For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (882)

आभास हो तुम ......

आभास हो  तुम  ........

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो

तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो

जिन मधु पलों को मौन भी तरसे

तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 

तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो .........

अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो

अभिलाष कलश  के  विरह नीर हो

जिस प्रकाश  को  तिमिर भी तरसे

तुम उस  जुगनू  का प्रकाश नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 

तुम रूठी…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments

लम्हा महकता …

लम्हा महकता … एक रचना

सोया करते थे कभी जो रख के सर मेरे शानों पर

गिरा दिया क्यों आज पर्दा  घर के रोशनदानों पर

तपती राहों पर चले थे जो बन के हमसाया कभी

जाने कहाँ वो खो गए ढलती साँझ के दालानों पर

होती न थी रुखसत कभी जिस नज़र से ये नज़र

लगा के मेहंदी सज गए वो   गैरों के गुलदानों पर

कैसा मैख़ाना था यारो हम रिन्द जिसके बन गए

छोड़ आये हम निशाँ जिस मैखाने के पैमानों पर

देख कर दीवानगी हमारी  कायनात  भी  हैरान है

किसको तकते हैं भला हम  तन्हा…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 18, 2014 at 2:37pm — 14 Comments

स्नेह रस से भर देना …..

स्नेह रस से भर देना …..

कुछ भी तो नहीं बदला

सब कुछ वैसा ही है

जैसा तुम छोड़ गए थे

हाँ, सच कहती हूँ

देखो

वही मेघ हैं

वही अम्बर है

वही हरित धरा है

बस

उस मूक शिला के अवगुण्ठन में

कुछ मधु-क्षण उदास हैं

शायद एक अंतराल के बाद

वो प्रणय पल

शिला में खो जायेंगे

तुम्हें न पाकर

अधरों पर प्रेमाभिव्यक्ति के स्वर भी

अवकुंचित होकर शिला हो जायेंगे

लेकिन पाषाण हृदय पर

कहाँ इन बातों का असर होता है

घाव कहीं भी हो…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 17, 2014 at 6:49pm — 8 Comments

परिचय हुआ जब दर्पण से

परिचय  हुआ  जब  दर्पण से ….

परिचय  हुआ  जब  दर्पण  से

तो  चंचल  दृग  शरमाने  लगे

अधरों  में   कंपन  होने  लगी

अंगड़ाई के मौसम .छाने लगे

परिचय  हुआ  जब  दर्पण से ….

ऊषा   की   लाली  गालों   पर

प्रणयकाल    दर्शाने      लगी

पलकों को  अंजन  भाने लगा

भ्रमर   आसक्ति  दर्शाने  लगे

परिचय  हुआ  जब  दर्पण से …

पलकों के  पनघट  पर   अक्सर

कुछ  स्वप्न  अंजाने  आने लगे

बेमतलब    नभ   के   तारों  से…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 11, 2014 at 1:30pm — 8 Comments

नैन कटीले …

नैन कटीले …

नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 6, 2014 at 6:18pm — 26 Comments

तन्हा प्याला .....

तन्हा प्याला  ....

रजकण हूँ मैं प्रणय पंथ का
स्वप्न लोक का बंजारा
हार के भी वो जीती मुझसे
मैं जीत के हरदम ही हारा
नयन सिंधु में छवि है उसकी
वो तृषित मन की मधुशाला
प्रणयपाश एकांत पलों का
मन में जीवित ज्यूँ हाला
गीत कंठ के सूने उस बिन
रैन चांदनी बनी ज्वाला
नयन देहरी पर सजूँ मैं उसकी
हृदय में है ये अभिलाषा
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 4, 2014 at 6:52pm — 16 Comments

क्षणिकाएँ...

क्षणिकाएँ...

1.घन गरजे घनघोर

तिमिर चहुँ ओर

तृण-तृण से तन बहे

करके सब कुछ शांत

मेह हो गया शांत

..........................

2. सावन की फुहार

सृजन की मनुहार

रंगों का अम्बार

आयी बहार

हुआ धरा का

पुष्पों से शृंगार

.......................

3.बुझ गयी

कुछ क्षण जल कर

माचिस की तीली सी

जंग लड़ती साँसों से

असहाय ये काया

.........................

