अचानक उसकी नज़र सड़क पर धीमी बत्तियों में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | हाड़ कंपा देने वाली ढंड में भी , जब वो सूट पहने अपने कार में ब्लोअर चला के बैठा था , लड़की अत्यंत अल्प वस्त्रों में खड़ी थी | फिर समझ में आ गया उसे , ये कॉलगर्ल होगी |
उसने कार उसके पास रोकी , लड़की की आँखों में चमक आ गयी | आगे का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर आने को बोला और उसके बैठते ही बोला " देखो , मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा , मुझे अपना ग्राहक मत समझना | इस तरह खड़ी थी , क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लगती "|
लड़की ने एक बार उसकी ओर देखा और…
Added by विनय कुमार on July 9, 2015 at 8:53pm — 10 Comments
वफ़ाओं का मेरी सिला दीजिये
हूँ बेहोश मुझको जिला दीजिये
हुआ हूँ मैं गुम इस ज़माने में लेकिन
मुझी को मुझी से मिला दीजिये
कुचलते रहे हैं सदा हर कली को
किसी फूल को अब खिला दीजिये
मिला इस ज़माने में हर कोई खारा
ज़रा अब अमिय भी पिला दीजिये
सज़ा तो बहुत मिल गयी है मुझे अब
वो ख़्वाबों की मंज़िल दिला दीजिये
वफ़ाओं का मेरी सिला दीजिये
हूँ बेहोश मुझको जिला दीजिये !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on July 8, 2015 at 3:02am — 10 Comments
" अरे ,रे , ये क्या कर दिया तूने | काट दिया उस पौधे को भी घाँस के साथ "| शर्माजी एकदम से चिल्ला पड़े उस छोटी लड़की पर जिसने उनसे उनकी लॉन में से घाँस काटने के लिए पूछा था |
पेपर को किनारे रखते हुए वो उठे और लगभग धक्का देते हुए उसे लॉन से बाहर निकाल दिया | " पता नहीं फिर ये अंकुरित होगा या नहीं , कितने प्यार से लगाया था "|
छोटी लड़की उदास बाहर निकल गयी | पेपर उड़ कर घाँस पर आ गिरा , उसमे हेडलाइंस चमक रही थीं " इस साल फिर एक लड़की ने टॉप किया सिविल सर्विसेज में "|
मौलिक एवम…
ContinueAdded by विनय कुमार on July 7, 2015 at 2:28am — 12 Comments
बेटियाँ कभी उदास नहीं होतीं !!
वो तो होती हैं-
सृष्टि की अद्भुत कल्पना
आनंददायक भावना।
वो रहती हैं-
आँगन की हवाओं में
पिता की दुआओं में ।
तभी तो खिल जाती है
एक स्नेहिल मुस्कान
हर लेती जो कितनी थकान।
बांटती है हमेशा-
खुशियों की सत्त्व-दीप्ति
मधुर जीवन संस्कृति।
वैसी कोई दूजी सुवास नहीं होती ।
क्योकिं बेटियाँ कभी उदास नहीं होतीं !!
वो तो दूर करती हैं-
उदासी, दोनों ही घरों…
ContinueAdded by विनय कुमार on July 6, 2015 at 8:00pm — 16 Comments
पिता की अचानक हुई मौत से वो टूट गया । एकदम ठीक ठाक थे , बस हल्का सा बुखार हुआ और दो दिन में चल बसे । आर्थिक स्थिति तो बदतर थी ही ,पहले माँ और अब पिताजी भी , एकदम से बड़ा हो गया वो । पुरे गाँव में ख़बर हो गयी थी और सब रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया । चाचा , जो अलग रहते थे घर पर आ गए थे और अंतिम क्रिया की तैयारियों में लग गए थे ।
अंतिम संस्कार करके वापस चलते समय मौजूद सभी लोगों को रिवाज़ के अनुसार भरपेट नाश्ता कराकर वो भी चाचा के साथ ट्रैक्टर पर गाँव चल पड़ा । घर पहुँच कर चाचा ने उसको सारे…
Added by विनय कुमार on July 4, 2015 at 2:03pm — 22 Comments
" सर , मैं हस्पताल पहुँच गया हूँ , कवर करता हूँ एक्सीडेंट की स्टोरी "|
" अच्छा तो आपने देखा उनको , सामने देखकर कैसा लगा ? रिपोर्टर की आवाज़ ने उसके दर्द में इज़ाफ़ा कर दिया |
" अरे इतने बड़े स्टार से मुलाक़ात तो हो गयी , लोग तो तरसते हैं दूर से भी एक झलक पाने के लिए , कुछ बताईये ", और भी कुछ कह रहा था वो लेकिन दर्द और क्रोध के उबाल में उसने रिपोर्टर का माइक छीन कर फेंक दिया |
" स्टार , स्टार लगा रखा है , मेरी टूटी हड्डियाँ तुम्हे नहीं दिखती , दफा हो यहाँ से "|
मौलिक एवम…
Added by विनय कुमार on July 3, 2015 at 8:42pm — 10 Comments
" आजकल इंडस्ट्री लगाना और उसे चलाना आसान नहीं रहा " कहते हुए उनके चेहरे का दर्द टपक गया |
" क्यों , क्या हो गया ऐसा ", आश्चर्य से पूछा उसने |
" अरे ये मनरेगा जो आ गया , अब जिसको अपने गाँव , घर में ही काम मिल जा रहा है , वो क्यों आएगा दूर काम करने "|
" और रही सही कसर ये शॉपिंग माल वाले पूरी कर दे रहे हैं | बढ़िया ए सी में काम मिल जा रहा है उनको "|
उसे अपना गाँव याद आ गया जहाँ ग्राम प्रधान और अधिकारी मिल कर मनरेगा का आधा से ज्यादा पैसा फ़र्ज़ी नाम से हड़प जाते हैं |
मज़दूर को…
Added by विनय कुमार on July 2, 2015 at 10:42pm — 12 Comments
" आज कैसे याद किया , कोई काम था क्या ?
