस्ती है.

.......................

सुखा कंठ है,

मनवा उदास है,

कैसी प्यास है.

.......................

 तू ही जीत है

तुझसे ही प्रीत है,

तू ही मीत है.

.....................

 भ्रष्टाचार है,

ठोस जनाधार है,

 सरकार है.…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2012 at 6:30pm — 18 Comments

सपने

तम में अपनी तुणीर बाँध कर जब ये चलते हैं,

मेरे ह्रदय मन आँगन से रोज निकलते हैं,

एक बाण और कई लक्ष्य दें मन को छलते हैं,

मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,

सुप्त पड़ी काया में तो निशदिन खेल ये करते हैं,

श्वेतश्याम से आकर मन में रंग ये भरते हैं,

कई बार मुरझाये मन में यह उजियारा करते हैं,

और मानव के जगने तक नैनों में ठहरते हैं,

कभी पूर्णता पा जाएँ सोच कर मन में टहलते हैं,

मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,

छूकर मानव के मन…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 9, 2012 at 6:43am — 2 Comments

सत्य का प्रहार

अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

धन की बहुत लालसा  बिके हुए जमीर हैं.

तन के महाराज सभी  मन के ये फ़कीर हैं.

विवश  अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

                   

कौम अब पुकारती  न और इन्तजार कर,

रक्त से बलिदान के सींचित इस…

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Added by Ashok Kumar Raktale on March 25, 2012 at 4:25pm — 10 Comments

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