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ऐ मन निराश तुम मत होना

ऐ मन निराश तुम मत होना, मंज़िल तुझको मिल जायेगी

अपना न कभी धीरज खोना, फिर तो दुनिया हिल जायेगी।।



चलते रहना, बढ़ते रहना, इस कठिन डगर में रुकना मत

लाखों विपत्ति आ जाय सामने, किसी के आगे झुकना मत।

हौसला कभी भी मत खोना, विपदा आयेगी जायेगी।।

ऐ मन निराश तुम मत होना, मंज़िल तुझको मिल जायेगी।।



उलझनें बहुत सी आयेंगी, कुछ लोग तुम्हे बहकायेंगे

रोकने को तुझको क्षणिक फूल खुश्बू अपनी महकायेंगे।

बढ़ते रहना फिर देखोगे कलियाँ खिलती ही जायेंगी।।

ऐ मन निराश… Continue

Added by आशीष यादव on June 1, 2012 at 8:30am — 8 Comments

आभास!

“हूँ, कुछ कहा”. “कुछ भी तो नहीं”.”मुझे लगा शायद तुम कुछ बोले”. अक्सर ऐसा होता है जब किसी से बात करने का मन हो किन्तु जुबान खामोश हो.एक आवाज कान में गूंजने का आभास होता है.खामोशी में भी ये आवाज कहाँ से आती है?  ये आभास कैसे होता है? कभी नहीं जान सका. कई बार घर में अकेले बैठे हों और बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है जब हम वहाँ जाकर देखते हैं तो पता चलता है वहाँ तो कोई भी नहीं है.

कई बार पलंग पर पड़े…

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Added by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 7:30am — 11 Comments

जिंदगी का सफ़र

कभी कभी सोचता हूँ

यह जिंदगी मुझे कहाँ ले कर चल पड़ी

क्या सोचा था क्या हुआ था

क्या खोया था क्या रोया था

न जाने कितनी थी मजबूरियां इतनी

किस मोड़ पे ले आई है ये जिंदगी

में कहाँ आ खड़ा हूँ

होश आई तो पता चला में किस मोड़ पे खड़ा पाया

जिंदगी तेरे संग जीना सीख लिया

तेरे गीत गुनगुनाता हूँ

तेरे संग चलता हूँ

खूबसूरत सफ़र है तू

हरदम हर पल कुछ नया है

कुछ कर गुजरने की तमन्ना है तू

खुशियाँ की बौछार है

हर दिन एक नया…

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Added by Rohit Singh Rajput on May 31, 2012 at 6:30pm — 8 Comments

धुंए का शौक लग गया तो ज़िन्दगी गई

आज 31 मई विश्व  तम्बाकू  विरोधी दिवस पर एक  विशेष रचना





सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई

धुंए का शौक लग  गया तो  ज़िन्दगी गई



छुप छुप के पीना छोड़, खुल्लेआम पी रहे

माँ की  लिहाज़,  बाप से शरमिन्दगी गई



गुटखा चबाने वाले की…

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Added by Albela Khatri on May 31, 2012 at 4:30pm — 40 Comments

तेरे प्रेम में मैंने प्रेम गीत गाया

इस गीत मैं कुछ वांछित बदलाव करने की कोशिश की है आदरणीय सम्पादक महोदय से निवेदन है की इसे सम्पादित करने की कृपा कर मुझे कृतकृत्य करें



तेरे नैनों में, कैसा ये जादू है

देख के मन ये, मेरा बेकाबू है

इन नैनो में, अब डूब के, मैंने ये मन गंवाया

तेरे प्रेम में, मैंने प्रेम गीत गया ,मैंने प्रेम .....................