4.हर शाख पर

शूल ही शूल

फिर भी महके…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 1, 2014 at 1:15pm — 18 Comments

मधु पल ....

मधु पल ....

विरह के मारे ये लोचन

नीर कहाँ ले जाएँ

पी को पीर सुनाएँ कैसे

और स्मृति से बतियाएँ

वो स्पर्श एकांत के कैसे

अंग विस्मृत कर जाएँ

कालजयी पल अधर मिलन के

हृदय विचलित कर जाएँ

वायु वेग से सूखे पत्ते

मौन भंग कर जाएँ

बाट जोहते पगले नैना

बरबस भर-भर आएं

साँझ ढले सब पंख पखेरू

अपने नीड़ आ जाएँ

घूंघट में यूँ नैनों को पी

बार बार तरसाएँ …

Continue

Added by Sushil Sarna on October 30, 2014 at 3:00pm — 8 Comments

क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ

1.

थम गई

गर्जन मेघों की

दामिनी भी

शरमा गयी

सावन की पहली बूँद

उनकी ज़ुल्फ़ों से टकरा गयी

............................................

2.

साया जवानी का

अंजाम देख

घबरा गया

वर्तमान की

टूटी लाठी से

भूतकाल टकरा गया

..............................................

3.

किसकी जुदाई का दंश

पाषाण को रुला गया

लहरों पे झील की

आसमाँ का चाँद

बस तन्हा 

रह गया…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 25, 2014 at 2:00pm — 13 Comments

इंतज़ार रहता है …..

हुस्न को दर्पण का ...

प्रीत को समर्पण का ..

विरह को क्रंदन का ....

इंतज़ार रहता है//

भोर को अभिनन्दन का ...

बाहों को बंधन का ...

भाल को चन्दन का ...

इंतज़ार रहता है//

धड़कन को चाहत का ...

यौवन को आहट का ...

घायल को राहत का ...

इंतज़ार रहता है//.

तिमिर को प्रात का ...

वृद्ध को साथ का...

चाँद को रात का ...

इंतज़ार रहता है//

आस को विशवास का…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 12, 2014 at 2:53pm — 6 Comments

सच, ओर कोई नहीं.....

सच, ओर कोई नहीं.....

तन्हा बरसातों में
हिज़्र की रातों में
सुलगते जज़्बातों में
खामोश बातों में
आंसू की सौगातों में
साँसों की कफ़स में
मेरी नस नस में
चांदनी बन कसमसाती
धड़कनों से बतियाती
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 11, 2014 at 12:26pm — 9 Comments

...गुनगुनाने दो पीर को...

गुनगुनाने दो पीर को...



गुनगुनाने ..दो पीर को

प्यासे अधर अधीर को

नयनों के .इस नीर को

मधुर स्मृति समीर को

हाँ , गुनगुनाने दो पीर को ….



रांझे की …उस हीर को

भूखे ..इक ..फकीर को

मरते .हुए …जमीर को

प्यासे नदी के .तीर को

हाँ , गुनगुनाने दो पीर को ….



घायल नारी के चीर को

पंछी के बिखरे नीड़ को

शलभ की ..तकदीर को

घुट घुट मरती भीड़ को

हाँ , गुनगुनाने दो…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 25, 2014 at 7:00pm — 7 Comments

इक ज़माना हो जाता है …

इक ज़माना हो जाता है …

आदमी

कितना छोटा हो जाता है

जब वो पहाड़ की

ऊंचाई को छू जाता है

हर शै उसे

बौनी नज़र आती है

मगर

पाँव से ज़मीं

दूर हो जाती है

उसके कहकहे

तन्हा हो जाते हैं

लफ्ज़ हवाओं में खो जाते हैं

हर अपना बेगाना हो जाता है

ऊंचाई पर उसकी जीत

अक्सर हार जाती है

वो बुलंदी पर होकर भी

खुद से अंजाना हो…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 26, 2014 at 1:00pm — 12 Comments

मील का पत्थर …

मील का पत्थर …

कल जो गुजरता है....

जिन्दगी में....

एक मील का पत्थर बन जाता है//

और गिनवाता है....

तय किये गये ....

सफर के चक्र की....

नुकीली सुईयों पर रखे....

एक-एक कदम के नीचे....

रौंदी गयी....

खुशियों के दर्द की....

न खत्म होने वाली दास्तान//

दिखता है ....