" नहीं यार , बस यूँ ही तुम्हारी याद आई और चला आया "|
कुछ देर बात चीत चलती रही और फिर वो उठ कर चल दिया | घर पहुँचते ही पत्नी ने पूछा " बात की उनसे , क्या कहा उन्होंने !
" हाँ , कहा तो हैं , देखो क्या होता हैं "|
" जब झूठ बोल नहीं सकते तो क्यों कोशिश करते हो | उनका फोन आया था , कह रहे थे जरूर कोई बात थी लेकिन मुझे बताया नहीं | अभी भी अपने उसूलों का पक्का हैं "|
" देखो तुम्हारे इतना कहने पर मैं चला तो गया था लेकिन कहते नहीं बना | खैर…
Added by विनय कुमार on June 26, 2015 at 12:44am — 18 Comments
" साहब , ई सब खाने वाला समान को जलवा देंगे आपलोग ", गोदाम में रखते हुए जोखन ने पूछा |
" हाँ , इनकी एक्सपायरी हो गयी है और ये नुक़्सान पहुँचा सकते हैं लोगों को , इसलिए इनको जलाना पड़ेगा "|
" हमको दे दो साहब , जब भूख प्यास हम लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाती है तो ये क्या नुक़्सान करेगा | बच्चे दुआ देंगे आपको "|
एक बार उसने जोखन की आँखों में देखा , फिर मन में सोचा " मैं चांस नहीं ले सकता | कुछ हो गया तो ?
थोड़ी देर में सारा सामान जल रहा था और जोखन की आँखों में कुछ देर पहले जले…
Added by विनय कुमार on June 23, 2015 at 9:00pm — 10 Comments
" भाईसाहब , आपका शुभनाम ?
" जी , राजेश कुमार "।
" और आगे ?
" बस इतना ही , क्यों ?
" मेरा मतलब था कि कोई टाइटल नहीं लगाते आप "।
" जरुरी है क्या ", लहज़ा तल्ख़ हो गया ।
" अब लोगों को पहचाने भी तो कैसे ", अजीब सी नज़रों से देखते हुए वो आगे बढ़ गया ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 21, 2015 at 1:00am — 16 Comments
" आज के बाद ये सब खेल मत खेलना " और उसने सारे गुड्डे , गुड़िया को उठा कर फेंक दिया । बेटी सहम गयी , कुछ महीने पहले मम्मी ने ही इतने प्यार से ख़रीदे थे उसके लिए !