मन में छुपाया है प्रेम तेरा, तन में बसाया है प्रेम तेरा

आँखों की प्यास है प्रेम तेरा, जीवन की आस है प्रेम तेरा

शीतल सी आग है प्रेम तेरा ,…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 1:30pm — 17 Comments

तेरी निगाह की जादूगरी मैं कैसे लिखूं

तेरी निगाह की जादूगरी मैं कैसे लिखूं

दिखी तराश जो हुश्ने-परी मैं कैसे लिखूं



यहाँ 'न' दिल बिका पामाल का चाहत के लिये

दिवानगी लगी सौदागरी मैं कैसे लिखूं



न कायनात सी दिलकश यहाँ पे शै है को

खुदा बता तेरी कारीगरी मैं कैसे लिखूं



न तोड़ आइना झूठा कभी ये होगा नहीं

बड़ी कमाल है…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 30, 2012 at 10:30pm — 15 Comments

जीवन तुझसे एक वर माँगू

जीवन तुझसे एक वर माँगू

पाप पुण्य से दूर 

जीवन की समझ माँगू 

एकाकी अगर सत्य हो तो 

तथागत बनने का वर माँगू

आवेश ही एक मात्र  मार्ग हो तो 

दुर्योधन का आवेश पाऊँ

क्षमा ही ध्येय हो तो 

युधिष्ठिर का मन पाऊँ 

समर्पण ही अगर सत्य हो तो 

समर्पण की धुरी पर जो कर्ण पिसा 

मैं भी समर्पित हूँ 

उपेक्षा अगर सत्य हो तो 

एकलव्य सा ध्यान…

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Added by arunendra mishra on May 30, 2012 at 9:30pm — 18 Comments

कोशिशों के समंदर

कोशिशों के समंदर से कामयाबी के मोती ढून्ढ लायेंगे 

हौसले की पतवार से कठिनाइयों का दरिया पार कर जायेंगे 
लक्ष्य के बादल को अपनी प्रतिभा के तीर से ऐसे चीर जायेंगे 
वर्षा के सामान हमारे गुण हर दिशा में बरस जायेंगे 


हिमालय की चोटियों की  तरह  ऋतू में शीतल  रहेंगे
क्रोध अहंकार और लालच को कभी नहीं अपनाएंगे 
सरिता के जल के  सामान हमेशा प्रयत्नरत …
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Added by Rohit Dubey "योद्धा " on May 30, 2012 at 8:00pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
तुमको अलख जगाना होगा…

साहित्य साधना इष्ट आराधना

पवित्रतम ह्रदय निस्सृत पूजा है,

निर्मल निर्झर भाव सरिता ये

उद्गम अन्तः मन जिसका है,…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 30, 2012 at 7:30pm — 34 Comments

एक गाना प्यार का ...

सांस  में सुर सनसनाना प्यार का

ज़िन्दगी है  ताना बाना  प्यार का



मौत से कह दूंगा, रुक जा दो घड़ी

आने वाला है  ज़माना  प्यार का



यों तो हर मौसम का अपना रंग है…

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Added by Albela Khatri on May 30, 2012 at 11:00am — 32 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
द्वन्द

जैसे ही मैंने दरवाजा खोला …

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Added by rajesh kumari on May 30, 2012 at 9:30am — 22 Comments

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी।

अश्क़ों से अपने गाल भिगोया नही कभी॥

 

हर सिम्त है धुआं यहाँ हर सिम्त आग है,

इस खौफ़ से ही चैन से सोया नही कभी॥

 

दिल में जिगर में था वही साँसों में…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 28, 2012 at 9:30pm — 17 Comments

विश्वासघात [कहानी ]

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गाँव सुन्नी  ,हिमालय की गोद में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस गाँव के भोले भाले लोग ,एक दूसरे के साथ मिलजुल कर प्यार से रहते थे | इसी गाँव की दो सहेलियाँ प्रीतो और मीता,बचपन से ले कर जवानी तक का साथ ,लेकिन आज प्रीतो गौने के बाद ,पहली बार अपने ससुराल दिल्ली जा रही थी |मीतो दूर खड़ी अपनी जान से भी प्यारी सहेली को कार में बैठते  हुए देख़ रही थी ,उसके आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे और यही हाल प्रीतो का भी था ,उसकी  नम आँखें अपनी सहेली मीता को ढूंढ़…

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Added by Rekha Joshi on May 28, 2012 at 9:10pm — 27 Comments

दिल का मेरे घर जलने वाले...

