For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (844)

हिज्र में भी उसकी याद ……

हिज्र में भी उसकी याद ……

आज वो रहगुज़र ..हमें बेगानी सी लगती है

उनके वादों पे यकीं इक नादानी सी लगती है

इक वाद-ऐ-फ़र्दा के साथ उनका यूँ ज़ुदा होना

फिर इंतज़ार उनका इक कहानी सी लगती है

जिनकी आमद से ख़ल्वत जलवत हो जाती थी

दीद-ओ-दिल में वही मूरत .पुरानी सी लगती है

दम भरती थी जो सदा जन्नत तक साथ देने का

तसव्वुर में उसकी तस्वीर .अंजानी सी लगती है

आज मेरे ख्वाब में वो इक शरर बनके चमकी है

हिज्र में भी…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 12, 2014 at 4:34pm — 10 Comments

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की  चिलमन  उठा के गिराना

वो आँचल  के  कोने  को  मुंह में दबाना

ज़हन में  है  ज़िंदा  वो मंज़र मिलन का

भला   कैसे   भूलूं  मैं  उसका   मनाना

मुहब्बत की   रूदाद क्यूँ अश्कों में भीगी

क्यूँ होता है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना



गुजरती है करवट में तमाम शब हमारी

सलवटों में सिसकता है दिल का फ़साना

रंज होता है क्या ये न जाने थे अब…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 4, 2014 at 7:30pm — 15 Comments

वक्त की आंधी में ....

वक्त की आंधी में ....

कुछ तुमने बढ़ा ली दूरियां
कुछ हम मज़बूर हो गए
अपने अपने दायरों में
इक दूजे से दूर हो गये
चंद लम्हों की मुलाक़ात में
जन्मों के वादे कर लिए
चंद कदम चल भी न पाये
और रास्ते कहीं खो गये
वक्त की आंधी में सारे
स्वप्न गर्द में खो गये
कर न पाये शिकवा कोई
हम दो किनारे हो गये

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 28, 2014 at 5:00pm — 24 Comments

है पानी का बुलबुला ....

जीवन दर्शन पर ३ मुक्तक :



1.है पानी का बुलबुला ....

है पानी का बुलबुला ....ये जीवन तेरा जीव

बड़े भाग से मानव का ...मिला तुझे शरीर

आती जाती साँसों का ...नहीं कोई विश्वास

आत्म सुख के वास्ते हर ले किसी की पीर

2.मूर्ख मानव काया पे …

मूर्ख मानव काया पे ....तू काहे करे गुमान

नश्वर इस संसार में .....व्यर्थ है अभिमान

जान के भी अंजाम को क्योँ बनता अंजान

तू माया की…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 23, 2014 at 5:30pm — 13 Comments

मुहब्बतों के पैगाम ..........

मुहब्बतों के पैगाम .....

ये मुहब्बत भी

अजब शै है ज़माने में

उम्र गुज़र जाती है

समझने और समझाने में

कब हो जाती हैं सांसें चोरी

खबर ही नहीं होती

बरसों नहीं आती नींद

उनके इक बार मुस्कुराने में

डूबे रहते हैं पहरों

इक दूसरे के ख्यालों में

जाने गुज़र जाती शब् कैसे

इक दूसरे से बतियाने में

शब् जाती है तो

सहर आ जाती है

सहर क्या आती है…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 20, 2014 at 1:00pm — 17 Comments

उसका रुमाल..

उसका रुमाल …..

टप,टप

टप,टप

अंधेरी रात का

गहरा सन्नाटा

बारिश के बाद

पेड़ों से गिरती बूंदों के

जमीन पर गिरने की आवाजें

सन्नाटे को तोड़ने का

अनवरत प्रयास कर रही थीं

और साथ ही प्रयास कर रही थी वो

अनगिनित बारिशों में

भीगी रातों की भीगी यादें

कहर ढाती बारिश का

तूफ़ान तो रुक जाता है

लेकिन तबाही का मंजर

दूर तक साथ जाता है

जाने सावन…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 4, 2014 at 12:30pm — 28 Comments

मेरी रचना …

मेरी रचना ऐसी हो
मेरी रचना वैसी हो
घूंघट में है रचना मेरी
न जाने वो कैसी हो
शृंगार करूँ मैं सदा कलम का
नित्य हृदय के भावों से
उस पलक द्वार पर देगी दस्तक
जो मेरी रचना की अभिलाषी हो
मौन अधर हों
मौन नयन हों
मौन प्रेम का
हर बंधन हो
बिन बोले जो
कह दे सब कुछ
मेरी रचना ऐसी हो,

हाँ ,मेरी रचना ऐसी हो…….