अगले दिन वो खिलौनों में बाइक्स और कार के अलावा कुछ गन भी ले आई थी और तलाक़ के नोटिस का ज़वाब भी भिजवा दिया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 18, 2015 at 2:03am — 12 Comments
" दिमाग ख़राब हो गया है इस लड़की का ", मम्मी बुरी तरह परेशान थीं । इतना अच्छा घर और वर था फिर भी मना कर दिया । अपने आप को कोस रही थीं कि क्यों सब बता दिया उसको ।
" आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , इतने अस्पृह कैसे रह सकते हैं आप लोग "।
" अरे , घर में कौन काम करता है , इसमें तुम्हे क्या दिक़्क़त है "।
" माँ , जो इंसान अपने घर में एक बच्चे के काम करने पर इतना संवेदनहीन हो सकता है , वो मेरे प्रति संवेदनशील रह पायेगा "?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 15, 2015 at 2:39am — 18 Comments
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले
कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले
ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले
ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले
तलाश थी सिर्फ , एक फूल की विनय
हज़ार मिले राह में, कांटे रखने वाले !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 14, 2015 at 4:00pm — 16 Comments
" बहुत गुमान था तुमको सृजन पर , देखो मेरी ताक़त ", विनाश इतरा रहा था । पूरा इलाका तबाह हो गया था , दूर दूर तक कहीं जीवन का कोई नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था ।
लेकिन श्रृष्टि अभी भी मुस्कुरा रही थी " तुमने शायद पीछे मुड़ कर नहीं देखा "।
विनाश ने पलट कर देखा , उसका दर्प चूर चूर हो गया ।
एक नन्हीं सी कोंपल सृजन की विजय पताका फहरा रही थी , जीवन पुनः जीत गया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 13, 2015 at 1:38pm — 20 Comments
" मम्मी , आज तो बहुत आसान टास्क मिला था मुझे स्कूल में ", मन्नू बोला ।
" अच्छा , क्या था , जरा मैं भी सुनूँ "।
मन्नू ने चहकते हुए कहा " घर की सबसे यूज़फुल और सबसे यूज़लेस चीज़ लिखना था "।
" सबसे यूज़फुल तो आप ही हो मम्मी "|
" और सबसे यूज़लेस चीज़ तो आपने कितनी बार बताया है ", दरवाजे पर स्तब्ध खड़े दादाजी अपनी उपयोगिता समझ गए थे ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 13, 2015 at 12:02am — 22 Comments
" क्यों नहीं हो सकता ये , मैं रह सकती हूँ तुम्हारे घर तो तुम क्यों नहीं रह सकते मेरे घर शादी के बाद "|
" लेकिन लोग क्या कहेंगे , घर जमाई बन गया | मेरे घरवाले भी तो तैयार नहीं होंगे "|
" जब मुझसे शादी का फैसला किया था , तब क्या लोगों की परवाह की थी तुमने | और तुम्हारे घर तो भैया का परिवार है ही , मैं तो एकलौती लड़की हूँ अपने पेरेंट्स की , उनको कैसे अकेला छोड़ दूँ "|
" ठीक है , मैं घर में बात करता हूँ | क्या हम लोग आते जाते नहीं रह सकते "|
" आते जाते तो हम लोग यहाँ से भी रह सकते…
Added by विनय कुमार on June 11, 2015 at 2:29am — 20 Comments
उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 8, 2015 at 3:46pm — 22 Comments
रात में धमाका हुआ , पूरा ट्रक उड़ गया , कोई नहीं बचा ।
सारी टोली अगले दिन टी वी पर चिपकी थी , अपने विजय का दृश्य और उसका असर देखने के लिए ।
उन समाचारों में बस उसी विस्फ़ोट की गूँज थी और सारे देश में उसी पर चर्चा हो रही थी । लेकिन फिर टी वी पर आये उस दृश्य को देखकर वो सब निशब्द रह गए जिसमे तीन साल की बच्ची विस्फोट में मृत अपने पिता के शरीर से लिपट कर रो रही थी ।
उसने कोई सवाल नहीं पूछा लेकिन उसके सवालों का उनके पास कोई ज़वाब नहीं था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 7, 2015 at 11:58pm — 29 Comments
सभा कक्ष में सन्नाटा था , औचक़ मीटिंग बुलाई गयी थी । सभी कयास लगा रहे थे कि क्या वज़ह हो सकती है इसकी । इतने में जिलाधिकारी महोदय ने प्रवेश किया , पीछे पीछे मुख्य विकास अधिकारी और अन्य अधिकारीगण भी अंदर आये । बिना समय जाया किया जिलाधिकारी साहब मुद्दे पर आ गए ।
" अभी अभी मुख्यमंत्री सचिवालय से फोन आया है कि मुख्यमंत्री महोदय परसों पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण के लिए अपने जिले में आ रहे हैं । किस जगह पर ये कार्यक्रम करवाना ठीक रहेगा , आप लोग अपनी राय दें "।
अभी उनकी बात ख़त्म भी नहीं…
Added by विनय कुमार on June 6, 2015 at 2:28am — 16 Comments
" डॉक्टर साहब , बच्चा बच तो जायेगा न ", उसके दोनों हाँथ जुड़े थे ।
" देखो हम लोग पूरी कोशिश करेंगे , आगे ऊपरवाले की मर्ज़ी । बस पैसों का इंतज़ाम कर लेना "।
सुबह जूनियर डॉक्टर ने फोन किया " सर , स्पेशलिस्ट का फोन आया था कि वो नहीं आ पाएंगे | इसको डिस्चार्ज कर देते हैं , कहीं और करवा लेगा ऑपरेशन "।
" क्यों , ऑपरेशन क्या असफ़ल नहीं होते ", डॉक्टर साहब ने समझाया । ऑपरेशन की तैयारियाँ होने लगीं ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 4, 2015 at 4:35pm — 20 Comments
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