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Sushil Sarna's Blog (886)

***पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….***

पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….

लगता है शायद 

उसके घर की कोई खिड़की 

खुली रह गयी 

आज बादे सबा 

अपने साथ 

एक नमी का 

अहसास लेकर आयी है 

इसमें शब् का मिलन और 

सहर की जुदाई है 

इक तड़प है 

इक तन्हाई है 

ऐ खुदा 

तूने मुहब्बत भी 

क्या शै बनाई है 

मिलते हैं तो 

जहां की खबर नहीं रहती 

और होते हैं ज़ुदा 

तो खुद की खबर नहीं रहती 

छुपाते…

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Added by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 2:00pm — 20 Comments

***ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......***

ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......

ऐ सांझ ..

तू क्यूँ सिसकती है //

अभी कुछ देर में ..

तिमिर घिर जाएगा …

तिमिर की चादर में …

हर रुदन छुप जाएगा //

रुदन …

उस क्षण का …

जब एक ….

किलकारी ने ….

अपनी चीख से ब्रह्मांड में ….

सन्नाटा कर दिया //

रुदन उस क्षण का ….

जब एक कोपल …

एक वहशी की वासना का ….

शिकार हो गयी //

रुदन उस क्षण का …..

जब दानव बना मानव ……

दरिंदगी की सारी हदें …..

पार कर गया //

रुदन उस…

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Added by Sushil Sarna on November 29, 2013 at 3:12pm — 18 Comments

चंद मुक्तक

1. .....कुछ दीप जलते रह गए …



शायद हमारे प्यार के ....कुछ शब्द अधूरे रह गए

कुछ सकुचाये इकरार से ...कुछ नज़र से बह गए

मासूम लौ निर्बल हुई कम्बखत पवन के जोर से

कहने कहानी प्यार की ..कुछ दीप जलते रह गए

...............................................................................

2. ..........जिस्म तेरी यादों का ....

कफ़स बन के रह गया है .....ये जिस्म तेरी यादों का

सह रहा है अज़ाब कितना .अब ये दिल टूटे वादों का

अब तलब…

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Added by Sushil Sarna on November 27, 2013 at 1:00pm — 14 Comments

***मैं बहुत हेट करती हूँ ……………***

मैं बहुत हेट करती हूँ ……………



हेट हेट हेट

हाँ

मैं बहुत हेट करती हूँ

ये लव

मुहब्बत

और

प्यार जैसे

सब लफ़्ज़ों से

मुझे…

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Added by Sushil Sarna on November 26, 2013 at 12:30pm — 18 Comments

जीवन का आधार.......

जीवन का आधार........

 

हर सांस

ज़िंदगी के लिए

मौत से लड़ती है

हर सांस

मौत की आगोश से

ज़िंदगी भर डरती है

अपनी संतुष्टि के लिए वो

अथक प्रयास करती है

मगर कुछ पाने की तृषा में

वो हर बार तड़पती है

तृषा और तृप्ति में सदा

इक दूरी बनी रहती है

विषाद और विलास में

हमेशा ठनी रहती है

ज़िंदगी प्रतिक्षण 

आगे बढ़ने को तत्पर रहती है

और उसमें जीने की ध्वनि

झंकृत होती…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 25, 2013 at 12:00pm — 15 Comments

ख़्वाबों की हसीन शाम दें ………

ख़्वाबों की हसीन शाम दें ………



क्यूँ

बेवज़ह की

तकरार करती हो

इकरार भी करती हो

इंकार भी करती हो

खुद ही रूठ कर

छुप जाती हो

अपने ही आँचल में

झुकी नज़रों से

फिर किसी के

मनाने का

इंतज़ार भी करती हो

तुम जानती हो

तुम मेरी धड़कन हो

तुम मेरी साँसों की वजह हो

हम इक दूसरे की

पलकों के ख्वाब हैं

कोई अपने ख्वाबों से

रूठता है भला

तुम्हारा ये अभिनय बेमानी है

वरना इस ठिठुरती रात के…

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Added by Sushil Sarna on November 21, 2013 at 1:30pm — 11 Comments

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