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 28, 2013 at 4:30pm — 12 Comments

उलझे प्रश्नों में हँसता मन

क्यूँ

हाँ क्यूँ

मेरा मन

मेरा कहा नहीं मानता

क्यूँ मेरा तन

मेरे बस में नहीं

न जाने इस पंथ का अंत क्या हो

किस इच्छा के वशीभूत हो

मेरे पाँव

अनजान उजाले की ओर आकर्षित हो

निरंतर धुल धूसरित राह पे

बढ़ते ही जा रहे हैं

ये तन

उस मन के वशीभूत है

जो स्थूल रूप में है ही नहीं

न जाने मैं इस राह पे

क्या ढूढने निकला हूँ

क्या वो

जो मैं पीछे छोड़ आया

या वो

जो मेरे मन की

गहरी कंदराओं में…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 27, 2013 at 8:00pm — 24 Comments

तीर चलते हैं मगर

तीर चलते हैं मगर तरकश नजर नहीं आता

चाहत में निगाहों को सफर नजर नहीं आता



अंजाम जान के भी पलकों में घर बनाते हैं

क्यूँ दिल टूटने का उन्हें हश्र नजर नहीं आता



आसमान को छूने की तमन्ना करने वालो

क्यों ज़मीं पर तुम्हें टूटा पंख नजर नहीं आता



लगा दिया इल्जाम बेवफाई का उनके सर

क्यूँ आँख से गिरा अश्क नजर नहीं आता



जिस तकिये पे मिल कर गुजारी थी रातें

उस भीगे तकिये का दर्द नजर नहीं आता



सुशील सरना



मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 25, 2013 at 12:30pm — 14 Comments

प्रेम तृणों से .

प्रेम तृणों से  …….

पलक पंखुड़ी में प्रणय अंजन से 

सुरभित संसृति का श्रृंगार करो 

भ्रमर गुंजन के मधुर काल में 

कुंतल पुष्प श्रृंगार करो 

तृप्त करो तुम नयन तृषा को 

मिलन क्षणों को स्वीकार करो 

अपने उर में अपने प्रिय की 

अनुपम सुधि से श्रृंगार करो 

विस्मृत कर…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 20, 2013 at 8:00pm — 22 Comments

दर्द का सावन

दर्द का सावन ……

.

दर्द का सावन तोड़ के बंधन

नैन गली से बह निकला

मुंह फेर लिया जब अपनों ने

तो बैगानों से कैसा गिला

 

जो बन के मसीहा आया था

वो बुत पत्थर का निकला

मैं जिस को हकीकत समझी थी

वो रातों का सपना निकला

है रिश्ता पुराना कश्ती का

सागर के किनारों से लेकिन

जब दुश्मन लहरें बन जाएँ

तो कश्ती से फिर कैसा…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 19, 2013 at 7:00pm — 18 Comments

ये कैसी आधुनिकता है ….

ये कैसी आधुनिकता है …. …..

.

उफ्फ !

ये कैसी आधुनिकता है ….

जिसमें हर पल …..

संस्कारों का दम घुट रहा है //

हर तरफ एक क्रंदन है ….

सभ्यता आज ….

कितनी असभ्य हो गयी है //

आज हर गली हर चौराहे पर ….

शालीनता अपनी सभी …..

मर्यादाओं की सीमाएं तोड़कर हर ……

शिष्टाचार की धज्जियां उड़ा रही है //

बदन का सार्वजनिक प्रदर्शन …..

आधुनिकता का अंग बन गया…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 16, 2013 at 7:30pm — 17 Comments

कसमों के गाँव

वादों की ..सडकों पे

कसमों के …गाँव हैं

प्रणय के ..पनघट पे

आँचल की ..छाँव है

…वादों की सडकों पे

…कसमों के गाँव हैं

प्रीतम की ……बातें हैं

धवल चांदनी …रातें हैं

सुधियों की .पगडंडी पे

अभिसार के ….पाँव हैं

…वादों की सडकों पे

…कसमों के गाँव हैं

शीत के …धुंधलके में

घूंघट की …..ओट में

प्रतिज्ञा की .देहरी पर

तड़पती एक .सांझ है

…वादों की सडकों पे

…कसमों के…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 10, 2013 at 1:00pm — 16 Comments

उधार के निशान..

