(१)
शक्तिशाली खूब बनो,साहस हो भरपूर.
विनम्रता के भाव ही,मन में रहे प्रचूर.
मन में रहे प्रचूर ,सादगी का गहना हो.
अपनी जरुरत की सरहद में ही रहना हो.
कहता है अविनाश,बढ़ेगी तब खुशहाली.
जीवन अपना और बनेगा शक्तिशाली.
(२)
भाई से भाई टकरा के होते है बरबाद.
दुश्मन के सारे मंसूबे हो जाते आबाद.
हो जाते आबाद,सभी तुम पर हंसते है.
टूटा घर दिखलाकर सब फिकरे कसते हैं.
कहता है अविनाश रोकिये जगत हंसाई
घर का झगडा घर में…
Added by AVINASH S BAGDE on February 5, 2012 at 1:00pm — 6 Comments
ग़ज़ल...
Added by AVINASH S BAGDE on February 2, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
हाइकू.
Added by AVINASH S BAGDE on January 27, 2012 at 7:03pm — 5 Comments
उठो साथियों!
Added by AVINASH S BAGDE on January 25, 2012 at 11:41pm — 3 Comments
पेंच जो लड़ी......
चढ़ी पतंगे डोर पे,छूने को आकाश.
होड़ मची है काट की,उड़े पास ही पास.
उड़े पास ही पास,उमंगें नभ को छूती.
वो...काट की बोल रही,होंठों पे तूती.
कहता है अविनाश पेंच जो लड़ी,
कटी पतंगें कहलाती ,दम्भी और नकचढ़ी.
अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on January 13, 2012 at 11:07am — 3 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:00pm — 2 Comments
कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!
Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments
जाने वो किस जनम का,भुगत रहा है पाप.
Added by AVINASH S BAGDE on December 16, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
ना कहीं उजला नज़ारा.
Added by AVINASH S BAGDE on December 11, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
संसद की सब कुर्सियां, पूछ रही ये बात.
Added by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:00pm — 1 Comment
क्षणिकाएँ
Added by AVINASH S BAGDE on December 5, 2011 at 8:00pm — 8 Comments
हुस्न मिल जायेगा पर नहीं सादगी.
Added by AVINASH S BAGDE on November 16, 2011 at 10:30am — No Comments
बचपन.
Added by AVINASH S BAGDE on November 12, 2011 at 9:00pm — 4 Comments
ताजा सिर्फ सियासी है.
Added by AVINASH S BAGDE on November 2, 2011 at 9:00pm — 4 Comments
पुरुषों की सत्ता बोलें या
Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on October 19, 2011 at 8:00pm — 4 Comments
कैसा असर दोस्तों?
Added by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:00pm — No Comments
मन से फक्कड़ संत वह, तन से रहा फ़कीर.
खड़ीं सामने रूढ़ियाँ, लड़ता रहा कबीर..
तेरह-ग्यारह नाप के, रचे हजारों छंद.
दोहे संत कबीर के, करे बोलती बंद..
पूजे लोग कबीर को, ले अँधा विश्वास..
गड़े कबीरा लाज से, दोहे हुए उदास..
थोडा बोलो चुप रहो, सुनो लगा कर कान.
छोटे मुख मै क्या कहूं, कह गए लोग सुजान..
कथ्य कला काया कसक, कागज़ कलम किताब.
सब मिल कर पूरा करे, ज्ञानदेव का ख्वाब..
अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on October 5, 2011 at 3:30pm — 5 Comments
हिंदी को समर्पित दोहे.
Added by AVINASH S BAGDE on October 3, 2011 at 8:06pm — 7 Comments
(1)
मुकद्दर की बात.
हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल…
Added by AVINASH S BAGDE on October 1, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
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