फरियाद करती हूँ तुझे गमे ए दिल न मिले 

जख्म ए जिगर मुझको दिलाने वाले...
कल तुझको भी कहीं रोना न पड़ जाये 
ऐ  मुझ पे  आज  मुस्कराने  वाले... 
दिल का तेरे चैन  बर्बाद हो न  जाये 
रातों की  नीद  मेरी  उड़ने  वाले... 
जग में अपना नाम तो बचाए रखना 
जग को  मुझ पे यूँ  हंसाने  वाले...
फिर कभी किसी से इश्क न करना 
इश्क का आइना मुझको…
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Added by Ajay Singh on May 28, 2012 at 6:40pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वंशी बना गया

एक सूख कर टूटी हुई डाली थी ज़मीं पर,
वो आया और पतझड़ को भी सावन बना गया I
 
यूँ थाम अपने हाथ डाली मुस्कुरा उठा,
वो स्वप्न ज़िन्दगी के मौत में जगा गया I
 
पपड़ी थी तिरस्कार की डाली पे जो जमी,
नेह की शबनम से वो उसको हटा गया I
 
हक मान अपने हाथ डाली जिस्मों जान के,
ज्ञान बाण भेद वो कन्दरा गढा…
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Added by Dr.Prachi Singh on May 28, 2012 at 12:31pm — 14 Comments

दो कवितायेँ किसान भाईयों के लिए

किसान भाईयों के लिए जो निरंतर आत्महत्याओं के लियें विवश हो रहे हैं ...
.
१.मैं किसान हूँ  
मैं बोता हूँ
गन्ने , चावल , आलू
सब्जियां और ना जाने
कितनी फसलें
खोदता हूँ मिटटी
प्यार से रोपता हूँ
देता हूँ स्नेह
इंच दर इंच बढ़ना
 रोज ताकता हूँ
और नाच उठता हूँ
बढ़ता देख
गाता हूँ…
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Added by MAHIMA SHREE on May 27, 2012 at 5:00pm — 22 Comments

भारत बंद

खुल जा सिम सिम बंद हो जा सिम सिम –दुकान हो या कार्यालय बंद करना,कराना,या खुलवाना,यह तमाशा भारत बंद के मौके पर देखने या दिखाने का मधुर दृश्य दृष्टिगोचर होता है|

                भारत बंद हम भारतीयों का राष्ट्रिय त्यौहार है. पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, और हमें तो भारत बंद कराने के लिए एक सरकार की टेढ़ी चाल का इंतजार रहता है|यह त्यौहार प्रति वर्ष किसी भी महीने में मनाया जा सकता है|सरकार को भारत बंद को…

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Added by UMASHANKER MISHRA on May 27, 2012 at 2:00pm — 6 Comments

इस मुकम्मल जहाँ में

यादों में जी कर उसकी खुद को परेशान  कर रहें है
अब यही काम सरे आम कर रहे हैं 
होते थे पहले औरों से,
 मगर अब खुद ही को बर्बाद कर रहे हैं 


आँखों में उसकी जीते थे 
सांसों को उसकी छुते थे
राहों से उनकी गुज़रते थे
चाहों में…
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Added by Rohit Dubey "योद्धा " on May 27, 2012 at 12:30am — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मैं ही हूँ

मैं ही हूँ (5.04.2012)

चक्षु पटल भींच

एक अक्स उभरता है...

जो गहन तिमिर में

कोटिशः सूर्य सा चमकता है...

स्मरण जिसका महका देता है

सम्पूर्ण जीवन...

ख़ामोशी में गूंजती है

जिसकी प्रतिध्वनि अन्तः करणों में

और उन अनकहे शब्दों की

झंकृत स्वर तरंगें

नस नस में दौढ़ती हैं

सिहरन बन कर...

और बेसुध मन बावरा

तय कर लेता है

मीलों के फांसले

एक क्षण…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 26, 2012 at 11:00am — 10 Comments

प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया

प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया 

करुण वेदना , विरह अश्रु , और मौन ने मेरा श्रृंगार किया 

कितनी संवेदना ,कितनी आह

कितने अश्रु , कितनी चाह

कितने आलाप , कितने गान

मिल कर भी

संतॄप्त न कर पाती

उर अरमनों में छिपे स्पंदन को,

प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया 

सावन रिक्त , शशि सुप्त

सूरज न उग्र , रौद्र नयन हैं रुष्ट

प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया 

करुण वेदना , विरह अश्रु , और मौन ने मेरा…

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Added by arunendra mishra on May 25, 2012 at 11:56pm — 9 Comments

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