यथार्थ की....

कंकरीली जमीन पर....

कुछ दूर साथ चले....

नंगे पांवों…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 16, 2014 at 7:00pm — 11 Comments

प्रीत पहेली ....

प्रीत पहेली ....

मन तन है
या तन मन है
ये जान सका न कोई
भाव की गठरी
बाँध के अखियाँ
कभी हंसी कभी रोई
प्रीत पहेली
अब तक अनबुझ
हल निकला न कोई
बैरी हो गया
नैनों का सावन
भेद छुपा न कोई
सीप स्नेह में लिपटा मोती
बस चाहे इतना ही
सज जाऊं
उस तन पे जाकर
जिसकी छवि हृदय में सोई

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 8, 2014 at 12:30pm — 10 Comments

इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे ……

इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे ……



वक्त तेरे दामन . को मोतियों से भरूँ

इक बार बीते लम्हों से मिला दे मुझे

थक गया हूँ बहुत ..बिछुड़ के जिससे

इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे



इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे



पंथ के शूलों से हैं रक्त रंजित ये पाँव

नहीं दूर तलक कोई ममता का गाँव

अश्रु अपनी हथेली पे ले लेती थी जो

उस आँचल की छाँव में छुपा दे मुझे



इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे



मेरी अकथ व्यथा को पढ़ लेती  थी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:30pm — 16 Comments

वो सुबह कभी तो आयगी …………..

वो सुबह कभी तो आयगी …………..

उफ़्फ़ !

ये आज सुबह सुबह

इतनी धूल क्योँ उड़ रही है

ये सफाई वाले भी

जाने क्योँ

फुटपाथ की जिन्दगी के दुश्मन हैं

उठो,उठो,एक कर्कश सी आवाज

कानों को चीर गयी

हमने अपनी आंखें मसलते हुए

फटे पुराने चीथड़ों में लिपटी

अपनी ज़िन्दगी को समेटा

और कहा,उठते हैं भाई उठते हैं

रुको तो सही

तभी सफाई वाले ने हमसे कहा

अरे…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 4, 2014 at 2:00pm — 12 Comments

3 मुक्तक …

3 मुक्तक …

१.

ऐ खुदा  मुझ  को  बता  कैसा  तेरा दस्तूर है

तुझसे  मिलने  के लिए  बंदा तेरा मजबूर है

जब तलक रहती हैं सांसें दूरियां मिटती नहीं

नूर हो के रूह का तू क्यूँ उसकी रूह से दूर है



२.

हिसाब तो  साथ  ज़िंदगी  के पूरा हुआ करता है

साँसों के  बाद  ज़िस्म फिर धुंआ हुआ करता है

टुकड़ों में बिखर जाता है हर पन्ना ज़िन्दगी का

ज़मीं का  बशर  फिर आसमाँ का हुआ करता है



३.

हम परिंदों  को  खुदा  से बन्दगी नहीं आती…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 3, 2014 at 11:30am — 12 Comments

प्रेम स्पंदन .....

प्रेम स्पंदन ....

नयन आलिंगन.....

अपरिभाषित और अलौकिक.....

प्रेम स्पंदन//

मौन आवरण में ....

अधरों का अधरों से....

मधुर अभिनंदन//

महकें स्वप्न....

नेत्र विला में....

जैसे महके.....

हरदम चंदन//

मेघ वृष्टि की.....

अनुभूति को ....

कह पाये न....

प्रेम अगन में....

भीगा ये तन//

विछोह वेदना…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 1, 2014 at 2:00pm — 24 Comments

सावन का था महीना .....

सावन का था महीना ......

वो आ के छम्म से बैठी मेरे करीब ऐसे

बरसी हो बादलों से सावन की बूंदें जैसे

सावन का था महीना

मदहोश थी ...हसीना

गालों पे .लग रही थी

हर बूँद ..इक नगीना

आँचल निचोड़ा उसने ..मेरे करीब ऐसे

बरसी हो बादलों से ख़्वाबों की बूंदें जैसे

पलकें झुकी हुई थीं

सांसें ..रुकी हुई थीं

लब थरथरा .रहे थे

पायल थकी हुई थी

इक इक कदम वो मेरे आई करीब ऐसे …

Continue

Added by Sushil Sarna on June 25, 2014 at 7:30pm — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service