किसी गली के नुक्कड़ पर

लगा दीजिये

किसी भी प्रसिद्ध नाम का पत्थर

वो उस गली की

पहचान हो जायेगा

वो नाम

सबकी जान हो जायेगा

कभी गलती से

किसी ने अगर उस पत्थर को

तोड़ने की कोशिश भी की तो

दंगाईयों का काम

आसान हो जायेगा

जी हाँ

नेताओं के लिए

चुनाव के निशान

पुजारी के लिए

तिलक के निशान

उनकी जान होते है

उनके व्यवसाय की

पहचान होते हैं

जाने क्योँ

लोग वाह्य आवरण को

अपनी पहचान…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 9, 2013 at 4:30pm — 12 Comments

तुम्हारे बाहुपाश के लिए …

तुम्हारे बाहुपाश के लिए …….



कितने

वज्र हृदय हो तुम

इक बार भी तुमने

मुड़कर नहीं देखा

तुम्हारी एक कंकरी ने

शांत झील में

वेदना की

कितनी लहरें बना दी

और तुम इसे एक खेल समझ

होठों पर

हल्की सी मुस्कान के साथ

मेरे हाथों को

अपने हाथों से

थपथपाते हुए

फिर आने का आश्वासन देकर

मुझे

किसी गहरी खाई सा

तनहा छोड़कर

कोहरे में

स्वप्न से खो गए

और मैं

तुम्हें जाते हुए

यूँ निहारती रही…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 7, 2013 at 5:30pm — 11 Comments

***हमसाया हो जाएगा ….***

हमसाया हो जाएगा ….
.
जब जिस्म से
साँसों का बंधन टूट जाता है
विछोह की वेदना में
हर शख्स शोक मनाता है
शोक में दुनियादारी के लिए
चंद अश्क भी बहाए जाते है
आपसी मतभेद छुपाये जाते हैं
याद किया जाता है उसके कर्मों को
उससे अपने प्रगाड़ सम्बन्धों के 
मनके गिनवाए  जाते  हैं…
Continue

Added by Sushil Sarna on December 5, 2013 at 1:00pm — 6 Comments

***इक पल मैं हूँ..........***

इक पल मैं हूँ..........



इक पल मैं हूँ इक पल है तू

इक पल का सब खेला है

इक पल है प्रभात ये जीवन

इक पल सांझ की बेला है

इक पल मैं हूँ..........

ये काया तो बस छाया है

इससे नेह लगाना क्या

पूजा इसकी क्या करनी

ये मिट्टी का ढेला है

इक पल मैं हूँ..........

प्रश्न उत्तर के जाल में उलझा

मानव मन अलबेला है

क्षण भंगुर इस जिस्म में लगता

साँसों का हर पल मेला…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 10:00pm — 14 Comments

***बुजुर्ग को सुनाते हैं …..***

बुजुर्ग को सुनाते हैं …..



हाँ

मानता हूँ

मेरा जिस्म धीरे धीरे

अस्त होते सूरज की तरह

अपना अस्तित्व खोने लगा है

मेरी आँखों की रोशनी भी

धीरे धीरे कम हो रही है

अब कंपकपाते हाथों में

चाय का कप भी थरथराता है

जिनको मैं अपने कंधों पर

उठा कर सबसे मिलवाने में

फक्र महसूस करता था

वही अब मुझे किसी से मिलवाने में

परहेज़ करते हैं

शायद मैं बुजुर्ग

नहीं नहीं बूढा बुजुर्ग हो गया हूँ

मैं अब वक्त बेवक्त की चीज़ हो गया हूँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 1, 2013 at 6:12pm — 20 Comments

***पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….***

पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….

लगता है शायद 

उसके घर की कोई खिड़की 

खुली रह गयी 

आज बादे सबा 

अपने साथ 

एक नमी का 

अहसास लेकर आयी है 

इसमें शब् का मिलन और 

सहर की जुदाई है 

इक तड़प है 

इक तन्हाई है 

ऐ खुदा 

तूने मुहब्बत भी 

क्या शै बनाई है 

मिलते हैं तो 

जहां की खबर नहीं रहती 

और होते हैं ज़ुदा 

तो खुद की खबर नहीं रहती 

छुपाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 2:00pm — 20 Comments

***ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......***

ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......

ऐ सांझ ..

तू क्यूँ सिसकती है //

अभी कुछ देर में ..

तिमिर घिर जाएगा …

तिमिर की चादर में …

हर रुदन छुप जाएगा //

रुदन …

उस क्षण का …

जब एक ….

किलकारी ने ….

अपनी चीख से ब्रह्मांड में ….

सन्नाटा कर दिया //

रुदन उस क्षण का ….

जब एक कोपल …

एक वहशी की वासना का ….

शिकार हो गयी //

रुदन उस क्षण का …..

जब दानव बना मानव ……

दरिंदगी की सारी हदें …..

पार कर गया //

रुदन उस…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 29, 2013 at 3:12pm — 18 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service